कचरा अपने मगज का, मन में ही धरो लुकाय,
देखि अठिलैंहैं लोग सब, औरौ देहैं छितराय।
भला जो देखन मैं चला, भला मिला न कोय,
फ़िर जो देखा ध्यान से, मुझसे भला न कोय।
मंहगाई की मार को, मानो सब हैं गये भुलाय,
अब चुनाव हाल ये, कछु और न देखा जाय।
-कट्टा कानपुरी
कचरा अपने मगज का, मन में ही धरो लुकाय,
देखि अठिलैंहैं लोग सब, औरौ देहैं छितराय।
भला जो देखन मैं चला, भला मिला न कोय,
फ़िर जो देखा ध्यान से, मुझसे भला न कोय।
मंहगाई की मार को, मानो सब हैं गये भुलाय,
अब चुनाव हाल ये, कछु और न देखा जाय।
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