Tuesday, August 27, 2019

खरदुंग ला से हुन्डर



खरदुंग ला में दुनिया की सबसे ऊंची सड़क पर हम करीब दो घंटे रहे। मन तो कर रहा था कि कुछ देर और रहें लेकिन आगे के मोर्चे हमको आवाज दे रहे थे । हम आगे बढे। हमारी आगे की मंजिल नुब्रा घाटी में हुन्डर थी।
खरदुंग ला तक हमारा फ़ोन टनाटन काम कर रहा था। एयरटेल का पोस्ट पेड कनेक्शन। प्रि पेड फ़ोन यहां काम नहीं करते। पोस्ट पेड में भी बीएसएनएल के फ़ोन यहां काम करते हैं। बाकी मिल गये तो मिल गये वर्ना नेटवर्क इच्छा। अभी तक हमारा फ़ोन घरवालों के फ़ोन के मुकाबले वीआईपी बना हुआ था। लेकिन खरदुंग ला से आगे बढते ही न जाने क्या हुआ कि हमारा फ़ोन ’शान्त’ हो गया। स्क्रीन गोल।

कई बार स्टार्ट, रिस्टार्ट करने के बावजूद फ़ोन की स्क्रीन काली ही बनी रही। कुछ दिन पहले ही खरीदे गये प्ल्स 7 फ़ोन की बोलती बन्द। हमें लगा खरदुंग ला की ऊंचाई में सांस फ़ूल गयी होगी, ठंड से हाल बेहाल हो गये होंगे -कुछ देर में गर्माहट से ठीक हो जायेगा। लेकिन फ़ोन एक बार रूठा तो रूठा ही रहा।
इधर फ़ोन बन्द हुआ उधर आशंकाओं की फ़ौज ने हमारे दिमाग में सर्जिकल स्ट्राइक कर दी। फ़ोन बन्द होने से संबंधित तमाम आशंकायें हमारे दिमाग में बिना अनुमति लिये घुस गयीं। लगा कि किसी ने हमारा खाता हैक कर लिया होगा। इधर फ़ोन बन्द हुआ उधर हमारे खाते से नेटबैंकिग से पैसे विदा हो रहे होंगे, कोई हमारे क्रेडिट कार्ड से अपने लिये ऐश के सामान खरीद रहा होगा। इन आशंकाओं को जितना भी परे धकेलते वे उतने ही आजिजी से वापस आकर दिमाग में पसरती जातीं।


आशंकाओं की अंतिम विदा तब हुई जब हमने हुन्डर में पहुंचते ही वहां जम्मू कश्मीर बैंक के एटीएम अपने खाते के बैलेन्स को चेक किया। खाते के पैसे यथावत खाते में शरीफ़ बच्चों की तरह मौजूद थे।
तेजी से आधुनिक और जटिल होती जा रही दुनिया में किस तरह की चिंतायें दिमाग में कब्जा करती हैं इसका अंदाज खरदुंग ला से लेकर हुन्डर तक की यात्रा में एहसास हुआ। जिन सुविधाओं ने हमारा जीवन आसान टाइप किया है वही साथ में नयी तरह की चिंतायें भी लायीं हैं। सुविधा के साथ चिंता भी मुफ़्त में।
खाते में पैसे सुरक्षित होने की चिंता जब विदा हुई तो अपना चार्ज दूसरी चिंता को दे गयी। पैसे की चिंता से हटकर अब चिंता इस बात की होने लगी कि फ़ोन कैसे ठीक होगा। कन्हैयालाल बाजपेयी जी कविता पंक्तियां याद आईं:
संबंध सभी ने तोड़े लेकिन,
पीड़ा ने कभी नहीं तोड़े।
सब हाथ जोड़कर चले गये,
चिंता ने कभी नहीं जोड़े॥

चिंता एक के साथ एक फ़्री वाले अंदाज में आती हैं इसका एहसास तब हुआ शर्ट की जेब में रखा मोबाइल जेब से निकलकर जमीन पर गिर पड़ा। उसके गिरने के अंदाज से लगा मानो बारबार दबाने के बावजूद सेवा न दे पाने की शर्म के चलते उसने जेब से कूद कर आत्महत्या की कोशिश की हो। जमीन पर गिरने से मोबाइल के माथे पर गुलम्मा पड़ गया। हमने प्यार से सहलाते हुये पुचकार कर मोबाइल को जेब में रखा। इसके बाद उसको दबाया नहीं। मोबाइल चुपचाप पड़ा रहा जेब में।
खरदुंग ला से हुन्डर के रास्ते में दिस्किट बौद्ध स्थल पड़ा। एक पहाड़ी पर बुद्ध की ऊंची प्रतिमा करीब 32 मीटर है। कई दर्शक यहां इसे देखने आ रहे थे। हमने भी देखा। वहीं पर ब्रिटेन से आये एक बुजुर्ग दम्पत्ति से मुलाकात हुई। नजारा और मूर्ति देखकर उनका कहना था - अद्भुत। इसके अलावा फ़्रांस से आये एक मोटर साइकिल सवार से भी बतकही हुई। अपनी सहेली के साथ फ़्रास से भारत घूमने आये करीब 35 साल के जवान ने बताया कि वो हर साल भारत घूमने आता है। लेह लद्दाख के इस हिस्से के बारे में उसका कहना था कि दुनिया में इतनी खूबसूरत जगह कोई और नहीं।



हम सोचने लगे कि यार बताओ एक ये आदमी है जो हर साल लेह लद्दाख घूमने आता है, वह भी मोटरसाइकिल से और एक हम हैं जो पचास पार होने के बाद पहली बार आ पाये। सोचने के अलावा और किया भी क्या जा सकता था।
हुन्डर में बार्डर रोड के गेस्ट हाउस में रुके। रुकने की व्यवस्था हमारे दोस्त अंकुर ने की थी। वे पहले यहां काम कर चुके थे। गेस्ट हाउस में काम करने वाले लोग उनकी याद कर रहे थे।
गेस्ट हाउस के आसपास की पहाड़ियों पर शाम उतर आई थी। सामने की पहाड़ी पर बनी आकृतियां ऐसी लग रही थीं मानो कोई मियां बीबी किसी बात पर भन्ना कर एक दूसरी के उल्टी तरफ़ सर करके लेट गये हों। पत्थर दिल जोड़े में से कोई किसी को मनाने की कोशिश भी नहीं कर रहा था। लेटे थे चुपचाप। पहाड़ पर मौन पसरा था। मन किया उनको अंसार कम्बरी की कविता सुनायें:
पढ सको तो मेरे मन की भाषा पढो,
मौन रहने से अच्छा है , झुंझला पडो।
लेकिन फ़िर छोड़ दिये। पत्थरों को कविता क्या सुनाना।
कुछ देर बाद हम लोग पास में स्थित रेत के टीलों को देखने गये। उसका किस्सा अलग से। लौटकर फ़िर इंगलैंड-न्यूजीलैंड के बीच का मैच देर रात तक देखते रहे। हमारी सहानुभूति और समर्थन शुरुआत से ही न्यूजीलैंड के साथ रहा। आखिर में जब वह हारा तो हम दुखी होकर सो गये। उठे तो सुबह हो गयी थी।

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