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चिठेरा-चिठेरी विमर्श
By फ़ुरसतिया on February 23, 2009
चिठेरी: रे चिठेरे! कैसे हाल हैं तेरे!
चिठेरा:न पूछ तेरे बिन रहा न जाये!
चिठेरी:आये हाये! क्या केने, क्या केने! वेलेंटाईन डे निकल गया तब रोमांटिक हो रिया है तू! हमेशा का फ़िसड्डी रहा है रे। बस छूटने पर हांफ़ते हुये भागता है!
चिठेरा:क्या करूं! आदत से बेवफ़ाई भी तो नहीं कर सकता न! मजबूर हूं!
चिठेरी:गाना भी तो गा दे! हाय -हाय ये मजबूरी! ये मौसम और ये दूरी।
चिठेरा:अरे अब तो तू पास है न! गाना फ़िट नहीं बैठेगा!
चिठेरी:अच्छा तो मैं चली जाती हूं! तू गला साफ़ कर ले और गाना-साना गा ले!
चिठेरा:अरे न न ! अभी जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं! अभी तो जरूरी काम करने हैं!
चिठेरी: क्या करना है! जरा जानूं तो सही तू कब से काम की बातें करने लगा!
चिठेरा:सबसे पहले तो चिठेरी विमर्श करना है! इसके बाद दुनिया की हालत पर जार-जार रोना है। पूरे किलो भर वैक्सीन लाया हूं!
चिठेरी:ये चिठेरी विमर्श क्या चोंचला है रे!
चिठेरा:अरे कुछ-कुछ स्त्री विमर्श जैसा होता है। उसमें पुरुष लोग स्त्रियों का भला करते हैं। टिपिकल लड़कियों को आधुनिक बनाते हैं! स्त्रियों को देह से ऊपर उठाकर उनको विदेह बनाते हैं ताकि वे देह की चिंता करना छोड़ दें।
चिठेरी:अरे आज शिवरात्रि के दिन क्या सुबह-सुबह भांग छान आया क्या रे। कैसी-कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहा है!
चिठेरा:अरे यही तो समस्या है कि तू भी मुझे गलत समझ रही है। मैं सच कह रहा हूं!
चिठेरी:अरे पगले तेरी बातें मैं न बूझ पा रही! लोग तो कहते हैं कि औरतों के हाल बेहाल करने में मर्दों का ही हाथ होता है। अब तू कह रहा है पुरुष लोग स्त्रियों का भला करते हैं! मैं वाह-वाह भले कर दूं लेकिन तेरी ये कविता मेरे पल्ले न पड़ी!
चिठेरा: हां यह सच है री कि औरतों की बदहाली के पीछे पुरुषों का हाथ रहा है। इसीलिये आज के जागरूक मर्द हाथ-पैर-सर-मुंह सब मारकर ढेर औरतों का भला करे दे रहे हैं। जहां भी कोई टिपिकल लड़की दिखी उसे भड़ से आधुनिक बना दे रहे हैं।
चिठेरी:अरे आधुनिकता भी क्या नहाना-धोना हो गया क्या रे कि दो लोटा डाल लिये और मार्डन हो लिये। तेरा तो स्क्रू ढीला हो गया रे लगता है। जा पकड़ आगरे की ट्रेन! भर्ती हो जा पागलखाने में ठीक हो के आ!
चिठेरा:अरे मैं सच कह रहा हूं री। तू मानती क्यों नहीं! ऐसे ही होता है आधुनिक स्त्री विमर्श!
चिठेरी:अच्छा! और अगर कोई टिपिकल लड़की आधुनिक न होना चाहे तो!
चिठेरा:अरे कैसे नहीं होगी। लड़की अगर टिपिकल है तो उसे आधुनिक तो होना ही पड़ेगा! उसे देह से तो ऊपर उठना ही होगा! उसे यह तो समझना होगा कि देह तो मात्र पैकिंग है। इसे तो खोलना ही होगा!
चिठेरी:और अगर तब भी न हो तो ?
चिठेरा:अव्वल तो ऐसा होगा नहीं! लेकिन हो भी गया तो फ़िर तो उसे न चाहते हुये भी पारंपरिक शब्दावली में चरित्रहीन कहना पड़ेगा। मजबूरी है। एक स्त्रीवादी और कुछ करे न करे लेकिन जिसका भला चाहता है उसे चरित्रहीन तो कह ही सकता है।
इतना तो उसके कर्तव्य में आता है!
चिठेरी: तेरी बातें मेरे पल्ले कुछ न पड़ रही हैं रे। तू न जाने क्या ऊट-पटांग बक रिया है! लगता है ब्लागिंग ने तेरा भेजा फ़्राई कर दिया है।
चिठेरा: तेरा दोष नहीं है री! तू भी टिपिकल चिठेरी है न! आ तेरा भी विमर्श कर दूं! चिठेरी-विमर्श।
चिठेरी:वो कैसे होगा रे भला! बता!
चिठेरा:होगा रे होगा! पहले तू मेरी आंखों में झांक! डूब जा इसमें। फ़िर शुरू होयेगा चिठेरी विमर्श!
चिठेरी: अरे बौड़म! तेरी आंखों में तो कीचड़ भरा है नगरपालिका की नाली सा! अब मैं समझ गई तेरा सारा विमर्श-सिमर्श! हमको कहानी न सुना वर्ना ऐसे कान करूंगी कि शाम तक उस पर रोटी सेंकने लायक गर्मी बनी रहेगी।
चिठेरा: अरे तू तो एकदम ग्लोबल वार्मिंग का इस्तेहार हो ली री। मैं तो ऐसे ही बता रहा था। तू बम-पटाखा हो ली! यही तो समस्या होती है टिपिकल लोगों में। लेकिन तू हमको धमका तो मती वर्ना मैं शास्त्रार्थ के लिये चुनौती दे दूंगा!
चिठेरी: शास्त्रार्थ! ये क्या होता है रे!
चिठेरा: ये शास्त्रीजी का चोंचला है। जहां उनकी बात कोई नहीं मानता उसे फ़ट से शास्त्रार्थ की चुनौती दे देते हैं!
चिठेरी:अच्छा! फ़िर क्या करते हैं! क्या ताल ठोंक के करते हैं!
चिठेरा:उनका तो पता नहीं लेकिन जिसको चुनौती देते हैं वो अपने बाल नोचता है!
चिठेरी:सो क्यों भला!
चिठेरा:सो इसलिये चिठेरी कि वे कोई तर्क किसी का मानते नही! अपनी पे अड़े रहते हैं! ज्यादा कुछ हुआ तो
फ़िर शास्त्रार्थ की चुनौती! झेलो! इसलिये उनसे तो दूरी ही भली!
चिठेरी:अच्छा ये बता सुना है रांची में कल ब्लागर-श्लागर मीट हुई!
चिठेरा:हां हुई! तुझे कोई तकलीफ़!
चिठेरी:मुझे भला क्या तकलीफ़ होगी रे! बता क्या हुआ उधर!
चिठेरा:बहुत कुछ हुआ! मिलना-मिलाना, खाना-पीना, गाना-बजाना ! हिंदी ब्लागिंग का इतिहास भी लिख दिया गया!
चिठेरी: क्या लिखा गया ब्लागिंग के इतिहास में।
चिठेरा: दो युग हैं हिंदी ब्लागिंग में! मोहल्ले के पहले और मोहल्ले के बाद!
चिठेरी:अच्छा! बाकी सब बरबाद! बन गये खाद!
चिठेरा:अरे तू क्यों जलती है! तू अपना इतिहास लिख!
चिठेरी: कैसे मैं कोई आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हूं।
चिठेरा:अरे इसमें शुकुलजी की क्या जरूरत है! जो युग मन आये बना लो! ले मैं देता हूं तुझे क्लू:
चिठेरा:अरे तू कहे तो तेरे लिये क्या न कर डालूं! तू कह के तो देख! कहे तो तेरे लिये आसमान से वो मलबा लाके दिखा दूं जो अभी रूसी-अमेरिकी उपग्रह के टकराने से अंतरिक्ष में गिरा है।
चिठेरी: अरे मलबा क्या यहां कम दिख रहा है जो अंतरिक्ष से कुली गिरी करेगा?
चिठेरा: सच कही तूने। तू भी समझदार हो गयी री!
चिठेरी:तो क्या समझदारी का तू ठेकेदार है! तेरे पासई अकल आ बोरा धरा है!
चिठेरा:चल बहुत बातें हो लीं! अब चलें!
चिठेरी: किधर चलें!
चिठेरा:भाग चलें पूरब की ओर!
चिठेरी:अरे चल भाग! शराफ़त से रहना सीख ले मुंहजोर!
चिठेरा:जाता हूं, जाता हूं! फ़िर कब मिलोगी बताती जाओ मेरी दिलचोर!
चिठेरी:इत्ता तो बतिया लिये! अब मुझे और नहीं होना बोर!
चिठेरा: लेकिन ये दिल का मामला है! ये दिल मांगे मोर!
चिठेरी: नैन लड़ि जैहैं तो मनवा मां कसक हुइबै करी!
चिठेरा:प्रेम का बजिहै जब पटाखा तो मनवा मां कसक हुइबै करी!
चिठेरी:मिलि जैहे जो कोई कन्या तो विमर्श हुइबै करी।
चिठेरा:जो कोई बीच मां टोकिहै तो शास्त्रार्थ हुइबै करी!
चिठेरी:शरीफ़ को कोई फ़ंसैहे तो बड़ा दुख हुइबै करी।
चिठेरा:ये दुनिया बड़ी जालिम है,उटपटांग कहिबै करी!
चिठेरी:चल बहुत हुआ काम से लग वर्ना देर तो हुइबै करी!
चिठेरा:चल मिलब फ़िर कबहूं कहूं तो मुलाकात हुइबै करी!
आंख से जो गिरे तो कहां जाओगे!
पानियों की कोई शक्ल होती नहीं,
जिस भी बर्तन में ढालेगा,ढल जाओगे।
तुम तो सिक्के हो उसकी टकसाल के
ओ उछालेगा औ तुम उछल जाओगे!
लाख बादल सही आसमानों के तुम
जिंदगी की जमीं पर बिखर जाओगे!
मैं तो गम में भी हंस के निकल जाऊंगा
तुम तो हंसने की कोशिश में मर जाओगे।
मशवरा है कि डर छोड़ करके जियो
हर कदम मौत है, तुम जो डर जाओगे।
एक कोशिश करो , उसके हो के जियो,
उसके हो के जियोगे, संवर जाओगे!
डा.कन्हैयालाल नंदन
चिठेरा:न पूछ तेरे बिन रहा न जाये!
चिठेरी:आये हाये! क्या केने, क्या केने! वेलेंटाईन डे निकल गया तब रोमांटिक हो रिया है तू! हमेशा का फ़िसड्डी रहा है रे। बस छूटने पर हांफ़ते हुये भागता है!
चिठेरा:क्या करूं! आदत से बेवफ़ाई भी तो नहीं कर सकता न! मजबूर हूं!
चिठेरी:गाना भी तो गा दे! हाय -हाय ये मजबूरी! ये मौसम और ये दूरी।
चिठेरा:अरे अब तो तू पास है न! गाना फ़िट नहीं बैठेगा!
चिठेरी:अच्छा तो मैं चली जाती हूं! तू गला साफ़ कर ले और गाना-साना गा ले!
चिठेरा:अरे न न ! अभी जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं! अभी तो जरूरी काम करने हैं!
चिठेरी: क्या करना है! जरा जानूं तो सही तू कब से काम की बातें करने लगा!
चिठेरा:सबसे पहले तो चिठेरी विमर्श करना है! इसके बाद दुनिया की हालत पर जार-जार रोना है। पूरे किलो भर वैक्सीन लाया हूं!
चिठेरी:ये चिठेरी विमर्श क्या चोंचला है रे!
चिठेरा:अरे कुछ-कुछ स्त्री विमर्श जैसा होता है। उसमें पुरुष लोग स्त्रियों का भला करते हैं। टिपिकल लड़कियों को आधुनिक बनाते हैं! स्त्रियों को देह से ऊपर उठाकर उनको विदेह बनाते हैं ताकि वे देह की चिंता करना छोड़ दें।
चिठेरी:अरे आज शिवरात्रि के दिन क्या सुबह-सुबह भांग छान आया क्या रे। कैसी-कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहा है!
चिठेरा:अरे यही तो समस्या है कि तू भी मुझे गलत समझ रही है। मैं सच कह रहा हूं!
चिठेरी:अरे पगले तेरी बातें मैं न बूझ पा रही! लोग तो कहते हैं कि औरतों के हाल बेहाल करने में मर्दों का ही हाथ होता है। अब तू कह रहा है पुरुष लोग स्त्रियों का भला करते हैं! मैं वाह-वाह भले कर दूं लेकिन तेरी ये कविता मेरे पल्ले न पड़ी!
चिठेरा: हां यह सच है री कि औरतों की बदहाली के पीछे पुरुषों का हाथ रहा है। इसीलिये आज के जागरूक मर्द हाथ-पैर-सर-मुंह सब मारकर ढेर औरतों का भला करे दे रहे हैं। जहां भी कोई टिपिकल लड़की दिखी उसे भड़ से आधुनिक बना दे रहे हैं।
चिठेरी:अरे आधुनिकता भी क्या नहाना-धोना हो गया क्या रे कि दो लोटा डाल लिये और मार्डन हो लिये। तेरा तो स्क्रू ढीला हो गया रे लगता है। जा पकड़ आगरे की ट्रेन! भर्ती हो जा पागलखाने में ठीक हो के आ!
चिठेरा:अरे मैं सच कह रहा हूं री। तू मानती क्यों नहीं! ऐसे ही होता है आधुनिक स्त्री विमर्श!
चिठेरी:अच्छा! और अगर कोई टिपिकल लड़की आधुनिक न होना चाहे तो!
चिठेरा:अरे कैसे नहीं होगी। लड़की अगर टिपिकल है तो उसे आधुनिक तो होना ही पड़ेगा! उसे देह से तो ऊपर उठना ही होगा! उसे यह तो समझना होगा कि देह तो मात्र पैकिंग है। इसे तो खोलना ही होगा!
चिठेरी:और अगर तब भी न हो तो ?
चिठेरा:अव्वल तो ऐसा होगा नहीं! लेकिन हो भी गया तो फ़िर तो उसे न चाहते हुये भी पारंपरिक शब्दावली में चरित्रहीन कहना पड़ेगा। मजबूरी है। एक स्त्रीवादी और कुछ करे न करे लेकिन जिसका भला चाहता है उसे चरित्रहीन तो कह ही सकता है।
इतना तो उसके कर्तव्य में आता है!
चिठेरी: तेरी बातें मेरे पल्ले कुछ न पड़ रही हैं रे। तू न जाने क्या ऊट-पटांग बक रिया है! लगता है ब्लागिंग ने तेरा भेजा फ़्राई कर दिया है।
चिठेरा: तेरा दोष नहीं है री! तू भी टिपिकल चिठेरी है न! आ तेरा भी विमर्श कर दूं! चिठेरी-विमर्श।
चिठेरी:वो कैसे होगा रे भला! बता!
चिठेरा:होगा रे होगा! पहले तू मेरी आंखों में झांक! डूब जा इसमें। फ़िर शुरू होयेगा चिठेरी विमर्श!
चिठेरी: अरे बौड़म! तेरी आंखों में तो कीचड़ भरा है नगरपालिका की नाली सा! अब मैं समझ गई तेरा सारा विमर्श-सिमर्श! हमको कहानी न सुना वर्ना ऐसे कान करूंगी कि शाम तक उस पर रोटी सेंकने लायक गर्मी बनी रहेगी।
चिठेरा: अरे तू तो एकदम ग्लोबल वार्मिंग का इस्तेहार हो ली री। मैं तो ऐसे ही बता रहा था। तू बम-पटाखा हो ली! यही तो समस्या होती है टिपिकल लोगों में। लेकिन तू हमको धमका तो मती वर्ना मैं शास्त्रार्थ के लिये चुनौती दे दूंगा!
चिठेरी: शास्त्रार्थ! ये क्या होता है रे!
चिठेरा: ये शास्त्रीजी का चोंचला है। जहां उनकी बात कोई नहीं मानता उसे फ़ट से शास्त्रार्थ की चुनौती दे देते हैं!
चिठेरी:अच्छा! फ़िर क्या करते हैं! क्या ताल ठोंक के करते हैं!
चिठेरा:उनका तो पता नहीं लेकिन जिसको चुनौती देते हैं वो अपने बाल नोचता है!
चिठेरी:सो क्यों भला!
चिठेरा:सो इसलिये चिठेरी कि वे कोई तर्क किसी का मानते नही! अपनी पे अड़े रहते हैं! ज्यादा कुछ हुआ तो
फ़िर शास्त्रार्थ की चुनौती! झेलो! इसलिये उनसे तो दूरी ही भली!
चिठेरी:अच्छा ये बता सुना है रांची में कल ब्लागर-श्लागर मीट हुई!
चिठेरा:हां हुई! तुझे कोई तकलीफ़!
चिठेरी:मुझे भला क्या तकलीफ़ होगी रे! बता क्या हुआ उधर!
चिठेरा:बहुत कुछ हुआ! मिलना-मिलाना, खाना-पीना, गाना-बजाना ! हिंदी ब्लागिंग का इतिहास भी लिख दिया गया!
चिठेरी: क्या लिखा गया ब्लागिंग के इतिहास में।
चिठेरा: दो युग हैं हिंदी ब्लागिंग में! मोहल्ले के पहले और मोहल्ले के बाद!
चिठेरी:अच्छा! बाकी सब बरबाद! बन गये खाद!
चिठेरा:अरे तू क्यों जलती है! तू अपना इतिहास लिख!
चिठेरी: कैसे मैं कोई आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हूं।
चिठेरा:अरे इसमें शुकुलजी की क्या जरूरत है! जो युग मन आये बना लो! ले मैं देता हूं तुझे क्लू:
- आदि युग,चिट्ठाविश्व युग, नारद युग, ब्लागवाणी युग,चिट्ठाजगत युग!
- ब्लागस्पाट युग, वर्डप्रेस युग और अपना काम युग
- साधुवाद युग, असाधुवादयुग, धत-धत युग, भग-भग युग, धिक्कार युग,बहिष्कार युग, मार-मार युग
- टंकी युग, फ़ंकी युग, सनकी युग
- कवि युग, अकवि युग, लेख युग, देख युग, सुन युग, सर-धुन युग
- मुखौटा युग, चौखटा युग, फ़टाफ़टा युग, सटासटा युग
- क्या लिखा युग?, क्यों लिखा युग?, फ़िर लिखा युग?
- नारी विमर्श युग, पुरुष विमर्श युग, ब्लागर विमर्श युग, ये विमर्श युग, वो विमर्श युग
- सराहना युग, उलाहना युग, बहाना युग,ठिकाने लगा युग
चिठेरा:अरे तू कहे तो तेरे लिये क्या न कर डालूं! तू कह के तो देख! कहे तो तेरे लिये आसमान से वो मलबा लाके दिखा दूं जो अभी रूसी-अमेरिकी उपग्रह के टकराने से अंतरिक्ष में गिरा है।
चिठेरी: अरे मलबा क्या यहां कम दिख रहा है जो अंतरिक्ष से कुली गिरी करेगा?
चिठेरा: सच कही तूने। तू भी समझदार हो गयी री!
चिठेरी:तो क्या समझदारी का तू ठेकेदार है! तेरे पासई अकल आ बोरा धरा है!
चिठेरा:चल बहुत बातें हो लीं! अब चलें!
चिठेरी: किधर चलें!
चिठेरा:भाग चलें पूरब की ओर!
चिठेरी:अरे चल भाग! शराफ़त से रहना सीख ले मुंहजोर!
चिठेरा:जाता हूं, जाता हूं! फ़िर कब मिलोगी बताती जाओ मेरी दिलचोर!
चिठेरी:इत्ता तो बतिया लिये! अब मुझे और नहीं होना बोर!
चिठेरा: लेकिन ये दिल का मामला है! ये दिल मांगे मोर!
चिठेरी: नैन लड़ि जैहैं तो मनवा मां कसक हुइबै करी!
चिठेरा:प्रेम का बजिहै जब पटाखा तो मनवा मां कसक हुइबै करी!
चिठेरी:मिलि जैहे जो कोई कन्या तो विमर्श हुइबै करी।
चिठेरा:जो कोई बीच मां टोकिहै तो शास्त्रार्थ हुइबै करी!
चिठेरी:शरीफ़ को कोई फ़ंसैहे तो बड़ा दुख हुइबै करी।
चिठेरा:ये दुनिया बड़ी जालिम है,उटपटांग कहिबै करी!
चिठेरी:चल बहुत हुआ काम से लग वर्ना देर तो हुइबै करी!
चिठेरा:चल मिलब फ़िर कबहूं कहूं तो मुलाकात हुइबै करी!
मेरी पसंद
जिंदगी में गिरे तो संभल जाओगे,आंख से जो गिरे तो कहां जाओगे!
पानियों की कोई शक्ल होती नहीं,
जिस भी बर्तन में ढालेगा,ढल जाओगे।
तुम तो सिक्के हो उसकी टकसाल के
ओ उछालेगा औ तुम उछल जाओगे!
लाख बादल सही आसमानों के तुम
जिंदगी की जमीं पर बिखर जाओगे!
मैं तो गम में भी हंस के निकल जाऊंगा
तुम तो हंसने की कोशिश में मर जाओगे।
मशवरा है कि डर छोड़ करके जियो
हर कदम मौत है, तुम जो डर जाओगे।
एक कोशिश करो , उसके हो के जियो,
उसके हो के जियोगे, संवर जाओगे!
डा.कन्हैयालाल नंदन
वैसे ये चिठेरी चिठेरा है कौन जो सब अंदर की बात जानते है..
और आप कहा इनकी बाते सुनते रहते है.. ??
चिठेरा:प्रेम का बजिहै जब पटाखा तो मनवा मां कसक हुइबै करी!
चिठेरी:मिलि जैहे जो कोई कन्या तो विमर्श हुइबै करी।
चिठेरा:जो कोई बीच मां टोकिहै तो शास्त्रार्थ हुइबै करी!
चिठेरी:शरीफ़ को कोई फ़ंसैहे तो बड़ा दुख हुइबै करी।
चिठेरा:ये दुनिया बड़ी जालिम है,उटपटांग कहिबै करी!
चिठेरी:चल बहुत हुआ काम से लग वर्ना देर तो हुइबै करी!
चिठेरा:चल मिलब फ़िर कबहूं कहूं तो मुलाकात हुइबै करी!
” ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha अब कित्ता हसें ………..”
Regards
चिठेरा: हाँ पढ़ा कोई तकलीफ!
शास्त्री जी को भी लपेट लिया आपने.:)
रामराम.
चिट्ठा चिठेरी संवाद में चिठेरी विमर्श..यहाँ भी?
नन्दन जी की रचना बहुत अच्छा लगी.
१-”बद अच्छा बदनाम बुरा।”
२-”बेपेंदे क लोटा घर का न घाट का।”
३-”वो कुए मे कुदने को कहेगा तो तुम कुद जाओगे?”
४-”सिर पर लगा कलंक धो नही पाओगे।”
५-”सब कुछ पी चुका हूं, गम क्या चीज है।”
६-”जो डर गया,समझो मर गया।”
७-”कर के तो देख।”
2. ब्लागस्पाट युग, वर्डप्रेस युग और अपना काम युग
3. साधुवाद युग, असाधुवादयुग, धत-धत युग, भग-भग युग, धिक्कार युग,बहिष्कार युग,
मार-मार युग
4. टंकी युग, फ़ंकी युग, सनकी युग
5. कवि युग, अकवि युग, लेख युग, देख युग, सुन युग, सर-धुन युग
6. मुखौटा युग, चौखटा युग, फ़टाफ़टा युग, सटासटा युग
7. क्या लिखा युग?, क्यों लिखा युग?, फ़िर लिखा युग?
8. नारी विमर्श युग, पुरुष विमर्श युग, ब्लागर विमर्श युग, ये विमर्श युग, वो विमर्श युग
9. सराहना युग, उलाहना युग, बहाना युग,ठिकाने लगा युग
जबरदस्त युग विभाजन. वाह रे फ़ुरसतिया युग.
हई
मुखौटा युग, चौखटा युग, फ़टाफ़टा युग, सटासटा युग
चिठेरी: नैन लड़ि जैहैं तो मनवा मां कसक हुइबै करी!
चिठेरा:प्रेम का बजिहै जब पटाखा तो मनवा मां कसक हुइबै करी
चिठेरी: चिठेरा
की कहानी हुई गई है इ कौन सी चिठ्ठो की चर्चा कहात है .
महासिवरात्रि की हार्दिक शुभकामना
वैसे ब्लागिंग युग पर एक शास्त्रार्थ करवाना उचित रहेगा. वैसे आपने महाभारत युग की बात नहीं की. मेरी कई पोस्ट का सोर्स वही युग है.
इस पूरे शास्त्रार्थ कांड को सुन कर ऐसा हंसा कि जो कुर्सी पिछले दस साल से मेरा साथ देती आयी है उसके सार चूल ढीले हो गये. इसका हर्जाना देने के लिये तय्यार रहें.
आपने शास्त्रार्थ के बारे में जो लिखा है वह अपने आप में इतना क्लासिकल है कि आज रचनात्मकता के लिये मैं चिट्ठा-रचनात्मकता-शास्त्री-ऑस्कर आपके नाम घोषित किये देता हूँ!!
चिठेरा-चिठेरी विमर्श बहुत सुंदर है. हां चिट्ठा-युगों का विश्लेषण तो बहुत सुंदर है.
लिखते रहें, क्योंकि फिलहाल आप को फुर्सत देने की हम नहीं सोच रहे हैं!!
सस्नेह — शास्त्री
ये शौक तुम्हारा अच्छा है…
चिठेरा: आज कल की नारियां
देती है ये गालियां
काम कुछ करती नहीं
और बांधती है साडियां … लारिलप्पा लारिलप्पा लाई रे खुदा..
Nandan ji kee kavita ke liye aabhaar