Wednesday, April 03, 2024

सैर कर दुनिया की गाफिल

 



आजकल असगर वजाहत जी के यात्रा संस्मरण पढ़ रहे हैं। ईरान, अमेरिका, पाकिस्तान और तमाम जगहों की घुमक्कड़ी के अनुभव उनकी किताब 'उम्र भर सफर में रहा' में पढ़ रहे हैं। संस्मरणों में यात्रा का समय नहीं लिखा है इससे पता नहीं चलता कि कब का संस्मरण है। जब वे गए होंगे तब से समय काफी बदल गया होगा। कितना बदला होगा यह वही समझ सकता है जिसने दोनों समय देखे हैं।
असगर साहब ने एक किस्से में बताया कि किस तरह उनको तेहरान में फोटो खींचते हुए पकड़ लिया गया था। फिर बाद में किसी तरह छूटे।
नादिरशाह के बारे किस्से में बताया कि किस तरह नादिरशाह दिल्ली लूटकर जब ईरान वापस गया तो उसके पुत्र रोज कुली को यह झूठा समाचार मिला कि नादिरशाह की मौत हो गयी है। उसने ईरान की गद्दी के हकदार पुराने सफ़वी वंश के शासक को तहमास्प को फांसी दे दी ताकि राज्य सत्ता पर उसकी पकड़ मजबूत हो जाये। लेकिन नादिरशाह की मौत नहीं हुई थी। कुछ लोगों ने यह भी प्रचार करवाया कि नादिरशाह की हत्या का प्रयास उसका बेटा कर रहा है। इस पर नादिशाह ने अपने पुत्र रोजा कुली को अंधा कर देने का आदेश दे दिया।
नादिरशाह और अन्य पंद्रह सरदारों के सामने जब रोजा कुली को अंधा किया जा रहा था तो उसने नादिरशाह से कहा था-"तुम मुझे नहीं ईरान को अंधा कर रहे हो।"
बाद में जब पता चला कि जिस आरोप में नादिरशाह ने अपने बेटे को अंधा किया था , झूठा और गलत था। नादिरशाह ने आदेश दिया कि उन सरदारों के सिर उड़ा दिए जाएं जिन्होंने उसके बेटे रोजा कुली की आंखे फोड़ी जाते देखीं हैं। नादिरशाह ने उन सरदारों की गलती यह ठहराई कि उनमें से किसी ने यह क्यों नहीं कहा कि रोजा कुली के बजाय उसकी आंख फोड़ दी जाए।
अपने दरबार के सबसे प्रतिष्ठित सरदारों की हत्या के बाद नादिरशाह का पागलपन और प्रतिशोध बढ़ने लगा। उसे हर आदमी दुश्मन दिखाई पड़ने लगा और उसने बड़े पैमाने पर लोगों की हत्याएं कराई। अव्यवस्था, असंतोष, प्रतिहिंसा और अविश्वास की आंधी में साम्राज्य डगमगाने लगा। अंततः सन 1747 में अंगरक्षकों के दस्ते के प्रमुख ने नादिरशाह की हत्या कर दी।
हिंसा-हिंसा को जन्म देती है। जिन भी लोगों ने ताकत के नशे में कूरताएँ की हैं उनके साथ भी दाएं-बाएं उसी तरह की घटनाएं हुई हैं।
बहरहाल बात यायावरी की हो रही थी। कोलकाता एयरपोर्ट पर एक अमेरिकन यात्री मिला। 84 साल की उम्र में चौथी बार भारत आया था घूमने। यहां उसे अच्छा लगता है। यहां की विविधता आकर्षित करती है।
अपने यहां घूमने का उतना चलन नहीं है। बुजुर्ग होते लोग अपने घर-परिवार में और बुजुर्ग होते हुए समय काटते हैं। कम लोग होते हैं जो दुनिया देखने का मन बनाते हैं और उस पर अमल भी करते हैं।
ऐसे ही हमारे सीनियर मनोज चौधरी जी Manojkrishna Choudhuri हैं। सन 2002 में रिटायर होने के बाद आधी से अधिक दुनिया घूम चुके हैं। पैर में तकलीफ है लेकिन घूमने का जज्बा बरकरार है। 82 साल की उम्र में आस्ट्रेलिया जाने का प्लान बना रहे हैं। वीसा मिलने पर जून में जाएंगे। मनोज चौधुरी जी इस मामले में हमारे रोल मॉडल हैं। अपन भी रिटायर होने के बाद दुनिया घूमने निकलेंगे।
इरादा तो है। अमल कितना हो पाता है यह आने वाला समय बताएगा।
आप भी चलोगे हमारे साथ। कहां-कहां चलने का इरादा है।

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