Sunday, June 30, 2024

लखनऊ के शीरोज़ कैफ़े में ‘वसंत है’ का विमोचन


परसों एक बार फिर लखनऊ में शीरोज कैफे जाना हुआ । अवसर था निरुपमा दीदी Nirupma Ashok के काव्य संग्रह -'वसंत है' के विमोचन का। पहली बार भी पुस्तक विमोचन के सिलसिले में ही आना हुआ था। पूरे आठ साल आठ दिन पहले। पल्लवी त्रिवेदी Pallavi Trivedi i की किताब 'अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा' और मेरी पुस्तक 'बेवकूफी का सौन्दर्य' का साझा विमोचन हुआ था। उस समय कुश Kush Vaishnav नए-नए प्रकाशक बने थे। अपने नए शुरू किये ( रुझान प्रकाशन) से प्रकाशित किताबों की पहली खेप का धूमधाम से विज्ञापन और विमोचन किया था।
निरुपमा दीदी हिन्दी की प्राध्यापिका रहीं हैं। लखीमपुर के भगवानदीन आर्य कन्या डिग्री कालेज के प्राचार्या पद पर कई वर्ष काम किया। पठन-पाठन में रूचि के कारण प्राचार्या पद के बाद भी अध्यापन का कार्य जारी रखा। उनकी अनेक शिष्याएं भी कल कार्यक्रम में उपस्थित थीं।
जिस शिद्दत से वे अपने कालेज में दीदी के क्लास के दिनों की याद कर रहीं थीं उससे अंदाज लगाया जा सकता है कि वे कितनी लोकप्रिय शिक्षिका रहीं हैं।
निरुपमा दीदी ने भले ही अपना शोध प्रबंध 'कहानी'(हिन्दी नयी कहानी में आंचलिक तत्व) पर लिखा हो और भले ही उनके शुरुआती प्रकाशन कहानी के रहे हों लेकिन उनका मन सहज रूप में कविता में रमता है।
पिछले कुछ समय से अभिव्यक्ति के नए माध्यम फेसबुक पर उनकी कवितायें नियमित रूप से प्रकाशित होती रहीं। रिटायरमेंट पहले तक , दैनंदिन जीवन की आपाधापी और प्रशासनिक व्यस्तता के चलते उनका सृजन कार्य सारगर्भित वक्तव्यों, समय-समय पर लिखे जाने वाले लेखों और विभिन्न अवसरानुकूल लिखे जाने संदेशो के आसपास ही बना रहा । किसी संस्था की जिम्मेदारी व्यक्तिगत सृजन को प्रभावित तो करती ही हैं। यह सुखद बात है कि तमाम प्रशासकीय जिम्मेदारियों से मुक्त होने का बाद दीदी का नियमित लेखन शुरू हुआ है।
'वसंत है' की कवितायें पांच भागों -प्रकृति, प्रेम, स्त्री ,कोरोना काल और काल चिन्तन में विभाजित हैं।
कविता संग्रह का नाम 'वसंत है' पढ़कर बचपन में पढी बात सहज रूप से याद आ गयी -'वनन में , बागन में बगरयो वसंत है'।
'वसंत है' के अनुसार वसंत कहाँ है देखिये:
"पेड़ की प्रतीक्षा में ही
वसंत है
झर-झर झरता
वसंत है।"
संग्रह की कवितायें लगभग एक स्ट्रोक में बनाए गए किसी कलाकार के चित्र सरीखी हैं। कविता कोई हो लेकिन हरेक के मर्म में मूल संवेदना 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की भावना से संचालित उद्दात जीवन मूल्यों के प्रति सहज आग्रह है। अपनी कविता संदेश में लिखती हैं :
"तुम रहो सदा पावन तन मन,
दिल में करुणा-सागर लहराता हो!
सेवा,उत्सर्ग,आशीष अग्रजों का,
ताना-बाना बुनते नित जीवन-चादर का!
तुम बाँटो मुस्कान सदा अविरल,
मोती-सी हँसी लुटा डालो!
विहरो तितली बन जग-कानन में,
ख़ुशबू बन महको हवा के आँचल में!"
संग्रह में शामिल कई कविताएँ दीदी के फेसबुक वाल पर मौजूद हैं। वहां पहुंचकर पढ़ सकते हैं।
कार्यक्रम में निरुपमा दीदी और Ashok Kumar Avasthi भाई साहब के कई इष्टमित्र, आत्मीय स्वजन ,बचपन के, युवावस्था के , कालेज ,विश्वविद्यालय जीवन से जुड़े लोग विद्यार्थी ,संबंधी मौजूद थे।
कार्यक्रम में शिक्षा जगत , प्रशासनिक और पुलिस महकमे से जुड़े लोग भी थे। दूर-दूर से लोग आये थे। कानपुर से अपन भी थे। मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति कानपुर विश्विद्यालय जेवी वैशम्पायनजी के अलावा सबसे उल्लेखनीय उपस्थिति दीदी के सहपाठी रहे जय नारायण बुधवार जी Jai Narain Budhwar और अवधेश निगम जी Avdhesh Nigam की थी। दोनों ने अपनी पुरानी यादों को साझा किया जब तीनों का साझा कहानी संग्रह तब प्रकाशित हुआ था जब ये सभी साथी लिखना शुरू कर रहे थे।
कार्यक्रम का संचालन अशोक अवस्थी भाई साहब ने किया। भाई साहब लखनऊ विश्वविद्यालय के विधि विभाग में प्रोफ़ेसर , विभागाध्यक्ष और विभिन्न प्रशासनिक पदों पर रहे। भारतीय संविधान से सम्बंधित अनेक लेख पत्र-पत्रिकाओं में लिखे। उनका विपुल पाठक वर्ग है। वर्षों तक अपने ब्लॉग 'विधिचर्चा' पर लेख लिखते रहे। काफी समय से स्थगित यह रचनात्मक कार्य फिर से शुरू होने की आशा है।
कार्यक्रम शीरोज कैफे में हुआ जहां लोगों के बैठने की व्यस्वथा है। लोग आते गए, ,कार्यक्रम से जुड़ते गए। यादें ताजा होती रहीं। साझा होती रहीं। लगभग सभी ने दीदी से जुडी अपनी यादें साझा की। कविता संग्रह पर बात कम हुई।
दीदी के सहपाठी रहे जय नारायण बुधवार जी ने दीदी के रचना कर्म पर बात करते हुए अपनी राय जाहिर की कि उनकी कुछ संस्कृत निष्ठ कवितायें पाठक से अधिक ध्यान और मेहनत की मांग करती हैं।
जयनारायण वुधवार जी अपनी साहित्यिक पत्रिका 'कल के लिए' के माध्यम से साहित्य जगत में सार्थक हस्तक्षेप और योगदान देते रहे हैं।
कुछ श्रोताओं ने दीदी के कविताओं का पाठ भी किया। हमने भी ओपन बुक एक्जाम की तरह संग्रह से दो कविताओं के अंश पढ़कर अपने काव्यानुराग का परिचय दिया। मेरा उल्लेख करते हुए दीदी ने लिखा है :
"प्रिय अनूप का काव्यनुराग विशेष रूप से प्रेरणादायी रहा। मेरी उन्हें अनंत शुभकामनाएं। काव्यानुराग ने उन्हें कवि से कब प्रख्यात व्यंग्यकार बना दिया , कह नहीं सकती।"
बहरहाल एक जांच का विषय भी मिल गया कविता संग्रह के बहाने। कवि से व्यंग्यकार बनने और प्रख्यात होने के मामले की जांच कराई जाए। मुझे पक्का पता है कि हमको अच्छे से जानने वाले मित्र कहेंगे कि ये न तो कवि रहे, न व्यंग्यकार और प्रख्यात तो कभी हुए ही नही। लेकिन किसी के कहने से क्या होता है ? किताब में लिखा है वह सच माना जाएगा।
कविता संग्रह में सभी भागों के खूबसूरत चित्र प्रख्यात कलाविद डा अवधेश मिश्र ने बनाए हैं। उनकी तूलिका ने 'वसंत है' का श्रृंगार किया है।
दीदी ने अपने कविता संग्रह का समर्पण 'संभावनाओं के अंकुर अनय (दीदी की बिटिया Anvita Bhuvan Mishra और दामाद Saurabh Mishra का बेटा) और मिहिका ( दीदी के पुत्र Apoorva Bhumesh और बहू Madhavi Khare की बिटिया) को' किया है। दोनों अभी तक अपने बचपने और खेल-कूद की दुनिया में मगन हैं । फिलहाल हिन्दी और कविताओं से कोई नाता नहीं। अनय तो अमेरिका में है फिलहाल। मिहिका जरुर वहीं खेल रही थी जब उसकी दादी की किताब का लोकार्पण हो रहा था। शायद ये दोनों नवांकुर नरेश सक्सेना जी Naresh Saxena जी की कविता की भावना के मुताबिक़ इन कविताओं को सबसे अच्छे से समझेंगे:
शिशु लोरी के शब्द नहीं
संगीत समझता है,
बाद में सीखेगा भाषा
अभी वह अर्थ समझता है ।
समझता है सबकी मुस्कान
सभी के अल्ले ले ले ले,
तुम्हारे वेद पुराण कुरान
अभी वह व्यर्थ समझता है ।
अभी वह अर्थ समझता है ।
समझने में उसको, तुम हो
कितने असमर्थ, समझता है
बाद में सीखेगा भाषा
उसी से है, जो है आशा ।
लोकार्पण की तैयारियों को देखकर मिहिका कह रही था -'आज दादी का बर्थडे है'।
एक तरह से सही ही है उसकी बात। एक रचनाकार के लिए उसकी रचना उसका जन्म होना ही है।
कविताओं के प्रथम पाठक और फ़ेसबुक पर पोस्टकर्ता अशोक भाई साहब रहे जिनके प्रति आभार की बात को दीदी ने 'शब्दों से परे' कहकर टरका दिया । दीदी के दामाद सौरभ मिश्रा ने दीदी के अमेरिका प्रवास के दौरान टाइपिंग का काम किया। प्रकाशन में मेहनत अपूर्व-माधवी और भाई साहब ने की।
दीदी को उनके कविता संग्रह के प्रकाशन और लोकार्पण की बधाई और शुभकामनाएँ। पूरा विश्वास है कि एक बार फिर शुरू हुआ उनका रचनाकर्म अनवरत जारी रहेगा और शीघ्र ही हमें नई कृतियों के लोकार्पण का गवाह होने का मौक़ा मिलेगा।
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