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मुशर्रफ़ जी का बिलेटेड अप्रैल फ़ूल
By फ़ुरसतिया on April 21, 2013
[जब संस्थान खोखले और लोग चापलूस हो जायें तो जनतंत्र
धीरे-धीरे डिक्टेटरशिप को रास्ता देता जाता है। फिर कोई डिक्टेटर देश को
कुपित आंखों से देखने लगता है। तीसरी दुनिया के किसी भी देश के हालात पर
दृष्टिपात कीजिये। डिक्टेटर स्वयं नहीं आता, लाया और बुलाया जाता है और जब आ
जाता है तो प्रलय उसके साथ-साथ आती है।- खोया पानी ]
दो दिन पहले बगल के देश की एक अदालत से उसके पूर्व राष्ट्रपति भागते दिखे।
उनके भागने के पीछे कई तरह की बातें सुनी जा रही हैं। कोई कह रहा है कि वे गिरफ़्तारी के डर से भागे। अदालत ने इसे अपनी तौहीन माना और उनको कबाड़ की तरह “जहां है जिस हालत में है” गिरफ़्तार करके धर दिया।
अदालत और सब कुछ बर्दाश्त कर सकती है लेकिन अपनी तौहीन नहीं।
अदालतों के पास और होता क्या है? मुकदमों का जल्दी निपटारा कर नहीं सकती, अपराधी छूट जाते हैं, न्याय अंधा और मंहगा। अदालतों के पास ले-देकर अपनी इज्जत ही तो होती है। उसकी भी अगर तौहीन होगी तो वह कैसे सहन कर लेती।
भागना था तो पहले ही भाग लेते। सामने आकर भागोगे तो पकड़ना मजबूरी है।
इस मामले में अड़ोस और पड़ोस दोनों की अदालतों का रवैया क्लास टीचर सरीखा रहता है। पूछ के दिन भर गायब रहो तो कोई बात नहीं। लेकिन बिना बताये फ़ूटोगे तो बेंच पर खड़ा कर देंगी। संजय दत्त को देखो महीने भर की मोहलत दी कि नहीं। आगे कुछ और जुगाड़ देखेगी। मुशर्रफ़ भी मांगते उनको भी मिल जाती। कहते जरा बस चुनाव तक की मोहलत दे दीजिये फ़िर हाजिर होते हैं। अदालत शायद मोहलत देती और ’बेस्ट ऑफ़ लक’ अलग से देतीं।
लेकिन जब वे भागे तो अदालत ने कहा -पकड़ो, जाने न पाये। और धर लिया चौदह दिन के लिये।
कायदे से अदालत को झांसा देते तो क्या पता कोई रिटायर्ड जज कहता- “अरे छोड़ो, जाने दो, माफ़ करो। भला आदमी है। भारत पर कब्जे की कोशिश की। अमेरिका को झांसा देता रहा। कई बार मरते-मरते बचा लेकिन देश हित में हुकूमत करता रहा। अब तो बुजुर्ग भी हो गया अब उसको क्या परेशान करना?”
लेकिन अदालत को सामने-सामने भागने वाली बुरी लग गयी। किसी को भी लग सकती है। अदालत को गुस्सा इस बात पर भी आया होगा कि अगले को भरोसा नहीं कि उसके खिलाफ़ कुछ नहीं होगा सिवाय मुकदमा लटकाने के। जज, वकील, अखबार किसी पर भरोसा नहीं? इतनी तौहीन सिस्टम की? अजब तमाशा है-करो इसको अंदर।
अब कोई पूछे कि मुशर्रफ़ अदालत से भागे क्यों तो कई तरह की बातें सोची जा सकती हैं। जैसे कि:
उनको एहसास हो रहा होगा कि भूतपूर्व तानाशाह की उसके देश में उतनी ही पूछ होती है जितनी रिटायर्ड नौकरशाह की उसके भूतपूर्व दफ़्तर में होती है।
उनको लग रहा होगा कि वे जिस जम्हूरियत को विकिपीडिया समझकर उसे फ़िर से बदलने आये थे उसका लागइन और पासवर्ड बदल गया है और उसका कंट्रोल किसी और के हाथ में है।
दो दिन पहले बगल के देश की एक अदालत से उसके पूर्व राष्ट्रपति भागते दिखे।
उनके भागने के पीछे कई तरह की बातें सुनी जा रही हैं। कोई कह रहा है कि वे गिरफ़्तारी के डर से भागे। अदालत ने इसे अपनी तौहीन माना और उनको कबाड़ की तरह “जहां है जिस हालत में है” गिरफ़्तार करके धर दिया।
अदालत और सब कुछ बर्दाश्त कर सकती है लेकिन अपनी तौहीन नहीं।
अदालतों के पास और होता क्या है? मुकदमों का जल्दी निपटारा कर नहीं सकती, अपराधी छूट जाते हैं, न्याय अंधा और मंहगा। अदालतों के पास ले-देकर अपनी इज्जत ही तो होती है। उसकी भी अगर तौहीन होगी तो वह कैसे सहन कर लेती।
भागना था तो पहले ही भाग लेते। सामने आकर भागोगे तो पकड़ना मजबूरी है।
इस मामले में अड़ोस और पड़ोस दोनों की अदालतों का रवैया क्लास टीचर सरीखा रहता है। पूछ के दिन भर गायब रहो तो कोई बात नहीं। लेकिन बिना बताये फ़ूटोगे तो बेंच पर खड़ा कर देंगी। संजय दत्त को देखो महीने भर की मोहलत दी कि नहीं। आगे कुछ और जुगाड़ देखेगी। मुशर्रफ़ भी मांगते उनको भी मिल जाती। कहते जरा बस चुनाव तक की मोहलत दे दीजिये फ़िर हाजिर होते हैं। अदालत शायद मोहलत देती और ’बेस्ट ऑफ़ लक’ अलग से देतीं।
लेकिन जब वे भागे तो अदालत ने कहा -पकड़ो, जाने न पाये। और धर लिया चौदह दिन के लिये।
कायदे से अदालत को झांसा देते तो क्या पता कोई रिटायर्ड जज कहता- “अरे छोड़ो, जाने दो, माफ़ करो। भला आदमी है। भारत पर कब्जे की कोशिश की। अमेरिका को झांसा देता रहा। कई बार मरते-मरते बचा लेकिन देश हित में हुकूमत करता रहा। अब तो बुजुर्ग भी हो गया अब उसको क्या परेशान करना?”
लेकिन अदालत को सामने-सामने भागने वाली बुरी लग गयी। किसी को भी लग सकती है। अदालत को गुस्सा इस बात पर भी आया होगा कि अगले को भरोसा नहीं कि उसके खिलाफ़ कुछ नहीं होगा सिवाय मुकदमा लटकाने के। जज, वकील, अखबार किसी पर भरोसा नहीं? इतनी तौहीन सिस्टम की? अजब तमाशा है-करो इसको अंदर।
अब कोई पूछे कि मुशर्रफ़ अदालत से भागे क्यों तो कई तरह की बातें सोची जा सकती हैं। जैसे कि:
- किसी का कहना है कि उनका हाजमा कुछ गड़बड़ था और ऐन अदालत में प्रेशर बढ़ गया। अदालत में कोई माकूल इंतजाम न होने के चलते वे अपने फ़ार्म हाउस की तरफ़ दुलकी चाल से निकल लिये।
- क्या पता मुशर्रफ़ जी किसी विज्ञापन की शूटिंग के सिलसिले में भागकर दिखाना चाहते हों कि खास तरह का अंडरवीयर पहनने पर उनके देश की अदालत भी उनको पकड़ नहीं सकती। लेकिन शूटिंग में सूट पहने देखकर अदालत को गुस्सा आ गया और उसने कहा- अरेस्ट हिम।
- मुशर्रफ़ जी को उनके चमचों ने भरोसा दिलाया होगा कि जज से बात हो गयी है। कोई खतरा नहीं है। लेकिन वहां पहुंचकर उनको पता चला होगा कि जज पलट गया है। जज के पलटने की भनक लगते ही वे पलट के फ़ूट लिये होंगे।
- मुशर्रफ़ जी पाकिस्तान अवाम को दिखला देना चाहते होंगे उनको अभी बुजुर्ग न समझा जाये। वे अभी भी दौड़ने भागने का काम कर सकते हैं।
- क्या पता मुशर्रफ़ जी इमरान खान के कैसर अस्पताल की तर्ज पर कोई एथलेटिक्स अकादमी खोलना चाहते हों जिससे पाकिस्तान के खिलाड़ियों को ओलम्पिक में मेडल मिले। अवाम को दिखाना चाह रहे होंगे कि देखो ऐसे दौड़ना चाहिये कुछ पाने के लिये।
- हो सकता है अदालत में ही उनको फ़ोन आया कि साहब एक जगह ’बैक डेट में’ चुनाव के लिये पर्चा दाखिल होने की बात हो गयी है। फ़ौरन आइये अंगूठा लगाइये तो पर्चा दाखिल कर दिया जाये। वे भागें और धरे गये।
- शायद किसी ने उनके साल अप्रैल फ़ूल का बिलेटेड मजाक कर दिया हो अदालत में -साहब, कहां आप अदालत के चक्कर में पड़े हो। उधर चलिये कियानी साहब आपको सत्ता वापस सौंपने के लिये इंतजार कर रहे हैं। मुशर्रफ़ -ओह, एस, ओके। कहकर पलटकर दुलकी चाल से चल से चल दिये होंगे। फ़ार्म हाउस पहुंच कर कड़क ड्रेस पहन ही रहे होंगे तब तक धर लिये गये।
- शायद वे अदालत में खुले आम बयान देकर पाकिस्तान के हुक्मरानों को यह संदेश देना चाहते होंगे कि ज्यादा लूट-खसोट ठीक नहीं। आठ-दस साल लूट-खसोट कर अगले को मौका दो। हुक्मरानों को मुशर्रफ़ की इस साजिश की भनक लग गयी होगी और उन्होंने उनको अन्दर करने का इंतजाम कर दिया। इसकी भनक लगते ही वे फ़ूट लिये होंगे।
- वे अपने देश के हुक्मरानों को संदेश देना चाहते होंगे कि अगर यहां जिंदा रहना है तो हमेशा ऐसे भागने के लिये तैयार रहना चाहना। लूट-खसोट के साथ-साथ फ़िटनेट भी बहुत जरूरी है देश सेवा के लिये।
- वे अदालत को यह बताना चाहते थे कि बेनजीर भुट्टो की हत्या के लिये वे बिल्कुल कसूरवार नहीं हैं। अगर बेनजीर भुट्टो को उनकी तरह भागना आता होता तो वे बच जातीं।
- देश सेवा में फ़ुल जोरदारी से लगे लोगों ने अदालत को बता दिया होगा कि साहब ये इत्ते साल देशसेवा का कर चुका। अब आगे भी करने की साजिश है इसकी। इस पर अदालत भन्ना गयी होगी और दौड़ा लिया होगा- देश सेवा करने का सबका बराबर का हक है। ये अकेले करना चाहता है। करो इसको अंदर।
उनको एहसास हो रहा होगा कि भूतपूर्व तानाशाह की उसके देश में उतनी ही पूछ होती है जितनी रिटायर्ड नौकरशाह की उसके भूतपूर्व दफ़्तर में होती है।
उनको लग रहा होगा कि वे जिस जम्हूरियत को विकिपीडिया समझकर उसे फ़िर से बदलने आये थे उसका लागइन और पासवर्ड बदल गया है और उसका कंट्रोल किसी और के हाथ में है।
Posted in बस यूं ही | 12 Responses
Padm Singh पद्म सिंह की हालिया प्रविष्टी..मगर यूं नहीं
वैसे पहला ही ठीक है फिलहाल, जब परमानेंट ‘नज़र बंदी’ होती नज़र आती है, अच्छे-अच्छों का प्रेशर ख़राब हो जाता है, फिर मुसर्रफ़ तो वैसे भी सीनिअर सिटिज़न की श्रेणी में है अब
Swapna Manjusha की हालिया प्रविष्टी..मेरी दोस्ती, मेरा प्यार …
Dr. Monica Sharrma की हालिया प्रविष्टी..हे राम…बेटियों के वंदन और मानमर्दन का कैसा खेल
Dr. Monica Sharrma की हालिया प्रविष्टी..हे राम…बेटियों के वंदन और मानमर्दन का कैसा खेल
aradhana की हालिया प्रविष्टी..नारीवादी स्त्री प्रेम नहीं करती?
…………कलमतोर क्लाइमेक्स ……………
प्रणाम.
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..फन वेव, हिट वेव