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सब कुछ आराम से भाई
By फ़ुरसतिया on October 20, 2012
कभी-कभी
देश की चिंता करने में इत्ता टाइम निकल जाता है कि कुच्छ लिख नहीं पाते।
कविता तक नहीं। वर्ना कविता लिखने में क्या लगता है। इधर-उधर की शब्द
सम्पदा को बेतरतीब अनुशासित करके पोस्ट कर दो। अच्छे कवि लोग बुरा न मानें।
हम कोई अच्छी कविता की बुराई थोड़ी कह रहे हैं। न यह कह रहे हैं कि हम कोई
अच्छे कवि हैं। अव्वल तो हम कवि हैं हीं नहीं। लेकिन कई कवि लोग जिसको
कविता कहते हैं उस तरह शब्दों का तरतीब से जमाव हम करने की कोशिश कर लेते
हैं।
खैर छोड़िये ऊ सब। कविता के नाम न आपको बोर करेंगे। न डरायेंगे। होता क्या है कि हमारा अंदाज-ए-लेखन कुछ ऐसा है कि जब खूब सारा समय होता है तब कुछ टाइप करने का नहीं होता। जैसे ही समय हाथ से सकरता सा लगता है वैसे ही लगता है- पकड़ो जाने न पाये। उसके बाद लगता है कि अब बस लिख ही मारा जाये। इसीलिये हमारी ज्यादातर पोस्टें दफ़्तर जाते हुये प्रस्फ़ुटित होती हैं। खासकर चिट्ठाचर्चा वाली।
इस अंदाज में शायद वारदात करके घटनास्थल से फ़रार होने का भाव भी छुपा हो। पोस्ट लिखकर दफ़्तर फ़ूट लो। कानपुर से जबलपुर टहल लो। जबलपुर से कानपुर के रवाना हो लो। ऐसा भी लगता है कि सबसे बेहतरीन/घटिया काम के लिये अगला इंतजार करता है कि कब समय की कमी हो और कब लिखना शुरु हो।
दीगर काम-काज में भी अपन ने देखा है कि जरूरी से जरूरी काम भी एकदम आराम से निपटाये गये हैं। कोई कहता है कि यह लापरवाही है। कोई कहता है अतिआत्मविश्वास के कारण है। हमें लगता कि क्या जाने क्या है लेकिन यह है।
मेरे बच्चों ने भी यह सद्गुण मुझसे ग्रहण किया है लगता है। कई बार ऐन स्कूल की बस के हार्न के समय कई काम कराये जाते हैं। डायरी में दस्तखत। फ़ार्म में विवरण। ये काम। वो काम।
बात शुरू हुई थी कविता से। कविता का थीम आपको बता दें आप लिखियेगा। फ़िर हम भी। क्या पता आपकी ही पढ़कर खुश हो जायें। हम मटिया दें।
थीम दो हैं। एक में यह बताया गया कि दुनिया में अब भले आदमियों की ज्यादा पूछ है। पहले ईमानदारों और भले आदमियों की जान पर ज्यादा आफ़त रहती थी। इसीलिये सांता क्लॉज और दूसरे भला करने वाले चोरी-छिपे छुपकर उपहार देते थे या सोने की छड़ें गिराते थे। आज भले लोगों की पूछ है इसीलिये लोग भलाई करने में बहादुर हो गये हैं। डरते नहीं भला करने में। देश की सेवा के काम में लोग जान लगा देते हैं। देश सेवा का काम किसी से कोई छुड़ाकर देख ले भला उनसे। देशसेवकों और जनता की सेवा करने वालों आज बहुत ताकतवर हो गये हैं। पहले दुनिया का भला करने वालों को बिना कुछ कहे निपटा देते थे। आज ऐसा नहीं है। आज ऐसा कुछ करने से पहले कानून बताना पड़ता है। बहुत कुछ होता है। इससे पता चलता है कि दुनिया पहले से बेहतर हो गयी।
दूसरी थीम के बारे में क्या बतायें। ड्राइवर गाड़ी बाहर लगाकर हार्न बजा रहा है। निकलना है कानपुर के लिये। बाकी बातें वहीं से। तब तक आप कविता बनाइये।
खैर छोड़िये ऊ सब। कविता के नाम न आपको बोर करेंगे। न डरायेंगे। होता क्या है कि हमारा अंदाज-ए-लेखन कुछ ऐसा है कि जब खूब सारा समय होता है तब कुछ टाइप करने का नहीं होता। जैसे ही समय हाथ से सकरता सा लगता है वैसे ही लगता है- पकड़ो जाने न पाये। उसके बाद लगता है कि अब बस लिख ही मारा जाये। इसीलिये हमारी ज्यादातर पोस्टें दफ़्तर जाते हुये प्रस्फ़ुटित होती हैं। खासकर चिट्ठाचर्चा वाली।
इस अंदाज में शायद वारदात करके घटनास्थल से फ़रार होने का भाव भी छुपा हो। पोस्ट लिखकर दफ़्तर फ़ूट लो। कानपुर से जबलपुर टहल लो। जबलपुर से कानपुर के रवाना हो लो। ऐसा भी लगता है कि सबसे बेहतरीन/घटिया काम के लिये अगला इंतजार करता है कि कब समय की कमी हो और कब लिखना शुरु हो।
दीगर काम-काज में भी अपन ने देखा है कि जरूरी से जरूरी काम भी एकदम आराम से निपटाये गये हैं। कोई कहता है कि यह लापरवाही है। कोई कहता है अतिआत्मविश्वास के कारण है। हमें लगता कि क्या जाने क्या है लेकिन यह है।
मेरे बच्चों ने भी यह सद्गुण मुझसे ग्रहण किया है लगता है। कई बार ऐन स्कूल की बस के हार्न के समय कई काम कराये जाते हैं। डायरी में दस्तखत। फ़ार्म में विवरण। ये काम। वो काम।
बात शुरू हुई थी कविता से। कविता का थीम आपको बता दें आप लिखियेगा। फ़िर हम भी। क्या पता आपकी ही पढ़कर खुश हो जायें। हम मटिया दें।
थीम दो हैं। एक में यह बताया गया कि दुनिया में अब भले आदमियों की ज्यादा पूछ है। पहले ईमानदारों और भले आदमियों की जान पर ज्यादा आफ़त रहती थी। इसीलिये सांता क्लॉज और दूसरे भला करने वाले चोरी-छिपे छुपकर उपहार देते थे या सोने की छड़ें गिराते थे। आज भले लोगों की पूछ है इसीलिये लोग भलाई करने में बहादुर हो गये हैं। डरते नहीं भला करने में। देश की सेवा के काम में लोग जान लगा देते हैं। देश सेवा का काम किसी से कोई छुड़ाकर देख ले भला उनसे। देशसेवकों और जनता की सेवा करने वालों आज बहुत ताकतवर हो गये हैं। पहले दुनिया का भला करने वालों को बिना कुछ कहे निपटा देते थे। आज ऐसा नहीं है। आज ऐसा कुछ करने से पहले कानून बताना पड़ता है। बहुत कुछ होता है। इससे पता चलता है कि दुनिया पहले से बेहतर हो गयी।
दूसरी थीम के बारे में क्या बतायें। ड्राइवर गाड़ी बाहर लगाकर हार्न बजा रहा है। निकलना है कानपुर के लिये। बाकी बातें वहीं से। तब तक आप कविता बनाइये।
Posted in बस यूं ही | 18 Responses
हमारे एक मित्र के पिता ने एक बार यही बात कही थी कि one is most creative under stress, not while relaxed मुझे लगता है कि उनकी बात में वाकई दम है
दुनिया में अब
भले आदमियों की ज्यादा पूछ है।
पहले ईमानदारों
और भले आदमियों की जान
पर ज्यादा आफ़त रहती थी।
इसीलिये सांता क्लॉज
और दूसरे भला करने वाले
चोरी-छिपे छुपकर उपहार देते थे
या सोने की छड़ें गिराते थे।
आज भले लोगों की पूछ है
इसीलिये लोग भलाई करने में
बहादुर हो गये हैं
डरते नहीं भला करने में।
देश की सेवा के काम में लोग
जान लगा देते हैं।
देश सेवा का काम किसी से
कोई छुड़ाकर देख ले भला उनसे।
देशसेवकों और जनता की सेवा करने वाले
आज बहुत ताकतवर हो गये हैं।
पहले दुनिया का भला करने वालों को
बिना कुछ कहे निपटा देते थे।
आज ऐसा नहीं है।
आज ऐसा कुछ करने से पहले
कानून बताना पड़ता है
बहुत कुछ होता है।
इससे पता चलता है कि
दुनिया पहले से बेहतर हो गयी।
[कवि-कम-कीबोर्डकार - सतीश; थीमकार-कम-प्रोड्यूसर - अनूप शुक्ल]
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१. किसी लेखक की लिखी हुई चीज को जब बराबर-बराबर खानों में लिखकर छाप दिया जाता है तो वह कविता बन जाती है।
२. कविता लिखने के लिये सबसे जरूरी तत्व आपका आत्मविश्वास है। आपको हिचकना नहीं चाहिये।
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आप का लेख बहुत ही सुन्दर और हिम्मत देने वाला है लगता है की आशा नहीं छोडनी चाहिए .
पहले हम भी समाज के लिए कुछ करना चाहते थे, खासकर गाँव की औरतों की शिक्षा के लिए, लेकिन अब डर लगने लगा है कि लोग हमसे ही प्रश्न न कर दें कि ‘बहिनजी, आप इस क्षेत्र में काम कर रही हैं, उस क्षेत्र में क्यों नहीं?’ या ‘आप केवल शिक्षा देने का काम क्यों करती हैं, पहले पेट भरिये सबका?’ या ‘आप गाँवों की औरतों के लिए काम करती हैं, तो क्या शहर की सारी औरतें समस्या से रहित हैं’ और इसी तरह के और प्रश्न
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समाज सेवा का काम शुरु किया जाये। लोग तो कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे।
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टाइम जितना कम हो काम करने का उतना ही मन करता है, और फिर टाइम कम है ये सोचके काम को ताल देने का सुख, हाय हाय , गज़ब
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प्रणाम.