Friday, March 20, 2009

पोस्ट लिखने के झमेले

http://web.archive.org/web/20140419213610/http://hindini.com/fursatiya/archives/596

29 responses to “पोस्ट लिखने के झमेले”

  1. Shastri JC Philip
    “देखिये लोग हमसे कैसे रूखे-सूखे ब्लागरीय सवाल पूछते हैं जबकि शास्त्रीजी से लोग मन की उलझन/दुखवा मैं कासे कहूं सजनी टाइप के सवाल पूछते हैं! हम इसी ईर्ष्या में जल-भुन गये! कहा भी है- मैं पापन ऐसी जली कोयला भई न राख!”
    ऐसा करते हैं: आप एकलाईना लिखने का गुरुमंत्र हम को दे दें, लोगों को आकर्षित करने का मंत्र हम आपको दे देंगे. साथ में एक चीज फ्री — कि भडकाऊ शीर्षक कैसे लिखा जाये! (यह मुफ्त स्कीम सिर्फ आज आने वाले ग्राहक के लिये है!!)
    सस्नेह — शास्त्री
    पुनश्च: प्रभु आपकी कलम को इसी तरह जीवंत बनाये रखें !!
  2. manvinder bhimber
    bahut khoob …chintan achcha hai
  3. seema gupta
    अब अगर मौज लेने के बारे में क्लास लेने लगे तो दफ़्तर में हमारी क्लास हो जायेगी। इसलिये फ़िलहाल चलते हैं! फ़िर कभी मुलाकात होगी!
    ” ओह यहाँ का काम अधुरा छोड़ कर जाने की सजा का डर नहीं आपको हाँ …….हा हा हा हा हा बहुत मजेदार लगी….आज की ये पोस्ट”
    काल्ह करे सो आजकर, आज करे सो अब
    सरजी, परचा आउट करो, बहुरि करोगे कब?
    ” अरे वाह ये तो हमरे मन की लाइन लिख दी आपने अभी रामप्यारी से यही दरखास्त कर के आ रहे हैं ताऊ जी कल की पहेली के बारे मे…….चाकलेट से कम में वो भी बात तक नहीं करती….हा हा हा ”
    Regards
  4. mahendra mishra
    अनूप जी
    ऐसा काहे सोचते है जो मन में आवे सो लिखे आखिर ब्लॉग अपने विचारो को अभिव्यक्त करने के लिए बनाये गए है .
  5. dhiru singh
    साधू साधू , यह श्लोक तो जिन्दगी बदलने को काफी है . फुर्सत मे सोचा तो हकीकत लगे यह सब
  6. Shiv Kumar Mishra
    एक लाइना सिखा देते तो हम भी चिट्ठाचर्चा में ट्राई करते. हमें तो अभी भी आशा है कि आप सिखायेंगे. आप अगर सिखा देंगे तो हम वादा करते हैं कि चिट्ठाचर्चा में एक लाइना लिखने से पहले हम ज़रूर लिखेंगे कि; “गुरुदेव अनूप शुक्ल के आशीर्वाद से से..”
    दोहे तो गजब रहे.
  7. ज्ञान दत्त पाण्डेय
    धन्य हैं आप – मौजपन्थी अखाड़े के महन्त जी! :-)
  8. मुकेश कुमार तिवारी
    आदरणीय अनूप जी,
    दोहो की मार, फागुनी बयार
    गुरू-चेले की महिमा पर बड़े ही चुटीले व्यंग्य. मजा आ गया. मुझे तो विशेषतः यह बहुत ही पसंद आया :-
    गुरुवर आवत देखि के, लड़िकन करी पुकार,
    लगता है अब पिट जायेंगे, है गई इंडिया हार।
    बधाईयाँ.
    मुकेश कुमार तिवारी
  9. समीरलाल
    बढ़िया टाइम पास पोस्ट में दोहे बेहतरीन रचे हैं, मजा आया:
    अब के गुरु ऐसा भया, सबरे गुरुवर रोए
    मीन मलीन जो आ गई,गंदा तरुवर होए.

  10. dr anurag
    ऐसा लगता है मौज के कई बोरे आपने अपने गोदाम में रखवा रखे है …अब समझ में आया .बरसो से इसका टेंडर आपके नाम ही काहे खुलता है …कम से कम अब तक .रात को ये दुआ मना कर सोये थे की हे भगवान् उठे तो सचिन की सेंचुरी बनवा देना …(पोंटिंग से बड़ी जलन होती है सच्ची )शुक्र है भगवन का कभी कभी हमारी बात मान लेता है …हमने भी कई बार बोरे मांगे है भगवान् से सिक्को भरे पर वे छत पर नहीं गिरते…
    वैसे कसम से दूरबीन उठाकर जरा खिड़की से देखिये सूरज हमारे शहर में निकला नहीं है …अरे ….देखिये मौज लीक कर गयी लगता है …..कम्पूटर से बाहर निकल कर बह रही है …
    जे हो फुरसतिया महाराज की.!
  11. संगीता पुरी
    आप सिर्फ सोंचते रहे … फिर भी इतनी अच्‍छी पोस्‍ट … क्‍या हमलोगों ने आप के मन की पढ ली ?
  12. रौशन
    आनंद ही आनंद!
    सोचते हैं किसी दिन आपके कम्पूटर में सेंध लगाएं और देखें कहीं कुछ आईडिया वायिडिया स्टोर करके रखें हों तो उड़ा लें आयें
  13. puja
    अब लगता है ज्ञान जी कि तरह हमें भी disclaimer लगाना पड़ेगा पोस्ट के नीचे…कहीं फुरसतिया जी इससे मौज न निचोड़ लें…पर ज्ञान जी वरिष्ठ हैं, उनको अनुभव ज्यादा है…हम नौसिखिये लपेट में आ गए.
    अब किसी दिन हमारी पिटाई हो जायेगी और पीडी के सामान हम भी टूटी टांग का रोना रोयेंगे…अब बताइए हम किसको डांट सकते हैं भला…कवि तो वैसे भी नर्म दिल होता है उसपर स्त्री. बस संक्रमण भर फैला सकते हैं :)
    स्त्री है वो कविता है…पर हर अच्छी कविता स्त्री हो जरूरी नहीं है न. ये वो केस है कि A=B, but B is not equal to A
    अगर कविता के बारे में इतना लिख के ये कविता टाइप जो आप आखिर में लिखे हैं, उ क्या है…हम तो कहेंगे आपको भी संक्रमण हो गया है.
  14. रचना.
    Draft for approval– :)
    ” फ़ुरसतिया जी , धागा गुरु -शिष्यन का मत तोडो चटकाय!
    टूटे से फ़िर ना जुडे,जुड़े गाँठ पड़ॅ जाय! “
  15. Priyankar
    जय हो ! जय हो !
    ये ज्ञान जी आपको फिर किसी पंथी का महन्त बताय रहे हैं . अभी पिरमोद भाय सुन लेंगे तो फिर जोइ-सोइ कछु गाना शुरु करेंगे .
    जय हो ! जय हो !
    आपकी महन्ताई बनी रहे . मन-भर चढावा आता रहे . चेले मतियाएं नहीं . चेलियां शरमाएं नहीं . रोज बूटी घुटे . और रोज यूं ही मौज लुटे .
    जय हो ! जय हो !
    शास्त्री जी बिचारे हथियार डाल दिये हैं अब काहे उन्हें टोहनिया रहे हैं . उन पर नज़र रखने के लिए तो महिला-मण्डल काफ़ी है . अब तो ऊ आपको आसिरबाद भी दे रहे हैं कलम को जीवंत बनाए रखने का . गुस्सा थूकिए और उनको भी पास में प्लॉट दिला दीजिए . मठ के वास्ते .
    जय हो मौजवादी सम्प्रदाय — मौजपंथी अखाड़े — के गद्दीपति महंत संत श्री अनूपानन्द जी महाराज की .
  16. राजीव
    फुरसतिया जी की सतत मौज के स्रोत की खोज पर ब्लॉगरों की संयुक्त जाँच समिति के गठन का प्रस्ताव है, यदि अनुमोदित हुआ तो फिर यह समिति बने और जाँच – रपट पेश करे।
    डा. अनुराग की टिप्पणी कि अब समझ में आया .बरसो से इसका टेंडर आपके नाम ही काहे खुलता है का भी उत्तर मिल सकेगा शायद!
    पूजा जी की टिप्पणी और प्रस्तुत समीकरण की व्याख्या स्त्री है वो कविता है…पर हर अच्छी कविता स्त्री हो जरूरी नहीं है न. ये वो केस है कि A=B, but B is not equal to A पढ़कर अनायास ध्यान स्व. श्री श्याम नारायण पाण्डेय के काव्य “हल्दीघाटी” की और चला गया – “रण बीच चौकड़ी… ” तब उनकी बात का उत्तरार्ध तो सही जान पड़ा कि शायद हर अच्छी कविता स्त्री न होती हो!
  17. ताऊ रामपुरिया
    चेले ऐसे चाहिये, जिससे गुरुवर को हो आराम,
    राशन, सब्जी लाता रहे, करे सबरे घर के काम।
    काश ऐसे दो चार चेले चपाटी मिल जायें तो बडा आराम हो जाये.:)
    जय हो महंत फ़ुरसतिया जी की.
  18. अमर

    चलो जी, इसे कहते हैं तारणहार !
    गुरु हो तो कैसा हो.. फ़ुरसटिया जैसा हो.. भले बरस दो बरस बाद हो ।
    गुरुवर ( जी हाँ, आप मुगालते में न रहें.. वह गुरुवर पद से परमानेन्टली चिपक चुके हैं.. घंटाल आप तलाशें )..
    तो गुरुवर के ईर्ष्यत्व / ईर्ष्यातीयता पर मेरे गोदाम में भी तैयार माल है..
    पर सप्लाई कैसे करें… अभी टैम नहीं है ….भाई !
    भाईचारा डिस्टर्ब होता है.. बूझे के नहीं..
    वह भाई हैं और मैं चारा !
    हे हे हे..
    भाई तो भाई आप भी भाई हो..
    सो, माडरेट करते समय एक्ठो स्माइली का डिस्क्लेमर ठोंक दीजियेगा

    :) :)
  19. रवि
    हद है! जहाँ एक ओर लोग बाग सुबह शाम उठते बैठते पोस्ट पे पोस्ट ठेले जा रहे हैं, और एक आप हैं कि पोस्ट लिखने को झमेला मान रहे हैं… हद है! वाकई हद है!!
  20. anitakumar
    मौज के गुरुवर
    शत शत प्रणाम……॥फ़ुरसतिया की सतत मौज का स्रोत क्या है- ज्ञानजी
    इस लाइन में ज्ञान जी ने सवाल पूछा है या सवाल का जवाब है ज्ञान जी
    अगर ज्ञान जी की पोस्ट न होतीं तो आप का मौज लेने का आधा स्त्रोत तो सूख गया होता॥नहीं क्या?
    गुरुवर ऐसा चाहिये, जो हरदम होय सहाय,
    बिनु आये हाजिर करे, और फिरि नकलौ देय कराय।
    ॥:)
  21. venus kesari
    मान्यवर
    कोई भी अच्छी चीज सिखानी शुरू करिए चेले खुद मिल जायेगें आपको
    वैसे आपको बताने के लिए बता दूं की श्री पंकज सुबीर जी पिछले १.५ साल से बिना ये सोंचे की उनके कितने चेले हैं गजल की जानकारी दे रहे है पेड़ लगते ही आम नहीं मिलने लगता
    गुरु जी की क्लास में कोई रजिस्ट्रेशन नहीं होता कोई फीस भी नहीं लगती है आप जब चाहें गजल इस्लाह के लिए भेज सकते है उनकी मेल है subeerin.gmail.com
    और हाँ गजल ही भेजियेगा उजल मत भेज दीजियेगा नहीं तो बहुत डांट भी पड़ती है और संटी भी खानी पड़ती है
    होली तो चली गई है मगर आप बुरा मत मानियेगा
    वीनस केसरी
  22. Rakesh
    आपके शब्दों का चुनाव और लिखने की इस्टाइल स्वाभाविक है। शायद इसी लिए शायद काफी पाठक आपके लेखों का जमके आनंद उठाते है। और मेरे हिसाब से किसी को ये समझा पाना की कैसी कविता लिखी जाए बड़ा मुश्किल काम है। मुझे तो कोई उपयुक्त जवाब नही सूझा। अब आपके उत्तरों का इंतज़ार करता हूँ…वैसे जवाब तो मै दे नही पाया लेकिन मैंने इस पर कविता जरूर लिख ली….समय मिले तो पढ़ ली जिएगा।
    http://kavisparsh.blogspot.com/2009/03/blog-post_18.html
  23. बवाल
    क्या बात है फ़ुर्सतिया साहब आ हा हा हा हा ! क्या बात रच बैठे गुरूजी ! कोई जवाब है ही नहीं आपका, सिम्पली सवाल करते रह्ते हो। बहुत बहुत बहुत बेहतरीन पोस्ट। दूसरी डिमाण्ड ये है कि इतने दिन ग़ायब न रहा करें सर आपके बिना सूनापन लगता है ब्लाग पर।
  24. गौतम राजरिशी
    देव को प्रणाम…..हमारे गुरू जी का और हमारी गज़लों की खिंचाई कर रहे हैं अपने इस्टाइल में…ये ठीक बात नहीं और मेरी इस धमकी का बुरा मानोगे तो ये भी ठीक बात नहीं !!!!
    दोहों ने मन प्रसन्न कर दिया है देव….और तमाम प्रश्नों का व्याख्या समेत जो प्रकाश डाले हैं तो चित्त आहहाहाहाहा…..
  25. Abhishek Ojha
    जय हो महाराज ! ( इसको बडो के लिए ‘जियो मेरे लाल’ का अनुवाद समझा जाय)
  26. कविता वाचक्नवी
    अच्छी मस्ती चल रही है। किस किस की क्लास ले ली आपने, मौज के बहाने।
    दोहों पर उत्तरआधुनिकता ‘पसर’ गई है. खूब नई मिट्टी कूटने की कवायद है।
    हुण मौजाँ-ई-मौजाँ :) :) :)
  27. anupam agrawal
    वाह वाह , यह भी कोई बात हुई कि आपको चेले नहीँ मिल रहे ,सीखने के लिये .
    और वो भी मौज सम्राट को .
    अरे भाई एक बार नेट पे रजिस्ट्रेशन खोल कर देखिये , जी मेल कम पड जायेगी.
    कविता बहुत अच्छी लिखी है ..बधाई
  28. amit
    मौज कैसे ली जाए इस बारे में तो ट्यूटोरियल नुमा पोस्ट ठेल ही डालिए समय निकाल के! बाकी रही बात दूसरे कामों की जिनको आपने छोड़ दिया, तो अब यह सोच कुछ करने से बचेंगे कि फलाना काम तो अमुक व्यक्ति के हाथ में है तो ऐसे कैसे चलेगा? एकाधिकार को बढ़ावा मत दीजिए, खुले बाज़ार का जमाना है, कम्पीटीशन को तरजीह दीजिए! :)
  29. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176

Friday, March 13, 2009

रंग बरसे भीगे चुनर वाली

http://web.archive.org/web/20140419213451/http://hindini.com/fursatiya/archives/594

36 responses to “रंग बरसे भीगे चुनर वाली”

  1. मानसी
    “हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै?”
    सच्ची।
  2. seema gupta
    रंग बहुत पर मैं कुछ ऐसी भीगी पापी काया
    तूने एक-एक रंग में कितनी बार मुझे दोहराया
    मौसम आये मौसम बीते मैंने आंख न खोली
    मगर अब साजन कैसी होली!
    ” ha ha ha ha ha ha ha ha ha bhut mjedaar post ”
    Regards
  3. nirmla.kapila
    vah fursatia ji holi par itni fursat ki itni badi post karne ka time mil gaya khoob rang barsaaye hain bhut bahut bdhai holi mubarak
  4. दिनेशराय द्विवेदी
    इधर चूनर वाली भीगती रही उधर रघुवीरा होली खेलता रहा। वसीम बरेलवी की होली पसंद आई, और वजह भी मिली कि चूनर वाली ही क्यों भीगती है।
  5. dhiru singh
    चुनर वाली न सही जींस वाली ही सही आपने भिगो तो दी ही होगी . होली तो मना ही ली होगी .
  6. himanshu
    एकदम होलियाना मूड की प्रविष्टि । यूं ही आ गये विचार को यूं ही नहीं रहने देते आप, उसे साज सज्जा देने में आप माहिर हैं । ’रैंडम थाट डेकोरेटर’ हिन्दी चिट्ठाजगत में दो ही को मानता हूं – एक आपको और दूसरा ‘ज्ञानदत्त जी’ को ।
    प्रविष्टि का धन्यवाद |
  7. anil pusadkar
    अच्छा पकड़ा आपने,वाकई इत्ते सालो से सिर्फ़ चूनर वाली ही भीग रही है,ठंड भी नही लगती क्या इसको।
  8. समीर लाल
    तोहरा रंग चढ़ा तो मैंने खेली रंग मिचोली
    मगर अब साजन कैसी होली!
    -हो गया विमर्श चुनरवाली का? अभी होली ठीक से बीती भी नहीं और आप भी चिन्ता लिए बैठ गये. अभी तो खेलिए..यह सब बाद में देख लिया जायेगा,
    :)
  9. संजय बेंगाणी
    आपने ऐसे ही कह दिया और हमने ऐसे ही पढ़ भी लिया. अगले वर्ष फिर चुनरवाली भीगेगी कोई का करिहे? :)
  10. चुनर वाली
    हाय राम! जमाना बीत गया. .अब जाके तुमने हमारा दर्द जाना.. मैं तो मारे शर्म के भीग ही गयी…
  11. ranju
    रंग बहाना रंग जमाना रंग बड़ा दीवाना
    रंग में ऐसी डूबी साजन रंग को रंग न जाना
    रंगों का इतिहास सजाये रंगो-रंगो होली
    मगर अब साजन कैसी होली।
    बढ़िया रहायह ..हाँ चुनर और चुनार वाली बात लॉजिक तो है इस में :) बढ़िया लगी यह पोस्ट
  12. mamta
    माने होली अच्छी हुई । :)
  13. Dr.Arvind Mishra
    अभी खुमारी उतरी नहीं है -नतीजा यह चुनरी से चुनार तक की छलांग !
  14. ताऊ रामपुरिया
    तोहरा रंग चढ़ा तो मैंने खेली रंग मिचोली
    मगर अब साजन कैसी होली!
    अभी तो रंग पंचमी बाकी है. आपको आजकल चुनर वाली की तबियत की बडी फ़िकर रहती है कि कहीं डबल निमोनिया ना हो जाये? सब ठीक तो है ना?:)
  15. Shiv Kumar Mishra
    चुनार वाली ही चुनर वाली बनी है.
    महान समाजशास्त्री डॉक्टर महेश चन्द्र ने अपनी पुस्तक ‘होली का इतिहास’ में लिखा है……..
  16. विवेक सिंह
    सन्दर्भ:प्रस्तुत पद्यांश महाकवि फ़ुरसतिया की सुप्रसिद्ध कविता रंग बरसे भीगे चुनर वाली से लिया गया है !
    प्रसंग:कवि ने होली विमर्श के बहाने भारतीय समाज में नारियों की दशा पर गहन चिन्तन किया है . किन्तु यहाँ कवि अपनी भावनाएं पाठकों तक पहुंचाने में पर्याप्त सफ़ल नहीं हो सका है . क्योंकि पाठकों को कवि को हल्के में लेने की बुरी आदत पड़ गयी है !
    व्याख्या: भारतीय समाज में नारियों की स्थिति अभी तक किसी खिलौने से ऊपर नहीं उठ सकी है . नारियों को यहाँ उनकी मरजी के खिलाफ़ नाम दिया जाना पुरानी परम्परा रही है . और उनकी अपनी कोई पहचान बना पाना अभी भी टेढ़ी खीर है .
    विशेष: कवि ने अन्त में मुस्कराकर माहौल को हल्का करने की कोशिश की है . पर कदाचित कवि को नहीं मालूम कि माहौल तो पहले से ही हल्का है !
  17. PN Subramanian
    यह भी तो हो सकता है कि पहले सब खुल्ला खुल्ला रहता होगा.(जैसे आजकल है) अचानक कोई चुनरी पहनकर आ गयी. लोगों ने उसे घेर लिया. फिर बज गया बाजा. भिगा दिया चुनर वाली को. बुरा न मानो होली है!
  18. अजित वडनेरकर
    चाहे होली हो या दीवाली,मस्ती न जाए खाली…
  19. Gyan Dutt Pandey
    चुनर वाली काव्यात्मक है और चुनारवाली तो देसी सिरेमिक पॉटरी जैसी लगती है। वो जो भीगने पर भी बिल्कुल न बदले!
    अगले साल भी यथावत रहेगी।
    अगली होली पर भी यह सुन्दर पोस्ट ठेलेबल है।
  20. anitakumar
    :) होली का खुमार अभी उतरा नहीं लगता है । रेन्डाम थॉट डेकोरेटर समाजशात्री भी हैं? चुनार कहां है जी , हमें तो भारत के नक्शे में कहीं नहीं दिख रहा, वैसे अपना जुगराफ़िया काफ़ी खराब है। चुनरवाली को निमोनिया हो भी गया तो काहे का गम है जी इत्ते सारे डाग्दर बैठे हैं यहां उसका इलाज करने को……।:) आप तो जी जग की चिंता छोड़िए और रंग पचंमी मनाइए
  21. लावण्या
    होली का अब अगले साल आगमन होगा पर ये गीत याद रह जायेगा
    - लावण्या
  22. राज भाटिया
    अनुप जी इसी लिये तो अब चुनर गायव होनी शुरु हो गई, क्योकि सभी इस चुनर वाली के पीछे ही लग गये….. बेचारी…. जाओ अब हम नही लेते मुयी चुनर, अगर निमोनिया हो गया तो इलाज कोन करवायेगां.
    बहुत सुंदर
  23. Smart Indian
    रंग बरसे … और बरसे … बरसता रहे!
  24. nitin
    वाह वाह वाह! मौज लेना तो कोई आपसे सीखे!
  25. cmpershad
    @” पैंट-शर्ट में होली खेल रहे थे लेकिन प्रचार चुनर वाली के भीगने का हो रहा था। ”
    यही माहौल पचास के दशक में उस समय था जब नागिन फिल्म मे बज तो रही थी बीन पर लता जी गा रही थी- ये कौन बजाए बांसुरिया……:)
  26. बवाल
    क्या फ़ुर्सतिया साहब, आप भी ना ! अब हटाइए, क्योंकि पाठकों को कवि को हल्के में लेने की बुरी आदत तो पड़ ही चुकी है ! हा हा !
  27. kanchan
    aap ki pasand hamesha achchhi hoti hai
  28. dhiresh saini
    हां ये मूलत: लोगकगीत ही है। हरिवंश ने अपने नाम से मार दिया फिल्म में, क्या करिएगा?
  29. Darpan Sah
    “चुनरवाली वीआईपी है। अकेले भीगती है। वो भीगती रहती है गोरी का यार पान चबाता रहता है। पच्चीस साल से बेचारा पान चबा रहा है। उसको पता ही नही होगा कि इस बीच कित्ते पान-मसाले आ गये हैं।”
    wakai maza aa gaya apke blog main aake.
    “हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै?”
    Ap agar jabriya likhenge to hum jabriya comment bhi karenge.
    aur chahe apke blog main follower ka koi option na ho hum to ‘blogroll’ jabriya karange.
    ab chahey ise apna apharan manie ya hamara apko padhne ki lalsa
  30. रौशन
    अब जब आप ठान ही के बैठे हैं कि लिखना ही लिखना है तो चुनर वाली क्या कोई भी होती आप लिख ही मारते
    हम तो इतने सालों से मान के बैठे थे कि चुनरवाली सहियै होगा आपने चुनार वाला एंगल फंसा डाला . जबरिया लिखने वालों का लिखा पढने से यही होता है. अब चुनर वाली डाक्टर के पास जाए न जाए पढने वाले जायेंगे ही.
    वैसे वसीम बरेलवी की कविता शानदार है
  31. dr anurag
    वसीम बरेलवी की कविता पहली बार पढ़ी….आपके नजदीक बनारस में थे होली पर इस बार हम…..
  32. sciblogindia
    लेकिन अब ऐसे दृश्य कहां देखने को मिलते हैं।
  33. Abhishek Ojha
    जींस के जमाने में भी चुनर वाली को बड़े ध्यान से देखें हैं आप होली के दिन :-)
  34. amit
    वाह, आपने तो अमिताभ के गाए हुए गाने का नया अर्थ निकाल बता दिया!! :D
  35. : जबरियन छपाई के हसीन साइड इफ़ेक्ट
    [...] बार पता चला कि हमारा एक लेख रंग बरसे भीगे चुनर वाली होली के मौके पर दो अखबारों ने छापा। एक [...]
  36. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] रंग बरसे भीगे चुनर वाली [...]