Wednesday, May 10, 2023

वृद्धाश्रम में कुछ घण्टे



इतवार को स्वराज वृद्धाश्रम गए। सात साल पहले कई बार गए थे। दिलीप घोष और कई लोगों से मिले थे। दिलीप घोष से बतकही की तमाम यादें जेहन में थीं।
पनकी पावर हाउस के बगल से होकर रास्ता है वृद्धाश्रम का। पावर हाउस की ऊंची चिमनी के बगल में खड़ा हरा पेड़ मानो चिमनी से निकलने वाले प्रदूषण को ललकार रहा हो। चिमनी से निकलने वाला प्रदूषण भी ऊपर-ऊपर बगलिया के निकल जाता है। वह भी पेड़ से डरता है।
रास्ते के मकान सात साल पहले बनने शुरू हुए थे, बन गए थे। उनमें लोग रहने भी लगे थे।।मकानों के प्लास्टर झड़ से गए थे। खराब क्वालिटी के बने मकान कुपोषित बच्चों से लगे जो बचपन से ही बूढ़े लगने लगते हैं।
वृद्धाश्रम के अंदर पहुंचते ही लालचंद से मुलाकात हुई। मुंह गुटके से लैस। तीन साल पहले आये यहां। एक एक्सीडेंट में पैर टूट गया। ऑपरेशन हुआ तो एक पैर छोटा हो गया। डॉक्टरों की महिमा। ऊंचाई बराबर करने के लिए छोटे पैर पर ऊंची हील की चप्पल पहनते हैं।
लालचंद डब्बा बनाने का काम भी करते हैं। हर तरह का डब्बा बना लेते हैं। आर्डर मिलने पर बनाते हैं। पचास साथ रुपये कमा लेते हैं। लेकिन जितना कमाते हैं, उससे ज्यादा गुटके पर खर्च कर देते हैं। चिंता की बात भी नहीं, वृद्धाश्रम देखभाल करता ही है।
दिलीप घोष के बारे में पूछा तो पता चला -'घोष दादा तीन साल पहले गुजर गए। काफी दिन बीमार रहे।'
दिलीप घोष जी अनोखे व्यक्तित्व के इंसान थे। उनके बहुत पढ़े-लिखे होने के तमाम किस्से थे। विदेश में प्रोफेसर, आई.आई.टी. के बच्चों को पढ़ाने के और शेक्सपियर साहित्य के मर्मज्ञ होने के किस्से वो खुद सुनाते थे। उनके सुनाने का अंदाज ऐसा होता था कि सुनने वाला बिना प्रभावित हुए रह नहीं सकता था।
बाद में पता चला कि उनके तमाम किस्से मनगढ़ंत थे। कितना सच, कितना गप्प अब तो जानना भी मुश्किल। लेकिन यह तय है कि उनकी जानकारी का स्तर ऊंचा था और अंदाज-ए-बयान दिलचस्प।
घोष जी से जुड़ी बातें याद करते हुए याद आया कि उन्होंने मुझसे अपने बचपन से जुड़ी यादें और फोटो भी साझा की थी। अपने एकतरफा रोमांस की कहानी भी बयान की थी। अब सब एक कहानी हो गयी।
चौधरी जी से बात हुई। आफिस में थे। आयुध निर्माणी खमरिया से 1978 में त्यागपत्र देकर एलिम्को ज्वाइन किया था। उनके पेंशन के सिलसिले में कोशिश की थी। लेकिन कामयाब नहीं हुए। इतने पुराने कागजात खोजने मुश्किल। इस बीच उनकी पेंशन के लिए कोशिश करने वाले तिवारी जी भी नहीं रहे।
चौधरी जी 82 साल के करीब उम्र के हैं। चुस्त, दुरुस्त। घर में बच्चे हैं लेकिन उनको लगता है कि यहाँ वे बेहतर स्थिति में हैं।
वृद्धाश्रम में 28 पुरुष और 32 महिलाएं हैं। सबके एक बार के खाने का करीब 6500 खर्च आता है। लोग अलग-अलग तरह से स्पॉन्सर करते हैं।
पिछली बार आये थे तो एक महिला लगातार चिल्लाती रहती थीं। उनके बारे में पूछा तो बताया, खराब निकल गईं। बार-बार आश्रम से निकल जाती थीं। किसी-किसी के साथ रहती थीं। आखिर में निकल गईं आश्रम से।
जब गए थे तो कीर्तन हो रहा था। घोष जी के कमरे में तीन महिलाएं रहती हैं अब। कमला, सनेही, रीता चड्ढा। सब ने अपने-अपने किस्से बताए। किसी का आदमी खराब निकल गया, किसी का रहा नहीं। किसी के बच्चे नशा करते हैं, किसी को घर से निकाल दिया गया। भले ही यहां रहते हैं लेकिन घर वालों से सम्बंध हैं। घर वाले आते-जाते रहते हैं। यहां हर तरह से सुरक्षित हैं और आराम से भी। खाने-पीने की कोई चिंता नहीं। कोई यहाँ से जाना नहीं चाहता।
वृद्धाश्रम को शुरू करने में मधु भाटिया जी का योगदान था। कुछ दिन पहले उनका निधन हुआ। जब तक वे जीवित रहीं, लगातार जुड़ी रहीं यहां से। हफ्ते में तीन-चार दिन जरूर आती थीं। सबकी समस्यायों का निराकरण करती थीं। दिलीप घोष उनको मम्मी कहते थे। सब लोग उनकी याद करते हैं।
चलते समय सभी ने कहा-'फिर आना। आते रहना।' कमला, सनेही और रीता चड्ढा ने परिवार सहित आने को कहा। महिलाओं का परिवार से जुड़ाव बना ही रहता है।
लौटते हुए प्रार्थना हाल में एक बुजुर्ग वाकर के सहारे चलते दिखे। पूछने पर पता चला कि सनेही के पति हैं। सनेही अपने पति की चुपचाप जाते देखती रहीं, चुपचाप। दोनों में शायद अबोला है।
लालचंद मोबाइल में लूडो खेल रहे थे। एक क्लिक पर पासा आया और उन्होंने गोटी बढ़ा दी।
हम भी बाहर की तरफ बढ़ गए।
(दिलीप घोष और चौधरी जी से जुड़ी पोस्ट कमेंट बॉक्स में)

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