Saturday, October 20, 2012

सब कुछ आराम से भाई

http://web.archive.org/web/20140420082336/http://hindini.com/fursatiya/archives/3483

सब कुछ आराम से भाई

कभी-कभी देश की चिंता करने में इत्ता टाइम निकल जाता है कि कुच्छ लिख नहीं पाते। कविता तक नहीं। वर्ना कविता लिखने में क्या लगता है। इधर-उधर की शब्द सम्पदा को बेतरतीब अनुशासित करके पोस्ट कर दो। अच्छे कवि लोग बुरा न मानें। हम कोई अच्छी कविता की बुराई थोड़ी कह रहे हैं। न यह कह रहे हैं कि हम कोई अच्छे कवि हैं। अव्वल तो हम कवि हैं हीं नहीं। लेकिन कई कवि लोग जिसको कविता कहते हैं उस तरह शब्दों का तरतीब से जमाव हम करने की कोशिश कर लेते हैं।

खैर छोड़िये ऊ सब। कविता के नाम न आपको बोर करेंगे। न डरायेंगे। होता क्या है कि हमारा अंदाज-ए-लेखन कुछ ऐसा है कि जब खूब सारा समय होता है तब कुछ टाइप करने का नहीं होता। जैसे ही समय हाथ से सकरता सा लगता है वैसे ही लगता है- पकड़ो जाने न पाये। उसके बाद लगता है कि अब बस लिख ही मारा जाये। इसीलिये हमारी ज्यादातर पोस्टें दफ़्तर जाते हुये प्रस्फ़ुटित होती हैं। खासकर चिट्ठाचर्चा वाली।

इस अंदाज में शायद वारदात करके घटनास्थल से फ़रार होने का भाव भी छुपा हो। पोस्ट लिखकर दफ़्तर फ़ूट लो। कानपुर से जबलपुर टहल लो। जबलपुर से कानपुर के रवाना हो लो। ऐसा भी लगता है कि सबसे बेहतरीन/घटिया काम के लिये अगला इंतजार करता है कि कब समय की कमी हो और कब लिखना शुरु हो।

दीगर काम-काज में भी अपन ने देखा है कि जरूरी से जरूरी काम भी एकदम आराम से निपटाये गये हैं। कोई कहता है कि यह लापरवाही है। कोई कहता है अतिआत्मविश्वास के कारण है। हमें लगता कि क्या जाने क्या है लेकिन यह है। :)

मेरे बच्चों ने भी यह सद्गुण मुझसे ग्रहण किया है लगता है। कई बार ऐन स्कूल की बस के हार्न के समय कई काम कराये जाते हैं। डायरी में दस्तखत। फ़ार्म में विवरण। ये काम। वो काम।

बात शुरू हुई थी कविता से। कविता का थीम आपको बता दें आप लिखियेगा। फ़िर हम भी। क्या पता आपकी ही पढ़कर खुश हो जायें। हम मटिया दें।

थीम दो हैं। एक में यह बताया गया कि दुनिया में अब भले आदमियों की ज्यादा पूछ है। पहले ईमानदारों और भले आदमियों की जान पर ज्यादा आफ़त रहती थी। इसीलिये सांता क्लॉज और दूसरे भला करने वाले चोरी-छिपे छुपकर उपहार देते थे या सोने की छड़ें गिराते थे। आज भले लोगों की पूछ है इसीलिये लोग भलाई करने में बहादुर हो गये हैं। डरते नहीं भला करने में। देश की सेवा के काम में लोग जान लगा देते हैं। देश सेवा का काम किसी से कोई छुड़ाकर देख ले भला उनसे। देशसेवकों और जनता की सेवा करने वालों आज बहुत ताकतवर हो गये हैं। पहले दुनिया का भला करने वालों को बिना कुछ कहे निपटा देते थे। आज ऐसा नहीं है। आज ऐसा कुछ करने से पहले कानून बताना पड़ता है। बहुत कुछ होता है। इससे पता चलता है कि दुनिया पहले से बेहतर हो गयी।

दूसरी थीम के बारे में क्या बतायें। ड्राइवर गाड़ी बाहर लगाकर हार्न बजा रहा है। निकलना है कानपुर के लिये। बाकी बातें वहीं से। तब तक आप कविता बनाइये।

18 responses to “सब कुछ आराम से भाई”

  1. Kajal Kumar
    ….कि कब समय की कमी हो और कब लिखना शुरु हो।
    हमारे एक मि‍त्र के पि‍ता ने एक बार यही बात कही थी कि‍ one is most creative under stress, not while relaxed मुझे लगता है कि‍ उनकी बात में वाकई दम है
  2. सतीश चंद्र सत्यार्थी
    ये लीजिए आपकी कविता… आप भी क्या याद करेंगे कि कोई धाकड़ कवि मिला था.. ;)
    दुनिया में अब
    भले आदमियों की ज्यादा पूछ है।
    पहले ईमानदारों
    और भले आदमियों की जान
    पर ज्यादा आफ़त रहती थी।
    इसीलिये सांता क्लॉज
    और दूसरे भला करने वाले
    चोरी-छिपे छुपकर उपहार देते थे
    या सोने की छड़ें गिराते थे।
    आज भले लोगों की पूछ है
    इसीलिये लोग भलाई करने में
    बहादुर हो गये हैं
    डरते नहीं भला करने में।
    देश की सेवा के काम में लोग
    जान लगा देते हैं।
    देश सेवा का काम किसी से
    कोई छुड़ाकर देख ले भला उनसे।
    देशसेवकों और जनता की सेवा करने वाले
    आज बहुत ताकतवर हो गये हैं।
    पहले दुनिया का भला करने वालों को
    बिना कुछ कहे निपटा देते थे।
    आज ऐसा नहीं है।
    आज ऐसा कुछ करने से पहले
    कानून बताना पड़ता है
    बहुत कुछ होता है।
    इससे पता चलता है कि
    दुनिया पहले से बेहतर हो गयी।
    [कवि-कम-कीबोर्डकार - सतीश; थीमकार-कम-प्रोड्यूसर - अनूप शुक्ल]
    सतीश चंद्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..एडसेंस से पहली इनकम
    1. aradhana
      हा हा हा, क्या कविता लिखी है सतीश आपने मज़ा आ गया :)
      aradhana की हालिया प्रविष्टी..Improved Publicize
      1. सतीश चंद्र सत्यार्थी
        ;)
  3. Indian Citizen
    भले आदमियों की पूछ है या फिर पूँछ! शायद पूँछ है इसलिये दबाकर रखी जाती है और इसीलिए पता नहीं चलता कि कौन भला है और कौन भाला.
    Indian Citizen की हालिया प्रविष्टी..घूस का जस्टिफिकेशन
  4. Rakesh kumar srivastava
    महोदय ,
    आप का लेख बहुत ही सुन्दर और हिम्मत देने वाला है लगता है की आशा नहीं छोडनी चाहिए .
  5. aradhana
    जब-जब आप कवियों की तारीफ़ करते हैं. हमें बहुत दुःख होता है :(
    पहले हम भी समाज के लिए कुछ करना चाहते थे, खासकर गाँव की औरतों की शिक्षा के लिए, लेकिन अब डर लगने लगा है कि लोग हमसे ही प्रश्न न कर दें कि ‘बहिनजी, आप इस क्षेत्र में काम कर रही हैं, उस क्षेत्र में क्यों नहीं?’ या ‘आप केवल शिक्षा देने का काम क्यों करती हैं, पहले पेट भरिये सबका?’ या ‘आप गाँवों की औरतों के लिए काम करती हैं, तो क्या शहर की सारी औरतें समस्या से रहित हैं’ और इसी तरह के और प्रश्न :(
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..Improved Publicize
  6. वीरेन्द्र कुमार भटनागर
    वाह सत्यार्थी जी वाह, सचमुच आनन्द आ गया । शुक्ल जी की शब्द सम्पदा को जिस तरतीब से आपने अनुशासित करके कविता में ढाला है ऐसा लगता है जैसे उनकी पिचकारी से उन्हीं को रंग दिया। अब शुक्ल जी को भी यह भ्रम नहीं रहना चाहिये कि वह अच्छे कवि नहीं हैं।
  7. ePandit
    बच्चे बेहद स्मार्ट हैं आपके। हम भी कई बार सुबह-सुबह उठकर स्कूल जाने की जल्दी में पोस्ट ठेलते हैं। प्रैशर जल्दी-जल्दी लिखवा देता है।
    ePandit की हालिया प्रविष्टी..स्वाइप टैब ऑल-इन-वन — ७ इंची ऍण्ड्रॉइड ४.० ड्यूल सिम ३जी टैबलेट
  8. प्रवीण पाण्डेय
    पिछले कई दिनों से टीवी ने सोचने के सारे द्वार बन्द कर दिये हैं, अब दो दिन से टीवी बन्द किया तो कविता के द्वार खुल रहे हैं।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..लैपटॉप या टैबलेट – अनुभव पक्ष
  9. देवांशु निगम
    पर आपही हमको बोले रहे कि कविता “रची” जाती है :) अब बनाये कैसे ?? :) :)
    टाइम जितना कम हो काम करने का उतना ही मन करता है, और फिर टाइम कम है ये सोचके काम को ताल देने का सुख, हाय हाय , गज़ब :) :) :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..हैप्पी बड्डे टू मी !!!!
  10. sundar-nagri wale
    बहुत ही अच्छी कविता……….
    प्रणाम.
  11. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] सब कुछ आराम से भाई [...]

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