आज हफ्ता हो गया जबलपुर में कार्यक्रम हुए। पिछले शनिवार आज के दिन इंतजाम देख रहे थे। कुर्सियां लगवा रहे थे। स्टेज सजवा रहे थे। हेल्लो ,माइक टेस्टिंग करवा रहे थे। शाम को कार्यक्रम होना था।
कार्यक्रम में रमेश सैनी जी के 75 साल के होने के मौके पर उनका अमृत महोत्सव होना था , उम्र और लेखन के हिसाब से वरिष्ठता को प्राप्त हो चुके राजशेखर चौबे जी के चौथे व्यंग्य संग्रह ‘संतरा गणतंत्र’ का लोकार्पण और विमर्श होना था और ‘जन्मशताब्दी वर्ष और परसाई की प्रासंगिकता ‘ पर बातचीत मतलब वक्तव्य होने थे। उपरोक्त का आयोजन ‘सतत-व्यंग्यधारा ‘ की तरफ तत्वावधान में होना था।
सतत संस्था के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं था अलबता ‘व्यंग्यधारा’ समूह से मैं काफी पहले से जुड़ा रहा हूँ। काफी दिन उसकी गोष्ठियों में नियमित भागेदारी रहती थी मेरी। व्यंग्य गोष्ठी के बाद की ‘उत्तर गोष्ठी’ का स्थायी अध्यक्ष रहता था मैं। इधर-उधर की बातें और बुराई-भलाई से ‘उत्तर गोष्ठी’ काफी चहल-पहल भरी रहती थी। लोग यह भी कहते थे कि व्यंग्य धारा की गोष्ठी में जुड़ते ही इसीलिए थे ताकि ‘उत्तर गोष्ठी’ का मजा ले सकें। यह बात अलग कि कई जिम्मेदार और शरीफ लोग ‘उत्तरगोष्ठी’ शुरू होते ही विदा हो जाते थे। ‘साए में धूप’ वाले अंदाज में कहें तो :
“मौज मजे, बुराई भलाई का दौर चला तो
शरीफ लोग लागआउट हुए और निकल लिए।“
व्यंग्यधारा समूह में व्यंग्य पर काफी सार्थक बातचीत और गोष्ठी होती रहीं। सवा तीन साल से लगातार संचालित समूह में व्यंग्य के अलावा किसी और विषय पर चर्चा पर कड़ी पाबंदी रहती है समूह में। मजाल है कि व्यंग्य के अलावा किसी बात पर कोई चर्चा करे और उसको चेतावनी न जारी हो। आपने व्यंग्य से इतर कुछ लिखा नहीं कि समूह के एडमिन से ‘सलाह मिसाइल’ का हमला हो जाता –‘इस तरह की सामग्री लगाने का यहाँ चलन नहीं, कृपया इसे (फ़ौरन) हटा लें।‘
इसी व्यंग्यधारा समूह में जहां व्यंग्य से इतर कोई भी चर्चा ‘समूह निकाले’ का कारण बन सकती है, एक दिन सूचना प्रसारित हुई कि व्यंग्य धारा समूह के वरिष्ठ एडमिन आदरणीय रमेश सैनी जी के 75 वर्ष पूरे करने के उपलक्ष में अमृत महोत्सव मनाया जाने का प्रस्ताव है।
अच्छा हुआ कि उस दिन यह सूचना देखी नहीं वरना ‘व्यंग्य धारा ‘ के एडमिन की तर्ज पर लिखता –‘महोदय इस तरह की सूचना लगाने का चलन इस समूह में नहीं है। कृपया इसे यहाँ से (फ़ौरन) हटा लें।‘
लेकिन उस समय नहीं देख पाया तो अब क्या कर सकते हैं। तमाम विसंगतियां अनदेखी रह जाती हैं।
व्यंग्यधारा में पोस्ट इस सूचना के पहले ही, जिसे मैंने आज देखा, रमेश तिवारी जी ने जबलपुर में आपसी सहयोग से कार्यक्रम कराने का प्रस्ताव बताया। प्रस्ताव देखते ही हमने कहा –‘आप आपसी सहयोग की बात छोड़ दें। इसमें हमेशा बवाल होते हैं। आप कार्यक्रम कराइये। जबलपुर में कार्यक्रम के आयोजन की जगह, रहने, खाने की व्यवस्था मैं कर दूंगा।‘
कार्यक्रम तय हो गया। आठ जून को। जैसे-जैसे कार्यक्रम का दिन नजदीक आने लगा, हमसे तकादे बढ़ते गए। हमने कई बार सोचा भी –‘कहाँ बवाल में फंस गए, इंतजाम की गारंटी लेकर।
‘ यह भी लगा कि अपन एक कार्यक्रम की गारंटी से हलकान हुए जा रहे, लेकिन लोग कैसे पूरे देश की फर्जी गारंटी पर गारंटी लेते रहते हैं और गारंटी लेकर भूल भी जाते हैं। हमें डर भी लगाने लगा कि कहीं किसी चूक पर ‘सलाह पत्र’ जारी न हो जाए।
बहरहाल जबलपुर के मित्रों ने पूरा सहयोग किया और सारा इंतजाम किया। हमारी बेइज्जती खराब होने से बची।
अपन कार्यक्रम के एक दिन पहले सात जून को पहुंचे। रहने का सबका इंतजाम व्हीकल फैक्ट्री जबलपुर की आफिसर्स मेस में था। कार्यक्रम भी यहीं होना था। रहने का अतिरिक्त इंतजाम जीसीएफ फैक्टी गेस्ट हाउस में था। लेकिन वहां जाना हुआ नहीं। जरूरत ही नहीं पड़ी।
सात की शाम तक महेंद्र कुमार ठाकुर जी, राजशेखर चौबे जी आ गए। रमेश सैनी जी अपने मित्र दिनेश अवस्थी जी के साथ लगातार आते-जाते और इंतजाम देखते रहे। दिनेश अवस्थी जी को इस बात का ताज्जुब था कि जहां से मैं आठ साल पहले जा चुका वहां रिटायर हो चुकने के बाद भी इतनी इज्जत से पेश आ रहे हैं लोग।
अगले दिन तक लोग आते गए, जमावड़ा होता गया। मिलने पर तमाम अनुपस्थित लोगों, खासकर व्यंग्य से जुड़े लोगों की , चर्चा और भलाई-बुराई होती रही। इनाम , सम्मान आदि पर भी चर्चा हुई। गोपनीयता की रक्षा के लिए इन चर्चाओं यहाँ का उल्लेख जानबूझकर नहीं कर रहा। किसी साथी को इन चर्चाओं का आनंद उठाना हो तो अलग से मुझसे संपर्क करके , नमक मिर्च के साथ चर्चा का आनंद ले सकता है।
कार्यक्रम शाम साढ़े तीन बजे से प्रस्तावित था। जबलपुर में गर्मी भीषण थी। लोग चार बजे तक आने शुरू हुए। उसके बाद कार्यक्रम शुरू हुआ। रमेश सैनी अमृत महोत्सव कार्यक्रम की शुरुआत रमेश तिवारी जी ने की और संचालन का काम अभिजीत दुबे को सौंप दिया।
रमेश सैनी जी के परिचय का जिम्मा सौंपा गया दिनेश अवस्थी जी को। सैनी जी के विस्तृत परिचय के बाद उनके सम्मान का सिलसिला शुरू हुआ। श्री महेंद्र कुमार ठाकुर जी , श्री अरुण अर्नव खरे जी और श्री राम स्वरूप दीक्षित जी ने रमेश सैनी जी का सम्मान किया। मित्रों द्वारा किया रमेश सैनी जी का सम्मान उनके प्रति मित्रों के प्रेम और सम्मान का परिचायक था।
यह भी लगा इतनी भीषण गर्मी में मित्र लोग रमेश जी को शाल पहनाकर सम्मानित करते हुए उनसे मजे तो नहीं ले रहे हैं।
सम्मान के बाद रमेश सैनी जी पर केन्द्रित पत्रिका ‘अनवरत’ का विमोचन हुआ। पत्रिका सीने से सटाकर फोटो खिंचाने के लिए सभी लोगों को बुला लिया गया मंच पर। मंच पर लोग आते गए और आगे बढ़कर खड़े होते गए। एक बारगी यह भी लगा कि कहीं लोग पत्रिका सीने से सटाए-सटाए नीचे न टपक जायें। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सभी के साथ फोटुओ के कई सत्र हुए।
अनवरत पत्रिका के विमोचन के बाद पत्रिका के सम्पादक रमेश तिवारी जी ने सम्पादन में रही-बची कसर अपना वक्तव्य देकर पूरी की। उन्होंने कहा –‘ यह पुस्तक हम सबको जोड़ने का काम करती है।‘
रमेश तिवारी जी के वक्तव्य के बाद रमेश सैनी जी की जीवन संगिनी श्रीमती शारदा सैनी जी ने अपना वक्तव्य दिया। इसके बाद वहां उपस्थित मित्रों /साथियों ने रमेश सैनी जी के व्यक्तित्व/कृतित्व पर अपनी राय व्यक्त की। इन मित्रों में सर्व श्री अरुण अर्णव खरे , ब्रजेश त्रिपाठी, अनूप शुक्ल, राजीव कुमार शुक्ल , टीका राम साहू, पंकज स्वामी , विजय तिवारी ‘किसलय’, हिमांशु राय , राजेन्द्र चन्द्र कान्त राय , पुतुल श्रीवास्तव , प्रदीप श्रीवास्तव , कुंदन लाल परिहार जी ने अपने वक्तव्य दिए। शांतिलाल जैन जी ने परसाई की प्रासंगिकता पर अपना वक्तव्य देते हुए रमेश सैनी के बारे में अपना वक्तव्य दिया।
जिस समय रमेश सैनी जी पर वक्तव्य का सिलसिला चल रहा था उसी समय हाल के एक तरफ के एसी हाल से अपना समर्थन वापस लेते हुए बार-बार ट्रिप हो रहे थे। शनिवार की शाम होने के बावजूद बिजली वाले लगे हुए थे और व्यवस्था ठीक करने की कोशिश कर रहे थे। एकाध बार बिजली पूरी तरह से चली गयी। लेकिन अन्तत: व्यवस्था बहाल हो गयी। इस बीच हाल में मौजूद पेडस्ट्रल ही मोर्चे पर लग गए और माहौल खुशनुमा टाइप हो गया।
बिजली व्यवस्था की देखभाल के चलते किस वक्ता ने क्या बोला यह ठीक से नोट नहीं कर पाया। अलबत्ता जिन लोगों के वक्तव्य मैं सुन पाया उनमें से पंकज स्वामी जी प्रमुख रहे। पंकज स्वामी जी ने रमेश सैनी जी के लेखकीय और वैयक्तिक पक्ष पर विस्तार से चर्चा की। पंकज स्वामी श्री रमेश सैनी और श्री श्रीराम ठाकुर की जोड़ी के कहानी मंच की चर्चा करते हुए सैनी जी को पीढ़ियों का सेतु बताया। उन्होंने रमेश जी को अच्छा संगठन कर्ता बताते हुए यह भी कहा कि रमेश जी लोगों को अपने साथ कार्यक्रमों में ले जाते थे।
राजीव कुमार शुक्ल जी ने कहा रमेश जी छोटी बातों में (बड़े) व्यंग्य तलाश लेते हैं।
राजेन्द्र चंद्रकांत राय जी ने रमेश जी को ‘एक्टिविस्ट भी’बताया।
राजेन्द्र चंद्रकांत राय जी ने हाल ही में (2023 में सेतु प्रकाशन से प्रकाशित) परसाई जी की प्रामाणिक जीवनी –‘काल के कपाल पर हस्ताक्षर’ लिखी है। इससे परसाई जी के जीवन के विविध पहलूओ का अंदाज लगता है।
पुतुल श्रीवास्तव जी ने रमेश सैनी जी को नर्मदा का पानी पिए हुए लिखने वाला व्यंग्यकार बताया।
प्रदीप मिश्र जी ने रमेश सैनी जी को 75 वर्ष का ज़िंदा(दिल) आदमी बताया।
विजय तिवारी ‘किसलय’ जी ने रमेश सैनी जी को उनकी हीरक जयन्ती पर शुभकामनाएँ देते हुए बताया कि रमेश जी सबसे पहले कवि , फिर कहानीकार इसके बाद व्यंग्यकार और फिर आलोचक हैं ।
सैनी जी के व्यंग्य संग्रह ‘बिन सेटिंग सब सून’ के विमोचन के मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री की कही बात का उल्लेख किया । भूतपूर्व मुख्यमंत्री जी ने कहा था –बिना सेटिंग के ऐसा संभव नहीं होता विमोचन में मंत्री मौजूद होता ।
इसके पहले विजय तिवारी जी ने अपनी पुस्तकें ‘किसलय की आद्याक्षरी कविताएं’, ‘किसलय मन में आया’ और ‘किसलय मन अनुराग’ भी मुझे भेंट की । साथ में गुलदस्ता भी । उस गुलदस्ते को मैंने उसी समय रमेश सैनी जी को भेंट कर दिया क्योंकि उस दिन उनका ख़ास दिन था ।
अनूप शुक्ल ने भी मौके का फायदा उठाकर कहा –‘रमेश सैनी जी पचहत्तर वर्ष के हो गए । अभी भी स्वस्थ हैं, सक्रिय हैं । दूर-दूर से मित्र उनके अमृत महोत्सव में आये हैं । यह अपने में ख़ास उपलब्धि है ।
लेखन में रमेश सैनी जी परसाई जी के घराने के व्यंग्यकार हैं जिनकी सहानुभूति सदैव वंचित, पीड़ित के साथ रहती है ।
रमेश सैनी जी के सम्मान के बाद राज शेखर चौबे जी की पुस्तक ‘संतरा गणतंत्र’ का विमोचन हुआ। मंच पर एक बार फिर सभी साथी सीने से किताब सटाये विमोचन करते नजर आये।
विमोचन के बाद महेंद्र कुमार ठाकुर जी ने राजशेखर चौबे को सम्मानित किया। रमेश तिवारी जी ने किताब पर विमर्श किया। राजशेखर चौबे जी ने अपनी किताब व्यंग्य के पुरोधा हरिशंकर परसाई जी को समर्पित की है।
पुस्तक के लोकार्पण के बाद ने राजशेखर जी ने अपना वक्तव्य दिया। अपने व्यंग्य लेखन को परसाई परंपरा से जोड़ते हुए बदलाव के मिशन को अपने लेखन का कारण बताया।
‘संतरा गणतंत्र’ के लोकार्पण के बाद ‘परसाई की प्रासंगिकता’ पर चर्चा शुरू हुई। संक्षेप में अपनी बात कहने के वायदे के साथ माइक पर आने के बाद लगभग सभी ने विस्तार से अपनी बात कही। पांच मिनट की बात को पंद्रह से बीस मिनट तक भी ले गए वक्ता साथी।
कार्यक्रम में देरी होती गयी। समय आगे बढ़ता गया। इस चक्कर में वक्ताओं का समय कम होता गया। अध्यक्ष विनोद साव जी ने समय की कमी को देखते हुए चाय-पानी मंच और श्रोताओं को उनके पास ही सर्व कराने का प्रस्ताव किया। लेकिन लोग अपने पाँव भी सीधे करना चाहते थे अत: उनको सूचित किया कि ‘यहाँ इस तरह का चलन नहीं है।’ विनोद साव जी ने उदारता पूर्वक इसे स्वीकार किया।
‘परसाई की प्रासंगिकता ‘ पर वक्तव्य की शुरुआत रमेश तिवारी जी ने की। इसके बाद शांतिलाल जैन जी , विनोद साव जी , कैलाश मांडलेकर जी और राम स्वरूप दीक्षित जी ने अपने वक्तव्य दिए दिए।
अध्यक्ष श्री विनोद साव जी की ट्रेन का समय हो चुका था अत: उनका वक्तव्य पहले कराया गया। कैलाश मांडलेकर जी के वक्तव्य तक श्रोता कुछ कम हो गए थे अत: उनका शुरुआती टेम्पो उनको ही कुछ कम लगा । ऐसा उन्होंने कहा। लेकिन जैसे-जैसे उनका वक्तव्य परवान चढा उनका टेम्पो आता गया और वक्तव्य शानदार होता गया। सभी वक्तव्य के वीडियो यहाँ संलग्न हैं। सुन सकते हैं। वैसे संपूर्ण कार्यक्रम का वीडियो अलग से यूट्यूब पर अपलोड किया जाएगा। उसे बाद में देखा जा सकता है।
कार्यक्रम के अंत में रमेश सैनी जी ने भी सभी साथियों का आभार व्यक्त किया। इसके बाद औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन अनूप शुक्ल ने किया।
कार्यक्रम के आयोजन में सभी साथियों का सहयोग रहा। सबसे उल्लेखनीय सहयोग रहा व्हीकल फैक्ट्री के चीफ जनरल मैनेजर श्री संजीव भोला का जिन्होंने वीएफजे की आफीसर्स मेस में कार्यक्रम की व्यवस्था करवाने की अनुमति दी । व्हीकिल फैक्ट्री के महाप्रबंधक कमलेश कुमार के हर मौके पर व्यवस्था संयोजन में सहायता की।
कार्यक्रम के बाद कुछ मित्र तो उसी दिन चले गए। कुछ अगले दिन गए। जितने समय भी लोग रहे, उनका समुचित उपयोग किया गया और मौज-मजे हुए।
लेखक साथियो ने मौके का फ़ायदा उठाते हुए अपनी –अपनी किताबें मित्रों को भेंट करते हुए प्रमाण स्वरूप फोटो भी खिंचा लिए। राजशेखर चौबे जी ने अपनी किताब ‘संतरा गणतंत्र’ हमको भी भेंट की। राम स्वरूप दीक्षित जी ने अपना व्यंग्य संग्रह ‘ टांग खींचने की कला’ मुझे भेंट की तो मैंने उनसे पूछा कि आपने किताब का नाम अधूरा क्यों रखा? पूरा नाम रखना चाहिए था –‘टांग खींचने की कला में माहिर - राम स्वरूप दीक्षित ।‘ दीक्षित जी ने अगले संस्करण में सही नाम लिखने की बात कही ।
मंच पर बोलते हुए महेंद्र कुमार ठाकुर जी बोलते-बोलते कुछ भूल से गए । पता चला कि बीती रात उनके लिये ‘दवाई ‘ की व्यवस्था नहीं हुई थी । जानकारी मिलने पर व्यवस्था का प्रयास किया गया तो पता चला उनके बगल के कमरे में ही इंतजाम था । सारी व्यवस्था के बावजूद उसका उपयोग वे न कर सके क्योंकि ठाकुर जी के कुछ हित चिन्तक उनसे मिलने आ गए थे ।
जो लोग कार्यक्रम में किसी कारण वश नहीं जा पाए वे कल्पना ही कर सकते हैं कि किया मिस किया उन्होंने । सबका विवरण देकर हम उनको और अफसोस नहीं कराना चाहते हैं ।
किस्से और भी हैं कहानियाँ और भी हैं । लेकिन वे फिर कभी । पूछे जाने पर अलग से बताया जाएगा ।
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