http://web.archive.org/web/20140419214727/http://hindini.com/fursatiya/archives/585
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
आ रही इधर से भी पुकार
आ रही उधर से भी पुकार
सब तरफ़ मचा है हाहाकार
कोई तो बतलाये मुझे संत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
हर तरफ़ दिखे सवाल ही सवाल
गोटू – ताऊ ने फ़िर किया बवाल
भैंसो का न जाने क्या हुआ हाल
मुझको इसका जबाब चहिये तुरंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
वो ब्लागर देखो फ़िर पसड़ गया
था अभी बर्फ़ अब उबल गया
टीना-टप्पर सा खड़खड़ा रहा
इसको इलाज चाहिये तुरंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
हर तरफ़ आंसुओं की धार-धार
दुख-पीड़ा-आह-कराह अपार
इनकी भी सीमा होती है सीमाजी
अब आप खिलखिला पड़ो तुरंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
वेलेंटाइन भी आ धमक चुका
संस्कारी हंटर भी चमक चुका
हम देखत हैं कैसे इसे मनाते हो
कर देगें सबका तुरंत अंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
देखत ही धाय मिले गले उनसे
वे बिदके पटक दिया हमको झटसे
हमको धकियाते हो बेशरम, निर्लज्ज
हम अभी बुलाते हैं पुलिस तुरंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
है इधर उधर सब जगह मौजै-मौज
हर तरफ़ ठठाती गुरू की फ़ौज
लेकिन कुछ चेहरे झोले से लटके हैं
हेंहें, ठेठे वालों पर गिरे गाज तुरंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
आ रही किचन से भी पुकार
चलो नाश्ता हो गया तैयार
दफ़्तर भी जाना है भैया अब तो
फ़ैली हैं जहां फ़ाइलें अनंत
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
हम चले गुरू तुम आगे बोलो
बसंत के बकिया सब पत्ते खोलो
यह मस्त मौसमों का राजा है
मस्ती का इसकी न कॊई अंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
(स्व.सुभद्रा कुमारी चौहान की कालजयी कविता वीरों का कैसा हो बसंत की तर्ज पर )
ब्लागर का कैसा हो बसंत…
By फ़ुरसतिया on February 11, 2009
आ रही इधर से भी पुकार
आ रही उधर से भी पुकार
सब तरफ़ मचा है हाहाकार
कोई तो बतलाये मुझे संत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
हर तरफ़ दिखे सवाल ही सवाल
गोटू – ताऊ ने फ़िर किया बवाल
भैंसो का न जाने क्या हुआ हाल
मुझको इसका जबाब चहिये तुरंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
वो ब्लागर देखो फ़िर पसड़ गया
था अभी बर्फ़ अब उबल गया
टीना-टप्पर सा खड़खड़ा रहा
इसको इलाज चाहिये तुरंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
हर तरफ़ आंसुओं की धार-धार
दुख-पीड़ा-आह-कराह अपार
इनकी भी सीमा होती है सीमाजी
अब आप खिलखिला पड़ो तुरंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
वेलेंटाइन भी आ धमक चुका
संस्कारी हंटर भी चमक चुका
हम देखत हैं कैसे इसे मनाते हो
कर देगें सबका तुरंत अंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
देखत ही धाय मिले गले उनसे
वे बिदके पटक दिया हमको झटसे
हमको धकियाते हो बेशरम, निर्लज्ज
हम अभी बुलाते हैं पुलिस तुरंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
है इधर उधर सब जगह मौजै-मौज
हर तरफ़ ठठाती गुरू की फ़ौज
लेकिन कुछ चेहरे झोले से लटके हैं
हेंहें, ठेठे वालों पर गिरे गाज तुरंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
आ रही किचन से भी पुकार
चलो नाश्ता हो गया तैयार
दफ़्तर भी जाना है भैया अब तो
फ़ैली हैं जहां फ़ाइलें अनंत
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
हम चले गुरू तुम आगे बोलो
बसंत के बकिया सब पत्ते खोलो
यह मस्त मौसमों का राजा है
मस्ती का इसकी न कॊई अंत!
ब्लागर का कैसा हो बसंत!
(स्व.सुभद्रा कुमारी चौहान की कालजयी कविता वीरों का कैसा हो बसंत की तर्ज पर )
तबही होंहिं उनका पूरा कल्यान और जय जयकार !!!!
वलेंटाइन डे की अग्रिम बधाई !!!
अब आप खिलखिला पड़ो तुरंत”
मैं भी तो कहता यही कंत
ब्लागर का कैसा हो बसंत
बसंत के बकिया सब पत्ते खोलो
यह मस्त मौसमों का राजा है
मस्ती का इसकी न कॊई अंत
आहा….हा…हा… लगता है आज असली बसंत आया है ब्लागीवुड में. परमानन्द आगया जी आज तो इस कविता में.
रामराम.
दुख-पीड़ा-आह-कराह अपार
इनकी भी सीमा होती है सीमाजी
अब आप खिलखिला पड़ो तुरंत
बेकार नही जाएगा,
हमे हसाने का ये प्रयत्न…
हुकम की तामीर,
देखिये हो रही तुंरत….
“हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा …”
Regards
पढते पाठक हैं डूब डूब!!
पैनी भाषा, पैना हो व्यंग!
बांटे खुशिय़ां, भर दे उमंग!!
लिखे वो लेख, कविता गाये!
हर मुद्दे पर वो बतियाए!!
सुख दे भी वो, पाए अनन्त!!!
ब्लॊगर का ऐसा हो बसंत!!
** ये टिप्पणी इस कविता और इसके पहले वाले लेख के लिये सम्मिलित रूप मे है.
हमरी ‘मंदी का कैसा हो बसंत’ लपक लिहौ, गुरू ?
चलो.. जौन लिख्यौ तौन हमसे तो लाख-गुनी अच्छै लिख्यौ ।
मुला मस्त है.. अउर ऊई तौ हुईबे करी !
ब्लॉगर का बसंत कैसा हो, इस बात की चिंता तो होनी ही चाहिए. इसलिए आपके इस प्रश्न का उत्तर झालकवि ‘वियोगी’ जी ने दिया है. हमने अपने ब्लॉग पर छाप दिया है. आप भी देखियेगा.
http://shiv-gyan.blogspot.com/2009/02/blog-post_11.html
(वैसे .सुभद्रा जी के चेले नाराज हो गए तो ……)
अरे फ़ुरसतिया साहब इस पर स्व. सुभद्रा कुमारी चौहान जी की परम मित्र स्व. श्रीमती कृष्णा तिवारी जी अक्सर ये कहा करती थीं–
ऐसई होते संत, तो काहे पूजे जाते कंत ?
बड़ी अच्छी कविता लिखी है आपने। क्या कहना !
कभी मेरे ब्लॉग पर भी आइयेगा।
भीगी पलकें
लाजवाब तुकबंदी है…वाह !!!
“सुख दे भी वो, पाए अनन्त!!!
ब्लॊगर का ऐसा हो बसंत!!’
लगाय के खटिया,
मुसकाए मन्द-मन्द,
गाए छंद-छंद,
बहानों से अनन्त,
फ़ुरसतिया ही पूछे—-
कैसा हो बसंत???
नवकलियों की अँगड़ाई कुछ
भौरों सी रतिज ढिठाई कुछ
बौरायी सी अमरायी कुछ
मत कर वर्णन तोता रटंत
ब्लॉगर का ऐसा हो वसन्त
हर ब्लॉगर हो निखरा निखरा सा !
लेखन उसका खुशबू फैलाए
प्रेम भाव से मन हर्षाए !
बस वसंत ऐसा आ जाए !!
आने वाले सौ वसन्त तक गृहस्थजीवन मंगलमय हो। श्रीमतीशुक्ल व परिवार को भी शुभकामनाएँ.
जो बाकियों को कर दे मंद
ऐसे लिखिए ठिठोलीचंद
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..यवनिका यादों की
तहलका मचा दे हाय हन्त
टिप्पणियों की बारिस अनन्त
फूले कुप्पे सा दिल दुरन्त
ब्लागर का ऐसा हो बसन्त
.
.वैसे ये ससुरी ब्लोगिंग इत्ती बड़ी चीज़ काहे है कुछ लोगो के वास्ते ….के उनका बसंत अलग हो जाए
dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..कभी चलना आसमानों पे मांजे की चरखी ले के
तब होता है ब्लोगर का असली बसंत!
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..उपन्यासकार समीर लाल समीर को पढ़ने के बाद
ओछे अच्छे में भेद बंद
वह श्रेष्ठ और वह नीच अधम
झगड़े छोड़ो बन जाओ संत
ब्लॉगर का ऐसा हो वसंत!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..अथ श्री "कार" महात्म्य!!!
बहुत सुदंर…लाजवाब…….!