दो दिन हुए अमेरिका आये। 25 की सुबह चार बजे चले थे नई दिल्ली से। 25 की दोपहर को दोपहर करीब 1240 पर सैनफ्रांसिस्को में उतरे।
लेकिन समय के लफड़े इत्ते सीधे कहाँ होते हैं। हर शहर का अलग टाइम जोन होता। जैसे अभी दिल्ली में 28 दिसम्बर के दोपहर बाद के 1240 हुए हैं जबकि सैन फ्रांसिस्को में 27 दिसंबर के रात के 1110 हुए हैं। मतलब साढ़े बारह घण्टे पीछे है सैन फ्रांसिस्को दिल्ली से।
इस बार दोहा होते हुए आये। दिल्ली से दोहा 2565 किलोमीटर दोहा से सैन फ्रांसिस्को 12967 किलोमीटर। कुल जमा हुए 15532 किलोमीटर। कुल मिलाकर करीब 20 घण्टे की हवा बाजी हुई। बीच में करीब ढाई घण्टे का ठहराव दोहा में।
अमेरिका आये हुए दो दिन हुए। दिमाग अभी भी दिल्ली, दोहा, अमेरिका के टाइम जॉन में उलझा है। गड्ड-मड्ड। यहां समय देखते हैं तो फौरन हिसाब लगाते हैं कि इस समय भारत मे क्या बजा होगा।
हम तो तीन टाइम जोन की सोचकर हलकान हुए जा रहे। ऊपरवाला तो तमाम टाइमजोन की समस्याएं , प्रार्थनाएं सम्भालता होगा। उसके क्या हाल होते होंगे। अलग- अलग तरह की सभ्यताओं के लोगों से निपटते हुए ऊपर वाला परेशान होगा।
जहाज में बैठते ही खबर आई कि अमेरिका में बर्फ़ीले तूफान के चलते सैकड़ों उड़ाने निरस्त हो गयीं। हवाई अड्डे बन्द हो गए। खबर पढ़ते ही लगा कि कहीं अमेरिका पहुंचने पर यह न कह दिया जाए कि ले जाओ अपना उड़न खटोला वापस। यहां सब दुकान बंद है। बर्फीला तूफान खत्म होने के बाद आना।
लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। जहाज तसल्ली से उतरा सैन फ्रांसिस्को में। पूरे अमेरिका के बर्फीले मौसम से अलग यहां मौसम अच्छा था। धूप भी खिली थी। लगता है सूरज भाई का खास इंतजाम था।
उतरकर इमिग्रेशन पर आए। लम्बी लाइन थी। लेकिन तसल्ली थी कि अब कोई जहाज छूटना नहीं। एक लाइन अमेरिकन नागरिकों की थी। दूसरी वीसा वाली। अमेरिकन लोग बाहर हो गए तो हमको भी उसी लाइन में बुला लिया गया। काउंटर पर आधिकारी ने पूछा -'किसके पास जाना, कितने दिन रुकना, कोई खाने-पीने का सामान तो नहीं लाये।' सबके जबाब लेकर बाहर कर दिया।
बाहर अपना सामान जमा किया। सूटकेस इधर-उधर रखे मिले। ट्राली लेने गए तो देखा वहां आठ डॉलर की फीस। भारत से सीधे आये थे, ताजा-ताजा लिहाजा डॉलर और रुपये का काउंटर फौरन चालू हो गया। हमने सोचा कि पास ही है गेट, पहिये लगे हैं सूटकेस में, काहे को ट्राली में साढ़े छह सात सौ फूंकना।
हम एक बार में दो सूटकेस गेट तक लाकर रख दिये। बाकी के लेने के लिए पलटे तो वहां मौजूद सुरक्षा कर्मी ने टोंक दिया, आप वापस नहीं जा सकते। हिन्दुस्तान होता तो कहे होते -'काहे नहीं जा सकते भाई।' लेकिन यहां मामला अलग था।
हमने बताया कि हमारा सामान उधर है। वो बोला -'हमारे इंचार्ज से बात करिये।' हम बोले -'आप ही समझो हमारी बात।'
साथ की महिला बोली -'हम समझ गए लेकिन आप हमारी मजबूरी समझो। हम नियम के आगे मजबूर हैं।'
अब मुकाबला मजबूरी में होने लगा। आखिर में हमारी मजबूरी भारी पड़ी जब हमने कहा कि अंदर हमारी श्रीमती जी सामान के पास खड़ी हैं। उसने कहा उनको बुला लो सामान के साथ। फोन करो। हमने कहा -'उनका फोन एक्टिवेट ही नहीं है फोन कैसे करें?'
आखिर में वो सुरक्षा कर्मचारी हमारे साथ गया और हम सामान सहित आगे आये और बाहर हुए।
बाहर लोगों की भीड़ थी। गाड़ियां अफरा-तफरी में लगी थीं। मेरा बेटा भी आ गया लेने दोस्त के साथ। सामान गाड़ी में रखा। घर आ गए।
घर आकर खबरों में देखा कि पूरे अमेरिका में बर्फीला तूफान आया है। करीब 50 लोग नहीं रहे । कई जगह बिजली गायब, कहीं पानी की पाइप लाइन फट गईं। छह-छह फुट तक बर्फ जमी है। देखकर लगा कि इंसान की सारी कलाबाजी प्रकृति की कलाकारी के सामने बौनी साबित होती हैं।
शुक्र यह कि कैलिफोर्निया में तूफ़ान का असर नहीं । यहां मौसम सामान्य है।
ऐसे विकट मौसम ने स्वागत किया यहां। लगता है मौसम भी भन्नाया हुआ था कि तीन साल पहले आये थे। फिर आ गए मुंह उठाके।
यह हमारी दूसरी अमेरिका यात्रा थी। कुल मिलाकर तीसरी विदेश यात्रा।
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