Thursday, September 11, 2025

लोहे का घर - देवेद्र पांडेय की डेली पैसिंजरी के किस्से


देवेंद्र पांडेय की किताब लोहे का घर का मुख पृष्ठ 


देवेंद्र कुमार पांडेय से ब्लॉगिंग के चलते काफ़ी पहले से परिचय था लेकिन पहली मुलाकात चेन्नई के रेलवे स्टेशन पर हुई थी। सन 2014 में। अपने-अपने बच्चों के एडमिशन चेन्नई के इंजीनियरिंग कालेजों में कराने के सिलसिले में चेन्नई में थे।
उस समय तक देवेंद्र पांडेय जी अपने ब्लॉग बेचैन आत्मा पर कविताएँ, लेख और चित्रों का आनंद सीरीज के अंतर्गत बनारस के और आसपास के चित्र लगाते थे। आनंद की यादें सीरीज के अनर्गत 39 किस्तों में जो लिखा उसका उनके ब्लॉगर दोस्त इंतजार करते थे। आज उनकी पुरानी ब्लॉग पोस्ट देखकर लगा कि कितना कुछ लिखा गया है ब्लॉगिग के दिनों में।
बाद में देवेंद्र जी का तबादला जौनपुर हुआ। बनारस से जौनपुर जाना-आना नियमित होने लगा। साधन बनी रेल। रोज़ आते -जाते अपनी रेल यात्रा के बारे में लिखने लगे। रेलयात्रियों, प्लेटफार्म पर ट्रेन इंतजार करते लोगों, ट्रेन में सामान बेचते, ट्रेन में बतकही करते, ताश खेलते, आपस में कहा-सुनी करते हुए लोगों के बारे में पांडेय जी लिखते रहे।
देवेंद्र पांडेय जी का परिचय 


बनारस से जौनपुर रोज़ रेल यात्रा करते हुए देवेंद्र पांडेय जी के लिए रेल का डब्बा उनका 'लोहे का घर' हो गया। उनके मित्र उनको 'लोहे के घर का मालिक' कहने लगे। बिना पैसे के पाठक मित्रों की कचहरी में 'लोहे के घर' की रजिस्ट्री पांडेय जी के नाम हो गई।
रेल यात्रा के संस्मरण पढ़कर देवेन्द्र पांडेय जी के मित्रों ने, जिनमें से मैं भी शामिल हूँ, उनको अपने संस्मरण प्रकाशित करवाने को कहा। जुलाई, 2023 में रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपने रेल यात्रा के संस्मरण छपवाये और किताब 'लोहे का घर' के नाम से आई।
अपनी किताब को अपने सहयात्रियों को समर्पित करते हुए 'लोहे के घर के मालिक' ने लिखा :
"मेरे साथ यात्रा करने वाले और इस वृत्तान्त का पात्र बनने वाले जाने-अनजाने सभी सहयात्रियों को सादर समर्पित।"
अपनी इस लिखाई के बारे में ख़ुद देवेंद्र पांडेय लिखते हैं :
"इन यात्राओं ने नई कहानियाँ, नए अनुभव और जीवन जीने के नए दर्शन दिए।कभी लगता यह शरीर ही ट्रेन है और अतमा यात्री। कभी लगता,बचपन, युवावस्था, बुढ़ौती सब स्टेशन हैं, मंजिल तो मोक्ष है। कभी एहसास होता जिंदगी की ट्रेन, किसी प्लेटफार्म पर, कभी रुकती नहीं। बस, दुःख के प्लेटफार्म पर अधिक देर रुकने और सुख के प्लेटफार्म से जल्दी चल देने का उलाहना सुनती रहती है।"
किताब के आते ही मैंने उसको आनलाइन ख़रीदा। लेकिन फिर पता नहीं क्या तकलीकी लफड़ा हुआ, किताब का आर्डर कैंसल हो गया। फिर बाद में आज-कल करते हुए दिन बीतते रहे।
इस बीच कनक तिवारी जी की किताब 'जिंदगी रिवर्स गियर' आई। मैंने उसको पढ़कर उसके बारे में लिखा। उस दिन देवेंद पांडेय जी याद दिलाया कि उनकी किताब के बारे में अभी तक लिखा नहीं गया। मैंने फौरन किताब ख़रीदी। आते ही पलटकर देखी। किताब में देवेंद्र पांडेय जी के दो शब्द और उड़नतश्तरी वाले ब्लॉगर समीर लाल जी की भूमिका के अलावा लगभग सब पोस्ट्स पढ़ी हुईं थी। लेकिन उनको एक साथ देखना अच्छा लगा। किताब की छपाई के लिए इस्तेमाल थोड़ा और आकर्षक होते तो और अच्छा लगता।
देवेद्र पांडेय जी को उनके रेल यात्रा के संस्मरण 'लोहे का घर' किताब रूप में आने की बधाई। आशा है उनकी और किताबें, जिनमें उनकी कविताएँ और उनकी आनंद कथा शामिल है, भी जल्द ही किताब के रूप में आयेंगे।
पुस्तक का नाम : लोहे का घर
लेखक : देवेंद्र पांडेय 'बेचैन आत्मा'
पेज : 368
किताब का मूल्य : 550 रुपये MRP
प्रकाशक : स्याही प्रकाशन

किताब अमेजन पर उपलब्ध है। किताब और लेखक का नाम खोजने पर अमेजन का लिंक मिल जाता है।  

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