Monday, March 23, 2009

बतरस लालच लाल की …

http://web.archive.org/web/20140419215323/http://hindini.com/fursatiya/archives/597

24 responses to “बतरस लालच लाल की …”

  1. seemagupta
    तुम बोलोगे, कुछ हम बोलेंगे,
    देखा – देखी, फिर सब बोलेंगे ।
    जब सब बोलेंगे ,तो चहकेंगे भी,
    जब सब चहकेंगे,तो महकेंगे भी।
    ” खुबसुरत पंक्तियाँ…..चहकना महकना…..क्या बात है..”
    Regards
  2. manvinder bhimber
    बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय,
    सौंह करे भौंहन हंसे देन कहे नटि जाय!! क्या बात है …बहूत खूब
  3. PN Subramanian
    मनोरंजक. अब बतियाने के सिवा काम ही क्या बचा है. आभार.
  4. Dr.Arvind Mishra
    ये बेवक्त रूमानियत -सब खैरियत तो है ?
  5. ताऊ रामपुरिया
    फ़रसतिया जी हमेशा की तरह गजब लिखा है पर मिश्राजी क्या पूछ रहे हैं?:) सब खैरियत तो है?
    रामराम.
  6. Lovely
    आपकी बात पर चिंतन -मनन का के फोन घुमाया उधर से आवाज आई “आपने जिस कस्टमर को कॉल किया है उनका मोबाईल अभी बंद है कृपया दोबारा कोशिस करें ” … इसका भी निदान बताइए फुर्सत से कभी.
    :-)
  7. dhiru singh
    गद्य और पद्य का संगम इतनी फुर्सत से तो नहीं हो सकता .
    इस दौड़-धूप में, थोड़ा सुस्ता लें,
    मौका अच्छा है ,आओ गपिया लें।
  8. kanchan
    baato baato me kya kya baate nikal aai aur baat kaha se kaha pahunch gai …waaaah
  9. Abhishek Ojha
    बतिया के आते हैं तब टिपियाया जायेगा :-)
  10. अशोक पाण्‍डेय
    बतरस..अंखरस..अहा, सरस..सरस :)
  11. संजय बेंगाणी
    एक फोन चिपकाओ कान पर और बतियाना शुरू हो जाओ….जमाना बदल गया है…..
  12. बवाल
    हमेशा की तरह ऊँची बहर की बात कही आपने फ़ुरसतिया जी । बिल्कुल दुरुस्तोवाजिब ।
  13. mamta
    पहले टिप्पणी दें दें तब न बतियाएंगे ।
  14. Shiv Kumar Mishra
    बहुत शानदार पोस्ट है.
    कुछ उस तरह से कि; “जीवन अपने आप में अमूल्य होता है..” शायद ऐसा ही शीर्षक था.
  15. हिमांशु
    बतकही पर साहित्यिक बतकही कर डाली आपने । बहुत मनोरंजक ।
  16. Anurag Sharma
    Bahut sarasata se aapne apni bat kahi. Ati Uttam.
  17. राजीव
    फुरसतिया जी, यह पोस्ट तो तुरंत सहेज लीजिये। कॉपीराईट करा लीजिये। इतना बतियाने के लिये उत्साहवर्धन किया है कि इस पोस्ट से तो कई नामचीन मोबाईल सेवा कम्पनियों को प्रचार का मसौदा मिल जायेगा। बस किसी कॉपीराईटर की कुछ सहायता ले कर 2-3 विज्ञापन तो निकल ही आयेंगे
    वैसे डॉ अरविन्द मिश्रा की टिप्पणी भी विचारणीय है ;)
  18. अतुल शर्मा
    थोड़ा सा नॉस्टेल्जिया गए हम :-)
  19. amit
    कुछ दिन पहले अखबार में एक समाचार निकला था। उसके अनुसार ऐसी विधि ईजाद हुई है जिसके द्वारा भूतकाल में हुई गुफ़्तगू को सुना जा सकता है।
    लो, इतने दिन बाद अख़बार में छपा। मैंने तो 5-6 वर्ष पहले नागराज वगैरह की कॉमिक्स में पढ़ लिया था कि किसी वैज्ञानिक ने हवा में मौजूद ध्वनियों को रीकंस्ट्रक्ट करके किसी भी स्थान पर भूतकाल में हुई वार्ता आदि को सुनने का औज़ार बना लिया था। उसका मानना था कि उत्पन्न हुई कोई भी ध्वनि कभी समाप्त नहीं होती और वातावरण में हमेशा रहती है, बस उसकी शक्ति समय के साथ और उस स्थान पर उत्पन्न अन्य ध्वनियों के कारण क्षीण होती रहती है। कॉमिक्स के उस वैज्ञानिक ने अपने यंत्र से कुरुक्षेत्र में जाकर महाभारत युद्ध के दौरान बोले(बुदबुदाए) गए मंत्र आदि रीकंस्ट्रक्ट करके रिकॉर्ड कर लिए थे ताकि दिव्यास्त्रों का आह्वान कर सके!! ;) :D मुग़ल काल बादशाहों और उनकी बेग़मों की गुफ़्तगू सुनने का क्या लाभ!! ;)
  20. ज्ञान दत्त पाण्डेय
    वाह, बतरस। हम तो आपके फोन का इन्तजार करते हैं!
  21. विवेक सिंह
    लालच बुरी बला है चाहे बतरस का ही हो :)
  22. mahendra mishra
  23. rajni bhargava
    आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी। कविता भी।
  24. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] बतरस लालच लाल की … [...]

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