पिछले महीने नेपाल जाना हुआ। दफ्तर के काम से। कानपुर से लखनऊ, लखनऊ से दिल्ली। दिल्ली से काठमांडू। सुबह दिल्ली से चलकर दोपहर के पहले काठमांडू पहुंच गए। हवाई अड्डे पर एकदम अनौपचारिक माहौल। एयरपोर्ट पर ही करेंसी बदलने के कई काउंटर थे। भारत और नेपाली करेंसी का कोई काउंटर नहीं था। पता चला कि भारत का रुपया नेपाल में चलता है, इसीलिए भारत-नेपाल करेंसी काउंटर की जरूरत ही नहीं।
नेपाल पहुंचते ही पटर-पटर करने वाला फोन शांत हो गया। हमने नेपाल के लिए इंटरनेशनल रोमिंग प्लान लिया था। वह चालू नहीं हुआ था। साथ के ड्राइवर समझदार( स्मार्ट कहना ज्यादा ठीक होगा) उन्होंने फौरन अपने हॉटस्पॉट से हमको जोड़ लिया और संपर्क चालू। व्हाट्सएप से बातचीत शुरू। घर से निकलते ही बातचीत की मात्रा भी बढ़ जाती है।
होटल पहुंचकर कुछ देर आराम करके खाना खाया। दोपहर बाद काम निपटाया। देखते-देखते शाम हो गयी।
होटल में नाश्ता के अलावा एक खाने की व्यवस्था थी। शाम को सोचा बाहर खाएंगे। इसी बहाने थोड़ा घूम भी लेंगे। शाम को निकलते-निकलते आठ बज गए।
होटल के बाहर आये तो देखा सब दुकानें बंद। सड़क पर गाड़ियों के अलावा सन्नाटा। कोई दुकान खुली दिखी भी तो वह बन्द हो रही थी। नुक्कड़ पर एक ठेलिया पर कुछ नानवेज पकौड़ी टाइप बिक रही थी। पता किया तो मछली, चिकन घराने की पकौड़ियाँ थीं। एक बच्ची मोबाइल पर चैटियाती हुई अनमने ढंक से जबाब दे रही थी। दूसरी पास की फुटपाथ पर बैठी फोनालाप में रत थी। रात के सन्नाटे में अकेली लड़कियों को देखकर थोड़ा ताज्जुब हुआ। लेकिन फिर यह यह मंजर लगभग हर नुक्कड़ पर दिखा। आगे के मोड़ों पर ताज्जुब विदा हो गया। यह सामान्य बात लगी।
ठेलिया पर कुछ खाने के लिए नहीं मिला तो आगे बढ़े। मेन रोड के बगल में ही गली पर एक दुकान खुली दिखी। वहां चाय-काफी बिकती थी। हमको लगा कि चाय के साथ बिस्कुट खा लेंगे। लेकिन वहां पहुंचने पर पता चला कि दुकान बढ़ चुकी थी। बहुत कहने पर भी वो चाय या काफी बनाने के लिए राजी नहीं हुए। आदमी और औरत दोनों बोले-'सुबह आना तब चाय पिलायएंगे।' हमने कहा -'सुबह मतलब कितने बजे?' वो बोले -'छह बजे।'
हमारे बार-बार के अनुरोध के बावजूद वो चाय बनाने को राजी नहीं हुए। अंततः हमने वहां से एक बिस्कुट का पैकेट लिया। 190 नेपाली रुपये का। मतलब हिंदुस्तानी लगभग 120 रुपये। दुकान से बाहर निकलकर देखा बगल में एक बोर्ड लगा था -'डांस बार एवं रेस्टोरेंट।' वहां अंदर से ड्रम बजने जैसी आवाज आ रही थी।
रेस्टोरेंट ने ललचाया कि अंदर जाकर खाने के बारे में पूछें। लेकिन 'डांस बार' ने बरज दिया। कौन मानेगा कि अंदर रेस्टोरेंट में खाने की तलाश के लिए गए थे, डांस बार नहीं।
आगे मुख्य सड़क के दोनों ओर सब दुकाने बन्द हो चुकी थीं। बड़े-बड़े होटल खुले थे। लगभग हर चौराहे पर नानवेज पकौड़ी वाली ठेलिया दिखीं। हम आगे बढ़ते गए। लगा कि कहीं न कहीं तो कोई चाय का या खाने का जुगाड़ दिखेगा।
आगे बढ़ते हुए हर चौराहे पर सोचते कि अगले तक जाएंगे, फिर वापस हो लेंगे। इस चक्कर में कई चौराहे पार कर गए लेकिन कोई चाय की या खाने की दुकान न दिखी। फिर भी हम बढ़ते गए।
'कोशिशें अक्सर कामयाब हो जाती हैं' शायद यही साबित करने के लिए आगे एक रेस्टोरेंट खुला दिखा। खुला क्या हो तो वह बन्द ही गया था लेकिन दरवाजा खुला था। 3 D रेस्टोरेंट। हम फौरन 'दाखिल-रेस्टोरेंट' हो गए।
रेस्टोरेंट के अंदर माहौल एकदम घरेलू सा था। एक महिला कोने में बैठी एक बड़े बर्तन में कुछ खा रही थी। पास में खड़ा एक आदमी गोद में बच्चा लिए खड़ा था। दूसरा खाना खाती महिला के पास बैठा था। तीसरा सोफे-कुर्सी पर पेट के बल लेटा हुआ मोबाइल में कोई गेम खेल रहा था।
रेस्टोरेंट बन्द हो चुका था। खाने का कोई जुगाड़ नहीं था। मना हो गया। इस पर हमने पूछा -'अच्छा चाय मिल जाएगी?' हमारी आशा के विपरीत जबाब मिला -'हां चाय बन जाएगी। ।' हम खुश हो गए। कहा -'बनवा दीजिए।'
आदमी ने अंदर जाकर शायद दुकान में काम करने वाली बच्चियों को बुलाकर चाय बनाने को कहा। बच्चियों के चेहरे उनींदे से थे। शायद अनमने भी। लेकिन अपन ने उनको नजरअंदाज किया। 'अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता' वाला गुट ज्वाइन करके चाय का पूरी बेताबी के बावजूद तसल्ली वाले भाव से इंतजार करने लगे।
कुछ देर में चाय आई। बड़े ग्लास में ऊपर तक भरी चाय। इतना कि रेलवे स्टेशन के कागज वाले चार-पांच कप भर जाएं। हमने पूरी तसल्ली से बिस्कुट के साथ चाय पी। इस बीच महिला खाना खाती रही। आदमी बच्चा खिलाता रहा। चाय बनाकर लाई बच्चियां अंदर जा चुकी थीं।
इस बीच आदमी ने बताया कि यह रेस्टोरेंट उसने नया खोला है। पांच लाख रुपये महीने किराया है। एक और रेस्टोरेंट है उनका। उससे दोनों से कुल।मिलाकर 30-35 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है।
चलते समय चाय के दाम चुकाए। साठ रुपये की चाय। नेपाली साथ रुपये मतलब 37 रुपये करीब हिंदुस्तानी रुपये।
विदा होते हुए हमने 3D रेस्टोरेंट नाम का कारण पूछा। ऐसे ही कौतूहलवश। हमें लगा कि कोई 3 ईडियट जैसा कारण होगा नाम के पीछे। लेकिन काउंटर पर खड़ी महिला ने बताया कि यह नाम उसके पिता ने रखा है। उनकी तीन बेटियां हैं। बेटियों के नाम पर उन्होंने दुकान का नाम रखा 3 D रेस्टोरेंट मतलब तीन बेटियों का रेस्टोरेंट।
कितनी प्यारी बात। बेटियों का रेस्टोरेंट। नीमा नाम है जो बेटी मिली उस दिन और जिसने सब दुकाने बन्द होने के बावजूद हमको चाय पिलवाई। इतवार को पैदा हुई थी। शायद यह भी बताया कि इतवार को पैदा हुई इसलिए बुद्धिष्ट हुए।
लौटते हुए सड़क पर लोग बहुत कम दिख रहे थे। केवल गाड़ियों की आमद। पूरा नेपाल सो रहा था। नेपाल जल्दी सोता है, जल्दी जगता है। मज़े में लोग कहते हैं -सूरज अस्त, नेपाल मस्त।
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