Wednesday, April 24, 2013

हमें पेंशन लेनी है

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हमें पेंशन लेनी है

मेज पर खरीदारी की फ़ाइल सामने देखते ही साहब बमक गये- हटाओ इसे सामने से, हमें पेंशन लेनी है।
फ़ाइल अफ़सर ने साहब को समझाने की कोशिश की- बहुत जरूरी है। सालों से अटका है केस। और देरी करेंगे तो काम ठप्प हो जायेगा।
सालों से लटका है तो दो महीने और लटका रहने दो। हमारे रिटायर होने के बाद ’पुट अप’ करना। हमें पेंशन ले लेने दो फ़िर केस करना। काम लटकने दो। पेंशन मत लटकाओ।
साहब के काम करने का हमेशा से यही तरीका रहा। जब छोटे अफ़सर थे तब यह कहकर दस्तखत से बचते रहे कि हमें साहब बनना है। जब साहब बन गये तो यह कहकर कि – हमें पेंशन लेनी है।
वे ईमानदार थे। ताजिंदगी कामचोरी और निर्णयहीनता के पराक्रम से अपनी ईमानदारी के शील की रक्षा करते रहे। खरीदारी की फ़ाइल पर दस्तखत अव्वल तो करते नहीं। कहते अभी तक नहीं कराया तो अब क्यों करा रहे हो? हमें चले जाने दो फ़िर अगले से कराना। कभी मजबूरी में करते भी तो ऐसे करते जैसे अपनी नौकरी/प्रमोशन/पेंशन के खिलाफ़ वारंट जारी कर रहे हैं।
जब छोटे साहब थे तो मशीनें नहीं खरीदीं। पता नहीं कहां गड़बड़ हो जाये। आगे बड़े साहब बनने की सड़क बंद हो जाये। बड़े साहब बने तो पेंशन की चिंता में दुबले होते रहे।
ज्यादातर ईमानदारों के यही किस्से हैं। लगता है कि फ़ाइलें भले ही गंगोत्री से शुरु हों लेकिन बीच के नाले-सीवर का प्रदूषण उनमें अवश्य मिला होगा। प्रदूषित जल से आचमन कैसे किया जाये। देखते ही ठिठक जाते हैं।
नौकरी में प्रमोशन वरदान की तरह और पेंशन मोक्ष होता है। हरेक नौकर की तमन्ना होती है कि वह नियमित वरदान पाते हुये मोक्ष को प्राप्त हो। इस रास्ते में किसी बाधा की कल्पना मात्र से उसका रोम-रोम सिहर उठता है।
खरीदारी से जुड़े नियम/कानून ऐसे हैं कि उनका जैसा मन होता है वैसी शकल धारण कर लेते हैं। नियम किसी सिनेमा सुन्दरी की तरह नित नूतन रूप धारण करते रहते हैं। अक्सर पालन करने की जगह पर उसका उल्लंघन होने के बाद पहुंचते हैं। पहुंच भी जाते हैं तो पता नहीं चलता कि उनका पालन कैसे होना है।
अक्सर जरूरी नियम सत्ता पक्ष और विपक्ष की तरह एक दूसरे के परम विपरीत लगते हैं। साथ में एक और नियम रहता है कि दोनों का पालन करना है। पालन करने वाले की स्थिति “शिवा को सराहूं कि छत्रसाल” सी हो जाती है। वह कभी शिवा को सराहता और कभी छत्रसाल को। कभी दोनों को थोड़ा-थोड़ा। ऐसे में कभी सतर्कता आयोग किसी की शिकायत पर छापा मारता है और अगले को किसी न किसी नियम के उल्लंघन का आरोप लगाता है।
इससे बचने के लिये लोग न शिवा को सराहते हैं न छत्रसाल को। केवल दोनों को निहारते हैं। निर्णय टालते हैं। अपने को बचाते हैं, नौकरी बचाते हैं, प्रमोशन बचाते हैं, पेंशन बचाते हैं। सारी नौकरी बचते-बचाते काट देते हैं।
हमारे एक सीनियर कहा करते थे कि हम लोगों की जिम्मेदारी निर्णय लेना है। जिस परिस्थिति में हैं उसमें सब कुछ लिखकर निर्णय लेना चाहिये। निर्णय लेने से घबराना नहीं चाहिये। ’वी आर पेड फ़ॉर टेकिंग डिसीजन’। एक बार दिल्ली में धमाके हुये तो वित्त मंत्री ने कहा – तीन बार टेंडर करने के बाद भी खरीद नहीं हुई। प्रधानमंत्रीजी ने कहते रहते हैं – निर्णय लेने में डरना नहीं चाहिये।
लेकिन डर किसी के कहने से नहीं रुकता। वह धड़धड़ाता चला आता है। जांच होने पर हर कोई पूछता है -ये इस एंगल से क्यों नहीं देखा, उस कोने से क्यों नहीं निहारा, वहां खड़े होकर क्यों नहीं देखा, आगे की क्यों नहीं सोची, पीछे का क्यों छोड़ दिया।
नियम/कानून के जंजाल ऐसा है कि कई अबोध इसकी चपेट में आ जाते हैं। जिनका निर्णय प्रक्रिया से कुछ लेना-देना नहीं वे इसलिये फ़ंस गये क्योंकि फ़ाइल के किसी कोने में उनकी चिड़िया बैठी मिली। यह ऐसे ही है जैसे नई सड़क में हुये दंगे में भन्नानापुरवा का राहगीर मारा जाये। इसी डर के मारे लोग घर से निकलना बंद कर देते हैं।
इसीलिये नौकरी करने वालों में जिनको बहादुरी का जोश उफ़ान नहीं मारता और जो गालिब के भक्त नहीं हैं ( जो आंख से ही न टपका तो लहू क्या है) हमेशा नौकरी/प्रमोशन/पेंशन बचाकर काम करने की कोशिश करते हैं। रिटायरमेंट के बहुत पहले ही रिटायर हो जाते हैं। पुराने जमाने में राजा लोग मरे हुये शेर के सीने पर लात रखकर फ़ोटो खिंचवाकर अपनी वीरता का बखान करते थे (भले ही शेर किसी और ने मारा हो)। उसी तरह तमाम लोग नौकरी के बचपने में किये गये काम का गाना गाते हुये बाकी की नौकरी निकाल देते हैं।
निर्णय लेने वाला ईमानदारी की आड़ में निर्णय लेने से बचता है, नौकरी, प्रमोशन, पेंशन बचाता है। निर्णय न लेना बेईमानी नहीं माना जाता। अधिक से अधिक उसे अकर्मण्यता माना जाता है। नाकारापन बेईमानी के मुकाबले कम घृणित माना जाता है। नाकारापन सावधानी का सगा होने के चलते कभी-कभी सम्मानित भी हो जाता है।
इसलिये भी अक्सर काम देरी से होते हैं, प्रोजेक्ट अधूरे रहते हैं, कीमत दोगुनी होती, आये दिन घपले-घोटाले होते हैं।
आपका इस बारे में क्या कहना है? कुछ सोच-विचार कर निर्णय लेंगे कि आप भी कहेंगे- हमें तो पेंशन लेनी है।

22 responses to “हमें पेंशन लेनी है”

  1. रवि
    हम तो पेंशन ले रहे हैं! :)
    वैसे, ऐसे लोगों की संख्या कम है. अधिकतर तो फ़ाइल में दस्तखत करने को लालायित बैठे रहते हैं, बशर्तें उनमें कुछ वजन (बकौल परसाईँ) रखा हुआ हो!
    रवि की हालिया प्रविष्टी..तब तो मैं ग़रीब ही भला!
    1. sanjay jha
      (:(:(:
      प्रणाम.
  2. indian citizen
    जांचें सही नहीं होतीं, उनमें भी सेटिंग हो जाती हैं, महीनों – सालों लटकती हैं, जुगाड़ू निकल जाते हैं, जो फंस जाते हैं, वे रोते रहते हैं, इसलिये क्या फायदा.
    indian citizen की हालिया प्रविष्टी..पुलिस का रवैया
  3. shikha varshney
    जुगाड़ जुगाड़ और जुगाड़ …बस और कुछ काम नहीं करता .
  4. सतीश सक्सेना
    कब से भाई ??
    तब ब्लोगिंग छोड़ दोगे न ??
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..ये बेचारे … -सतीश सक्सेना
  5. सुशील बाकलीवाल
    काम करेंगे कांटा, तो खाएंगे क्या भाटा ?
  6. sanjay @ mo sam kaun
    हमने तो एकदम शुरू से ही तय समय से पहले पेंशन लेने का फ़ैसला कर रखा है।
    sanjay @ mo sam kaun की हालिया प्रविष्टी..अपने पराये
  7. PN Subramanian
    हम तो पेंशन याफ्ता हैं परन्तु अनुभव कहता है की ऐसे ही लोग ज्यादा फंस्ते हैं.
    PN Subramanian की हालिया प्रविष्टी..एकाम्बरेश्वर मन्दिर, काँचीपुरम
  8. प्रवीण पाण्डेय
    यदि कोई निर्णय न लेने का निर्णय ले चुका हो?
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..फन वेव, हिट वेव
  9. arvind mishra
    खुदा के फज़ल से अभी तो साहब के खेलने खाने के दिन है ये पेंशन की चिंता काहें खाए रही है ?
    कौनो तगड़ी साईंन वाईन कर दिए हैं क्या -बाकी मुकम्मल और अव्वल लिखे हैं -बुकमार्क लायक !
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..दिल्ली की दरिन्दगी
  10. सतीश पंचम फ़ेसबुक पर
    ऐसे लोगों को चकाचक सिंह “ढूंढहरे” कहा जाता है जिन्हें अपना टेबल चकाचक क्लीन चाहिये, काम न हो चलेगा….कागज दिखे तो ढूंढकर उसकी खबर लेंगे कि क्यों मेरे पास भेजा….जाओ पहले उसका साइन लेकर आओ जिसने पहले मांग की थी पोस्टवौ चकाचक है
  11. Sudhir Tewari फ़ेसबुक पर
    सुधार लाने कि दृष्टि से इस विषय में प्रस्तावित है कि फेस बुक, ट्विट्टर इत्यादि पर सभी साहबों के साहिबी शासकीय अकाउंट खुला कर निर्णय की प्रक्रिया को त्वरित, पारदर्शी, भागीदारी युक्त एवं 24X7 मनोरंजक बनाया जायेI इस से प्रारम्भिक तौर पर और कुछ नहीं तो कम से कम अनगिनत पुस्तकालयों हेतु की जाने वाली लम्बी, मोटी, चौड़ी तथा ऊँची ख़रीद, जिस पर संभवतः C&AG की दृष्टि अभी मेहरबान नहीं हुई है, विद्वान एवम मुखर फ्रेंड्स की राय द्वारा निर्मित सर्वसम्मति पर आधारित एक वस्तुनिष्ट आधार स्थापित करने की संभावनाओं पर विचार करने के प्रयास की शुरूआत होगी जिस पर निर्णय सक्षम अधिकारी द्वारा उचित परिस्थितियों में आने वाले समय में अति शीघ्र लिया जाएगा!
    (अब इस काग़ज़ को सातवें वेतन आयोग कि सिफारिशें लागू होने से पूर्व मेरे समक्ष लाये तो तुम्हारी ख़ैर नहीं)
  12. Sonia Srivastava फ़ेसबुक पर
    baat to sahi hai. deri se kaam karne se bhrashtachar ko hi badhava
  13. Shiv Bali Rai फ़ेसबुक पर
    आदमी जिन तीन व्रित्तियो से खुश होता है -कर्म ,भक्ति और श्रद्धा उसमे कर्म किये बिना काम नहीं चल सकता लेकिन उसको करने में कोई न कोई गलती जरुर निकलती है इसलिए जो कर्म काअरेग वह कही न कही निंदा का पत्र जरुर होगा
  14. Girish Bajpai फ़ेसबुक पर
    Ati sundar
  15. amit kumar srivastava
    हमारे यहाँ भी ऐसे थोड़े लोग मिल जाते है । परन्तु कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं अरे , अभी जो मिल रहा है पहले उसे ले लो जब पेंशन का वक्त आयेगा तब वह भी ले-देकर मिल ही जायेगी ।
    amit kumar srivastava की हालिया प्रविष्टी..” अंगड़ाई ……या …….हस्ताक्षर …….”
  16. गिरीश चन्द्र अग्निहोत्री
    बहुत बढ़िया बखान किया है, अँग्रेजी के साक्षर इतने बढ़ गए हैं की, नियम कानून मे भुस भर दिया है। सरकारी नौकर की हालत, सुहागरात से पहले पूजा करते हुये वर की हो गई है।
  17. काजल कुमार
    रिटायरमेंट के बहुत पहले ही रिटायर हो जाते हैं…
    बात भले ही कि‍सी दूसरे संदर्भ में रही हो पर इसके पीछे के कारण केवल वही लोग नहीं हैं, सि‍स्‍टम में/सि‍स्‍टम से बाहर बैठे लोग कहीं ज्यादा ज़ि‍म्‍मेदार हैं
    काजल कुमार की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- आे ब्रूटस तुम ही तुम हर तरफ़ !
  18. गौरव शर्मा
    बढ़िया पोस्ट रही, मज़ा आ गया.
  19. Anonymous
    लोल
  20. Yashwant Mathur
    आपने लिखा….हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 29/04/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ….
    धन्यवाद!
  21. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] हमें पेंशन लेनी है [...]

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