Sunday, July 24, 2005

घर बिगाड़ा सालों ने


हवा देश की प्रगति की तरह ठहरी थी। मौसम न अच्छा था न बुरा-बस था। तब तक फोन की घंटी बजी। पता लगा कि हमें पास में एक मित्र की बहन की ससुराल जाना है। वहां उसकी बहन को उसकी ससुराल वाले तंग करते हैं। मित्र भी पहुंचने वाले थे। लेकिन जब तक वे पहुंचे तब तक कन्या की रक्षा का दायित्व मेरे ऊपर सौंप दिया गया था।


मैंनें अपने चहेरे पर स्थायी रूप से कब्जा जमाये लापरवाह अंदाज को अतिक्रमण की तरह उखाड़ फेंका। कुछ जिम्मेदारी चेहरे पर तथा पता बताने के लिये एक साथी को कार में भरकर चल दिया तथा दस मिनट में उस बंद फाटक इस पार पहुंच गया जिसके उस पार एक कन्या अपनी ससुराल में परेशान थी।

तब तक लड़की की माता तथा भाई भी वहीं पहुंच गये थे। घंटी बजाने पर लड़की के ससुर बाहर आये तथा उन्होंने अपनी समधन तथा लड़की के भाई को अंदर बुलाने से मना कर दिया।लेकिन हमें ‘सादर सा’ अंदर बुला लिया। दरवाजे पर ताला फिर लगा दिया।


हम अंदर घुस गये। लगा ,हालात जितनी जिम्मेदारी हम चेहरे पर लादे हैं ,उससे कुछ ज्यादा ही गंभीर हैं। लिहाजा हमने अपने चेहरे और आवाज में गंभीरता भी लपेट ली। बाहर जाकर गेट के उस पार खड़े लड़की के घर वालों से कहा -आप चिंता मत करो। बाहर कार में बैठो । मैं सब देख लूंगा। लड़की की मां बाहर कार में बैठ गयीं। भाई पुलिस का सहयोग लेने के लिये चला गया। हम वीरोचित गंभीरता तथा जिम्मेदारी चेहरे पर चस्पा करके अंदर सोफे में धंस गये।


मैं कुछ पूँछूँ उससे पहले ही लड़की के ससुर ने लड़की की मां तथा भाई को अंदर आने न देने का कारण बताया ।कारण सिर्फ इतना था कि एक बार उनका लड़का जब अपनी ससुराल गया था तो उसे चार घंटे बाहर इन्तजार करना पड़ा था। समानता के समर्थक होने के नाते वे चाहते थे कि उनको भी कम से कम उतनी देर तो इंतजार कराया जाये जितनी देर उनके लड़के को करना पड़ा। उनकी बात को तर्कपूर्ण न मानने का बहाना मुझे तुरंत कुछ नहीं सूझा।


हम कुछ इधर-उधर की बातों में भटकें तभी मुझे आया याद कि हम ऐसे काम के लिये आये हैं जिसमें मुझसे जिम्मेदारी तथा समझदारी की अपेक्षा की जाती है। हमने तुरंत लड़की से मिलने की इच्छा जाहिर की। इच्छा तुरंत पूरी की गयी। सहमी सी लड़की मेरे बगल में आकर बैठ गयी। मैं अचानक एक निर्लिप्त शख्स से लड़की के भाई में तब्दील हो गया। मैंने अपना हाथ लड़की के सर पर रखा। वह किसी उस पुल की तरह थरथरा रही थी जिस पर से अभी-अभी कोई रेलगाड़ी गुजरी हो। समय के साथ यह थरथराहट कम होती गयी। वह धीरे-धीरे सहज होने का प्रयास कर रही थी। लेकिन बोल अभी भी नहीं पा रही थी। कमरे में हमारे अलावा लड़की का पति, ननद, सास,ससुर तथा लड़की की हाल में ही पैदा हुई लड़की थी। घर के बाहर लड़की की मां ताला लगे गेट के उस पार अंदर आने को छटपटा रहीं थीं। मैं फिर बाहर गया कहने -आप चिंता न करें। बिटिया सकुशल हैं। मैं अंदर हूं ।वे कुछ आश्वस्त सी हुईं।


दुबारा अंदर आकर मैंने माहौल को हल्का करने का प्रयास किया तथा कुछ हल्की-फुल्की बातें शुरु की। सास से पूंछा-क्या बात है क्या आप लोग सास-बहू के सीरियल ज्यादा देखतीं हैं?


सुनते ही सास झपट पड़ीं-आप तो इस तरह की बातें करेंगे ही। आप तो लड़की वालों की ही तरफदारी करेंगे। हमने तुरंत अपनी सारी ताकत अपने को गुटनिरपेक्ष साबित करने में झोंक दी। आवाज में बला की गंभीरता ठेलते हुये कहा- न हम लड़की की तरफ से आयें न लड़के की तरफ से। हम सिर्फ आयें हैं। हम सिर्फ लड़के-लड़की की भलाई चाहते हैं। इसी घराने के कुछ और डायलाग मारकर हम गुटनिरपेक्ष की मान्यता पाने में सफल हुये।


हमने अधिकारपूर्वक लड़की की तेजतर्रार ननद को लगभग डांटते हुये चाय का आदेश दे दिया।फिर लड़की की तरफ मुखातिब हुये। पूछा -तुम्हें यहां क्या तकलीफ है? क्यों घर जाना चाहती हो? उसने लगभग हकलाते हुये कहा-मुझे यहाँ कोई तकलीफ नहीं हैं। पर मैं अपने पति से ‘एडजस्ट’ नहीं कर पा रहीं हूं। मैं कुछ दिन के लिये अपने घर जाना चाहती हूं। मैंने -पूछा – क्यों ‘एडजस्ट’ नहीं कर पा रही हो? वह बोली- मैं बहुत कोशिश के बावजूद अपने को पति के अनुरूप नहीं बना पा रहीं हूं। अपने में सुधार नहीं कर पा रही हूं।


यह सुनते उस घर के सारे लोग लगभग झपट पड़े । क्या तकलीफ है इसे यहां ? कोई काम नहीं करना पड़ता है। बच्ची को दूध पिलाने के अलावा कोई काम नहीं करना पड़ता। लड़की ने फिर कहा-मुझे कोई तकलीफ नहीं है। पर मैं एडजस्ट नहीं कर पा रही हूं। कुछ दिन के लिये घर जाना चाहती हूं।


सास ने लड़के को ताना मारा- देख लो ! बहुत मजनूं बने घूमते हो। बहुत चाहते हो अपनी बीबी को। यह तुम्हारे साथ रहना तक नहीं चाहती। सुन लो असलियत।

पति अपनी पत्नी को बहुत चाहता है यह रहस्योद्‌घाटन होते ही हमने बातचीत की दिशा में बदलाव किया। लड़के से बातचीत शुरु की। पता चला कि लड़की तो बहुत मासूम है। सारा कसूर लड़की की मां का है जो फोन पर लड़की को ऊटपटांग सलाह देती रहती हैं। बातचीत में थोड़ा गणित ठेलते हुये उसने बताया – मैं बहुत कोशिश करके अपने संबंध को १० प्वांइट तक ले जाने की कोशिश करता हूं तभी इसकी मम्मी(मेरी सास) कोई ऊलजलूल हरकत करके संबंध को शून्य पर ले आती हैं। मुझे नये सिरे से मेहनत करनी पड़ती है। मैं सोच ही रहा था कि यहां मेहनत से जी नहीं चुराना चाहिये की सलाह ठीक रहेगी कि नहीं तबतक लड़का थोड़ा और खुल गया। अपनी आधुनिकता तथा खुलेपन का परचम लहराते हुये वह बोला- इसकी मम्मी का दखल हमारे संबंधों में इतना अधिक है कि यह तक वे तय करती हैं कि हम कब यौन संबंध स्थापित करें कब न करें।


तमाम ऊलजलूल किस्से सुनाता रहा लड़का अपने जीवन में अपनी ससुराल वालों के अनावश्यक हस्तक्षेप के । उसके घर वाले भी लगातार आरोप लगाते रहे। सब लोग इतना चिल्ला रहे थे कि मुझे लगा यदि इस ध्वनिऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित किया जा सके तो शायद इनकी साल भर की बिजली समस्या हल हो जाये।


कोई बेवकूफी की बात सुनकर बिना कोई जवाब दिये या सगूफा छोड़े चुप रहने का बिल्कुल अभ्यास नहीं है मेरा। फिर भी जिम्मेदारी का अहसास मुझे चुप किये था।इस बीच तमाम दुनियावी डायलाग बोलकर तथा लड़की के पक्ष में कुछ भी न बोलकर मैं एक गुटनिरपेक्ष समझदार के रूप में स्थापित हो चुका था।


देखते-देखते चार घंटे बीत चुके थे। तथा मैं यह समझाने में सफल हो चुका था कि यह उचित नहीं कि लड़की की मां बाहर इंतजार करे। पसीज कर लड़के वाले उदार हो गये। लड़की की मां तथा उनके साथ कुछ अन्य हितैषी अंदर आ गये थे। मेरी पत्नी लगातार मुझे मोबाइल फोन पर हिदायत दे रहीं थीं – किसी भी हालत में लड़की को अकेले मत छोड़ना तथा हर हाल में लड़की को वहां से मायके लाना है। पत्नी की तत्परता से प्रभावित होने के बावजूद हम वहां से कुछ जवाब देने की हालत में नहीं थे। उनको हमने एस.एम.एस. किया -हमको पता है कि हमें क्या करना है। तुम निश्चिंत रहो।


इधर आरोपों का सिलसिला नये सिरे सेचल पड़ा सारी बातें मुझे नये सिरे से सुननी पड़ीं। लड़के वाले थके होने के बावजूद कोसने में कंजूसी नहीं कर रहे थे। बल्कि उम्र के कारण शायद लड़की की मां की सुनने की ताकत कम हो गयी होगी यह मानकर उनकी आवाज की ऊँचाई और तल्खी में इजाफा हो गया था।घंटों चली इस एक तरफा बहस का कोई नतीजा तो खैर क्या निकलना था। पर लड़के वालों की सक्रियता तथा लड़की वालों की मजबूरी के चलते कुछ स्थापनायें हो चुकी थीं:-


१.लड़की को कोई तकलीफ नहीं है ससुराल में । हमारे सामने ही जो खुशहाली ठूंसी जा रही थी सहमी सी लड़की में उससे यह बात पुष्ट होती थी।

२.लड़की में कोई कमी नहीं है। सिर्फ वह बहुत सीधी है तथा बेवकूफ भी है इसीलिये अपने मायके वालों के बहकावे में आ जाती है।

३.सारी कमी लड़की के घर वालों खासतौर पर मां की है जो जब-तब लड़की को ऊट-पटांग सलाह देती रहती हैं।

४. लड़का अपनी बीबी को बहुत चाहता है। इसलिये किसी भी कीमत पर अपनी बीबी को फिलहाल मायके नहीं भेजना चाहता।

५.लड़की चूंकि दुबली पतली है तथा लड़का तंदुरस्त लिहाजा कभी प्यार में कुछ झटके लग गयें होंगे उन्हें किसी भी तरह इस रूप में नहीं लिया जाना चाहिये कि लड़का लड़की को मारता है।

६.(बकौल लड़की के सास-ससुर)अगर लड़की को जाना ही है तो तलाक के कागज में दस्तखत करके जाना होगा।ताकि वे(मायके वाले) बाद में उन्हें ब्लैक मेल न कर सकें।


मैं काफी देर तक लड़के के भाई का इंतजार करता रहा। लड़की के भाई के ‘एक्शन’ का इंतजार था।लड़के वालों का अड़ियल रुख देखकर इस बात पर मैंने राजी कर लिया था कि ठीक है अगर लड़के वाले किसी भी हालत में लड़की को भेजने को राजी नहीं है तो कम से कम यह करें कि लड़की -लड़का मेरे घर शाम को आयें तब मैं उन दोनों के बीच की गलतफहमियां दूर करने का प्रयास करूंगा। यह तय करके तथा शाम को वापस फिर आने की बात कहकर मैं घर चला आया। हमारे आने तक माहौल बोझिल तो था लेकिन आरोपों का सिलसिला कुछ थम गया था। शायद लड़के वाले थक गये थे, चिल्लाते-चिल्लाते।


शाम के पहले ही अचानक बुलाये जाने पर जब मैं दुबारा घटनास्थल पर पहुंचा तब नजारा बदला हुआ था। शांत हो चुके लड़के के बाप दुबारा परशुराम बन गये थे। तथा पूरे कमरे में नाच-नाचकर हाथ को फरसे की तरह हिलाते हुये चीख रहे थे कि यहां पुलिस बुलाकर हमारी बेइज्जती करा दी।पता चला कि दो पुलिस वाले लड़की के भाई की शिकायत पर आये थे पर भाई खुद नहीं आ पाया था।पुलिस वालों को तो, कोई समस्या नहीं है ,कहकर वापस कर दिया गया था। लेकिन समस्या पैदा हो गयी थी।


हमने सोचा कहें- कि पुलिस तो आपके दरवाजे उतनी देर भी नहीं रुकी जितनी देर लाल बत्ती होने पर आप पुलिस वाले के बगल में चौराहे पर खड़े होते हैं।पर समझदारी के टैंक ने हमारी सोच को कुचल दिया।

बहरहाल उन्होंने भी अपना पक्ष मजबूत करने के लिये स्थानीय महिला नेता को पति समेत बुला लिया था। महिला नेता ने आते ही सबको नमस्कार करके घोषणा की कि मैं सिर्फ लड़की से बात करूंगी।वे लड़की को लेकर साथ वाले में कमरे में चली गयीं। इधर मंचपर नेता पति का नेता का कब्जा हो गया।


तमाम तरह की अंगूठियों के गिरफ्त में फंसे हाथ नचाते हुये उन्होंने बताया कि शादी के बाद लड़की परायी हो जाती है ।कि लड़की के घर वालों का उसकी ससुराल में हस्तक्षेप से मामला बिगड़ जाता है। चूँकि यह बाते सामान्य समझ की हैं लिहाजा कोई खास तवज्जो नहीं दे पाये लोग। ताव में आकर उन्होंने यह बात दुबारा कही तथा इस बार एक कहावत भी साथ में लपेट दी:-

दीवार बिगाड़ी आलों ने,
घर बिगाड़ा सालों ने। 


लड़के के पिता के आफिस वाले भी उनके समर्थन में आ गये थे।सभी लोग लगभग यह स्थापित कर चुके थे कि अलग होने में अंतत: नुकसान लड़की का ही होता है। लड़के के पिता दिल के बहुत अच्छे हैं। आदि-इत्यादि।


इस बीच लड़की का भाई पुलिस की नयी खेप लेकर आ गया था। साथ में महिला पुलिस भी थी। जिस तरह उन लोगों ने नेताजी से दुआ-सलाम की उससे हमें लगा कि हम विरोधियों से घिर गये हैं-हारी लड़ाई लड़ रहे हैं।


महिला पुलिस अंदर चली गयी लड़की से बात करने । नेताजी को कुछ याद आ गया काम वे चले गये।हम इंतजार करने लगे-बुझे मन से। बहुमत (जाहिर है लड़के वालों का)लड़की वालों को समझाने में जुट गया कि लड़की की भलाई इसी में है कि उसे फिलहाल वापस ले जाने की जिद समेत यहीं छोड़ दिया जाये।


काफी इंतजार के बाद महिला नेता मय महिला पुलिस अधिकारी तथा लड़की के बाहर आयीं तथा उन्होंने जो कहा उससे मुझे पहली बार लगा कि नेता भी समझदारी की बात कर सकते हैं। उनका मानना था कि चाहें जितना चाहते हों ससुराल वाले,चाहें कोई तकलीफ न हो उसे यहां लेकिन अगर वह मायके जाना चाहती है तो उसे रोकने का कोई कारण नहीं बनता।


इस पर लड़का बिफर गया -ये नहीं जायेगी। लड़के की बहन भी कुछ तीखा बोली। मां ने भी अपनी कुछ भडास निकाली।


इसके बाद जो हुआ वह मेरी आंखों के सामने अभी भी नाच रहा है तथा कानों में अभी भी गूंज रहा है। लगभग सामान्य सी दिखने वाली महिला पुलिस अधिकारी ने कड़ककर लड़के को फटकारा -क्यों नहीं जायेगी वह मायके? क्या वह तुम्हारी लौंडी है या जरखरीद गुलाम? सलीका सीखो बीबी को अपना बना के रखने का । उससे पहले तमीज सीखो बात करने की। लड़के की बहन जो अपनी कान्वेन्टी अंग्रेजी से अपनी बेवकूफियां छितरा रही थी उसने अंग्रेजी में हड़काते हुये कहा- विहैव योरसेल्फ एंड लर्न हाऊ टु टाक इन फ्रन्ट आफ अदर्स ।अपनी भाभी से इतनी बदतमीजी से बात करती हो शर्म नहीं आती। शादी के बाद तुम्हारे घर वालों की ही तरह ससुराल वाले वाले मिले तो सारी स्मार्टनेस हवा हो जायेगी। लड़के की मां को झिड़कते हुये कहा-जब हमारे सामने अपनी बहू से ऐसा बर्ताव कर रहे हैं आप लोग तो अकेले में कैसा करते होंगें? एक घंटे में मुझे आपलोंगो से बात करने में इतना ‘सफोकेशन’ हो रहा है तो वह लड़की कैसा महसूस करती होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
कुछ देर बाद हम लड़की को अपने साथ लेकर घर की तरफ बढ़ रहे थे।लड़की ने बहुत देर बाद अपने चुटकी काटी तथा सहमते हुये भाई से पूँछा कि क्या सच में मैं घर चल रही हूं। भाई ,जिसने पिता की मौत के बाद बहन को बाप की तरह पाला था , ने उसे सीने से चिपटा लिया ।


मैं सोच रहा था कि जिस समाज में दिनभर की जद्दोजहद के बावजूद अपनी बहन को विदा कराने के लिये लड़की के भाई को पुलिस बुलानी पड़े तथा यह धमकी देनी पड़े कि यदि बहन को विदा न किया तो जान दे दूंगा उस देश में महिलाओं की स्थिति क्या होगी। यह तो तब है जबकि जब लड़की खूबसूरत, पढ़ी-लिखी( एम.ए. अंग्रेजी में फर्स्ट क्लास पास) है तथा शादी के दौरान तथा बाद में दहेज या पैसे की कोई बात नहीं थी।
आप क्यों चुप हैं, क्या विचार है आपका?

6 responses to “घर बिगाड़ा सालों ने

  1. शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन का सेट-अप – ससुराल और माईका दोनो दो दूसरे शहरों मे हों और आप सपत्नीक तीसरे शहर मे, आजीविका के बहाने. ;-) 
  2. बिल्कुल सही कहा स्वमीजी आपने.
  3. मुझे तो शुक्ला जी सारिका जी के गुरू की बात सही लग रही है। अधिक से अधिक अँतरराज्यीय ‌और अँतर्जातीय सँबध , जो समाज की बनायी मान्यताऐं और दीवारे ढहा दें।
  4. antarrajiy agar India ke hi hon aur antarjatiy bhi India se to yeh problem to tab bhi rahegi abhi tak to swamiji ka idea sahi hai,
    agar hum dusre shabdi me bole to – ek sasural north pole, dusra south pole aur aap rahe GMT me aajivika kamane Sath me jo phone aap use kar rahe hon contact banaye rakhne ke liye usper laga ho koi accha sa anti virus program.
  5. यह पता लगा पाना मुश्किल है कि गड़बड़ किस तरफ़ है, या शायद व्यर्थ ही हो। मियाँ बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी? पर लड़कियों की अभी तक ऐसी हालत नहीं है कि हर समय अपना मुँह खोल सकें। लड़के का ही फ़र्ज़ है कि मौके की नज़ाकत को समझे। आख़िर लड़की जिनके साथ बचपन से रही है, उन्ही से सलाह मशवरा करना बेहतर समझेगी न। साफ़ है कि लड़का, लड़की को विश्वास नहीं दिला पाया है कि वह उसका शुभचिन्तक है। लड़के को ही आगे बढ़ के जताना ही पड़ेगा कि हाँ, आप मेरी जीवन सङ्गिनी हैं, और इसलिए मैं आपकी परेशानियों सुलझाने के लिए कदम पहले उठाऊँगा, और बाद में अपने माता, पिता, बहन की चिन्ता करूँगा। एक बार इस बात का अहसास लड़की को हो जाए तो वह लड़के के परिवार को अपने से भी बढ़ कर अपना मान के चलेगी, बल्कि यह कोशिश करेगी कि उन्हें कोई दिक्कत न आए, भले ही पति को आ जाए। इसके बजाय अग़र लड़का अग़र हर मौके पर माँ और बहन के पल्लू में छिप कर उन्हें ही आगे कर दे तो लड़की को भला अपनापन कैसे लगेगा।
    आपने सही कहा है, पढ़ लिख लेने से समानता नहीं आ जाती। महिलाओं की हालत का सुधार अग़र किसी चीज़ से हुआ है तो उनकी आर्थिक स्वतन्त्रता से हुआ है।
    दाद लेकिन मैं इस बात की देता हूँ कि आपने इस विषय पर लिखा। हममें से अधिकतर लोग शायद लिखते हैं ज़िन्दगी की असलियतों से भागने के लिए, उनका सामना करने के लिए नहीं।
  6. [...] मैं जब भी कुछ लिखने की सोचता हूं तो पिछली पोस्ट याद आती है। लगता है कि कुछ छूट � [...]

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