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झापड़ ही तो मारा है…
By फ़ुरसतिया on April 28, 2008
यह मैंने कल अपनी आंखों से देखा।
एक लड़का सड़क पर जा रहा था। भीड़ बहुत थी। ट्रैफिक देश की प्रगति की रफ़्तार सा। ठहरा था। पीछे से आई कार ने उसे छुआ सा होगा। उसने कुछ कहा। शायद कार के बंद शीशे पर हाथ भी मारा। अंदर से कार वाला निकला। बाहर वाले बच्चे को थुर दिया। तीन-चार कन्टाप धर दिये। बोला भी- साले सड़क पर चलने की तमीज नहीं। पिटने वाले लड़के ने प्रतिवाद करने का प्रयास किया। तब तक लोगों बीच-बचाव करके अलग कर दिया। सबको जल्दी थी। सब चाहते थे सड़क खाली हो, वे घर पहुंचे। लड़का मन -मसोस कर चला गया। गाल सहलाता। पता नहीं ये झापड़ उसके जीवन में क्या रंग लायेंगे आगे? लेकिन ला सकते हैं।
दो दिन पहले हरभजन सिंह ने श्रीसंत को थपड़िया दिया। श्रीसंत रोने लगे। युवराज सिंह ने शिकायत कर दी। बात आगे बढ़ी और अब जांच शुरू हो गयी। फ़ारुख इंजानियर मामले की जांच करेंगे । वीडियो देखेंगे। हरभजन की सजा तय करेंगे।
हम तब से सोच रहे हैं इस सारे मसले पर।
श्रीसंत कहते हैं -हरभजन उनके बड़े भाई के समान हैं। जो मारा था वो झापड़ नहीं था दर असल वो गलत जगह हाथ मिलाने के समान हो गया। मतलब हरभजन अपने छोटे भाई से हाथ मिला रहे होंगे तेजी से, सामने गाल आ गया। अब हाथ में ब्रेक तो लगा नहीं होता। जड़त्व के आधीन बेचारा गाल से मिल गया।
श्रीसंत कहते हैं- वे इस मामले में शिकायत न करेंगे।
हरभजन कहते हैं- उनका मामला निपट गया है।
दोनों भाई आपस में निपट लिये लेकिन दुनिया वाले जांच पर आमादा हैं। भाई-भाई के बीच दरार डालने का काम कर रहे हैं। दीवार खड़ी कर रहे हैं। दरार पैदा कर रहे हैं। लोगों से दूसरों का प्रेम देखा नहीं जाता। जलते हैं।
अपने यहां संयुक्त परिवारों में प्रेम प्रकट करने के कुछ तरीकों में यह तरीका बहुत चलन में था। जिससे बहुत प्यार करते हैं उसकी गाहे-बगाहे पिटाई करते रहो। गाल पर झापड़ मारना प्यार की मोहर लगाने के समान होता था। बाप-बेटे में अक्सर इसी प्रेम का चलन था। बड़े भाई -छोटे भाई भी बिना कापी राइट की चिंता किये इसे अपनाते रहे। हरभजन और श्रीसंत अपनी उज्ज्वल पारिवारिक परंपराओं से जुड़ने का प्रयास करते हैं तो दूसरों को क्यों जलन हो?
अक्सर बात होती है- ऐसा हुआ तो क्यों हुआ। आइये आपके साथ मिलकर सोचते हैं। हरभजन ने श्रीसंत को झापड़ क्यों मारा?
एक तो जो कारण बताया गया कि हरभजन अपनी टीम की लगातार हार से बौखलाये थे। उसके बाद श्रीसंत ने कुछ हरकत की तो टीम प्रेम के वशीभूत होकर उनका भ्रातृप्रेम उमड़ आया। छलक पड़ा।
लेकिन पिछले रिकार्ड से यह बहाना मनगड़न्त लगता है। हमने तमाम बार देखा है कि जब टीम हार रही होती है। सारे देश की क्रिकेट प्रेमी धर्मभीरू जनता जीत के लिये या हार बचाने के लिये भजन-कीर्तन-प्रसाद मनौती में जुटी रहती है तब भी ये धुरंधर खिलखिलाते दिखते हैं। एक दूसरे पर गिरते-पड़ते, लस्टम-पस्टम होते दिखते हैं। सो हार से संतुलन खोना हमारे खिलाडियों की फ़ितरत में है- यह सही नहीं लगता। वे जीत-हार से बहुत ऊपर उठ गये हैं।
दूसरे कारणों में मुझे लगता है कि शायद चीयरलीडरानियों का रोल भी हो इस मामले में। देश के तमाम दूसरे लोगों की तरह हरभजन भी क्रिकेट में चीयरलाडरानियों की उपस्थिति से खफ़ा-खफ़ा हों। श्रीसंत और हरभजन खुद यह मटकने-लटकने का काम करते रहे हैं। प्रतिस्पर्धी के आने से वे बौखलाये हों। श्रीसंत को देखकर उनकी बौखलाहट सामने आ गयी। श्रीसंत अपनी टीम की जीत से मटकने लगे होंगे। उन्होंने चीयरबालाओं वाला गुस्सा उन पर उतार दिया होगा।
हो तो यह भी सकता है कि शायद चीयरलीडरानियां उनको ज्यादा ही भाती हों। उन्होंने ही शायद भज्जी से कहा हो, भाईसाहब, अगर ये श्रीसंत हमारा काम करेंगे तो हमको कौन पूछेगा? हरभजन ने श्रीसंत को ठीक कर देने का आश्वासन दिया होगा। और कर भी दिया।
हो सकता है कि क्रिकेट में सट्टा लगा हो कि आज भी कोई फ़न्नी हरकत की जायेगी। उसी के चलते किसी ने हरभजन को उकसाया हो- आज श्रीसंत के गाल पर भांगड़ा कर दो। भज्जी ने कर दिया होगा।
लोगों ने बेवजह तूल दे दी। वर्ना शायद हरभजन गाना भी गाते-
हंगामा है क्यूं बरपा,
झापड़ ही तो मारा है,
चोरी तो नहीं की है,
डाका तो नहीं डाला।
बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी। पता चलेगा लोग किसी को पीट देंगे और कहेंगे वे क्रिकेट खेल रहे थे। बच्चे दोस्तों को मुंह बिरायेंगे- तू क्या क्रिकेटर बनेगा? कायदे से झापड़ मारना तो आत नहीं। ऐसा होगा भाई। महाजनों एन गत: स: पन्था का सूत्र यही कहता है। भज्जी महान खिलाड़ी हैं। गाल पर हाथ मिलाते हैं।
अखबार से पता चला कि भज्जी उग्र स्वभाव के बहुत पहले से हैं। जब वे पेश अकादमी में क्रिकेट सीखने गये तो घर से दूर होने के कारण तमाम शरारतें करते थे। कई पेस बालरों के बीच वे अकेले क्रिकेटर थे। इसी अकेलेपन और घर से दूरी के कारण वे उग्र बनते गये। बचपन का अभाव और अकेलापन कितनी दूर तक असर करता है। देखिये।
दुनिया के जितने खुराफ़ाती रहे हैं उनके खुराफ़ात की जड़ में बचपन की कोई न कोई कमी रही है।
भज्जी तो चर्चित खिलाड़ी हैं। उनका झापड़बाजी पर देश लफ़्फ़ाजी कर रहा है।
वह बच्चा जिसका जिक्र मैंने शुरुआत में किया जो कारवाले से पिटकर घर चला गया उसका क्या होगा?
उसके गाल पर पड़ा झापड़ क्या गुल खिलायेगा?
क्या कुछ कहा जा सकता है?
Posted in बस यूं ही | 15 Responses
बाकी इन लंगूरों और लंगूरों के खेल को क्या तवज्जो दी जाये!
भाई तो टपकाते हैं, पर हरभजन ने सिर्फ चांटे पर निपटाया।
ये ना समझें कि अबका क्रिकेट विकट बेहया है
हरभजन ने सिर्फ चांटा लगाया यानी कित्ती दया है।
जमाये रहिये।
चांटा नहीं,
ब्लाग।
भाई तो टपकाते हैं, पर हरभजन ने सिर्फ चांटे पर निपटाया।
ये ना समझें कि अबका क्रिकेट विकट बेहया है
हरभजन ने सिर्फ चांटा लगाया यानी कित्ती दया है।
जमाये रहिये।
चांटा नहीं,
ब्लाग।
-श्रीसंत बचपन में मार खा लेते तो आज लोगों को नहीं चिढ़ाते. तब कोई डांटता नहीं और वो गाली नहीं बकता तो कोई मारता भी नहीं. (अर्थात क्रिया की प्रतिक्रिया में बचाव हो सकता था)
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