Saturday, October 07, 2006

गलत हिंदी लिखने के कुछ सरल उपाय

http://web.archive.org/web/20110925155003/http://hindini.com/fursatiya/archives/196

गलत हिंदी लिखने के कुछ सरल उपाय

हम सबेरे-सबेरे फुरसतिया को देखे तो लगा उनका चेहरा घड़ी में बदल गया है और उस पर दोनों सुइयां बारह बजा रही हैं- सरदार संतासिंह -बंतासिंह का सौत-समय। पहले तो हम खुश हो लिये कि चलो कम से कम चेहरे की कुछ तो कीमत बढ़ी लेकिन जब सामाजिक शिष्टाचार का चश्मा लगाकर देखा तो पता चला कि ऐसे में खुश होना तो पाप की बात है। पाप नही बल्कि घोर पाप। फुरसतिया हमारे मित्र हैं, रोज का उठना-बैठना है उनके साथ। नमस्कारी-नमस्कारा है और कभी-कभी जब अंग्रेजी बोलने का मन करता है तो हाय-हलो भी कहकर जी हलका कर लेते हैं दोनो।
एक दिन तो ऐसा अंग्रेजी बोलने का शौक चढा़ कि किताब की दुकान पर जाकर ‘रैपिडेक्स इंगलिश स्पीकिंग कोर्स’ किताब को घंटो उसी तरह सहलाते रहे जैसे अमेरिकाजी अपने पाकिस्तान को दुलराते रहते हैं या फ़िर जगमोहन डालमिया सौरभ गांगुली को सालों लड़ियाते रहे। हम भावुक होकर किताब खरीदने ही वाले थे कि हमें फुरसतियाजी ने इशारे से रोक दिया। दुकान का मालिक सटा खड़ा था तो हमने आंख के ही इशारे से पूछा-क्या बोलता तू? तब तक दुकान का मालिक दूसरी ग्राहक, जो कि स्वाभाविक रूप से महिला ही होनी चाहिये न!, से नजदीकी बढा़ते हुये सेवा प्रदान करने के प्रयास में जुट गया। उस मरदूद को यह पता ही नहीं है कि सटने में भारत सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है लेकिन सेवा पर टैक्स सटा देती है, पूरे आठ प्रतिशत और सरचार्ज अलग से।
बहरहाल, तो फिर आगे हुआ यह कि फ़िर हम लोगों ने अंखियॊं ही अंखियॊं के इशारे में बात करने के लिये मध्यस्थ के रूप में फुसफुसाहट को भी शामिल कर लिया और यह तय किया कि इतवार को चलेंगे परेड मैदान में। वहां तमाम लोग अपनी ‘रैपिडेक्स’मय अंग्रेजी के आधे दाम पर बेंच जाते हैं वहीं से औने-पौने में किताब मिल जायेगी और मोल-तोल का मजा अलग से। यहां तो ‘एक दाम’ का स्टिकर चिपका है जो खरीदारी को रूटीनी और बोझिल बना देता है। फ़िर हमने अपने जीवन के तमाम कार्यक्रमों की तरह ‘रैपिडेक्स इंगलिश स्पीकिंग कोर्स’ किताब खरीदने का विचार भी स्थगित कर दिया और परिणाम आजतक भुगत रहे हैं- अपनी बात हिंदी में ही कह पा रहे हैं।
यह बहुत साधारण सी लगने वाली बात हमने इसलिये बतायी कि आपको पता लग सके कि हमारे जीवन में फुरसतिया जी का कितना दखल है। जिस देश में लोग अपने पेट काट कर अपने बच्चों को अंग्रेजी सिखाने के लिये जागरूक होकर लगे हों उसी देश की एक किताब की दुकान मैंने लगभग खरीद ली किताब इसलिये नहीं खरीदी क्योंकि फुरसतियाजी की उसमें सहमति नहीं थी।
तो हमारे जीवन में इतना दखल रखने वाले फुरसतिया जी जब हमको इतना उदास टाइप दिखे तो उदासी का कारण पूछना हमारी जिम्मेदारी हो गयी और हमने उनके लटके हुये चेहरे पर पहले दो-चार हल्के-फुल्के डायलाग के छींटे मारे और जब इसपर भी वे अपना चेहरा लटाकाये ही रहे तो हमने द्स-बारह चुटकुलों का ‘जैक’ लगाकर उनके चेहरे को ऊपर उठा दिया। फिर बतकहाव शुरू हुआ। जो बातचीत हुयी वह सवाल-जवाब के रूप में यहां पेश है:-
सवाल: ये अपने चेहरे पर बारह काहे बजाये हो? और कोई टाइम का वाल पेपर लगाऒ न! कोई न मिले तो दसबजकर दस मिनट वाला सटा लो।
जवाब:- हमसे मजाक मत करो आज हम मजाक के मूड में नहीं हैं।
सवाल:- तो फिर कौन से मूड में हो? क्या कोई नया मूड आया है दीवाली आफर में जो उसी में धंस लिये?
जवाब:- हमें ये पता होता कि हम किस मूड में हैं तो हम बता ने देते! हमें खुदै नहीं पता कि कौन से मूड में हैं हम!
सवाल:- अच्छा ये बताऒ ये तुम्हारा ब्लाग-स्लाग कैसा चल रहा है? कुछ लिख-पढ़ रहे हो आजकल?
जवाब:- पढ़ तो हम रहे हैं लेकिन लिखने में डर लगता है।
सवाल:- डर! क्या के रे हो? किससे डर गये? भूल गये जो डर गया सो मर गया?
जवाब:- अरे हमारा वो वाला डर नहीं है जो रामगढ़ वालों का था? हमारा डर दूसरे किस्म का है। हम डरते हैं कि कहीं लिखने में कुछ गड़बड़ी न हो जाये। जहां कोई गड़बड़ी हुयी नहीं कि कोई मीनमेख निकालने वाला आ जायेगा और हमारी इज्जत का फालूदा निकल जायेगा।
सवाल:- तो गलती मत किया करो। सावधान रहा करो। सावधानी हटी,दुर्घटना घटी को याद रखो हमेशा।
जवाब:- अरे यार ये सब हमें पता है लेकिन गलती हो ही जाती है। समझ नहीं आता कि कोई ऐसा उपाय है क्या कि गलती भी करें लेकिन पकड़े न जायें।
ये चाहत अनोखी थी फुरसतियाजी की लेकिन मित्र की चाहत को पूरा करना एक सच्चे मित्र की जिम्मेदारी होती है। इसलिये हमने तमाम किताबों को खोज कर गलती करने और पकड़े जाने से बचने के कुछ तरीक बताये हैं। ये तरीके जनहित में जारी किये गये हैं। जनता जनार्दन से आशा है कि इसमें अपने अनुभवों से कुछ जोड़ती रहेगी।
१. ब्लाग में लिखने में गलती करने से बचने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि ब्लाग लिखना बंद कर दें। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।
२. अगर ब्लाग लिखना बहुत जरूरी है तो दो ब्लाग बनायें। एक नारद में रजिस्टर करायें दूसरा ऒसामा बिन लादेन की तरह आजाद रखें। जब भी कोई पोस्ट लिखें तो दूसरे वाले में लिखें और जो ब्लाग नारद में रजिस्टर है उसमें दूसरे वाले का लिंक दें।
आमतौर पर लिंक से जाने ब्लाग को कोई खास तवज्जो नहीं देता और आपकी गलती छिप जायेगी। अगर दो में भी नहीं बच पाते तो तीन-चार-पांच ब्लाग का गुट बनायें ताकि गलती खोजने वाला आपके ब्लाग तक आते-आते थक जाये और कहे- करो, यार जो करना है।
३.अभी मीन-मेख अभियान शब्दों की चूक पकड़ने तक सीमित है। तो जो शब्द आपको अच्छी तरह आते हैं वे वैसे लिखें और जिनके बारे में ज़रा से भी संदेह वे ‘कोष्ठक’ में लिखना शुरू कर दें चाहें तो उसे बोल्ड भी कर दें। अगर शब्द सही हुआ तो कौनौ बातै नहीं और अगर गलत हुआ तब भी कोई टोके तो आप आराम से कह सकते हैं ये तो हमने जानबूझकर लिखा था क्योंकि जिसके बारे में लिखा गया था वे ऐसे ही बोलते हैं। आप ऐसा भी कर सकते हैं कि सारे शब्द ‘कोष्ठक’ में लिखें या बोल्ड में। जिन-जिन शब्दों के बारे में निश्चित होते जायें कि वे सही हैं उनको ‘कोष्ठक’ हटाते जायें और ‘बोल्डनेस’ को विदा कर दें। हफ्ते भर के बाद तो आप बिना गलती सुधारे भी सारे कोष्ठक हटा सकते हैं क्योंकि हफ्ते भर बाद कोई आपका ब्लाग नहीं पढता चाहे खुद आप ही क्यों न हों।
४.अपने ब्लाग में जो लिखें वो दूसरे के माध्यम से लिखें। शुरुआत में ही किसी पात्र को थमा दें बातचीत की बागडोर और कहें रामलाल बोले, श्यामलाल कहिन। जब कभी कोई गलती पकड़ी जाये तो कह दें कि रामलाल या श्यामलाल कोई और ऐसे ही बोलता है। अब उसकी भाषा पर लगाम मैं कैसे लगा सकता हूं।
इस नियम की व्यापकता इस बात से समझी जा सकती है कि आज आजादी के साठ साल बाद भी हम अपने देश के किसी भी मामले में कमी को अंग्रेजी राज के ऊपर थोपकर चैन की वंशी बजाते हैं। इसी नियम की आड़ में स्व.राही मासूम रजा अपने उपन्यासों( आधा गांव वगैरह में) मल्लाही गालियां अपने पात्रों से ऐसे बकवा के चले गये जैसे उनके मुंह से गालियां नहीं फूल झर रहे हैं। कुछ आलोचकों ने टोका तो बोले- क्या मैं अपने पात्रों की जबान छीन लूं? उनको गूंगा बना दूं?
५.शब्द चयन में स्वाबलंबी बने। अपने डिजाइनर शब्द गढ़ें। मानक शब्द, मानक भाषा प्रयोग करना किसी राजमार्ग पर चलने जैसा हैं जहां आपकी हरकतों पर सैकड़ों कैमरों की निगाह रहती है। गलती हुई नहीं कि पकड़े गये। स्वाबलंबन के बल पर आप अपने जुगाड़ू शब्द अंदाज़ में साधिकार जो मन आये वो लिख सकते हैं। अब जैसे आपको यह नहीं समझ में आ रहा है कि आप किसी को बदतमीज कहें या बत्तमीज़ याब़द्तमीज़ तो आप काहे सर खपाते हैं। अपने ककहरा की कच्चा माल लीजिये और लफंडूस, लफद्दर, परम जैसे किसी भी डिजाइनजर शब्द से नवाज दीजिये। हर शहर के अपने डिजाइनर शब्द उन लोगों ने गढ़े हैं जिनके पैर मानक शब्दों के राजमार्ग पर चलने में थरथराते रहे।
६. अगर आप सही में नहीं चाहते कि कोई आपको लिखने के मामले में टोंके तो आप लेख लिखना त्यागकर कविता लिखना शुरू कर दें। कविता अव्वल तो कम लोग पढ़ने की हिम्मत करते हैं और जो करते भी हैं वे कोई कमी निकालने में संकोच करते हैं। क्योंकि हो सकता है कि शब्द किसी ने गलत लिखा हो लेकिन मात्रा, छंद की मांग पूरी करने के लिये वह गलती करने के अलावा और कोई चारा नहीं रह जाता। अब जैसे आप लेख में लिखते हैं कि आसमान में पक्षी तिरते हैं तो मीनमेख वाले आपको कारण बताओ नोटिस थमा देंगे लेकिन कविता में आप चाहे आसमां में पक्षी तीरते हैं लिखें या फिर आसमा में पक्षी विचरते हैं लिखें या तैरते हैं लिखें या उड़ते हैं लिखें आपकी वाह-वाह तय है। मतलब कविता वह राजमार्ग है जहां आप अपनी गलतियों का टैंक घरघराते हुये बिना किसी अपराधबोध के दौडा़ सकते हैं।
७.अगर आप में थोड़ा सा भी ‘बोहेमियनपन’ है तो आप कह सकते हैं- “मैं जिंदगी, भाषा के नियम-अनुशासन का पालन करते हुये ऊब चुका हूं। अब मैं उन्मुक्त जीवन और उन्मुक्त लेखन का आनन्द उठाना चाहता हूं।” इसके साथ ही आप कुछ ऐसी ऊटपटांग बाते लिखें जिसका कोई सिर-पैर आपको भी न पता हो। मुझे नहीं लगता कि इसके बाद आपके ब्लाग पर कोई मीन मेख निकालने का मन बनायेगा- नंगे से खुदा भी डरता है।
८.अगर आपको गलतियां पकड़े जाने का कुछ ज्यादा ही डर है तो आप आंचलिक भाषा के बीहड़ में उतर जाइये। जैसे बीहड़ में उतरे डाकू को पुलिस कुछ नहीं कहती वैसे ही आंचलिक भाषा के ब्लाग की गलती बताने का रिवाज अभी हुआ नहीं है।
९.आप अपनी पोस्ट लिख्नने के बाद अंत में लिखें कि उसमें आपने कुछ गलतियां जानबूझ कर छोड़ी हैं, पूरे होशोहवास में। जो
उन गलतियों को खोज लेगा उसे उचित इनाम उचित समय पर दिया जायेगा। अगर कोई गलती बताता है तो उसे शाबास कह दीजिये और अगली पोस्ट में फिर यही सिलसिला दोहराइये। इस्से आपकी गलतियां भले पकड़ी जायें लेकिन आपकी शान में
कोई बट्टा नहीं लगेगा। हो सकता है कि कभी गाहे-बगाहे इस बात के लिये इनाम मिल जाये कि आपने हिंदी ब्लाग जगत में
हो रही भाषा संबंधी सुधारों की शुरुआत के लिये अभिनव तरीका अपनाया।
१०. गलती होने से बचाने का एक मुफीद तरीका यह है कि कोई पोस्ट पहले आप अपने दिमाग में लिखें। उसे दिमाग में अंतिम रूप देने के बाद उसे कागज पर उतारें। कागज पर ड्राफ्ट को अंतिम रूप दें। फिर टाइप करके एक सप्ताह अपने पास सुरक्षित रखें। एक सप्ताह बाद अव्वल तो आप वह पोस्ट करने का मन ही बना पायेंगे और अगर आपने और कोई काम न होने की स्थिति में उसे पोस्ट भी कर दिया तो ऐसी पोस्ट की बातें आम तौर पर समाचारों से जुड़े होने के कारण बासी हो चुकी होती हैं। कोई उसकी गलतियां खोजने की बात तो छोड़िये पढने से भी जी चुराता है।
११.आप यह भी कर सकते हैं कि कोई भी पोस्ट दो बार लिखें। जिस वाली पर आपकी गलतियां पकड़ जाती हैं उसे मिटाकर दूसरी वाली बची रहने दें। अब चूंकि कापी/पेस्ट में कोई पैसा तो लगता नहीं है सो हो सकता है कि मीनमेख निकालने वाला दोनों में गलती निकाल दे। ऐसे में आप तू डाल-डाल मैं पात-पात की ऐतिहासिक सूक्ति का अनुसरण करते हुये तीसरी, चौथी पोस्ट लिखें जब तक कि मीनमेख निकालने वाला थक नहीं जाता।
उपरोक्त सभी उपाय केवल उन लोगों के लिये हैं जिनको लगता है वे गलतियां सुधारने के पचड़े में न पड़ते हुये इज्जत के साथ ब्लागिंग करना चाहते हैं। मतलब कि वे गलती करें और न उनको पता चला न उसको जिसको वे दिखा रहे हैं कि देखो यार,हमारा ब्लाग दुनिया भर में पढ़ा जाता है। इन उपायों की ताजगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी इनमें से एक का भी किसी ने प्रयोग नहीं किया है। आप इनमें से किसी भी उपाय का एक-एक करके या फिर एक साथ प्रयोग कर सकते हैं। अगर किसी कारणबस आपको इन उपायों से आराम नहीं मिलता और तब भी आप ब्लाग लिखना ही चाहते हैं तो आपकी समस्या गंभीर है। उसके लिये दूसरे उपाय हैं जो पूछने पर बताये जा सकते हैं।

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

23 responses to “गलत हिंदी लिखने के कुछ सरल उपाय”

  1. अमित अग्रवाल
    बहुत ही बढिया लेख है, बीच बीच में २-३ बार तो जोर से हंसी आ गयी।
    चिठ्ठा वगैरा बहुत दिनों से सुन रहा हूँ, कभी लिखा नहीं है, शायद हिम्मत नहीं हुई।
    लेकिन पिछले कुछ दिनों से पढना तो जरूर शुरू कर दिया है, आशा है कि टिप्पणी लिखते लिखते
    अपना ब्लाग भी लिख दूँगा।
  2. अमित अग्रवाल
    अरे भाई, आप तो लगता है कि डीआरडीओ में हैं ?
    यदि हाँ तो हमसे संपर्क करें, हमारा मेल पता
    profamit@yahoo.co.in
  3. संजय बेंगाणी
    आपने तो मीन(मिन)-मेख निकालने वाले भाई के हौसलें पस्त करने का पूरा इंतजाम कर दिया हैं.
  4. रवि
    …अगर किसी कार वस आपको इन उपायों से आराम नहीं मिलता और तब भी आप ब्लाग लिखना ही चाहते हैं…
    फ़ुरसतिया जी ऊपर कारण की जगह ग़लती से या टाइपो कहें, कार हो गया है. पहली ग़लती मैंने निकाल दी. अब शाबासी की दरकार है.
    फुरसतिया से एक करबद्ध प्रार्थना है. काहे को वे अपनी ऊर्जा चिट्ठा चर्चा में वेस्ट करते हैं. उसके बदले वे नित्य इसी तरह की धुँआधार पोस्ट लिखा करें.
  5. पंकज बेंगाणी
    यह अच्छा बताया फुरसत से !!! अब बुद्धि आ गई कि अंट शंट हिन्दी को कैसे खपाएँ! :-)
  6. जीतू
    एक और अचूक रामबाण है।
    गलतिया बताने वाले ब्लॉग को अपनी पठनीय ब्लॉग लिस्ट से हटा दें। यानि फिल्टर कर दें। यदि ब्लॉगर साहित्यकार और भाषाविद बन जाएंगे तो साहित्यकार क्या तेल बेचेंगे?
    इसलिए अपने ब्लॉग को अपनी आत्मा की आवाज बनाइए और जो मन मे आए, लिख डालिए। ज्यादा फुरसतिया शुरसतिया के मात्रा, व्याकरण मे पड़ेंगे तो नारद की रेटिंग मे निचली पायदान पर पहुँच जाएंगे।
  7. जीतू
    अधूरी पोस्ट कर दी थी…आगे पढे.
    ज्यादा फुरसतिया शुरसतिया के मात्रा, व्याकरण मे पड़ेंगे तो नारद की रेटिंग मे निचली पायदान पर पहुँच जाएंगे। फिर ऐसा ना हो कि गाना पड़ जाए:
    “मै और मेरी तन्हाई, अक्सर ये ब्लॉग पढते है, व्याकरण ना होती तो क्या होता, ये मात्रा इधर लगती, वो मात्रा उधर से हटती, काश ब्लॉग पर लोग आते, पढते, कमेन्ट करते। मै और मेरी तन्हाई, अक्सर ये बाते करते है।”
  8. जगदीश भाटिया
    वाह जी वाह, आज तो आपने ठहाके लगवा दिये हमारे। बहुत खुल के हंसे इसे पढ़ कर। :D
    बहुत पहले एक पाकिस्तानी नाटक देखा था जिसमे एक व्यक्ति ट्रक को ट्रंक बोलता था। जब सामने वाले ने बोला कि ट्रक में नून (न) नहीं लगता तो अकड़ के बोला मेरे वाले में लगता है।
    बाकी यह बात ठीक है कि अब टाईप करते समय हम भी सतर्क हो गये हैं और लापरवाही से होने वाली भूलों में कमी भी आई है।
  9. विनय
    हा हा। मज़ेदार है। और धन्यवाद भी। उम्मीद है कि आपके इस लेख से “मीन-मेख निकालने वालों” का काम आसान होगा।
    और सच तो यह है कि मैं अभी से ब्लॉगों पर वर्तनी के मामले में एक अच्छा खासा सकारात्मक फ़र्क़ महसूस कर रहा हूँ।
  10. विनय
    आपने ख़ुद अपने बताये उपायों में से कुछ का प्रयोग कर लिया है, इसलिये बताने लायक ग़लतियाँ तो वैसे ही कम हो गई हैं :) । फिर भी कुछ टाइपो नज़र आए हैं, देखियेगा:
    नही – नहीं
    दोनो – दोनों
    हटी,दुर्घटना – हटी, दुर्घटना
    स्वाबलंबी – स्वावलंबी
    टोंके – टोके
    इस्से – इससे
    पढने – पढ़ने
    कारणबस – कारणवश
  11. समीर लाल
    “मतलब कविता वह राजमार्ग है जहां आप अपनी गलतियों का टैंक घरघराते हुये बिना किसी अपराधबोध के दौडा़ सकते हैं।”
    –सही है, अन्य सुझाव भी काफी उपयोगी हैं लेकिन आपकी पोस्ट में कोष्ठकों और बोल्ड शब्दों का आभाव खटकता रहा. वैसे विनय भाई के अभियान के बाद सतर्कता बढ़ गई है हर तरफ. :)
  12. ratna
    बहुत दिन बाद वही पुराना अंदाज़ दिखा। रवि भाई सच कहते है –काहे को अपनी ऊर्जा चिट्ठा चर्चा में वेस्ट करते हैं. उसके बदले नित्य इसी तरह की धुँआधार पोस्ट लिखा करें.
    नारद फिर से बढ़िया काम करने लगा है,बेहतर हैै चिट्ठा चर्चा सप्ताह में एक बार पठनीए पोस्टों का विवरण दें, नाकि नारद पर आने वाली पोस्टों की “रनिंग कमैन्टरी” ।
  13. SHUAIB
    बढिया :D
  14. प्रेमलता
    एक टिप्पणी पहले भी की थी वह न जाने कहाँ ग़ायब होगयी?
    पुनः- बहुत ही बढ़िया लिखा है। हम पहले भी कह चुके हैं आपका लिखा पढ़ने की भूख लगती है। सो जल्दी । -प्रेमलता
  15. रवि
    …नारद फिर से बढ़िया काम करने लगा है,बेहतर हैै चिट्ठा चर्चा सप्ताह में एक बार पठनीए पोस्टों का विवरण दें, नाकि नारद पर आने वाली पोस्टों की “रनिंग कमैन्टरी”…
    मेरा यही कहना था. जिन्हें जो चिट्ठा पढ़ना है, वे तो ढूंढ कर पढ़ेंगे, फरमाइशी लिखवाएँगे. जिन्हें नहीं पढ़ना है, कितनी ही चर्चा कर लें, नहीं ही पढ़ेंगे.
    पुनर्विचार हेतु आवेदन प्रस्तुत :)
  16. mitul
    अनूप भाई, सही लेख है।
  17. प्रत्यक्षा
    जन कल्याण का काम बढिया रहा :-)
  18. प्रियंकर
    गच्छतः स्खलनं क्वापि भवत्येव प्रमादतः ।
    हसन्ति दुर्जनास्तत्र समादधति पण्डिताः ॥
    ( चलते हुए प्रमादवश कोई भी फिसल सकता है । उस स्थिति में दुर्जन
    हंसते हैं और पण्डित समाधान करते हैं )
    मुश्किल तब है जब फिसलना किसी की फ़ितरत हो और प्रमाद स्थाई भाव बन जाए । वाह पण्डितराज ! मजमा ऐसे ही जमाए रखो ।
  19. फ़ुरसतिया » चिट्ठाचर्चा,नारद और ब्लाग समीक्षा
    [...] प्रियंकर on गलत हिंदी लिखने के कुछ सरल उपायप्रत्यक्षा on गलत हिंदी लिखने के कुछ सरल उपायmitul on गलत हिंदी लिखने के कुछ सरल उपायरवि on गलत हिंदी लिखने के कुछ सरल उपायप्रेमलता on गलत हिंदी लिखने के कुछ सरल उपाय [...]
  20. Mukul
    Shuklaji,
    Ab kya kahen! Hindi pehle se hi kamzor hai upar se sabhya bhaasha mein taaref karni pad rahi hai…kambakht shabd hi nahin mil rahe hai…. bahut hi rochak aur manoranjak lekh raha….des se door hindi pade hue mahino ho jaate hain…aise main aapki is maulik shaili ke lekh pad kar man prafullit ho jaata hai. Hindi mein maine kam pada hai lekin phir bhi yeh keh sakta hoon ki “Self-deprecatory Humor” maine sirf aapke hi chitthon mein dekha hai
    Apna lekhni chalne dijiye isi tarah…rukiye nahin….
    Bhavdiya
    Mukul
  21. Ashish
    शुक्ल जी, बहुतै सही लिक्खे हो। गलत हिन्दी या अंग्रेज़ी का भी अपना ही अलग मज़ा है।
  22. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] 2.विकिपीडिया – साथी हाथ बढ़ाना… 3.गलत हिंदी लिखने के कुछ सरल उपाय 4.चिट्ठाचर्चा,नारद और ब्लाग समीक्षा [...]

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