लेह में आने के अगले दिन नुब्रा घाटी के लिये निकलना था। ड्राइवर लखपा ने सुबह जल्दी चलने की बात कही। हमने हां भर ली। लेकिन निकलते हुये देर हो ही गयी। तसल्ली से नाश्ता करते हुये निकले।
जहां हम रुके थे उसके आसपास सेना के कई संस्थान थे। एक यूनिट के बाहर तिरंगा फ़हरा रहा था। सेना की गाड़ियों की आवाजाही हो रही थी। इन सबको देखते हुये हम आगे बढे।
रास्ते में कुछ स्कूल दिखे। बच्चे स्कूल के मैदान में खेलते। सभी स्कूल सेना की यूनिटों के सहयोग से चलते हैं। इतनी कठिन परिस्थिति में सेना के सहयोग के बिना सहज जीवन मुश्किल। सेना को भी स्थानीय लोगों का पूरा सहयोग मिलता है।
जैसे-जैसे ऊंचाई बढती गयी , पहाड़ बर्फ़ से ढकते गये। बर्फ़ पहाड़ों के कुछ हिस्सों को ढके हुये उनको सफ़ेद बना रही थी। बर्फ़ का हिस्सा नीचे से गलते हुये पानी में बदलता जा रहा। पानी जहां जगह मिली वहां से नीचे बहता जा रहा था। कहीं पहाड़ के किनारे से, कहीं बीच सड़क से, कहीं दोनों तरह से। बीच सड़क से गुजरते हुये पानी सड़क के हिस्से को भी अपने साथ लेती जा रही थी - ’चल मेरी गुइय़ां’ कहते हुये। जगह-जगह सड़क उखड़ गयी थी।
बर्फ़ को देखने के लिये शायद बादल भी उतावले थे। जगह-जगह उमड़ते हुये बर्फ़ के ऊपर टहल रहे थे। सूरज भाई भी रोशनी की सर्चलाइट मारते हुये सबको चमकाते हुये सब पर निगाह रखे थे।
लेह से करीब 35 किमी दूर और लगभग 2 किमी की ऊंचाई पर जगह का नाम है -खरदुंग-ला । खरदुंग-ला दर्रा की सड़क दुनिया की सबसे ऊंची सड़क है जहां गाड़ियां चलती हैं। दुनिया भर के मोटर साइकिलिस्ट यहां चलना एक उपलब्धि मानते हैं।
खरदुंग-ला में पहाड़ चारो तरफ़ बर्फ़ से ढंके थे। यात्रियों के जत्थे के जत्थे अकेले , परिवार सहित यहां आने की यादें सुरक्षित रखने के लिये तरह-तरह से फ़ोटो खिंचा रहे थे। कोई सेल्फ़ी ले रहा था, कोई ग्रुप फ़ोटो। वहीं पर ’बार्डर रोड आर्गनाइजेशन’ की तरफ़ से यह सूचना देते हुये खम्भा लगा है कि यह सड़क दुनिया की सबसे ऊंची सड़क है। उस खम्भे के पास खड़े होकर फ़ोटो खिंचवाने की लोगों में होड़ लगी थी। जिस तरह विवाह मंडप में दूल्हे-दुल्हन के साथ बराती-जनाती फ़ोटो खिंचाने का इन्तजार करते हैं उसी अदा में लोग बारी-बारी फ़ोटो खिंचा रहे थे। खम्भा एक फ़ोटो खिंचाने वाले अनेक। अलग-अलग मुद्रा में फ़ोटो खिंचाने की ललक में उसी खम्भे के पास इकट्ठा थे।
कुछ लोगों ने तो पहाड़ पर चढकर फ़ोटो खिंचाई। कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने बर्फ़ पर लेटकर भी यादें कैमरे में कैद की। सभी जी भरकर इन क्षणों को समेट लेना चाहते थे। पता नहीं फ़िर कभी आना हो या न हो !
खम्भे की तरफ़ जाते हुये कुछ लोग बर्फ़ में फ़िसल गये। कुछ रपट गये फ़िर संभल गये। कुछ हुये धड़ाम भी। अपन ने भी मौका मिलने पर फ़ोटोबाजी की। इस बीच आसपास की बर्फ़ से ढंकी चोटियों के नजारे भी जी भर के देखे। देखने में कोई शुल्क और जीएसटी तो लगी नहीं थी। माले मुफ़्त -दिले बेरहम। सारी चोटियां बार-बार देखीं, कई बार देखीं।
वहीं पर एक चाय की दुकान थी। वहां से चाय पी गयी। इतनी ऊंचाई पर भी चाय के दाम मात्र 40 रुपये। बड़ी कागज की ग्लास में चाय दी चाय वाले ने। दो चाय के साथ तीसरा ग्लास मुफ़्त में। यहां शहर में किसी माल में इतनी चाय डेढ सौ से कम में न दे कोई, ग्लास अलग से देने की तो बात भूल ही जाइये।
उसी जगह सेना के ट्रुक भी चलते दिखे। सभी वाहन निर्माणी जबलपुर के बने। इनमें से कुछ जरूर तब के बने होंगे जब हम वाहन निर्माणी जबलपुर में थे। देखकर बहुत अच्छा लगा। देश भर में जहां भी सेना की कोई भी यूनिट है वहां वाहन निर्माणी जबलपुर के ट्रक हैं।
खरदुंग-ला पर तमाम मोटर साइकिल वाले भी जमा थे। वे लेह से लद्दाख घूमने निकले थे। कोई अकेले , कोई समूह में। कुछ समूहों में लड़कियां भी दिखीं। लगा कि यार जिंदगी और जवानी जो है सो यही है। बाकी तो सब बेफ़ालतू की बाते हैं। वहीं खड़े-खड़े तय किया कि एक यात्रा तो इस इलाके की मोटरसाइकिल से भी करनी है। अब तय करने को तो कर लिया, अब देखिये इस पर अमल कब होता है।
इस बीच पानी भी बरसने लगा। हमारे ड्राइवर ने हमसे आगे चलने के लिये कहा। हम उनकी बात मानकर कुछ देर में आगे चल दिये। आगे की मंजिल नुब्रा घाटी थी।
No comments:
Post a Comment