Monday, February 23, 2009

चिठेरा-चिठेरी विमर्श

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31 responses to “चिठेरा-चिठेरी विमर्श”

  1. irshadsir
    अपने ब्लागिंग धर्म का इतनी तन्मयता और आत्मियता से पालन करने वाला मैंने अभी तक दूसरा कोई नही देखा गुरूजी। मुझे जैसे अल्पज्ञानी भी आपको पढ़कर बहूत कुछ सीख जाते हैं। बहूत-बहुत शुक्रिया। अपनी पुस्तक में आपके बारे में एक पूरा आलेख मैंने दिया है। और आपकी एक बेहतरीन रचना को भी स्थान दिया है।
  2. कुश
    शास्त्रार्थ शब्द की धज्जिया उड़ाने वाले युग के बारे में तो आपने लिखा ही नही… जहा साहब जी अपने चेले चपा टो से घिरे आत्ममुग्धता से सारॉबार दिखते है.. और जहा कोई उनसे असहमति दिखाता है.. बस वही शास्त्रार्थ को खूँटी पे लटकाकर पेर्सनल कमेंटिंग पे आ जाते है..
    वैसे ये चिठेरी चिठेरा है कौन जो सब अंदर की बात जानते है..
    और आप कहा इनकी बाते सुनते रहते है.. ??
  3. vijay gaur
    samvad achchhe hain, chutile aur wyangy bhare. maja aa raha hai.
  4. seema gupta
    चिठेरी: नैन लड़ि जैहैं तो मनवा मां कसक हुइबै करी!
    चिठेरा:प्रेम का बजिहै जब पटाखा तो मनवा मां कसक हुइबै करी!
    चिठेरी:मिलि जैहे जो कोई कन्या तो विमर्श हुइबै करी।
    चिठेरा:जो कोई बीच मां टोकिहै तो शास्त्रार्थ हुइबै करी!
    चिठेरी:शरीफ़ को कोई फ़ंसैहे तो बड़ा दुख हुइबै करी।
    चिठेरा:ये दुनिया बड़ी जालिम है,उटपटांग कहिबै करी!
    चिठेरी:चल बहुत हुआ काम से लग वर्ना देर तो हुइबै करी!
    चिठेरा:चल मिलब फ़िर कबहूं कहूं तो मुलाकात हुइबै करी!
    ” ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha अब कित्ता हसें ………..”
    Regards
  5. विपुल
    चिठेरी: फुरसतिया को पढ़ा!
    चिठेरा: हाँ पढ़ा कोई तकलीफ!
  6. कुश
    अब जी क्या कहिए ऐसे लोगो से.. ये लोग तो सविता भाभी के फ़ैन है..
  7. ताऊ रामपुरिया
    आपका चिठेरा जरा नौसिखिया है. चिठेरी से इस तरह बाते कर रहा है, किसी रोज आफ़त मे फ़ंसेगा जरुर. :)
    शास्त्री जी को भी लपेट लिया आपने.:)
    रामराम.
  8. समीर लाल
    मनौना युग भूल गये..वरना तो रुठे ही रह जायें.
    चिट्ठा चिठेरी संवाद में चिठेरी विमर्श..यहाँ भी?
    नन्दन जी की रचना बहुत अच्छा लगी.
  9. archana
    “मेरी पसन्द” पढ्ने के बाद ये वाक्यांश याद आ रहे है—-
    १-”बद अच्छा बदनाम बुरा।”
    २-”बेपेंदे क लोटा घर का न घाट का।”
    ३-”वो कुए मे कुदने को कहेगा तो तुम कुद जाओगे?”
    ४-”सिर पर लगा कलंक धो नही पाओगे।”
    ५-”सब कुछ पी चुका हूं, गम क्या चीज है।”
    ६-”जो डर गया,समझो मर गया।”
    ७-”कर के तो देख।”
  10. हिमांशु
    1. आदि युग,चिट्ठाविश्व युग, नारद युग, ब्लागवाणी युग,चिट्ठाजगत युग!
    2. ब्लागस्पाट युग, वर्डप्रेस युग और अपना काम युग
    3. साधुवाद युग, असाधुवादयुग, धत-धत युग, भग-भग युग, धिक्कार युग,बहिष्कार युग,
    मार-मार युग
    4. टंकी युग, फ़ंकी युग, सनकी युग
    5. कवि युग, अकवि युग, लेख युग, देख युग, सुन युग, सर-धुन युग
    6. मुखौटा युग, चौखटा युग, फ़टाफ़टा युग, सटासटा युग
    7. क्या लिखा युग?, क्यों लिखा युग?, फ़िर लिखा युग?
    8. नारी विमर्श युग, पुरुष विमर्श युग, ब्लागर विमर्श युग, ये विमर्श युग, वो विमर्श युग
    9. सराहना युग, उलाहना युग, बहाना युग,ठिकाने लगा युग
    जबरदस्त युग विभाजन. वाह रे फ़ुरसतिया युग.
  11. mahendra mishra
    शुकुल जी
    हई
    मुखौटा युग, चौखटा युग, फ़टाफ़टा युग, सटासटा युग
    चिठेरी: नैन लड़ि जैहैं तो मनवा मां कसक हुइबै करी!
    चिठेरा:प्रेम का बजिहै जब पटाखा तो मनवा मां कसक हुइबै करी
    चिठेरी: चिठेरा
    की कहानी हुई गई है इ कौन सी चिठ्ठो की चर्चा कहात है .
    महासिवरात्रि की हार्दिक शुभकामना
  12. Dr.Arvind Mishra
    गजबै !
  13. Shiv Kumar Mishra
    गजब है चिठेरा-चिठेरी संवाद.
    वैसे ब्लागिंग युग पर एक शास्त्रार्थ करवाना उचित रहेगा. वैसे आपने महाभारत युग की बात नहीं की. मेरी कई पोस्ट का सोर्स वही युग है.
  14. puja
    चिठेरा चिठेरी के बहाने बहुत कुछ कह दिया आपने…हम तो सोच ही रहे हैं…कलयुग में इतने सरे युग देखने पड़ रहे हैं….सही है.
  15. Dr.anurag
    क्या कहे शुक्ल जी….विमर्शो से इतना डरे बैठे है की आपकी पोस्ट पर भी डरते डरते आए की ना जाने आप कौन सा नया विमर्श ले आये ….खैर कुछ से हम परिचित थे,कुछ से अब हो गये है….छोटी सी दुनिया के पहचाने रास्ते है…
  16. सुजाता
    अरे ! आज तो आप अपने पुराने ढब मे आ गए लगते हैं।बढिया लिखा !
  17. Isht Deo Sankrityaayan
    युगों का तो आपने बढिया बटवारा किया ही. ख़ास तौर से उद्धिजीवियों की आधिनिकताई समझ की जो ऐसी-तैसी की, मज़ा आ गया. बधाई.
  18. Gyandutt Pandey
    दो युग हैं प्री चिठेरा-चिठेरी युग और पोस्ट चिठेरा-चिठेरी युग!
  19. nitin
    नंदन जी की रचना बहुत पसंद आई!
  20. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    ये विमर्श क्या होता है…?
  21. anitakumar
    :) मौज लेने का इल्जाम आप पर बहुत पुराना है फ़िर भी बाज नही आये…॥मजा आ गया चिठेरी विमर्श पर …॥अनुराग की तरह हमें भी कुछ पता था कुछ यहां पता चला। नन्दन जी की कविता तो है ही सहेज रखने योग्य्। मजेदार पोस्ट
  22. Shastri JC Philip
    “उनका तो पता नहीं लेकिन जिसको चुनौती देते हैं वो अपने बाल नोचता है!”
    इस पूरे शास्त्रार्थ कांड को सुन कर ऐसा हंसा कि जो कुर्सी पिछले दस साल से मेरा साथ देती आयी है उसके सार चूल ढीले हो गये. इसका हर्जाना देने के लिये तय्यार रहें.
    आपने शास्त्रार्थ के बारे में जो लिखा है वह अपने आप में इतना क्लासिकल है कि आज रचनात्मकता के लिये मैं चिट्ठा-रचनात्मकता-शास्त्री-ऑस्कर आपके नाम घोषित किये देता हूँ!!
    चिठेरा-चिठेरी विमर्श बहुत सुंदर है. हां चिट्ठा-युगों का विश्लेषण तो बहुत सुंदर है.
    लिखते रहें, क्योंकि फिलहाल आप को फुर्सत देने की हम नहीं सोच रहे हैं!!
    सस्नेह — शास्त्री
  23. Shastri JC Philip
    पुनश्च: शिव भईया सही कहते हैं. जल्दी ही आप से एक शास्त्रार्थ करना पडेगा! आप को बाल नोचते देखना बडा आनंददायक होगा!!
  24. दिनेशराय द्विवेदी
    मजे मजे में काम कर गए।
  25. anil kant
    भैया ऐसे लपेटा लापाटी मत करो ….. कब क्या हो …फंस फसा जाओगे
  26. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह
    उम्‍दा
  27. cmpershad
    चिठेरी: जहां लडकी देखी फिसल गए
    ये शौक तुम्हारा अच्छा है…
    चिठेरा: आज कल की नारियां
    देती है ये गालियां
    काम कुछ करती नहीं
    और बांधती है साडियां … लारिलप्पा लारिलप्पा लाई रे खुदा..
  28. swapandarshi
    Bahut Badhiyaa.
    Nandan ji kee kavita ke liye aabhaar
  29. विवेक सिंह
    बाल नुचवाने का षडयंत्र है सस्नेह :)
  30. काजल कुमार
    अच्छा है भई
  31. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] चिठेरा-चिठेरी विमर्श [...]

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