http://web.archive.org/web/20110926000228/http://hindini.com/fursatiya/archives/199
अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
अपनी रचनायें भेजें
आप सभी साथी जो मेरा ब्लाग पढ़ते रहे हैं उन्होंने अक्सर मेरी पोस्टों में चर्चित कथाकार कृष्ण बिहारी का
नाम जरूर पढ़ा होगा। साहित्य में रुचि रखने वाले साथियों ने पहले ही उनकी
कहानियां पढ़ी होंगी और उनसे अच्छी तरह परिचित होंगे। लगभग दो सौ कहानियां,
लेख लिख चुके कृष्ण बिहारी जी की कहानियां भारत की लगभग हर प्रतिष्ठित
साहित्यिक पत्रिका छप चुकी हैं। अभिव्यक्ति में प्रकाशित उनके प्रवासी जीवन
के संस्मरण
काफ़ी चर्चित रहे । फिलहाल अबूधाबी में हिंदी अध्यापक के रूप में कार्यरत
हैं बिहारीजी आजकल बच्चों के लिये हिंदी किताब तैयार करने के महत्वपूर्ण
काम में लगे हैं।
बिहारीजी ने एक पत्र के माध्यम से किताब के लिये सामग्री भेजने के लिये मुझे अपने साथियों तक अपना अनुरोध पहुंचाने के लिये लिखा है । उनका पत्र जस का तस यहां प्रस्तुत है:-
आपसे अनुरोध है कि आप अपनी रचनायें भेजें और बिहारीजी को उनके कार्य में सहयोग करें । बिहारीजी का पता है:- krishnatbihari@yahoo.com
बिहारीजी ने एक पत्र के माध्यम से किताब के लिये सामग्री भेजने के लिये मुझे अपने साथियों तक अपना अनुरोध पहुंचाने के लिये लिखा है । उनका पत्र जस का तस यहां प्रस्तुत है:-
आदरणीय महोदय/महोदया,
सादर नमस्कार।
आप शायद मुझे नाम से जानते हों। यदि अब तक अपरिचय है तो इसे इस पत्र के माध्यम से दूर कर रहा हूं। मेरा नाम कृष्ण बिहारी है। मैं एक कहानीकार के रूप में जाना जाता हूं। पिछले २८ साल से हिंदुस्तान से बाहर हूं और (अबूधाबी में) एक हिंदी अध्यापक के पद पर काम कर रहा हूं।
मुझे यहां एक विद्यालय के प्रधानाचार्य के आग्रह/अनुरोध पर कक्षा १ से ८ तक की हिंदी की पाठ्य पुस्तक तैयार करने का सुझाव नहीं बल्कि आदेश दिया गया है। समयाभाव के बावजूद मैंने इस काम को हाथ में ले लिया है, केवल यह सोचकर कि इस काम के द्वारा मैं आप लोगों को उन बच्चों तक पहुंचा सकूंगा जो आपको याद करते हुये अपनी जिंदगी दुनिया में न जाने कहां जियेंगे। वैसे भी यदि रचनाकार किसी पाठ्यक्रम में शामिल हो जायें तो शायद दीर्घजीवी हो
सकेगा। मैंने १० साल पहले ऐसा काम किसी के कहने पर किया था लेकिन वह अपना प्रभाव नहीं दिखा सका। इस बार वैसा होने की सम्भावना नहीं है।
मुझे शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, स्वस्थ नागरिकता, त्याग, सेवा, ईमानदारी, पर्यावरण, सूचना-तंत्र-अखबार, रेडियो, टेलीफोन, मोबाइल, इंटरनेट, म्यूजिक, होम-थियेटर, स्पोर्ट्स, आत्मकथा, जीवनी, चरित्र प्रधान जीवन मूल्यों पर आधारित डायरी, संस्मरण, कहानियां, कवितायें, लेख आदि की तुरंत आवश्यकता है। काम बहुत ज्यादा है और मैं इसमें अकेला ही लगा हूं। पुस्तक को दुनिया के स्तर पर प्रकाशित करना है। सामग्री मिलने के बाद भी बहुत काम है। प्रश्न बनाना,
चित्रांकन, अभ्यास पुस्तिका बनाना आदि।
मैं जानता हूं कि यह काम मेरे रचनात्मक लेखन को बुरी कुप्रभावित करेगा क्योंकि मेरे पास समय ही नहीं है कि मैं यह सब करूं। चूंकि वचन दे चुका हूं इसलिये मुझे आप सबका ही भरोसा है।
आपसे अनुरोध है कि आप इस काम में सहयोग करने के लिये मुझे अपनी रचनायें भेजें । सामग्री में मुझे अपेक्षित परिवर्तन का भी अधिकार दें ताकि वह बच्चों के लायक बन सके। दूसरी बात रचना भेजते समय फांट भी भेजें ताकि मैं उसे खोल सकूं और उपयोग कर सकूं। रचना अपनी रुचि की विधा में तुरंत
भेजें। साथ में अपना परिचय और पासपोर्ट साइज का फोटो भी।
शेष फिर,
आपका
कृष्ण बिहारी
आपसे अनुरोध है कि आप अपनी रचनायें भेजें और बिहारीजी को उनके कार्य में सहयोग करें । बिहारीजी का पता है:- krishnatbihari@yahoo.com
Posted in सूचना | 5 Responses
अपनी अपनी कोशिश कर दें नई वर्तिका इसमें
तेल सभी जो बून्द बून्द डालेंगे इस दीपक में
है निश्चित जग का हर कोना हो इससे ज्योतिर्मय
कुछ बातें स्पष्ट करने की ज़रूरत है. जैसे- रचनाओं की शब्द-सीमा और उन्हें जमा कराने की समय-सीमा.