अभी-अभी पैदा हुआ बच्चा झालर बनाने में लग गया। कूदते हुए कहीं चोट लग जाये तो कौन जिम्मेदार होगा। बालश्रम का सरासर उल्लंघन है यह कानून। |
दीपावली एक बार फ़िर आ गई ! पूरे फ़ौज फ़ाटे के साथ आई है। साथ में बाजार को लाई है। आजकल हर त्योहार बाजार के साथ ही आता है। हर त्योहार का बाजार से गठबंधन हो रखा है।
जैसे लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टियों ने चैनल , अखबार खरीद रखे हैं वैसे ही बाजार ने त्योहार खरीद लिये हैं।
त्योहार आजकल बाजार पर पूरी तरह आश्रित हो गये हैं। उसने अपनी सारी ताकत बाजार को सौंप दी है।त्योहार बिना बाजार के आने से डरता है। उसको लगता है कि बाजार के बिना उसको कोई पूछेगा नहीं। आजकल त्योहार बाजार की गोद में बैठकर आता है। सारे त्योहार बाजार-बालक सरीखे हो गये हैं। लोकतंत्र में सरकारें कारपोरेट के इशारे पर नाचती हैं। त्योहार बाजार की धुन पर थिरकते हैं।
जैसे बिना पैसे चुनाव नहीं लड़े जाते वैसे ही बिना बाजार त्योहार नहीं मनता। बिन बाजार त्योहार है सून।
राजा महाराजाओं की सवारी निकलती थी तो सबसे पहले हरकारे हल्ला मचाते हुये निकलते होंगे - ’होशियार, खबरदार, शहंशाहों के शहंशाह, बादशाहों के बादशाह जिल्लेइलाही, महाराज पधार रहे हैं।’
बाजार आज का बादशाह है। शहंशाहों का शहंशाह है। जिल्लेइलाही है । महाराज है। हर त्योहार पर उसकी सवारी निकलती है। अपना जलवा देखने के लिये वह निकलता है। जहां-जहां से उसकी सवारी निकलती है , वहां-वहां रोशनी की बौछार हो जाती है। उसके रास्ते की हर सड़क चमक जाती है।
लोकतंत्र में मंत्रियों के दौरे की सूचना के पोस्टरों से शहर पट जाते हैं। त्योहारों पर बाजार का दौरे होते हैं। इसकी सूचना हर आम और खास को शुभकामना संदेशों के जरिये दी जाती है। त्योहारों पर दिये जाने वाले शुभकामना संदेश बाजार के हरकारे होते हैं। वे घोषणा करते हैं-’ होशियार, खबरदार, शहंशाहों के शहंशाह, जिल्लेइलाही बाजार जी पधार रहे हैं।’
शुभकामना संदेश आपको त्योहार के मौके पर लुटने के लिये तैयार करते हैं। संदेश पाकर आप खुशी से उत्तेजित हो जाते हैं। इन्ही उत्तेजना के क्षणों में बाजार आपसे मनमानी करता है। आपको लूट लेता है। लूटकर फ़ूट लेता है। आप लुटने के बाद ’मीटू’ घराने की शिकायत भी नहीं कर सकते। करेंगे भी तो बाजार यह कहकर बच जायेगा-’ये सहमति से बने संबंध थे।’
शुभकामना संदेश भी बाजार अपने हिसाब से बनवाता है। इस बार जो संदेश टहल रहे हैं उनमें से एक में एक नल से गिन्नियां निकल रही हैं। सारी गिन्नियां हाथ में समाती जा रही हैं। बगल में कमल खिला हुआ है। मतलब कमल देख रहा है, नल से गिन्नियां निकल रही हैं। किसी अनजाने के हाथ में समाती जा रही हैं। हाथ हिल तक नहीं रहा है। निठल्ला है। बिना मेहनत की कमाई निठल्ले हाथ में समा रही है। कोई कुछ बोल नहीं रहा है।
कायदे से यह मामला आय से अधिक संपत्ति का बनता है। जीएसटी चोरी का बनता है। काली कमाई का बनता है। लेकिन कोई कुछ बोल नहीं रहा है। बोले भी कौन ? सीबीआई , रिजर्व बैंक ईडी सब अपने लफ़डों में फ़ंसे हैं। लोग भी एक दूसरे को भेज रहे हैं यह बिना मेहनत की कमाई। लेकिन यह आभासी कमाई है। इसके झांसे में बाजार आपकी जेब से क्या लूट ले गया आपको हवा तक नहीं लगेगी।
बिना मेहनत, बिना रसीद के गिन्नियां गिरकर समा रहीं हैं हाथ में। कोई शिकायत नहीं कर रहा है। सब चुपचाप देख रहे हैं। |
दूसरा संदेश आज ही चलन में आया है। एक स्केच बनता है। स्केच से एक बच्चा निकलता है। निकलते ही वह बच्चा बेचारा बल्ब और उसकी झालर बनाने निकल लेता है। झालर बनाते हुए जब कूदता है बच्चा तो मेरा जी यह सोचकर दहल जाता है कि कहीं गिर गया तो चोट लग जायेगी। झालर बनाकर बच्चा उसके शुभकामना संदेश बनाता है। घर-घर बांटता है।
भले ही एक स्केच हो लेकिन है तो अभी-अभी पैदा हुआ दुधमुंहा बच्चा ही। पैदा होते ही बिना सोहर सुनाये बच्चे को काम में जोत दिया गया। उसकी अम्मा अपने बच्चे को दूध भी न पिला पाई। पक्का उसका दूध भी बिक गया होगा डब्बे में बन्द होकर। क्या पता बच्चे का बनाया ग्रीटिंग कार्ड और दूध का डिब्बा किसी माल में एक साथ बिक रहा हो।
एक दुधमुंहे बच्चे को उसकी मां के दूध से वंचित करके झालर और बल्ब सजाने , शुभकामना संदेश बनाने के लिये लगा देना कहां की इंसानियत है भाई। बजर गिरे ऐसे बाजार पर। नठिया कहीं का।
बाजार तो जो कर रहा है वह कर ही रहा है। वह तो है बदमाश। अपनी बढोत्तरी के लिये वह हर जायज-नायाजज हरकते करता ही है। लेकिन हम भी तो बिना जाने-बूझे उसको बढावा दे रहे हैं। हाल ही में पैदा हुये बच्चे से ग्रीटिंग कार्ड बंटवा रहे हैं। यह बालश्रम कानून का भयंकर उल्लंघन है। वो तो कहिये सुप्रीम कोर्ट अभी सीबीआई, राफ़ेल, राममंदिर में उलझा हुआ है वर्ना इस मसले का स्वत: संज्ञान लेकर नोटिस दे देता तो आप ग्रीटिंग भेजना भूलकर मेसेज कर रहे होते -’ भाई साहब, सुप्रीम कोर्ट के किसी वकील से जान पहचान हो तो बताइये।’
इसीलिये हम इन सब फ़र्जी और मुफ़्तिया शुभकामना संदेशों के झांसे में नहीं आते। अपने मन के कारखाने में बनी शुद्ध बधाइयां भेजते हैं। शुभकामनायें साथ में नत्थी कर देते हैं। बधाइयां और शुभकामनायें पक्की सहेलियां हैं। साथ -साथ खुशी-खुशी चली जाती हैं।
आपको भी भेजी हैं, बधाई और शुभकामनायें। दीपावली मुबारक हो, मंगलमय हो।
sundar..... आप लुटने के बाद ’मीटू’ घराने की शिकायत भी नहीं कर सकते। करेंगे भी तो बाजार यह कहकर बच जायेगा-’ये सहमति से बने संबंध थे।’.........pranam.
ReplyDeletePlease sir give me MTS post in your Parachute factory kanpur please please sir give me 😭😭😭😭
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