Wednesday, November 14, 2012

संदेशे आते हैं, मोबाइल थरथराते हैं

http://web.archive.org/web/20140420081731/http://hindini.com/fursatiya/archives/3591

संदेशे आते हैं, मोबाइल थरथराते हैं

आज सुबह उठते ही निगाह मेज पर पड़ी। वहां मेरा मोबाइल थरथरा रहा था। नागिन डांस सा करते हुये वह दांये-बायें होते हुये नीचे गिरने ही वाला था कि हम उसकी तरफ़ लपके। हमें लपकते देख वह सहमकर चुप सा हो गया। हमें लगा शरीफ़ मोबाइल है। बड़ों का लिहाज करता है। लेकिन जरा देर में ही वह फ़िर थरथराने लगा। ऐसे जैसे कि उसके पेट में मरोड़ उठ रही हों और वह मारे दर्द के तड़फ़ रहा हो। हमने उसको हाथ में उठाकर उसका कवर उतारा तो दर्द का कारण पता चला। मोबाइल के अंदर नया आया हुआ कोई मेसेज फ़ड़फ़ड़ा रहा था।’बाइब्रेशन मोड ’में होने के चलते मोबाइल ’मारे मेसेज’के लहरा रहा था इधर-उधर।
संदेश में एक मित्र ने दीपावली की मंगलकामनायें भेजी थीं। शुभकामनायें भी किसी को तड़पा सकती हैं यह आज फ़िर पता चला। लेकिन हमें मोबाइल की दशा देखकर यही लगा- संदेशे आते हैं, मोबाइल थरथराते हैं!
आज दिन भर दीपावली के संदेशे आते रहे। कुल जमा पांच मोबाइल और दो लैंडलाइन फोन वाले घर में सुबह तो पूरी शुभकामना संदेशों से जूझते बीती। कभी इस फोन पर, कभी उस पर। कभी दूसरे पर कभी तीसरे पर। कभी पहले पर और चौथे पर एक साथ फोन आये। जब तक तय करें कि पहले कौन सा उठायें तब तक सातवां घनघनाने लगता। एक फोन पर बतियाना शुरु करते तो कुछ देर में दूसरा और कभी तो तीसरा भी बजने लगता। कभी जिसपर बतिया रहे हैं उसी पर कोई और घंटी बजने लगती कि गोया नवक्की वाली काल पुरनिया से कह रही हो -अब बहुत हुआ खतम करो। हमार नंबर भी लगे जरा।
किसी फ़ोन पर देर तक बात करने पर नयी आती हुई काल ,जो कालांतर में मिस्ड काल के नाम से जानी जाती है, का आना ऐसे लगता है जैसे ट्रेन के शौचालय में कोई दरवाजा भड़भड़ा रहा हो- निकल भाई। हमने भी किराया दिया है।
कई फोन जो कभी सुविधा लगते हैं ऐसे मौके पर बवाल बन गये। सारे फोन ऐसी तोपों की तरह हो गये जिनके मुंह हमारी तरह ही करके गोले बरसाने लगा हो कोई। सारे फोनों ने कुल मिलाकर ऐसा समां बांध दिया कि हमें लगा कि हम जैसे किसी प्राइम टाइम वाली बहस में शामिल हैं। कोई भी बात पूरी नहीं हो पाती। हर कोई अपनी ही हांके जा रहा है – अंगूठे के बगलवाली उंगली उठा,उठाकर।
बात सिर्फ़ फोन तक ही नहीं रही। शुभकामना संदेश भी दनादन आते रहे। ज्यादातर में मेसेज सेंटर वाली मधुर अंग्रेजी। मे दिस फ़ेस्टीवल ऑफ़ लाइट….। कुल मिलाकर इत्ती हैप्पीनेस, प्रासपेरिटी, हेल्थ एंड वेल्थ जमा हो गयी सब मोबाइलों में कि मोबाइल का संदेश बक्सा उफ़नाने लगा। मन किया सारी हैप्पीनेस और प्रासपेरिटी बैंक में जमा करके धर दें। एफ़.डी. करा दें। लेकिन पता चला आज बैंक बंद था। बैंक वाले भी चालू होते हैं। त्यौहार वाले दिन बंद रहते हैं। अब क्या किया जाये। सारी शुभकामनायें मोबाइलों में पड़े-पड़े ही एक्सपायर हो रही हैं।
कुछ संदेशे तो मित्रों नाम से आये। उनके तो जबाब दे दिये गये। लेकिन तमाम संदेशे ऐसे लोगों के भी आये थे जिनके नंबर अपने के पास सेव नहीं थे। उनमें भी कुछ शरीफ़ शुभचिंतक थे जिन्होंने शुभकामनाओं की जिम्मेदारी ली थी और संदेशे के नीचे अपना नाम लिखा था। ऐसे लोगों के नाम/नंबर फोन में सेव करके उनको प्रति-शुभकामनायें दी गयीं। लेकिन तमाम संदेश ऐसे भी थे जिनके संदेशों में नाम भी नहीं लिखा था। ये गुप्त शुभाकांक्षी थे। शुभकामना दे मोबाइल में डाल घराने के शुभाकांक्षी। इन अज्ञान शुभकामनाओं का जबाब भी दिया गया। लेकिन यह खुलासा नहीं हो पाया कि किस भले आदमी ने हमें शुभकामनायें दी हैं और हमने उसके बदले में जो लिखा वह कहां पहुंचा!
कुछ फोन (दूसरे फोन पर व्यस्त होने के चलते) कालांतर में मिस्ड काल में परिवर्तित हुये। फ़ोन वार्ता से फ़ारिग होकर जब उधर फ़ोन मिलाया तो पता चला कि अब वो फ़ोन व्यस्त हो लिया है। एकाध फोन विदेश से भी आया। मिस्ड, बिजी, नेटवर्क नको, संचार जाम , नेटवर्क टप्प और ’कृपया नंबर जांच लें’ का झमेला कुछ ऐसा हुआ कि दिन भर फोनियाते बीता। जिनसे बात-चीत हो गयी, शुभकामनाओं का लेन-देन हो लिया उनके साथ तो ठीक रहा। बाकी जिनसे मिस्ड/बिजी की जुगलबंदी के चलते आदान-प्रदान नहीं हो पाया तो फोन कालों ने ये शेर जरूर पढ़ा होगा:
तुम्हें गैरों से कब फ़ुरसत, हम अपने गम से कब खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, न तुम खाली न हम खाली।
कभी-कभी तो यह भी लगता है कि मोबाइल/फोन अगर न होते तो त्यौहार कित्ते सूने बीतते। लगता तो यह भी है कि अगर ये त्यौहार न होते तो संदेशा केंद्रों ( मेसेज सेंटर्स) की मांग सूनी हो जाती। लगता है देश के सारे आशु कवि संदेशा केंद्रों में जाकर बैठे हैं और वहां से संदेशों के कबूतर उड़ाते रहते हैं। ये संदेश एक मोबाइल से दूसरे में टहलते हुये यात्रा करते रहते हैं। इस घालमेल में संदेश पढ़कर संदेश भेजने वाले के बारे में पता चलना मुश्किल हो जाता है। कोई ऊंची समझ वाला भले ही कोई बांगड़ू टाइप संदेश भेजने से परहेज करे लेकिन इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है किसी ऐं-वैं टाइप मोबाइलधारी की उंगलियों की हरकतें भी लालित्यपूर्ण संदेश भेजने का काम अंजाम दे दें।
ये तो रही अपन की संदेशवार्ता। आप अपनी कहियेगा। मन करे तो।
सूचना: चित्र फ़्लिकर से साभार।

14 responses to “संदेशे आते हैं, मोबाइल थरथराते हैं”

  1. वीरेन्द्र कुमार भटनागर
    यहाँ न्यू जर्सी में पटाखे छुड़ाने की मनाही है लेकिन आपकी पोस्ट पढ़कर अनार और फुलझड़ी की कमी पूरी हो गई। दीवाली के त्योहार का आनन्द दुगना हो गया। लेकिन यह भी सच है कि जैसे जैसे टेक्नोलोजी विकसित हो रही है हम स्वंय भी सारे कार्य यंञवत करने लगे हैं। इन सुन्दर-२ शब्दों और चिञों में भेजे गये संदेशों में सब कुछ है, भावना को छोड़कर।
    1. Deepak Shukla
      बड़ी सटीक बात कही आपने.
      दीपक
  2. sanjay jha
    “तुम्हें गैरों से कब फ़ुरसत, हम अपने गम से कब खाली,
    चलो बस हो चुका मिलना, न तुम खाली न हम खाली।……………….
    सारा दर्सन इसमें ही समाहित है……………
    प्रणाम.
  3. प्रवीण पाण्डेय
    कूद फाँद वाले मोबाइल काहे लेते हैं, सीधा मोबाइल लीजिये, बस घूँ घूँ करने वाले..
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बोझ बड़ा है – आधारभूत निर्णय
  4. देवांशु निगम
    हमारी तरफ से भी बधाई स्वीकार करें :) :)
    आपका मोबाइल ऐसे ही घनघनाता रहे !!!!
  5. ada
    बताईये ऐसन गोरकी-पतरकी (जैसन फोटू लगाए हैं) लोग आपको हैपी दिवाली कर रहा है और आप सिकाईत कर रहे हैं … :):)
    हाँ नहीं तो !
    ada की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगवुड के सितारे …’अदा’ की पसंद की पाँच पोस्ट्स ….(12 NOV 2012)
  6. Anonymous
    सातवां !!!
    काहे सभी नंबर बांट देते हैं, कुछ तो गुप्‍त/इनकमिंग भर के लि‍ए भी रखने थे न…
  7. Kajal Kumar
    सातवां !!!
    काहे सभी नंबर बांट देते हैं, कुछ तो गुप्‍त/इनकमिंग भर के लि‍ए भी रखने थे न…
  8. Alpana
    वाह!
    मोबाइल का थरथराना ..:) आप की कल्पना शक्ति का भी जवाब नहीं !
    आप की सन्देश वार्ता रोचक रही मेरा मोबाइल तो आलसी है,सोया रहता है .. न उसे कोई डिस्टर्ब करता है न ही वो किसी को..कुम्भकर्ण का जुड़वां भाई.
    Alpana की हालिया प्रविष्टी..बुरा न मानो …दीवाली है !
  9. arvind mishra
    “लेकिन तमाम संदेश ऐसे भी थे जिनके संदेशों में नाम भी नहीं लिखा था। ये गुप्त शुभाकांक्षी थे। शुभकामना दे मोबाइल में डाल घराने के शुभाकांक्षी। ”
    हर बार ये लोग गच्चा दे जाते हैं -गुजारिश है भैया बाबू अपना नाम जरुर लिख दिया करें -
    ये बड़े आत्मविश्वासी किस्म के लोग हैं सोचते हैं हमारा नंबर नाम से पक्का सेव है शुकुल-मिसिर महराज के ईहाँ !
    मगर हमारा आत्मविश्वास डिगा जाते हैं ये महानुभाव !
    बहरहाल उन तमाम शुभ संदेशों में एक आपका -हमार भी था :-)
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..भाग दरिद्दर!
  10. देवेन्द्र पाण्डेय
    हमने कोई संदेश नहीं भेजा था। जानते थे आप व्यस्त होंगे। लीजिए अब दिये दे रहे हैं…दीपावली में अगर आते-आते रह गई हों तो लक्ष्मी जी अब आप के घर पधारें। सरस्वती जी तो आप के पास पहले से हइये हैं।
  11. VD Ojha
    सरजी प्रणाम पोस्ट पढ़कर पता चला की आपने प्रति शुभकामनाए भेजी थी | हमारी तो हमको मिल ही नहीं पाई |
  12. shefali
    .तभी तो हम फोनियाये नहीं ….देर से ही सही, हमारी बधाई भी स्वीकार करें
  13. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] संदेशे आते हैं, मोबाइल थरथराते हैं [...]

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