Monday, December 06, 2004

कृपया बांये थूकिये

मैं स्कूटर पर हङबङाया सा चला जा रहा था .रोज के पन्द्रह-बीस मिनट के बजाय आज मैं करीब एक घन्टा लेट था.पर हङबङी का कारण देरी नहीं वरन् स्पीड थी.स्पीड से हङबङी और हङबङी से चेहरे पर व्यस्तता और तनाव झलकता है.अक्सर लोग यह सोचकर तनावग्रस्त रहते हैं कि उनके चेहरे पर तनाव के कोई लझण नहीं दिखते.लोहे को लोहा काटता है.तनाव जरूरी है तनाव से बचने के लिये.तेज चाल में आफिस पहुंचकर एक गिलास पानी गटागट पीकर गिलास मेज पर पटककर टाई ढीली करके कुर्सी पर ढुलक जाने से मातहत समझ जाते हैं कि साहब तनाव के मूड में है.इनका देर से आना देश,समाज के हित में हो या न हो ,दफ्तर के हित में है.

मेरे आगे एक साइकिल सवार था.उसे साइकिल शायद खुद 'मैकमिलन'ने दी थी.उसके दांयी तरफ एक शिववाहन 'नंदी' पूरी मस्ती और बेफिक्री से चहलकदमी कर रहे थे.उनकी ,मृदु मंद-मंद मंथर-मंथर,चाल ऐसी थी मानों धनुषभंग के बाद सिया सुकुमारी राम के जयमाल हेतु जा रहीं हों.

जब साधनसम्पन्न और साधनहीन एक ही राह पर जा रहे हों तो सम्पन्न ,'हीन' के पीछे रहे, यह उसकी बेइज्जती है.मैंने साइकिल वाले को ओवरटेक किया.दायें से ओवरटेक करने में ज्यादा समय लगता.लिहाजा मैंने शार्टकट अपनाया.टैफिकनियम को ताकपर रखकर उसे बांये से ओवरटेक किया.जैसे ही मैं उसके बगल से गुजरा,उसने'चैतन्य चूर्ण'(तम्बाकू)की पूरी पीक अपने बांयी ओर थूक दी.कुछ छींटे मेरे ऊपर भी पङे.पहले तो जङत्व के कारण मैं आगे निकल गया.फिर मेरा नागरिक बोध चैतन्य हुआ--यह तो सभ्यता के खिलाफ है.सङक पर थूकना मना है.मुझे उसे हङकाना चाहिये.

मैं पहले ही देख चुका था कि साइकिल सवार आजादी के पहले की डिलीवरी है.फटेहाल.अंग्रेजी जानता नहीं होगा.डांटूगा तो 'सारी'भी नहीं बोल पायेगा.वह 'बाबूजी,गलती हो गयी' कहते हुये अपनी सफाई में कुछ अइली-गइली बतियायेगा.मैं उसे शटअप ,नानसेन्स, जाहिल देखकर नहीं थूकते कहकर हङका दूंगा.जहां एक घंटा देर वहां पांच मिनट और सही.पांच महीने की अफसरी ने बुजुर्गों को खाली उमर के चलते आदर देने की भावुकता से मुझे मुक्ति दिला दी थी.मैंने चेहरे पर रोब और आत्म विश्वासलाने के लिये धूप वाला चश्मा लगा लिया.

मैंने उसे रोका.शुरु किया-बुढऊ,देखकर नहीं थूकते.पूरी शर्ट खराब हो गयी.हद है.वह बोला,"बेटा ,तुमका खुदै तमीज नहीं है.पढे-लिखे लागत हो.तुम्हैं बायें ते काटैहै क न चहिये.नियम के खिलाफ है.एक्सीडेन्ट हुइ सकत है.चोट चपेट लागि सकत है.यही लिये हम हमेशा
सङक पर बांयें थूकिति है.कम से कम आगे ते तौ तुम गलत ओवरटेक न करिहौ.

मैं कट कर रह गया.लौट पङा .मुझे लगा,बांये से ओवरटेक रोकने का सबसे सरल उपाय है--"कृपया बायें थूकिये " का प्रचार.थू है बांये से ओवरटेक करने वालों पर.थू है गलत ढंग से छलांग लगाकर आगे निकलने वालों पर.जहां इस तरह का प्रचार हुआ,लोग हिचकेंगे बायेंसे ओवरटेक करने में.खतरा है.खाली थूक हो तो कोई बात नहीं.दाग नहीं पङेगा.पान की पीक,तम्बाकू की पीक,मसाले की पीक का दाग भी नहीं छूटेगा.एक गलत ओवरटेक का दण्ड-एक शर्ट-पैंट.ग्लानि अलग से कि साइकिल ने स्कूटर पर थूका.एक रुपये का नोट सौ रुपये पर थूके.लोग पहले लाखों पर थूकते थे .तो क्या लाखों उन्हें बायें से ओवरटेक करते थे?

'थूककर चाटना'हमारा राष्ट्रीय चरित्र हो या न हो पर ऐसा होने की बात लिखना मेरी भावुक मजबूरी है.राष्ट्र से नीचे किसी अन्य चीज पर मैं कुछ लिख ही नहीं पाता.हर अगले को शिकायत है कि फलाने ने थूक कर चाट लिया. अपने कहे से मुकर गया.वायदा पूरा नहीं किया.

कब्र में लटकाये पीढी और पुराने जमाने के जानकार लोग बताते हैं कि आदमी की बात में वजन नहीं रहा.पहले लोग अपनी बात की आन
रखते थे.भावुक थे.कहकर मुकरना नहीं जानते थे.'आई क्यू' लो था.जिन्दगी भर दुनिया के मदरसे मेंपढकर भी चालाकी का ककहरा न सीख पाते.लोग मर तक जाते थे अपने कहे को पूरा करने के लिये.अब मरना दूर रहा ,कोई बेहोश तक नहीं होता.किसी की जबान का कोई भरोसा नहीं .आज किसी नेता ने कुछ कहा,कल उसका खंडन कर दिया.जरूरत पङी तो खंडन का भी खंडन कर दिया.एक नेताजी ने चुनाव के दौरान वायदा किया कि अगर वह हार गये तो राजनीति छोङ देंगे.हार गये वह.वे मुकर गये अपनी बात से और जनता मजबूरन(बलात)उनसे अपनी सेवा कराने को अभिशप्त है.

कुछ विद्वानों का मत है कि 'थूककर चाटना'वैज्ञानिक प्रगति का परिचायक है.नैतिकता और चरित्र जैसी संक्रामक बीमारियों के डर
से लोग थूककर चाटने से डरते थे.अब वैज्ञानिक प्रगति के कारण इन संक्रामक बीमारियों पर काबू पाना संभव हो गया है.

विकास की हङबङी में सब सर पर पैर रख कर भाग रहे हैं.कोई शानदार स्पोर्ट्स शू में तो कोई चमरौधा में.कोई झकाझक रिन की सफेदी मेंतो कोई पैबंदी धोती समेटते.कोई 'थ्रू प्रापर चैनेल' तो कोई वाया 'इंगलिश चैनेल'.न्यूट्रामूल खाने वाले हेलो-हाय,चिट-चैट करते फुदकते हुये आगे बढ रहे है-विथ स्माइलिंग फेस.सतुआ खाने वाले गिरते,पङते -कौनिउ तरन ते निबाहते .

इसके अलावा एक बहुत बङी भीङ ऐसी भीहै जिसे यह भी नहीं पता कि उसे जाना किधर है.वह हकबकाई सी खङी है,अपनी जगह. इस 'जाहिल 'भीङ को आयोजक मंजिल की तरफ ढकेलते हैं.पर वह वहीं खङी है .आयोजक उसे मवेशी की तरह डिब्बों में ढंूसकर मंजिल तक पहुंचाते हैं.प्रथम आने वाले सम्मान ,पुरुस्कार पा रहे हैं.बाकी को क्रान्तिकारी आयोजन में भागेदारी का संयुक्त प्रमाणपत्र.प्रथम आने वाले वेलडन,कान्ग्रेचुलेशन वगैरह कर रहे हैं. संयुक्त प्रमाणपत्र वाले यहां भी चौंधियाये खङे हैं.उन्हें कुछ पता नहीं कि हुआ क्या है.अपने आसपास उन्हें वही नजार,लोग दिखते हैं जो पहले थे.कुछ नया नहीं मिला उन्हे सिवाय एक संयुक्त सर्टिफिकेट के.भीङ में कुछ लोग प्रतीक्षा में हैं कि कब ये लोग दांत किटकिटा कर बांये से ओवरटेक करने वालों पर थूकते हैं.ये 'कुछलोग' खुद अपना थूक गटक रहे हैं -पता नहीं किस प्रतीक्षा में.

देर काफी हो चुकी है.मेरे पास आफिस की तरफ बढने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं है.

10 comments:

  1. मैंने चेहरे पर रोब और आत्म विश्वासलाने के लिये धूप वाला चश्मा लगा लिया.

    ई लइनवा में तो मौज आ गयी.
    भीड़ वाली बात तो ज़ल्दी में ऊपर से निकल गयी, कल फिर से पढ़ैंगे.

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  2. ये तो मामला सामाजिक हो गया और इस से बढकर राजनैतिक हो गयाः

    साइकिल ने स्कूटर पर तो थूक दिया, लेकिन स्कूटर कार पर नही थूक सकता, क्योंकि कार तो बन्द रहती है, इससे समाज मे असंतोष फैलेगा, लोगो मे वैमनस्य बढेगा, और लोग वाहनानुसार खेमों मे बंट जायेंगे.........लोग सड़को पर आ जायेंगे.... हो सकता है कि कोई राष्ट्रीय थूक पार्टी की स्थापना हो जाय और फिर राष्ट्रीय थूक दिवस आयोजित हो.

    अब दूसरी तरफ से देखे तो साइकिल ने स्कूटर पर थूक कर, अपनी सोये हुए स्वाभिमान को जगाया है, दिल मे बसी पुरानी ख्वाहिश को जिन्दा किया है, यह एक सामाजिक उत्थान का परिचय है. हमे गर्व है कि यह राष्ट्रीय चेतना की जागृति का सफर आपके कर कमलो से शुरू हुआ.....

    अब आप बताईये आप किसकी पार्टी मे जाना पसन्द करेंगे?

    अन्ततः अच्छा लिखे हो.... बाद मे शर्ट को लेकर घर मे क्या हंगामा हुआ, उस पर भी लिखना

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  3. मैकमिलन?

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  4. जसे हिन्दी चिट्टाजगत में यह माना जाता है कि आलोक हिंदी के पहले
    चिट्ठाकार है और 9-2-11पहला चिट्ठा वैसे ही लोग कहते हैं कि 'मैकमिलन 'ने पहली साइकिल बनायी थी.(1842)

    जीतेन्दर भाई,पार्टी तो हम ज्वाइन किये हैं बाई बर्थ-ठेलुहा पार्टी.शर्ट का ये हुआ कि पूरा विवरण लिख के पूंछा गया.हम लिख के दे दिये.फिर कहा गया ये सब उनको पढाओ जो थूक/पीक के बारे में लिखते हैं.फिर बताया गया जैसे-टप्पेबाज ,गंजू भाई बाराबंकवी तथा आशीष .सो हम पेस्ट कर दिये .तुम तो पढ चुके.बाकी दो लोग भी पढ ही लेंगे.भगवान के यहां देर है अंधेर नहीं.

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  5. Anonymous4:28 AM

    अरे भैया - कब सीखोगे कि ड़ कैसे लिखते हैं। हर बार ङ लिख देते हो - पढ़ के आँखें पीड़ित हो जाती हैं। बिंदी इसी तरह दाएँ को उड़ती रही तो किसी दिन हड़बड़ाते हुए लड़खड़ा जाओगे।

    कोई लड़ाई नहीं - इट्स ऑल कूल...

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  6. बहुत सही, मज़ा आ गया। साइकिल वाले बुज़ुर्ग ने तो आपको बहुत ही सही चपत लगायी। और ये थूक कर चाटने का विवरण तो मस्त था। सारे के सारे मुद्दे सामने आ गये, राजनीतिक, व्यक्तिगत और 'एलीटियत'।

    आपकी लेखनी काफ़ी अच्छा व्यंग्य लिखती है। लिखते रहिये।

    आशीष

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  7. By god ki kasam haans haans ke terrific trouble ho gaya hai so eshtomak main. Apki wyatha katha main aap ne hamare Diggi Raja ko bhi ghaseet liye.

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  8. Anonymous7:42 PM

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  9. मैकमिलन की साइकिल जबरदस्त चली .....

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  10. बहुत खूब,हड़बड़ी से शुरू करके ट्रैफिक सेन्स,सामाजिक सरोकार और राष्ट्रीय चरिञ को ओवरटेक करते हुये "ठगी सी खड़ी भीड़" तक आपकी लेखनी क्या खूब दौड़ी। आप जितनी तेज़ी और आसानी से गियर बदलते हुये लिखते हैं और एक पोस्ट में कई विषयों का समावेश कर लेते हैं, प्रशंसनीय है।

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