अपना दैनिक कॉलम प्रतिदिन की शुरुआत करते हुई शरद जोशी जी ने लिखा था :
"लेखकों को अपने विषय में बहुत भ्रम होता है।"
"इस तरह के भ्रम के लिए लेखक होना कतई जरूरी नहीं है। केवल भारतीय होना ही पर्याप्त होता हैं।" मैंने कहा।
अज्ञान के साथ आत्मविश्वास का संगम हमसे क्या कुछ नहीं करवा सकता। देश और देशवासियों की प्रगति का यही रहस्य है। यह संगम समुचित मात्रा में हो तो आप मुख्यमंत्री बन सकते हैं, प्रधानमंत्री बन सकते हैं, राष्ट्रपति बन सकते हैं। संगीतज्ञ बन सकते हैं। चित्रकार, समीक्षक, अफसर, संपादक सब कुछ बन सकते हैं। और जब यह सब हो सकता है, तो मैं प्रतिदिन क्यों नहीं लिख सकता? बहुत हुआ तो यही होगा न कि मैं वैसा ही लिखूंगा जैसा यह देश चल रहा है।
और मैं लिखने लगा। श्रीगणेशाय नम:।
- शरद जोशी
इस लिहाज से देखें तो आज के अधिकांश व्यंग्य जैसा लिखने वाले लेखक शरद जोशी परम्परा के सच्चे वाहक हैं। व्यंग्य लिखने के लिए जरूरी 'अज्ञान और आत्मविश्वास' लादे हुए। वैसा ही लिखते हुए, जैसा यह देश चल रहा है।
आप भी देर मत करिए। लिखना शुरू कर दीजिए। अज्ञान के साथ आत्मविश्वास की कमी हो तो हमसे ले लीजिए। ढेर है हमारे पास। जमाऊ लेखक बन जाने पर वापस कर दीजियेगा।
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