Tuesday, June 08, 2010

…धरती को ठंडा रखने के कुछ अटपटे सुझाव

http://web.archive.org/web/20140419213837/http://hindini.com/fursatiya/archives/1496

…धरती को ठंडा रखने के कुछ अटपटे सुझाव

…धरती लगातार गर्म हो रही है।
कुछ लोग ठंडे में बैठे धरती की गरमाहट कम करने के उपाय सोच रहे हैं। सोचने से मन भटकता है तो विचार करने लगते हैं। विचार से थके तो फ़िर सोचने लगे। सोच और विचार की एकरसता से बचने के लिये बीच-बीच में बहस भी करते जा रहे हैं। आप भी देखिये सोच, विचार और बहस के कुछ सीन।
  1. अगर ऐसे ही चलता रहा तो आगे आने वाले कुछ सालों में समुद्र के किनारे के शहर पानी में पानी में डूब जायेगे। पानी के लिये त्राहि-त्राहि मच जायेगी। हमें कुछ करना होगा, कुछ सोचना होगा।
  2. धरती का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। अगर हम चेते नहीं तो आने वाली पीढियां हमें कभी माफ़ नहीं करेंगे।
  3. अगला विश्वयुद्द पानी के लिये होगा।
  4. हमें अपनी आवश्यकतायें सीमित करनी होंगी। भोगवादी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना होगा।
इसी तरह की बातें होती देखकर संचालक महोदय ने सोच-विचार करने वालों को टोंक दिया -आप लोग पिछली मीटिंग के ब्योरे पढ़कर मत बोलिये। जो आप कह रहे वही पिछले पांच साल से कहते आ रहे हैं। पिछली बातें मत दोहराइये। धरती की गर्मी कम करने के कुछ ठोस उपाय बताइये।
इस पर लोग उपाय बताने में जुट गये। तमाम लोगों ने मौलिक चिंतन तक कर डाला। और करके डाल दिया।
- मैं सोचता हूं कि किसी भरोसेमन्द कम्पनी को धरती की एयरकंडीशनिग करने का ठेका दे दिया जाये। कम्पनी धरती की सतह पर डम्पलाट एसी लगवा देगी। धरती की सारी गर्मी खैंचकर बाहर कर देगी।
- एसी लगवाने से अच्छा है कि बड़े-बड़े गर्मी निकासी पम्प लगवा दिये जायें। सारी गर्मी पम्प करके अंतरिक्ष में ठेल देंगे जैसे बारिश में सड़क का पानी तालाब में उलीचते हैं। या फ़िर जैसे अपने यहां का दो नम्बरी पैसा स्विस बैंक में जाता है।
-इत्ते बड़े पम्प आयेंगे कहां से? जो इत्ती सारी गर्मी हैंडल कर सकें? – मीटिंग में सोचने और मौलिक सवाल उठाने वाले भी मौजूद थे।
-अरे शुरुआत छोटे पम्पों से करेंगे। चार हमारे पास हैं। कम किराये पर लगा देंगे। अलावा इसके हमारे साढू की पम्प बनाने की फ़ैक्ट्री है। बहुत होशियार हैं वे। कुछ न कुछ कर ही देंगे इस सामाजिक काम के लिये।
-देख लीजिये। अगर पम्प न काम करें तो जगह-जगह गर्मी इकट्ठा करने के लिये सेप्टिक टैंक की तर्ज पर गर्मी टैंक बनवा सकते हैं। सारी गर्मी फ़्लस करके बहा देंगे अंतरिक्ष में। वैसे ही जैसे कि ट्वायलेट में करते हैं। हमारे दूर के रिश्तेदार की सीवर पाइप लाइन बनाने का बहुत बड़ा कारखाना है। वे जरूर कुछ सहायता देंगे। हमारी बात नहीं टालेंगे। लागत दाम पर काम हो जायेगा। जब घर में सुविधा है तो बाहर पैसा काहे को बरबाद किया जाये!!!
-एक ने सुझाव दिया इधर धरती गर्मा रही है उधर सूरज ठंडा रहा है। कोई ऐसा समझौता किया जाये दोनों के बीच ताकि दोनों के ताममान ठहर जायें। हाईकोर्ट के स्टे की तरह स्थिति जस की तस बनी रहे सदियों।
-कोर्ट की बात सुनते ही एक सदस्य ने उचक कर सलाह दी कि धरती का तापमान बढ़ाना उसकी मानहानि जैसा है। हम सब इसके लिये दोषी हैं। इसलिये दुनिया में सबको धरती की मानहानि का नोटिस भेज दिया जाये। जहां जाना सम्भव न हो वहां हवाई जहाज से नोटिस-वर्षा करवा दी जाये। दुनिया के चप्पे-चप्पे में नोटिस भेज दिये जायें। नोटिस टाइप करने के लिये उसने खुद को स्वयंसेवक के रूप में पेश करते हुये बाजार से दोगुनी दर से टाइपिंग का बिल सबसे पहले टाइप करके पेश कर दिया।
-दूसरा बोला -ऐसा भी हो सकता है कि जिन ग्रहों के ताममान सूरज से दूर रहने के कारण बहुत कम हैं उनसे धरती का गर्मी-ठंडक एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट पैक्ट कर लिया जाये। वे अपनी ठंडक हमें भेज दें। हम उनको अपनी गर्मी भेज देंगे। दोनों का काम चल जायेगा। सह अस्तित्व वाली बात भी एक बार फ़िर से साबित हो जायेगी। जब अपराधी, राजनेता और नौकरशाह में गठजोड़ हो सकता है ग्रहों में क्यों नहीं!!!
-एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट की बात चलते हुये लोगों ने अपने-अपने पसंदीदा ग्रह से समझौते के लिये कयास भिड़ाना शुरू कर दिया। अपने-अपने राशि स्वामी के अनुसार किसी ने कहा शुक्र, कोई बोला मंगल, कोई वृहस्पति कोई शुक्र।
-एक भाईसाहब बोले -मेरे विचार से तो अपने पड़ोसी ग्रह बुध से गर्मी-सर्दी आदान-प्रदान कार्यक्रम पर सोचना चाहिये। बुध पड़ोसी है, कद में छोटुआ टाइप है आसान शर्तों पर मान जायेगा। जैसे हम लोग विकसित देशों से कोई भी समझौता अदबदा के उसकी शर्तों पर कर लेते हैं वैसे ही बुध भी बड़ी खुशी से समझौता करेगा हमारी शर्तों पर। एहसान अलग मानेगा कि हमने उसको बराबरी का समझा।
-बाद में बुध ग्रह से समझौते पर किसी ने यह कहकर एतराज किया कि वहां का तापमान तो यहां से भी अधिक है। उससे समझौता करना तो किसी विकसित देश से पुरानी तकनीक लेने से भी ज्यादा गड़बड़ काम है।
-इस बात से नाराज होकर माननीय सदस्य बैठक का बहिष्कार करने के लिये उठने लगे लेकिन गठिया के दर्द के चलते उठ न पाये और जहां से उठे थे करवट बदलकर वहीं बैठ गये। इसके बाद पूरी मीटिंग में बैठे-बैठे अपना डाक्टर बदलने का प्लान बनाने रहे। मीटिंग से उनका मन उसी तरह उचट गया जिस तरह चुनाव में हारा हुआ नेता देश सेवा के काम से अनमना हो जाता है।
-बाद में पता चला कि वे भाईसाहब स्वभाव से बहिष्कार प्रेमी धे। सोते जागते जब मन आते बहिष्कार कर डालते। बहिष्कार प्रेम के चलते ही उन्होंने अपने घर की दीवारों में दरवाजे ही दरवाजे बनवा रखे थे। घर में चलते-फ़िरते बहिष्कार का अभ्यास करते रहते। एक दरवाजे से निकलते, दूसरे से घुसते। दो बहिष्कार गिन डालते। घर से बाहर निकलते-निकलते सैकड़ों बहिष्कार कर डालते। लोग तो यहां तक बताते हैं अपने विवाह के सात फ़ेरे भी उन्होंने चौदह बहिष्कार के बाद पूरे किये। लेकिन इधर गठिया के चलते वे बहिष्कार करने में असमर्थ हो गये थे और लोग उनको शांतिप्रिय और समझदार कहने लगे थे। वे सुनते रहते और कुढ़ते रहते। जिंदगी भर की क्रांतिकारिता को बुढौती में उनकी गठिया ने पटकनी दे दी थी।
-इस बीच एक मार्डन सोच वाले ने सुझाया कि सारी गर्मी टुकड़ों -टुकड़ों में विनजिप करके किसी ठंडे ग्रह के लोगों को ईमेल कर देंगे। जिसको भेंजेंगे वो धन्यवाद देते हुये मेल लिखेगा जो कि किसी दूसरे ग्रह से आयी दुनिया की पहली ई-मेल होगी। इसके बाद इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर के नाम पर भी काफ़ी देर चकचक होती रही। बाद में तय हुआ कि सेवा प्रदाता का चुनाव तकनीकी विशेषज्ञ रामशलाका प्रश्नावली की सहायता से करेंगे।
-एक आध्यात्मिक और सामाजिक चेतना संपन्न सदस्य ने सुझाया कि क्यों न हम अपनी सारी गर्मी सूरज को ही भेज दें। त्वदीयं वस्तु गोविन्दम तुभ्यमेव समर्पयामि की तर्ज पर।
-अपनी योजना का खुलासा करते हुये उन्होंने बताया कि उनका परिचय एक ऐसे योगी से है जिनका आध्यात्म ,संस्कृति, विश्वबंधुत्व जैसे विषयों पर धांस के दखल है। सोने में सुहागा यह कि उनका गुस्से का पारा जरा-जरा सी बात पर सातवें आसमान तक पहुंच जाता है। अगर एक आसमान तक गुस्सा पहुंचने को एक लाख डिग्री तापमान बढ़ना माना जाये तो ये समझ लीजिये कि उनके गुस्से में सात लाख डिग्री तक पहुंचने की क्षमता है। अब यह बात सबको पता है कि ऊर्जा का स्थानान्तरण उच्च ताप से निम्न ताप की तरफ़ होता है। धरती की सारी गर्मी एक जगह इकट्ठा करके उसके ढेर पर गुरुजी को खड़ा करके कोई मजाक की बात कर देंगे। मजाक गुरुजी को बिल्कुल पसन्द नहीं है। लिहाजा मजाक की बात पर गुरू का तापमान तड़ से बढ़ जायेगा और और धरती की सारी की सारी गर्मी भड़ से एक झटके में सूरज में समा जायेगी जैसे नदियां समुन्दर में समा जाती हैं। गर्मी का रिटर्न गिफ़्ट पाकर सूरजजी खुश हो जायेंगे। इधर हमारी सारी धरती स्विटजरलैंड सरीखी हो जायेगी। :)
-लेकिन यार ये बताओ सूरज की सतह का ताममान 6000 डिग्री होता है। लाखों डिग्री पर जब गर्मी जायेगी उनके पास तो छाला-वाला नहीं पड़ जायेगा उनको? कहीं बुरा न मान जाये भाईसाहब। एक ने अपने मौलिक ज्ञान का थान फ़ैला दिया।
-अरे जब भेजेंगे तो शुरू में एक्क्यूज मी कहेंगे और बाद में जब गर्मी भेज देंगे तो सॉरी बोल देंगे। दुनिया भर के बड़े-बड़े देशों ने न जाने कित्ती चिरकुटैयां सॉरी बोल के बराबर कर दीं। सूरजजी बुरा नहीं मानेगें। अंग्रेजी में सॉरी सुनने के बाद वे इट्स ओके कहकर मुस्करा देंगे। मुझे पता है। अंग्रेजी में बड़ी जान है।
-लेकिन यार ये कार्बन डाई आक्साइड को कहां लेकर जायें? सारा लफ़ड़ा इसके कारण है। ये मुई कार्बन हमारी आक्सीजन को फ़ुसलाकर उससे सट जाती है और दुनिया भर को अपने गठबंधन से हलकान किये रहती है। इनका गढजोढ़ तो हरामखोरी और भ्रष्टाचार के गठजोड़ से भी ज्यादा तगड़ा है।
-उसके लिये अपने तोड़-फ़ोड़ करने वालों से बात करते हैं। जहां कार्बनडाईआक्साइड दिखे उसकी खुपड़िया तोड़ के आक्सीजन अलग कर दी जाये कार्बन अलग। खाप पंचायतों की तर्ज पर दोनों को भाई-बहन बना दिया जाये। आक्सीजन से कार्बन को राखी बंधवा दी जाये। जुर्माना अलग से।
-एक ने सुझाया कि कार्बन डाई आक्साइड को पकड़-पकड़कर बांस में टांग देंगे। आक्सीजन भारी होने के चलते लटके-लटके चू जायेगी। कार्बन बांस में लटका रह जायेगा। रात भर में दोनों झगड़ालू दम्पतियों की तरह अलग हो जायेंगे। सुबह दोनों को अलग-अलग इकट्ठा करके भर लेंगे।
-ये सही है ! आक्सीजन को सिलिंडर में भरवाकर अस्पताल वालों को बेंच देंगे। कार्बन की ट्रेडिंग कर लेंगे। जो पैसे मिलेंगे उससे एडस विरोधी अभियान चलाया जायेगा। अमेरिका वाले यही करते हैं। जहां फ़्री का पैसा मिलता है, एडस विरोधी अभियान में ठेल देते हैं।
-इसके बाद कार्बनडाईआक्साइड को अलग करने के बारे में बहुत बाते हुईं। कुछ लोगों ने कहा कि ये बहुत मुश्किल काम है। लेकिन कोई काम नहीं है मुश्किल जब किया इरादा पक्का समुदाय के विचारक ने उनको टोंक दिया और पूरी मीटिंग में धनात्मक चिंतन बिखेर दिया यह कहते हुये- अरे भाई जब परिवार टूट सकते हैं, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान अलग हो सकते हैं , सोवियत रूस के टुकड़े-टुकड़े हो सकते हैं तो ई ससुर कार्बन-आक्सीजन को अलग करना कौन मुश्किल काम है।
-इस धनात्मक चिंतन का ही जलवा था कि इसके तुरंत बाद नाश्ता लग गया और सारे विचारक अपने-अपने विचार किनारे धरकर नाश्ते पर टूट पड़े। एयरकंडीशनर की हवा नाश्ता करते विचारकों को सुखद आनन्द प्रदान कर रही थी। एयरकंडीशनर अपनी गर्म हवा बाहर फ़ेंकते हुये धरती को बता रहा था कि अंदर तुमको ही ठंडा करने की बात चल रही है। बहस हो रही है। उपाय सोचे जा रहे हैं।
-इसी तरह दुनिया भर में धरती को ठंडा रखने की गर्मागर्म बहसें चल रही हैं। धरती को एहसास ही नहीं कि लोग उसके लिये कितना चिंतित हो रहे हैं। वह सारी बहसों से बेखबर अपनी धुरी पर घूम रही है। धरती लगातार गर्म हो रही है। :)

मेरी पसंद

कैसे-कैसे समय गुज़ारे,
कैसे-कैसे दिन देखे।
आधे जीते, आधे हारे,
आधी उमर उधार जिए।
आधे तेवर बेचैनी के देखे,
आधे दिखे बीमार के।
प्रश्न नहीं था तो बस अपना,
चाहत कभी नहीं पूजे।
हमने अपने प्रश्नों के उत्तर,
बस, राम-शलाका में ढंूढ़े।
कैसे-कैसे नगरों घूमे,
कैसे-कैसे रोज़ जिए।
प्रतिबंधों की प्रतिध्वनि थी,
या प्रतिदिन की प्रतिद्वंद्विता रही।
मंदिर, मस्जिद, चौराहों पर,
धक्का-मुक्की लगी रही।
कैसी-कैसी रीति निभाई,
कैसे-कैसे काव्य कहे!
राजेश कुमार सिंह

24 responses to “…धरती को ठंडा रखने के कुछ अटपटे सुझाव”

  1. गिरिजेश राव
    कसम से – इन निहायत जमीनी, मौलिक, बुनियादी, क्रांतिकारी, समवादी… आदि आदि आदी आदी प्रस्तावों को पढ़ने के बाद नाना प्रकार के प्रोफेशनलों का अपना जीवन व्यर्थ लगने लगेगा। … ऐसा सेप्टिक टैंक ! , सिविल इंजीनियर साहित्यसुधी बन ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ पढ़ने लगेंगे।
    ‘ग्लोबल वार्मिंग के खतरे’ अब व्यवसायिक रूप ले चुके हैं। जल्द ही वेतन के कैफेटेरिया अप्रोच में ‘ऑफिस के भीतर की शुद्ध(?) शीतित वायु’ भी एक पर्क के रूप में गिनी जाएगी। आयकर विभाग उस पर टैक्स की बात भी सोचेगा।… ऐब्सर्डिटी की ओर ध्यान दिलाते, गुदगुदाते और सोचवाते लेख के लिए आभार।
  2. सतीश पंचम
    वाह….एकदम ढिंचाक…..फचाक…..खचाक पोस्ट है।
    एक दरवाजे से जाते दूसरे से निकलते दो बहिष्कार गिन डालते…..आक्सीजन-कार्बन की खाप पंचायत,…..कार्बन डाय आक्साईड को बाँस पर लटकना…….वाह….वाह….एकदम धाँसू।
    अनूप जी, लगता है कौनो बहुतै अदभुतावस्था में थे आप जो यह अदभूत लेखन किए :)
    शब्द कम पड़ रहे हैं ऐसे रापचीक लेखन की प्रशंसा में।
    बहूत शानदार।
  3. काजल कुमार
    हे भगवान ! इतना बीहड़ कैसे सोच लेते हैं.
    मुझे भी आइडिये आने हैं…
    सारी गर्मी यूं ही अंतरिक्ष में ठेल देने से अच्छा है कि रास्ते में उस गर्मी की ठीक वैसे ही चोरी कर ली जाए जैसे कंटिया डालने का रिवाज़ है…जेम्स वाट के भाप के इंजिन की भांति, उसने भी भाप को दुहा हम इसे … सांप भी जाता रहेगा लाठी भी ठोक बजा ली जाएगी… :)
  4. संजीव द्विनेदी
    आप लोग पिछली मीटिंग के ब्योरे पढ़कर मत बोलिये।
    इस धनात्मक चिंतन का ही जलवा था कि इसके तुरंत बाद नाश्ता लग गया और सारे विचारक अपने-अपने विचार किनारे धरकर नाश्ते पर टूट पड़े।
    बहुत बढ़िया
  5. संगीता पुरी
    ठंडे रूम में हो रहे तमाम लोगों के मौलिक सुझावों को आपने चुपचाप सुन भी लिया .. और हमारे सामने पोल भी खोल दी .. सबसे बढिया सुझाव तो ईमेल भेजने वाला है .. सारी गर्मी टुकड़ों -टुकड़ों में विनजिप करके किसी ठंडे ग्रह के लोगों को ईमेल कर देंगे.. इसमें अमल हो जाने के बाद धरती को तो ठंडा होना ही होगा !!
  6. jandunia
    खूबसूरत पोस्ट
  7. महफूज़ अली
    Intellectually written…. intellectual post…. hats off to you….
  8. कीमियागर

    ज़नाब मैंने इस बैठक में एक नायाब कयास लगाया था, उसे आपने बड़ी खूबसूरती से दरकिनार कर दिया, आख़िरकार ब्लॉगर ही तो ठहरे !
    ज़नाब ज़माना रिसाइकिलिंग का है, कुछ ऎसा तज़वीज़ करिये कि गरमी और सरदी बादशाह की बेगमों की तरह रिसाइकिल होती रहें ।
    बादशाह पर याद आया कि शाहज़हाँ ग़ुज़रे ज़माने में खच्चरों पर काश्मीर की बर्फ़ मँगवा लिया करते थे, तो जहाँपनाह फुरसतिया जी अन्टार्टिका से बरफ़ ढोकर लाने की निविदा क्यों नहीं आमँत्रित करते ? इसे विकसित और विकासशील देश अपनी अपनी ज़रूरत के हिसाब से बाँट कर धरती पर बिखरा दें ।

    यू नो, देयर इज लॉट आफ़ आइस, मेल्टिंग टू वेस्ट इन दैट ज़ीरो पापुलेशन ऍरिया.. वी शुड एक्सप्लोर इट लाइक वी एक्सप्लोर्ड / यूज़्ड कोल एन्ड पेट्रोलियम रीजर्व ! यू नो, दिस वार्मिंग लफ़ड़ा इज़ टोट्टली ड्यू टू अन-इक्वल एन्ड अन-इवेन डिस्ट्रीब्यूशन आफ़ गॉड गिफ़्टेड आइस !
  9. आचार्य जी
    आईये जानें … सफ़लता का मूल मंत्र।
    आचार्य जी
  10. रंजन
    हमने अपनी रिसर्च कर मारी है… इसी मुद्दे पर…
    ग्लोबल वार्मिग फ्लोबल वार्निग सब बकवास…. ये जो गर्मी पैदा हुई है… ये दिमाग कि है… सो सभी लोग हर समय एक गीला टावल अपने सर पर रखे… दिमाग ठंडा रहेगा….. तो दुनिया ठंडी रहेगी…. सोचो… बुश भाईसाहेब ने दिमाग ठंडा रखा होता तो ईराक में जाते.. नहीं न? हो गया न समाधान….
    जय हो..
  11. shefali
    वाह ….क्या लिखा है …..पढ़ पढ़ कर मन नहीं भर रहा है …
  12. प्रवीण पाण्डेय
    क्या धोया है ? सोच सोच के तो गरमा दी है धरती । आधुनिक चिन्तकों को एक डुबकी गंगा में कोई भी ज्ञान टपकाने के पहले ।
  13. संजय बेंगाणी
    घणी धड़ाकू आइडियाज उपजे है. सभी पर विचार के लिए एक कमेटी का घठन कर देना चाहिए, वही आगे विचार करे. विचार के लिए विदेशी लोकेशन बेसी सही रहेगी.
  14. इरले

    इतना प्रेमपगा न्यौता बिरलों को ही मिला करता है !
    सफ़लता का मूल मंत्र जान लिया हो तो इस पर एक्ठो लँतरानी ठेल दीजिये ।
  15. aradhana "mukti"
    सब गलत-सलत लिख दिया है… एकदम झूठी खबर है ये, अफवाह है कि धरती गर्म हो रही है… ये एक षड्यंत्र है विकासशील देशों के विरुद्ध कि भैया गर्मी बढती जा रही है इसलिए आपलोग विकास मत करो… चलो हम वापस आदिम युग में लौट चलें , सब जंगल में जाकर रहें…
    वइसे एडिया तो बहुतै जबर-जबर दिए ये मीटिंग वाले … बहिष्कार गुरु सबसे अच्छे लगे, उनको हमारा दो वोट… बाकी बांस वाले एडिया, बाबा वाले एडिया और ज़िप फ़ाइल वाले एडिया को एक-एक वोट… ज्यादा हँसेंगे नहीं, नहीं तो ज्यादा कार्बन-डाई-आक्साइड निकलेगी और धरती और गर्म हो जायेगी… आपके हिसाब से. हमारे हिसाब से तो ये एक षड्यंत्र है…
  16. Shiv Kumar Mishra
    क्या डमपलाट पोस्ट है. अब गर्मी की खैर नहीं. ऐसा धनात्मक चिंतन और उसके बाद भी गर्मी रह जाए. हो ही नहीं सकता.
  17. Ranjana
    क्या चिंतन है…….उफ़…
    बोलती सुनती सोचती….सब सुन्न कर दिया आपकी इस आलेख ने….
    लाजवाब…लाजवाब…लाजवाब !!!!
  18. शरद कोकास
    ओह…. यह तो सचमुच चिंता की बात है कि इतने बड़े बड़े चिंतक चिंतन में जुटे हैं ।
  19. मीनाक्षी
    कमाल की कल्पना शक्ति जो बैठे बैठे ही गर्म धरती को ठंडा कर दे… काश सब सच हो जाए तो कैसा हो ….!
  20. ojha
    sir, aap itna gahan kese soch pate hain ye tajub ki bat hai. apne shahjahanpur me ak article likha tha jiska title mujhe yaad nahi hai per apne un logo per fine lagane ki bat ki thi jo kahin per bhi thook dete hai. tab bhi mujhe kaphi atpata laga tha ki ak ese subject per itna sochana aur jodna aap kese kar pate hai. aj hum apni patni ko apki ak post dikhana chate the jisme ammji ka aur swati ki beti ka photo tha. jsme ammji ak geet ga rahi thi. lakin hum khoj nahin paye.
  21. बेचैन आत्मा
    भयंकर सोच लेते हैं आप …! तबियत तो ठीक है…मेरे दिमाग में तो पढ़ने से ही गर्मी चढ़ गई.
    ग्लोबल वार्मिंग से बचाने की ‘ए. सी’ सोच की खटिया खड़ी कर दी आपने.
    …वाह! उम्दा पोस्ट.
  22. pankaj upadhyay
    ये पोस्ट पढ रहा था कि थोडा सा स्किप करने का सोचा तो बगल मे गर्मी साहिबा ने माउस प्वाईन्टर रोक लिया.. देखा तो वो भी पढ रही है इन तरीको को… शायद अगली बार से कहर थोडा कम हो..
    इस डम्प्लाट पोस्ट की मेरी पसन्द की कुछ डम्प्लाट पन्क्तिया –
    - तमाम लोगों ने मौलिक चिंतन तक कर डाला। और करके डाल दिया।
    - इसलिये दुनिया में सबको धरती की मानहानि का नोटिस भेज दिया जाये। जहां जाना सम्भव न हो वहां हवाई जहाज से नोटिस-वर्षा करवा दी जाये।
    - उससे समझौता करना तो किसी विकसित देश से पुरानी तकनीक लेने से भी ज्यादा गड़बड़ काम है।
    - एक ने अपने मौलिक ज्ञान का थान फ़ैला दिया।
    - मीटिंग से उनका मन उसी तरह उचट गया जिस तरह चुनाव में हारा हुआ नेता देश सेवा के काम से अनमना हो जाता है।
    - एयरकंडीशनर अपनी गर्म हवा बाहर फ़ेंकते हुये धरती को बता रहा था कि अंदर तुमको ही ठंडा करने की बात चल रही है।
  23. चंदन कुमार मिश्र
    धरती को ठंढा करने का सबसे आसान तरीका- सारे धार्मिक लोग वराह से प्रार्थना करें कि धरती को दूसरे सौरमंडल में ले जाय जाय…
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूँ…
  24. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] …धरती को ठंडा रखने के कुछ अटपटे सुझाव [...]

नये साल में और गये साल में कुछ मुलाकातें

http://web.archive.org/web/20140209200920/http://hindini.com/fursatiya/archives/1196

नये साल में और गये साल में कुछ मुलाकातें

गुलाबी शहर में मिलना कुश से और लविजा के पापा से

बीता साल मजेदार बीता। तमाम अच्छे अनुभव जुड़े। उनके बारे में फ़िर कभी विस्तार से लिखेंगे। फ़िलहाल आप गये साल और नये साल के कुछ फ़ोटो देखिये। गये साल के आखिरी दिनों में राजस्थान में जयपुर, जोधपुर, अजमेर ,पुष्कर जाना हुआ। जयपुर में कुश और लविजा के पापा सैयद भाई से मिले। काफ़ी विद कुश में कुश ने कई साथियों को वर्चुअल काफ़ी पिलाई है। हम जयपुर गये तो एकसाथ तीन रियल कॉफ़ी पी के आये। कॉफ़ी के साथ ब्लॉगजगत के न जाने कित्ते किस्से घुले-मिले थे। और तो सब ठीक रहा लेकिन कुश जिस तरह  मोटर साइकिल चलाते हैं उससे लगता है कि जयपुर के ट्रैफ़िक आफ़ीसर ने उनको चेतावनी दे रखी होगी कि बेटा जिस दिन कायदे से गाड़ी चलाते पकड़े गये उसी दिन चालान हो जायेगा। जयपुर में मौसम खुशनुमा और कुछ हल्का गुनगुना था। हमारे लौटते ही वहां शीत लहर चलने लगी।
 30122009575 301220095763012200957730122009578 30122009580 30122009581फोटो बायें से: 1.  कुश-सैयद 2.कुश-अनूप 3. अनूप,कुश और सैयद 4.अनूप,कुश और सैयद 5. सैयद-अनूप 6. कुश-अनूप

दिल्ली में खुशदीप, श्रीश प्रखर और सागर से मुलाकात

जयपुर से लौटे तो साल का आखिरी दिन था। जहां रुके थे वहां से पास ही खुशदीप का घर था। उनसे मिलने गये। खुशदीप के परिवार वाले बरेली गये थे। खुशदीप पोस्ट बढ़िया लिखने के साथ चाय भी शानदार बनाते हैं। यह इसलिये बता रहे हैं कि अभी तक किसी ने शायद उनके इस हुनर की तारीफ़ नहीं की। खुशदीप ने ब्लॉग जगत में अपने आगमन के किस्से सुनाये। खुशदीप हमको ’महागुरूदेव ’ की उपाधि से विभूषित कर रखा है। हमने उनसे कहा –भैये, ब्लॉगजगत के हमारे लेख कोई सुधी पाठक पढ़ता होगा तो सोचता होगा कि ये ’महागुरुदेव’ लोग ऐसा चिरकुट लेखन करते हैं। लेकिन खुशदीप के अपने तर्क हैं लेकिन मुझे लगता है कि इस तरह की अतिशयोक्ति पूर्ण आभासी उपधियां हमारे दिमाग में हवा भर देती हैं और दिमाग को हवा में उड़ा देती हैं, हवा-हवाई बना देती हैं।
वैसे यह बात तो लिखने की है। हमारे कानपुर की बोली बानी के गुरु शब्द के इतने मतलब हैं कि सिर्फ कहने और सुनने वाले का संबंध ही इसके मायने तय कर सकता है। जब गुरू में इत्ता लफ़ड़ा तो महागुरू के हाल न ही पूछिये।
खुशदीप से मिलने के बाद फ़िर जे.एन.यू. जाना हुआ। वहां श्रीश ’प्रखर ’ से मिलना हुआ। सागर को उन्होंने वहीं बुला लिया था। अमरेन्द्र सर घर गये थे। जाहिर है कि उनकी चर्चा काफ़ी हुई। उनसे फ़ोनालाप भी हुआ।
श्रीश हालांकि जे.एन.यू. में रिसर्च रत हैं लेकिन वे मॉडलिग में भी कैरियर आजमा सकते हैं। चाय शानदार बनाते हैं। उस दिन वहां का ऐतिहासिक गंगा ढाबा बंद था। पता चला कि बाहर के कुछ लड़के जे.एन.यू. की लड़कियों को छेड़कर चले गये थे। इसके चलते वहां का ढाबा बन्द हो गया था। ताज्जुब कि वहां की छात्राओं को बाहर के लोग छेड़कर चले जायें! सागर हड़बड़ाते हुये आये। सर्दी थी। दिल्ली में काम के चक्कर में चप्पल चटकाते हुये उनके बाल काफ़ी कम हो गये हैं। उनका खुद का मानना है कि वे धुंआधार सोचते हैं गजलों के बारे में इसीलिये उनके बालों ने समर्थन वापस ले लिया। कुश ने आज लिखा भी है उनकी पोस्ट में– कविताये लिखते हो या खौलते हुए तेल में तलते हो.. ? अब जहां से निकली कवितायें खौलती हुई लगें वहां बालों का टिकना कितना मुमकिन होगा?
ढेर सारा बतियाने के बाद जब हम लोगों श्रीश को छोड़ा इसके बाद सागर ने मुझे मेट्रो स्टेशन में विदा किया तो रात के साढ़े नौ बजे थे करीब। सर्द शाम की एक गर्मजोशी भरी मुलाकात अभी भी याद आ रही है।
फोटो बायें से 1. खुशदीप-अनूप 2. अनूप-सागर 3. अनूप-श्रीश प्रखर 4.सागर-श्रीश प्रखर
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और कानपुर में मुलाकात मास्टरनी जी से

नये साल के शुरू में कानपुर में हमारी मुलाकात वंदनाजी और शेफ़ाली पांडेय से हुई। दोनों पेशे से अध्यापिका हैं। वंदना जी ने तो लिखा था कि कानपुर में हम लोगों की मुलाकात न हो सकेगी लेकिन मुझे लगता था कि मिलना होगा। संयोग कि उस दिन उनकी गाड़ी 13-14 घंटे लेट हो गयी और उनको हमसे मिलने के लिये स्टेशन से वापस आना पड़ा। मुलाकात एक नर्सिंग होम में हुई जहां उनकी बहन इलाज के लिये भर्ती थीं। उनके बहनोई सुनील तिवारी को हम कमाल कानपुरी के नाम से जानते थे। लेकिन मिलना-जुलना कभी नहीं हुआ था। मिले तो उन्होंने बताया कि उन्होंने मुझे तीन बार फ़ोन भी किये थे लेकिन रास्ते में होने के कारण बात न हो सकी थी। शायद उनके पैसे बचने थे और मुलाकात का श्रेय वंदनाजी को ही मिलना था।वंदनाजी के साथ उनकी बिटिया विधु भी आई थी। बीच-बीच में विधु से भी काफ़ी बातें हुईं।
शेफ़ाली को जब हमने फोन किया तो पता चला कि वे उस समय पास रेव मोती से अपने घर के लिये निकल रहीं थीं। उनको भी हम वहीं ले आये और दो अध्यापिका ब्लागरों का मिलन हुआ। हम आपस में पहली बार मिले। पहले तो चाय की दुकान पर चाय-सत्रों के दौरान बातें हुईं। इसके बाद और गपशप हुई वहीं पर। फ़िर वन्दनाजी को ट्रेन पकड़ने जाना था सो हम लोग शेफ़ालीजी के यहां गये। रास्ते में उनकी बिटिया नव्या ने एक कविता सुनायी। कविता के बाद नव्या ने जो सुनाया वह आपने शायद पहले कभी न सुना हो। कैपिटल, स्माल और कर्सिव ए.बी.सी.डी. पड़ रखी होगी, लिखी भी होगी लेकिन सुनी नहीं होगी कभी आपने। लेकिन नव्या ने हमको तीनों तरह की अंग्रेजी वर्णमाला सुनाई। आप भी सुनिये नव्या की कविता और अंग्रेजी की वर्णमाला।
शेफ़ाली जी के घर में उनके पति श्री पांडेजी से मिलना हुआ। उन्होंने बताया कि  शेफ़ाली का आत्मविश्वास  ब्लॉगिंग शुरू करने के बाद बढ़ा है।शेफ़ाली ने अपनी माताजी की कविताओं की किताब भी हमको भेंट की। उन्होंने अपनी पोस्टों के ड्राफ़्ट भी दिखाये। वे पोस्ट लिखने के पहले उसको अपनी कापियों  में लिखती हैं तब पोस्ट करती हैं।
साल की शुरुआत अपने पसंदीदा ब्लॉगर साथियों से सपरिवार मुलाकात एक खुशनुमा अनुभव है।
फ़ोटो: 1.सुनील,अनूप, विधु, वंदना,शेफ़ाली और नव्या 2.सुनील,अनूप, विधु, वंदना,शेफ़ाली और नव्या 3.वंदना-शेफ़ाली 4..नव्या अपनी मम्मी के साथ 5.शेफ़ाली और उनके पति 6. शेफ़ाली के पोस्ट ड्राफ़्ट
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नव्या की तीन तरह की एबीसीडी

मेरी पसंन्द

image मैं हूं अग़र चराग़ तो जल जाना चाहिये
मैं पेड़ हूं तो पेड़ को फ़ल जाना चाहिये!
रिश्तों को क्यूं उठाये कोई बोझ की तरह
अब उसकी जिन्दगी से निकल जाना चाहिये।
जब दोस्ती भी फ़ूंक के रखने लगे कदम
फ़िर दुश्मनी तुझे भी संभल जाना चाहिये।
मेहमान अपनी मर्जी से जाते नहीं कभी
तुम को मेरे ख्याल से कल जाना चाहिये।
नौटंकी बन गया हो जहां पर मुशायरा
ऐसी जगह सुनाने ग़ज़ल जाना चाहिये।
इस घर को अब हमारी जरूरत नहीं रही
अब आफ़ताबे-उम्र को ढ़ल जाना चाहिये।
-मुनव्वर राना

38 responses to “नये साल में और गये साल में कुछ मुलाकातें”

  1. वन्दना अवस्थी दुबे
    अरे वाह!!! आज तो हम लोग छा गये आपकी पोस्ट पर!! सचमुच कानपुर यात्रा यादगार यात्रा में तब्दील हो गई है. खुशनुमा माहौल में हम सब की मुलाकात! अद्भुत! शेफाली जी की बिटिया खूब चं चल है. मज़ा आ गया उसकी ए, बी,सी, डी सुन के. जयपुर यात्रा भी शानदार रही आपकी. मज़ा आया पढ के.
  2. anitakumar
    ‘जयपुर में कुश और लविजा के पापा सैयद भाई से मिले’ । ये वाक्य पढ़ कर पहले तो हम समझे कि सैयद भाई कुश और लविजा के पापा हैं, लेकिन फ़ोटो में वो कुश के पापा लगने के लिए थोड़े छोटे लग रहे थे इस लिए फ़िर से पढ़ा कि क्या लिखा है आप ने…॥:)
    फ़ोनालाप? पहली बार ये शब्द सुन रहे हैं।…:)
    हा हा हा …नव्या की तीन तरह की ए बी सी डी इस पोस्ट की सबसे बड़िया हाई लाइट है, वैरी क्युट्…
    इस घर को अब हमारी जरूरत नहीं रही
    अब आफ़ताबे-उम्र को ढ़ल जाना चाहिये।
    बहुत खूब
  3. amrendra nath tripathi
    अनुपस्थित होने पर भी उपस्थित हूँ मैं :)
    हर साल ऐसे नयापन लिए आये ,,,
  4. anitakumar
    शीर्षक के नीचे पेराग्राफ़ में भी ठीक कर लिजिए जहां नीले रंग में लिंक दिये हुए हैं ।
  5. दिनेशराय द्विवेदी
    साल के अंत में और आरंभ में आप बहुत लोगों से मिले। हम भी दिल्ली के आस-पास ही होते हुए भी किसी से न मिल पाए। सब इधर उधऱ थे। जयपुर से बहुत दूर नहीं है कोटा। इधर भी आइये कभी।
  6. समीर लाल 'उड़न तश्तरी वाले'
    अच्छा लगा आपका मिलन वृतांत पढ़कर.
  7. Khushdeep Sehgal
    महागुरुदेव अनूप जी,
    चाय की दुकान नोएडा में ही खोलूं या कानपुर में ग्रीन पार्क के पास कोई अच्छा सा खोखा दिलवा देंगे…
    खैर छुटकी सी मौज एक तरफ़…इकत्तीस दिसंबर का दिन मेरे लिए यादगार रहा…ड्यूटी जाने से पहले आपके दर्शन हो गए…पंद्रह-बीस मिनट का साथ ही रहा लेकिन मेरे लिए यादगार बन गए…दूसरे उसी दिन मैंने पहली बार फोन पर डॉ टी एस दराल की आवाज़ सुनी…नववर्ष की शुभकामनाएं देती हुईं…मेरे लिए वो टू इन वन खुशी वाला दिन बन गया…
    बाकी आपकी इस पोस्ट के ज़रिए कुश, सागर, श्रीश के साथ-साथ वंदना जी और शेफाली बहना के परिवार से भी मुलाकात हो गई…
    जय हिंद..
  8. shefali pande
    आप से और वंदना जी से मुलाक़ात यूँ अचानक हो जाएगी, सोचा नहीं था, लगा ही नहीं था कि पहली बार मिल रहे हैं, ठिठुरता हुआ दिन, चाय की चुस्कियां, ब्लॉग जगत की बातों से लेकर नव्या की ए, बी, सी, डी, सब कुछ अविस्मरणीय रहेगा .और अनूप जी हम चाय बनाने क्या गए, आपने मेज़ पर बिखरे हुए हमारे कच्चे चिट्ठे की फोटो खींच ली,ये ठीक नहीं किया .
  9. डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
    आमने सामने न सही पर चित्रों के माध्या से तो मुलाकात हो ही गई!
  10. बी एस पाबला
    वाह!
    खुशनुमा मुलाकातों की बढ़िया तस्वीरें और मीठे संस्मरण
    बी एस पाबला
  11. seema gupta
    रिश्तों को क्यूं उठाये कोई बोझ की तरह
    अब उसकी जिन्दगी से निकल जाना चाहिये।
    ” सुन्दर वर्णन सबसे मुलाकातों का…, ये सफ़र यूँही चलता रहे..”
    regards
  12. संजय बेंगाणी
    बिते साल को याद करने का यह तरीका पसन्द आया.
  13. विवेक रस्तोगी
    वाह मिनि ब्लॉगर सम्मेलन टाईप का हो गया ये तो और बहुत सारी बातें भी पता चल गयीं, ब्लॉग जगत से हट के…. जैसे खुशदीप जी चाय बहुत अच्छी बनाते हैं… :)
  14. Shiv Kumar Mishra
    वाह! इतने सारे लोगों से मिल लेना वहुत बड़ी बात है. सुन्दर पोस्ट.
  15. nirmla.kapila
    वाह ये मुलाकातें तो बहुत बडिया लगीं त्5ास्वीरें भी सुन्दर हैं धन्यवाद्
  16. कुश
    हम तो दिसंबर के लास्ट वीक में जैसलमेर छुट्टिया मनाने गए थे जी.. ये किससे मिल लिए आप..?
  17. sanjay vyas
    इस सर्दी में इन आत्‍मीय मुलाकातों की हरारत बहुत भली लग रही है.
  18. अजय कुमार झा
    लीजिए , हमें का पता था कि आप ओईसे ही फ़ुर्सतिया कहते हैं अपने आप को बताईये तो भला दिल्ली आए और निकल लिए अजी मिले नहीं तो कौनो गम नहीं मुदा बतिया तो लईबे करते आपसे ,ई तो आप घूम घूम के एतना लोगन से मिल लिए कि साल का एंडिंग और साल का बिगनिंग दुनु टनाटन हो गया , अगली बार आईयेगा तो बिना मिले नहीं जाने देंगे ,,जासूस सब लगा दिए हैं
  19. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    nice.
    शेफाली कागज पर लिखती हैं ड्राफ्ट – रोचक!
  20. हिन्दी-पँडा

    महागुरुदेव, आप यूँ क्यों नहीं कहते कि जाते हुये वर्ष 2009 को दौड़ा कर आपने एक सद्भावना यात्रा कड्डाली !

  21. Abhishek
    ए बी सी डी तो एकदम क्यूट !
  22. puja
    जलन हुयी, घोर जलन…आप jnu गए और घूम के आ भी गए…उसपर वहां के हॉस्टल का फोटो…बस धुआं निकल रहा है देख कर. मस्त रहा जी नया साल आपका, फुर्सत में घुमक्कड़ी, भाई वह :)
  23. मृगांक
    प्यारे अनूप कहाँ कहाँ घुमते रहते हो ,कभी मेरठ भी आओ .
  24. गौतम राजरिशी
    लीजिये आपके बहाने हम भी सब से मिल लिये। ज्ञानदत्त जी की तरह हम भी हैरान हुये कि शेफाली जी कागज पे अपने पोस्टों के ड्राफ्ट लिखती हैं…
    औअर सागर मियां अपने प्रोफाइल वाली तस्वीर से यहां तो बिल्कुल अलग से दिख रहे हैं…
    खूब मजेदार पोस्ट, देव।
  25. Prashant(PD)
    ham kal fursat me tipiyayenge.. :)
  26. अर्कजेश
    सुंदर यात्रा वृतांत । चित्रों की सलीकेदार प्रस्‍तुति ।
    तीन तरह की एबीसीडी और मुनव्‍वर राना की गजल के लिए शुक्रिया ।
  27. Ranjana
    WAAH !!! ITTE SAARE LOGON SE MIL MILA AAYE….SABKE DAMAKTE CHEHRE BATA RAHE HAIN KI SABHI EK DOOSRE SE MIL KITNE HARSHIT AUR UTSAHIT HAIN…
    MUNNVVAR RANA JEE KI RACHNA TO LAJAWAAB HAI…..
  28. ताऊ लट्ठवाले
    आपकी सूचनार्थ :-
    ताऊ पापा के बडे भाई होते हैं पापा नही. :)
    रामराम.
  29. jyotisingh
    baar baar din ye aaye ,aesa sama na hota ,kuchh bhi yahan na hota ,mere hamraahi jo tum na hote ,ye bol gaane ke yaad aa gaye anup ji jab sabhi mitro ke saath bitaye huye in adbhut palo ko dekha aur padha ,navya ki abcd suni aur aapki hansi bhi ,sab milakar ye yaatra yaadgaar ban gayi aap sabhi logo ke liye .
  30. बवाल
    बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत था फ़ुरसतिया जी। आपने इस यात्रा में जो मुलाकातें की उनका आनंद आपके साथ साथ मित्रों को भी आया होगा। नव्या की ए बी सी बली प्याली थी।
  31. dr anurag
    यानी कि जहाँ जहाँ से गुजरे चाय का जुगाड़ पहले से कर लिया…अच्छा है इस वर्चुवल वर्ल्ड से असल जिंदगी में आना भी जरूरी है
  32. Dr.Manoj Mishra
    बहुत अच्छी प्रस्तुति ,सब से मिल कर हमें भी अच्छा लगा .
  33. अफ़लातून
    मुनव्वर राणा की आखिरी दो लाइनें पसंद मत कीजिए । सप्रेम
  34. हिमांशु
    बहुत दिनों बाद हूँ नेट पर तो बारी-बारी देख रहा हूँ चिट्ठों को !
    श्रीश जी के चिट्ठे से सीधे आप तक आया । वहाँ भी कह चुका हूँ, यहाँ भी कह रहा हूँ – सम्मोहन अजब है आपका । कुछ कुछ आप-सी तबियत बनाने लगे हैं श्रीश !
    पूरी यात्रा में सबसे मिलना और फिर हम सबसे मिला देना सजीवतः – यह एक मूल्यवान बात लगती है मुझे !
    इतने तफसील से लिखना भी कलाकारी है ! शेफाली जी के ड्राफ्ट नहीं चौंकाते मुझे ! अध्यापक-स्वभाव है यह ! ब्लॉगरी छुड़ा नहीं देगी !
    मुझ-सा केवल कविताएं और अनुवाद ठेलने वाला पहले कागज पर ही लिखता है इधर-उधर !
  35. सैयद
    आईला…. ये क्या ?
  36. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
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