http://web.archive.org/web/20140419212810/http://hindini.com/fursatiya/archives/449
अन्य होंगे चरण हारे
By फ़ुरसतिया on June 22, 2008
पिछले माह जब हम लखनऊ गये थे तो श्रीलालशुक्ल जी और अखिलेशजी के अलावा कंचन और टंडनजी से
भी मिले थे। कंचन का फोन नम्बर हमने लिया था और आदतन गुमा दिया था। किसी
का फोन नम्बर, पता आदि लेते ही हम सबसे पहला काम यह करते हैं कि उसे
इधर-उधर धर देते हैं। इधर-उधर धरी चीजें फ़िर गुम हो जाती हैं। इससे हम
हलकान नहीं होते। हमें यह विश्वास रहता है कि जब जरूरत होगी, पते-फोन मिल
जायेंगे। जेहि पर जाकर सत्य सनेहू/ मिलहिं सो तेहि नहिं कछु संदेहू।
कंचन के फोन के लिये हमने लखनऊ से मनीष को और समीरलालजी को मिलियाया। समीर जी से नम्बर मिला तो हमने कंचन को फोनियाया। तय हुआ कि कंचन आयेंगी मिलने। हम जहां रुके थे वहां निर्माण कार्य चल रहा था इसलिये हमने वहां बुलाने में संकोच का नाटक किया लेकिन दीदी चूंकि कंचन से कानपुर में मिल चुकीं थीं इसलिये उन्होंने खुद फोन लपककर कंचन को बुलवा लिया। अब हमको कोई दोष नहीं दे सकता था कि काहे सबको परेशान किया।
बताते चलें कि यह वही ऐतिहासिक घर है जहां हमारी शादी की बात तय हुयी थी। वह हमारी जिंदगी का मेरे द्वारा लिया गया अंतिम निर्णय था। इसके बाद के सारे अहम फ़ैसले उसने लिये जिससे जुड़ने का फ़ैसला मैंने यहां लिया। देख लीजिये एक निर्णय कित्ती दूर तक और देर तक असर करता है।
कंचन अपनी भांजी सौम्या के साथ आयीं। आयीं क्या पधारी। खूब बतियाती है लड़की। ढेर-ढेर। न जाने कित्ते किस्से सुना डाले।
हम कंचन से ज्यादा सौम्या की बात पर यकीन कर रहे थे। हमने पूछा भी- सुना है तुम्हारी मौसी बड़ी
कड़क हैं। बहुत हड़काती हैं?
ठीक से याद नहीं कि क्या जबाब दिया सौम्या ने लेकिन जो दिया उसका लब्बो और लुआब दोनों मिलाकर यही था कि मौसी उनकी फ़्रेंड, फ़िलासफ़र और गाइड हैं।
मौसी के फ़्रेंड, फ़िलासफ़र और गाइड होने की वजह बाद में पता चली। सौम्या से उसकी हाबी पूछी गयी तो पता चला -डांसिंग। फ़ेवरिट गाना जिसपर डांस करती हैं पूछा गया तो पता चला- बीड़ी जलिइलो, जिगर मां बड़ी आग है।
कंचन ने आगे पुष्टि करते हुये बताया -हो सकता है विपाशा बसु अपने डांस के स्टेप भले भूल जायें लेकिन ये नहीं भूल सकती। आगे खुलासा हुआ कि सौम्या की कोरियोग्राफ़र उनकी फ़्रेंड, फ़िलासफ़र और गाइड उनकी मौसी ही हैं। कुर्सी पर बैठे-बैठे अपनी भांजी को डांस के स्टेप सिखाये हैं कंचन ने। कंचन खुद तेजी से चलने से लाचार हैं लेकिन उसकी कमी अपनी भांजी को सबसे तेज गाने के स्टेप सिखाकर पूरी करती हैं। घर में निर्माण कार्य चल रहा था इसलिये हम सौम्या का डांस न देख सके लेकिन सोचते रहे कि यह कुछ ऐसा ही है कि जिसके साथ ईश्वर ने मौज ली , बचपन से चलना-फिरना बेहद कष्टप्रद बना दिया वह भगवान को अपने चेलों के माध्यम ठेंगा दिखा रहा है और कह रहा है-
कंचन के तमाम संस्मरण और बचपन के कष्ट्प्रद किस्से सुनते रहे। पोलियो के कारण बचपन से ही चलने-फिरने से लाचार कंचन की पढ़ाई लिखाई उनके भाई-बहनों के सहयोग से हुई। कृत्तिम पैर तो अभी लगे लेकिन बचपन में पढ़ाई के दौरान स्कूल में एक कमरे से दूसरे कमरे तक ले जाने के लिये घर के लोग लगे रहे। उस समय के किस्से स्कूली किस्से सुनाये। उनकी प्रिंसिपल साहिबा ने जो स्वयं प्रख्यात कवियत्री थीं उनके घर वालों की कंचन के लिये व्हीलचेयर पर स्कूल आने की आने की अनुमति प्रदान करने से मना कर दिया। बकौन कंचन, “मैं वह घट्ना कभी नहीं भूल सकती जब प्रिंसिपल मैडम एक बार क्लास खत्म होने पर कुचलते हुये चले गयीं थीं । उन्होंने पलट के यह भी नहीं देखा कि उनके पैर के नीचे कोई कुचला गया है।”
कंचन के घर वाले उनको कष्टों में पालने-संवारने का प्रयास करे। मां रो-रोकर बिटिया को बड़ा होते देखती रहीं। कंचन के नानाजी को ईश्वर से इस बात पर शिकायत भी थी। अपनी शिकायत करते हुये उन्होंने परमपिता परमेश्वर को उलाहना देते हुये लिखा-
कंचन जब यह कविता सुना रहीं थी, मेरी आंखों में पानी आ रहा था।
इसी बीच मनीष का फोन आया। उनसे भी बात हुयी। किसी बात पर कंचन उनको उलाहना दे रही है। आदतन हड़काऊ हो गयी है कानपुर की लड़की।
हमने इस बात की पुष्टि कंचन के भैया से अवधेश से नहीं की। हमें डर था वे फ़ट पड़ेंगे और कहेंगे- अब हमारा मुंह न खुलवाओ। हम पहिले से ही भरे बैठे हैं।
अपनी आगे की पढ़ाई का जिक्र करते हुये कंचन ने बताया कि वो हिंदी में पी.एच.डी. करना चाहती हैं। विषय है- हिंदी की कालजयी रचनाओं का अंग्रेजी अनुवाद। इसके लिये सामग्री जुटा रही हैं। अपने काम के लिये कंचन को कालजयी रचनाऒं के अग्रेजी अनुवाद की तलाश है जिससे कि वे दोनों का अध्ययन करके अपना शोध कार्य कर सकें। मैंने मसिजीवी का नाम सुझाया। उनका हिंदी पी.एच.डी. धारी परिवार इसमें अवश्य सहायक हो सकता है। किसी ने कंचन को डराया भी कि यह विषय तो कुछ कठिन है। सामग्री नहीं मिलेगी। इस पर उनका कहना है तब तो इसे करना और अच्छा रहेगा। बचपन से झेलते-झेलते ” कस्ती को अभ्यास हो गया/लहरों से टकराने का” जज्बा कंचन की ताकत बन गया है। उनका कहना है कोई काम पूरा नहीं होगा तो नहीं होगा। जितना हो सकता है उतना करने में क्या हर्ज है। पीछे तो कभी भी लौटा जा सकता है। मैं सोचता हूं- “ऐसे खुराफ़ाती जज्बे वाले लोग क्या पीछे लौटते हैं? ”
अपने जीवन में जिन ‘लीजेंडरी’ लोगों से कंचन मिलना चाहती थीं उनमें से एक के.पी.सक्सेनाजी हैं। के.पी.सक्सेनाजी ने कंचन से मुलाकात बाद कहा- आज जब तुम मुझसे ‘लीजेंडरी’ मानते हुये मिल रही हो। फोटो खिचवा रही हो। मुझे इस बात का अफ़सोस रहेगा कि कल को जब तुम ‘लीजेंडरी’ बनोगी तब मैं तुम्हारे साथ फोटो खिंचवाने के न रहूं।”
चलते समय घर के बाहर फोटो सेशन हुआ। कंचन को यह शिकायत रहती है कि उनकी फोटो साफ़ नहीं खींचते लोग। लेकिन खिली-खिली धूप ने यह शिकायत दूर कर दी। हमने खिलखिलाते हुये फोटुयें खिंचवाईं और आगे की खिंचाई के लिये यहां पोस्ट कर रहे हैं।
अपनी सवारी पर बैठकर कंचन, बकौल मनीष, रानी लक्ष्मीबाई की तरह सवार होकर चली गयी।
हम बहुत देर तक उनके हौसले और जीवन में आशावाद के जब्बे का जिक्र करते रहे।
कंचन की घरवालों, मां-पिता, भइया-भाभी, दीदी आदि ने अपने -अपने हिसाब से अपनी इस बच्ची को हौसले से भरा। अब वह खुद लोगों के लिये मिसाल हो गयी है। कम से कम मुझे तो यह लगता है कंचन का हौसला तमाम लोगों के लिये प्रेरक है।
मुझे अनायास बचपन में पढ़ी महादेवी वर्मा की कविता याद आ रही है-
अन्य होंगे चरण हारे,
और हैं जो लौटते
दे शूल को संकल्प सारे।
तू न अपनी छांह को
अपने लिये कारा बनाना
जाग तुझको दूर जाना।
संबंधित कड़ियां:
1.उड़न तश्तरी का फुरसतिया पड़ाव हृदय गवाक्ष पर
2.अथ कानपुर ब्लागर मिलन कथा
3.मुलाकात गवाक्ष के प्रेरक पवन मनीष जी से
4.आइए झांके हृदय गवाक्ष के अंदर और मिलें कंचन सिंह चौहान से..
अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;
दुखव्रती निर्माण-उन्मद
यह अमरता नापते पद;
बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला!
दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;
आज जिसपर प्यार विस्मित,
मैं लगाती चल रही नित,
मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला!
हास का मधु-दूत भेजो,
रोष की भ्रूभंगिमा पतझार को चाहे सहेजो;
ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल स्वप्न-शतदल,
जान लो, वह मिलन-एकाकी विरह में है दुकेला!
-महादेवी वर्मा
कंचन के फोन के लिये हमने लखनऊ से मनीष को और समीरलालजी को मिलियाया। समीर जी से नम्बर मिला तो हमने कंचन को फोनियाया। तय हुआ कि कंचन आयेंगी मिलने। हम जहां रुके थे वहां निर्माण कार्य चल रहा था इसलिये हमने वहां बुलाने में संकोच का नाटक किया लेकिन दीदी चूंकि कंचन से कानपुर में मिल चुकीं थीं इसलिये उन्होंने खुद फोन लपककर कंचन को बुलवा लिया। अब हमको कोई दोष नहीं दे सकता था कि काहे सबको परेशान किया।
बताते चलें कि यह वही ऐतिहासिक घर है जहां हमारी शादी की बात तय हुयी थी। वह हमारी जिंदगी का मेरे द्वारा लिया गया अंतिम निर्णय था। इसके बाद के सारे अहम फ़ैसले उसने लिये जिससे जुड़ने का फ़ैसला मैंने यहां लिया। देख लीजिये एक निर्णय कित्ती दूर तक और देर तक असर करता है।
कंचन अपनी भांजी सौम्या के साथ आयीं। आयीं क्या पधारी। खूब बतियाती है लड़की। ढेर-ढेर। न जाने कित्ते किस्से सुना डाले।
हम कंचन से ज्यादा सौम्या की बात पर यकीन कर रहे थे। हमने पूछा भी- सुना है तुम्हारी मौसी बड़ी
कड़क हैं। बहुत हड़काती हैं?
ठीक से याद नहीं कि क्या जबाब दिया सौम्या ने लेकिन जो दिया उसका लब्बो और लुआब दोनों मिलाकर यही था कि मौसी उनकी फ़्रेंड, फ़िलासफ़र और गाइड हैं।
मौसी के फ़्रेंड, फ़िलासफ़र और गाइड होने की वजह बाद में पता चली। सौम्या से उसकी हाबी पूछी गयी तो पता चला -डांसिंग। फ़ेवरिट गाना जिसपर डांस करती हैं पूछा गया तो पता चला- बीड़ी जलिइलो, जिगर मां बड़ी आग है।
कंचन ने आगे पुष्टि करते हुये बताया -हो सकता है विपाशा बसु अपने डांस के स्टेप भले भूल जायें लेकिन ये नहीं भूल सकती। आगे खुलासा हुआ कि सौम्या की कोरियोग्राफ़र उनकी फ़्रेंड, फ़िलासफ़र और गाइड उनकी मौसी ही हैं। कुर्सी पर बैठे-बैठे अपनी भांजी को डांस के स्टेप सिखाये हैं कंचन ने। कंचन खुद तेजी से चलने से लाचार हैं लेकिन उसकी कमी अपनी भांजी को सबसे तेज गाने के स्टेप सिखाकर पूरी करती हैं। घर में निर्माण कार्य चल रहा था इसलिये हम सौम्या का डांस न देख सके लेकिन सोचते रहे कि यह कुछ ऐसा ही है कि जिसके साथ ईश्वर ने मौज ली , बचपन से चलना-फिरना बेहद कष्टप्रद बना दिया वह भगवान को अपने चेलों के माध्यम ठेंगा दिखा रहा है और कह रहा है-
पिछले दिनों जब हाईस्कूल का रिजल्ट आया तो कंचन ने फोन करके बताया कि सौम्या के ९५% नंबर आये हैं। अपनी एकेडमी में टाप किया है। बिटिया सौम्या की सफ़लता पर खुशी जाहिर करते हुये हमने उसके डांस के बारे में जानना चाहा। पता चला कि आजकल विपाशा की बीड़ी बुझी है। सारी आग, आगे की पढ़ाई में लगी हुयी है। ये पढ़ाई जो न कराये।
ओ माये काबा से जाके कह दो
कि अपनी किरणों को चुन के रख लें
मैं अपने पहलू के जर्रे-जर्रे को
खुद चमकना सिखा रहा हूं॥
कंचन के तमाम संस्मरण और बचपन के कष्ट्प्रद किस्से सुनते रहे। पोलियो के कारण बचपन से ही चलने-फिरने से लाचार कंचन की पढ़ाई लिखाई उनके भाई-बहनों के सहयोग से हुई। कृत्तिम पैर तो अभी लगे लेकिन बचपन में पढ़ाई के दौरान स्कूल में एक कमरे से दूसरे कमरे तक ले जाने के लिये घर के लोग लगे रहे। उस समय के किस्से स्कूली किस्से सुनाये। उनकी प्रिंसिपल साहिबा ने जो स्वयं प्रख्यात कवियत्री थीं उनके घर वालों की कंचन के लिये व्हीलचेयर पर स्कूल आने की आने की अनुमति प्रदान करने से मना कर दिया। बकौन कंचन, “मैं वह घट्ना कभी नहीं भूल सकती जब प्रिंसिपल मैडम एक बार क्लास खत्म होने पर कुचलते हुये चले गयीं थीं । उन्होंने पलट के यह भी नहीं देखा कि उनके पैर के नीचे कोई कुचला गया है।”
कंचन के घर वाले उनको कष्टों में पालने-संवारने का प्रयास करे। मां रो-रोकर बिटिया को बड़ा होते देखती रहीं। कंचन के नानाजी को ईश्वर से इस बात पर शिकायत भी थी। अपनी शिकायत करते हुये उन्होंने परमपिता परमेश्वर को उलाहना देते हुये लिखा-
पेट बल घिसट-घिसट कर चलना,
दौड़ की आशा मन में लिये,
आह कंचन की करुण की पुकार,
फ़ाड़ता सबल शरीर हिये।
बालकों के करुण कौतुक को देख
मचलती रहती है दिन-रात,
पैर से चलने में असमर्थ
जीभ से कहती नाना-बात।
उछलना गेंदों का चुपचाप
देखती मन में लिये हुलास
गेंद से मन में उठते भाव
बैठती गोधूलि से आस।
दो मम्मी मुझे एक रस्सी
मैं भर लूंगी ऊंची कुदान
दीदी, भैया से आगे बढ़
मैं भर लूंगी ऐसी छलांग।
इस तरह मांगती उत्तर वह
मां देती आंखों का पानी
पैरों में जान फ़ूकने को
करती किस्मत आना-कानी।
हे परमपिता परमेश्वर तुम
यदि समदर्शी कहलाते हो
तो मेरी बिटिया कंचन को
क्यों इतना अधिक रुलाते हो।
कंचन जब यह कविता सुना रहीं थी, मेरी आंखों में पानी आ रहा था।
इसी बीच मनीष का फोन आया। उनसे भी बात हुयी। किसी बात पर कंचन उनको उलाहना दे रही है। आदतन हड़काऊ हो गयी है कानपुर की लड़की।
हमने इस बात की पुष्टि कंचन के भैया से अवधेश से नहीं की। हमें डर था वे फ़ट पड़ेंगे और कहेंगे- अब हमारा मुंह न खुलवाओ। हम पहिले से ही भरे बैठे हैं।
अपनी आगे की पढ़ाई का जिक्र करते हुये कंचन ने बताया कि वो हिंदी में पी.एच.डी. करना चाहती हैं। विषय है- हिंदी की कालजयी रचनाओं का अंग्रेजी अनुवाद। इसके लिये सामग्री जुटा रही हैं। अपने काम के लिये कंचन को कालजयी रचनाऒं के अग्रेजी अनुवाद की तलाश है जिससे कि वे दोनों का अध्ययन करके अपना शोध कार्य कर सकें। मैंने मसिजीवी का नाम सुझाया। उनका हिंदी पी.एच.डी. धारी परिवार इसमें अवश्य सहायक हो सकता है। किसी ने कंचन को डराया भी कि यह विषय तो कुछ कठिन है। सामग्री नहीं मिलेगी। इस पर उनका कहना है तब तो इसे करना और अच्छा रहेगा। बचपन से झेलते-झेलते ” कस्ती को अभ्यास हो गया/लहरों से टकराने का” जज्बा कंचन की ताकत बन गया है। उनका कहना है कोई काम पूरा नहीं होगा तो नहीं होगा। जितना हो सकता है उतना करने में क्या हर्ज है। पीछे तो कभी भी लौटा जा सकता है। मैं सोचता हूं- “ऐसे खुराफ़ाती जज्बे वाले लोग क्या पीछे लौटते हैं? ”
अपने जीवन में जिन ‘लीजेंडरी’ लोगों से कंचन मिलना चाहती थीं उनमें से एक के.पी.सक्सेनाजी हैं। के.पी.सक्सेनाजी ने कंचन से मुलाकात बाद कहा- आज जब तुम मुझसे ‘लीजेंडरी’ मानते हुये मिल रही हो। फोटो खिचवा रही हो। मुझे इस बात का अफ़सोस रहेगा कि कल को जब तुम ‘लीजेंडरी’ बनोगी तब मैं तुम्हारे साथ फोटो खिंचवाने के न रहूं।”
चलते समय घर के बाहर फोटो सेशन हुआ। कंचन को यह शिकायत रहती है कि उनकी फोटो साफ़ नहीं खींचते लोग। लेकिन खिली-खिली धूप ने यह शिकायत दूर कर दी। हमने खिलखिलाते हुये फोटुयें खिंचवाईं और आगे की खिंचाई के लिये यहां पोस्ट कर रहे हैं।
अपनी सवारी पर बैठकर कंचन, बकौल मनीष, रानी लक्ष्मीबाई की तरह सवार होकर चली गयी।
हम बहुत देर तक उनके हौसले और जीवन में आशावाद के जब्बे का जिक्र करते रहे।
कंचन की घरवालों, मां-पिता, भइया-भाभी, दीदी आदि ने अपने -अपने हिसाब से अपनी इस बच्ची को हौसले से भरा। अब वह खुद लोगों के लिये मिसाल हो गयी है। कम से कम मुझे तो यह लगता है कंचन का हौसला तमाम लोगों के लिये प्रेरक है।
मुझे अनायास बचपन में पढ़ी महादेवी वर्मा की कविता याद आ रही है-
अन्य होंगे चरण हारे,
और हैं जो लौटते
दे शूल को संकल्प सारे।
तू न अपनी छांह को
अपने लिये कारा बनाना
जाग तुझको दूर जाना।
संबंधित कड़ियां:
1.उड़न तश्तरी का फुरसतिया पड़ाव हृदय गवाक्ष पर
2.अथ कानपुर ब्लागर मिलन कथा
3.मुलाकात गवाक्ष के प्रेरक पवन मनीष जी से
4.आइए झांके हृदय गवाक्ष के अंदर और मिलें कंचन सिंह चौहान से..
मेरी पसंद
पंथ होने दो अपरिचित
प्राण रहने दो अकेला!
और होंगे चरण हारे,पंथ होने दो अपरिचित
प्राण रहने दो अकेला!
अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;
दुखव्रती निर्माण-उन्मद
यह अमरता नापते पद;
बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला!
दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;
आज जिसपर प्यार विस्मित,
मैं लगाती चल रही नित,
मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला!
हास का मधु-दूत भेजो,
रोष की भ्रूभंगिमा पतझार को चाहे सहेजो;
ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल स्वप्न-शतदल,
जान लो, वह मिलन-एकाकी विरह में है दुकेला!
-महादेवी वर्मा
No comments:
Post a Comment