Friday, April 26, 2024

न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाये

  


पिछले दिनों एक शादी में जाना हुआ। दोस्त के बेटे की शादी। ओरछा नाम सुना था। जाना पहली बार हुआ। ओरछा मध्यप्रदेश में है। लगता है बहुत दूर होगा। लेकिन निकला झांसी से मात्र 15 किलोमीटर दूर।
गाड़ी से गए थे। रस्ते में एक जगह खाना खाया। हमने और ड्राइवर ने। एक दाल, एक सब्जी और पांच रोटी का कुल बिल हुआ 205 रुपये। सस्ते ने निपटे।
झांसी में पहुंचकर एक एटीएम से पैसे निकाले। कुछ भेंट देने के लिए। पांच सौ रुपये के नोट तो निकल आये। लेकिन सौ का नोट कोई था नहीं पास में। सौ का नोट भेंट में पायलट गाड़ी की तरह होता है। उसके बिना व्यवहार की गाड़ी स्टार्ट नहीं होती। पहले यह काम एक रुपये का सिक्का करता था जब 11, 51, 101 के व्यवहार चलते थे। आज भी चलता होगा कहीं।
एक मेडिकल स्टोर से 200 रुपये के फुटकर कराए। दे दिए उसने। बातचीत हुई। बोली बुंदेली हो गईं थी। इतै ते चले जाओ, उतई है होटल।
ठहरने का इंतजाम होटल में था। सामान उठाने के लिए सहायक आया। हमने खुद पकड़ा था सूटकेस लेकिन उसने अनुरोध करके ले लिए। हमने भी दे दिया। बड़े होटल में ठहरने जाते ही लोग परावलम्बी हो जाते हैं। यही हाल दफ्तरों में बड़े साहबों का होता है। अटेंडेंट, चपरासी साहब को बैग तक नहीं उठाने देते। उनका बस चले तो साहब को भी गाड़ी से उठा कर कुर्सी पर धर दें। दफ्तर अपने साहबों को अपाहिज बनाने के शानदार उदाहरण होते हैं।
सुदर्शन अटेंडेंट से हमने कुछ पूछा तो बोला नहीं। दुबारा पूछा तो उसने मुस्कराते हुए सीने पर जेब के ऊपर लगे बैज की तरफ इशारा किया। पता चला कि अटेंडेंट मूक/बधिर था। उसके बैज में लिखा था कि ये सुन/बोल नहीं पाता है। कोई निर्देश देना हो तो लिखकर दें।
बाद में पता चला कि होटल में 15% स्टाफ इसी तरह दिव्यांग कैटेगरी के लोग हैं। अगले दिन नाश्ता करते हुए देखा कि कुछ वेटर भी अपने सीने में वैसा ही बैज लगाए थे। होटल की यह पॉलिसी बहुत मानवीय और अच्छी लगी।
कमरे में सामान रखकर वाशरूम गए। वहां फ्लस के एकदम बगल में लगे एक स्टिकर में लिखा था -'एवरी सिंगल ड्राप काउंट्स'। हर बूंद कीमती है। हमारे खुराफाती दिमाग ने सोचा -' वाकई है तो। समस्त सृष्टि का कारोबार बूंदों की ही करामात है।'
बाद में ध्यान से पढ़ा तो देखा कि वह स्टिकर पानी की बचत के लिए था। चादर न धुलाओ तो 70 लीटर पानी बचता है। एक इंसान के महीने भर के पानी पीने की जरूरत के बराबर।
होटल वाले इस तरह पानी की बचत का आह्वान कर रहे थे। बेहतर होता कि वो चादर न धुलवाने के लिए किराए में कुछ कमी का प्लान बताते तो बिना चादर बदलवाए ही हफ्तों पड़े रहते होटल में।
मन किया कि अरविंद तिवारी जी Arvind Tiwari को होटल का यह किस्सा बताएं। उनका होटल वाला उपन्यास पूरा करने की हम जब भी बात कहते हैं वो उलाहना देते हैं -'आप कोई किस्सा बताते नहीं होटल का, कैसे पूरा हो उपन्यास।' घुमाफिराकर क्या वो सीधे-सीधे यही कहना चाहते हैं कि मित्रों में असहयोग में चलते उनका उपन्यास अटका है।
विवाह कार्यक्रम ओरछा में एक राजमहल से होना था। आजकल सारे राजमहल विवाह स्थल बन गए हैं। शादी व्याह इंसान राजा-महाराजों की तरह करता है भले ही बाद में कंगाली भुगते। परसाई जी ने इसी लिए लिखा है न -'देश की आधी ताकत लड़कियों की शादी में जा रही है।'
बहरहाल कार्यक्रम स्थल पहुंचे। राजमहल जाने वाली सड़क के बराबर सड़क से भी ज्यादा चौड़ा नाला बह रहा था। सड़क पर समृद्धि, बगल में गंदगी। समृध्दि और गंदगी का सहअस्तित्व देखते हुए राजमहल के मुख्य द्वार पर पहुंचे।
गाड़ी से उतरते ही एक पुलिस की वर्दी में खड़े इंसान ने हमको देखकर कड़क सैल्यूट मारा। तगड़े सैल्यूट से हम अचकचा गए। अचकचा क्या सहम से गए। हमको लगा कि यह सलामी किस लिए?
बाद में पता लगा कि उसने हमको कुर्ता पैजामा और सदरी में झंडे लगी गाड़ी से उतरते देखकर हमको कोई मंत्री जी समझा और देखते ही कड़क सलाम झोंक दिया।
हमने वर्दी पुरुष को बताया कि हम वो न हैं जो वो हमको समझ रहे हैं। अब सलाम तो वापस नहीं हो सकता लेकिन हम उनसे गले मिलकर बराबर हो गए।
बाद में हमको यह भी लगा कि क्या पता उसने हमको देखने के पहले पापुलर मेरठी का शेर पढा हो :
'मवालियों को न देखा करो हिकारत से
न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाये।'
शेर पढ़कर उसने शक्ल से संभावित वजीर समझकर 'सलाम निवेश' कर दिया हो। आज की दुनिया की तमाम राजनीति का यही चलन है। पैसे वाले मवालियों पर पैसा लगाकर उनको वजीर बनाने में सहयोग करते हैं और फिर द्वारा उचित माध्यम चांदी, सोना, हीरा जवाहरात काटते हैं।
मुझे पुलिस वाले कि बेबसी पर भी तरस आया। अगर कहीं मेरी जगह सही में कोई मंत्री जी होते और वह सलाम करने से चूक जाता तो लाइन हाजिर हो जाता।
बाद में अगले दिन पता चला कि एक हरियाणा के ट्रक वाले से नाके पर मौजूद लोगों ने उसके कागजों में कमी बताकर पांच हजार वसूल लिए। चालान करने के बीस हजार बताए और फिर पांच हजार में छोड़ दिया।
एक जगह बेबस हुआ इंसान दूसरी जगह निर्दयी बन जाता है। जो डरता है वही डराता है।

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