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देवलोक में चीनी चर्चा
By फ़ुरसतिया on April 9, 2013
पिछ्ले दिनों खबर आयी कि सरकार ने चीनी भी अपने
नियंत्रण से बाहर कर दी। अब चीनी के दाम बाजार तय करेगा। यह खबर जैसे ही
देवलोक में पहुंची वहां हाहाकार मच गया। सारे देवता परेशान हो गये कि इससे
उनके प्रसाद पर सीधी चोट पहुंचेगी। तमाम युवा देवता अपनी-अपनी आरती
पुस्तिका, जिनमें उन पर लड्डू चढ़ने का जिक्र है, लहराते हुये देवचौपाल पर
जमा हो गये। कुछ देवताओं ने साधु-साधु कहकर इसकी भर्त्सना की (देवता लोग
गुस्से में भी साधु-साधु ही कहते हैं)। वे गुस्साये हुये थे। बौखलाये हुये
थे। कुछ देवता तो बमक भी रहे थे। देवता लोग इतने आवेश में थे कि उनकी बातें
साफ़ सुनाई नहीं दे रहीं थी। किसी लोकतांत्रिक देश के सदन सरीखा हो गया
मामला। कुछ देवताओं के बयान आप भी सुन लीजिये:
इस पर एक बुजुर्ग देवता ने समझाया कि वत्स देवगण अव्वल तो कुछ करते नहीं। करते भी हैं तो कभी कोई काम सोच-विचार कर नहीं करते। अगर कुछ करना ही होता, वह भी सोच-विचार कर ही, तो जुगाड़ लगाकर देवलोक क्यों आते? देवलोक में सोच-विचार का रिवाज नहीं रहा कभी। हर काम बिना सोचे-विचारे करते हैं देवगण। बिना विचारे वरदान देना, बिना बिचार दंड देना। बिना बिचारे कुछ भी करते रहने का यह विशेषाधिकार ही तो देवगणों को देवता बनाता है। देवलोक में प्रवेश करते ही देवगणों को वे सब सुविधायें प्राप्त हो जाती हैं जो मृत्युलोक में मात्र वी.वी.आई.पी.ओं, मवालियों, माफ़ियाओं को हासिल होती हैं।
इसके बाद देवगणों ने बिना सोचे कुछ उपायों पर चर्चा और उनको खारिज भी करते गये। देखिये आप भी नमूना उपायों पर चर्चा करने का:
इस बीच किसी ने सुझाया कि सरकार ने देवगणों की भलाई के लिये ही यह कदम उठाया है। देवगण बैठे-बैठ प्रसाद खाते रहते हैं, कुछ करते नहीं तो उनके डायबिटीज होने का खतरा रहता है। प्रसाद में चीनी कम होने से यह खतरा कम होगा।
किसी ने यह भी बताया कि भूलोक की परिस्थितियां दिन पर दिन जटिल होती जा रही हैं। देवताओं के बिना वहां के लोगों का कोई सहारा नहीं। इसलिये चीनी भले ही सरकारी नियंत्रण से निकलकर सोने के भाव बिकने लगे लेकिन देवताओं के प्रसाद में कोई कमी न आयेगी।
फ़िल्मी जानकारी रखने वाले एक देवता ने अमिताभ बच्चन जी की एक फ़िल्म ( चीनी कम जिसमें नायक उम्रदराज था और नायिका युवा ) का हवाला देते हुये राय जाहिर की- हो सकता है सरकार हमारी चीनी का कोटा कम करके हमारे लिये नयी अप्सराओं की व्यवस्था पर कुछ विचार कर रही हो।
अप्सराओं का जिक्र आते ही देवगणों के, चीनी के सरकारी नियंत्रण में से बाहर जाने की खबर से मुरझाये, तमतमाये, बौखलाये चेहरे खिल उठे। वे अप्सरा दर्शन के लिये व्याकुल हो उठे। देवदरबार जम गया। देवगण सुरापान करते अप्सराओं के नृत्य का आनंद उठाने लगे। सब कुछ फ़िर देवलोक सरीखा हो गया।
कुछ युवा देवता अप्सराओं के नृत्य से विरत और बोर होकर अपने आई पैड पर आई.पी.एल. क्रिकेट मैच का सीधा प्रसारण देखने के बहाने चौकों-छक्कों पर ठुमके लगाती चीयरबालाओं को निहारने में तल्लीन हो गये।
चीनी चर्चा देवलोक से उसी तरह गायब हो गयी जिस तरह कभी टीवी मीडिया पर भयंकर तरीके से छाया भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन तिरोहित हो चुका है।
- -यह घोर पातक है देव। जो देश हमारे भरोसे(भगवान भरोसे) चल रहा है वहीं पर हमारे प्रसाद पर कटौती की साजिश। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।
- - हम देवता हैं, देवता। कोई आम जनता नहीं। इस पाप का दंड देंगे-भरपूर देंगे।
- -खोये की जगह आलू, शकरकंद हम बर्दास्त करते रहे लेकिन अब चीनी के भी लाले पड़ जायेंगे ऐसा कभी स्वप्न में भी नहीं सोच सकते हम तो। घोर कलयुग। अनर्थ।
- -देव अब आप फ़ौरन नया अवतार लेकर जायें पृथ्वी लोक पर और फ़ौरन उन पातकियों का संहार करें जिन्होंने यह पाप किया है। अब और विलम्ब सहन नहीं होता।
- -हमको वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति वाले कानून का सहारा लेकर उन लोगों की गन्ने से पिटाई करनी चाहिये जिनके उकसावे पर सरकार ने चीनी को अपने नियंत्रण से बाहर करने का निर्णय लिया। कुछ क्षण के लिये हमें अहिंसा की बात विस्मृत कर देनी चाहिये।।
इस पर एक बुजुर्ग देवता ने समझाया कि वत्स देवगण अव्वल तो कुछ करते नहीं। करते भी हैं तो कभी कोई काम सोच-विचार कर नहीं करते। अगर कुछ करना ही होता, वह भी सोच-विचार कर ही, तो जुगाड़ लगाकर देवलोक क्यों आते? देवलोक में सोच-विचार का रिवाज नहीं रहा कभी। हर काम बिना सोचे-विचारे करते हैं देवगण। बिना विचारे वरदान देना, बिना बिचार दंड देना। बिना बिचारे कुछ भी करते रहने का यह विशेषाधिकार ही तो देवगणों को देवता बनाता है। देवलोक में प्रवेश करते ही देवगणों को वे सब सुविधायें प्राप्त हो जाती हैं जो मृत्युलोक में मात्र वी.वी.आई.पी.ओं, मवालियों, माफ़ियाओं को हासिल होती हैं।
इसके बाद देवगणों ने बिना सोचे कुछ उपायों पर चर्चा और उनको खारिज भी करते गये। देखिये आप भी नमूना उपायों पर चर्चा करने का:
- उपाय:फ़ौरन किसी देवता को धरती पर भेजा जाना चाहिये जो वहां जाकर दुष्टों का संहार करे।
खारिज तर्क: किस देवता की जान जोखिम में डाल दें? जब वहां आला पुलिस अधिकारी तक की जान की गारंटी नहीं तो भला एक देवता की कौन सुनेगा वहां। जिसको भेजेंगे उसको कोई महंत पकड़ के किसी मंदिर में कैद कर लेगा और छुड़वाने के लिये फ़िरौती अलग से मांगेगा। - उपाय: वोट क्लब पर धरना दिया जाये! आमरण अनशन किया जाये!
खारिज तर्क:धरनें में हमारे पीताम्बर और धवल वस्त्र सारे भीग जायेंगे। लाठीचार्च हो गया तो घुटने अलग फ़ूटेंगे। रोज-रोज प्रसाद खाते रहने के चलते अब भूखे रहने का आदत रही नहीं। अनशन हमसे न सपरेगा। अनशन ही करना होता तो देवता ही काहे बनते! - उपाय: जिस सरकार ने यह चीनी सरकारी नियंत्रण से बाहर की है उसको गिरा दिया जाये।
खारिज तर्क:उससे क्या होगा? कोई फ़ायदा नहीं। अगली सरकार की क्या गारंटी कि वह चीनी वापस ले आयेगी नियंत्रण। जब वे लोग तक सरकार पर भरोसा नहीं करते जिनके वोट से सरकार बनती है तो हमारा किसी सरकार पर भरोसा करना देवतापना ही होगा। - उपाय: मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाया जाये।
खारिज तर्क:उससे क्या होगा। उससे मुद्दा कश्मीर समस्या सा उलझ जायेगा - उपाय: चीनी की खुद खेती जाये। भक्तगण अगर चीनी कम डालेंगे प्रसाद में तो बाकी की भरपाई खुद की चीनी से की जाये।
खारिज तर्क:फ़िर तो हम देवता नहीं किसान बनकर रह जायेंगे। देवगणों के लियेकाम हराम है।
इस बीच किसी ने सुझाया कि सरकार ने देवगणों की भलाई के लिये ही यह कदम उठाया है। देवगण बैठे-बैठ प्रसाद खाते रहते हैं, कुछ करते नहीं तो उनके डायबिटीज होने का खतरा रहता है। प्रसाद में चीनी कम होने से यह खतरा कम होगा।
किसी ने यह भी बताया कि भूलोक की परिस्थितियां दिन पर दिन जटिल होती जा रही हैं। देवताओं के बिना वहां के लोगों का कोई सहारा नहीं। इसलिये चीनी भले ही सरकारी नियंत्रण से निकलकर सोने के भाव बिकने लगे लेकिन देवताओं के प्रसाद में कोई कमी न आयेगी।
फ़िल्मी जानकारी रखने वाले एक देवता ने अमिताभ बच्चन जी की एक फ़िल्म ( चीनी कम जिसमें नायक उम्रदराज था और नायिका युवा ) का हवाला देते हुये राय जाहिर की- हो सकता है सरकार हमारी चीनी का कोटा कम करके हमारे लिये नयी अप्सराओं की व्यवस्था पर कुछ विचार कर रही हो।
अप्सराओं का जिक्र आते ही देवगणों के, चीनी के सरकारी नियंत्रण में से बाहर जाने की खबर से मुरझाये, तमतमाये, बौखलाये चेहरे खिल उठे। वे अप्सरा दर्शन के लिये व्याकुल हो उठे। देवदरबार जम गया। देवगण सुरापान करते अप्सराओं के नृत्य का आनंद उठाने लगे। सब कुछ फ़िर देवलोक सरीखा हो गया।
कुछ युवा देवता अप्सराओं के नृत्य से विरत और बोर होकर अपने आई पैड पर आई.पी.एल. क्रिकेट मैच का सीधा प्रसारण देखने के बहाने चौकों-छक्कों पर ठुमके लगाती चीयरबालाओं को निहारने में तल्लीन हो गये।
चीनी चर्चा देवलोक से उसी तरह गायब हो गयी जिस तरह कभी टीवी मीडिया पर भयंकर तरीके से छाया भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन तिरोहित हो चुका है।
Posted in बस यूं ही | 13 Responses
घर पर गन्ने की खेती होती है | सरकार समर्थन मूल्य में हर बार लफड़ा लोचा करती है | किसानों को काफी नुक्सान होता है | अभी अगर मार्किट तय करेगा मूल्य तब तो फिर मिल मालिकों और बिचौलियों की चांदी है !!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..बाइक की सवारी, गाँव घुम्मकड़ी और बाबा गुप्तिनाथ के दर्शन !!!
जो ब्लोग्गरजन मिठास भरी पोस्टें लिखते हैं, उन्हें इसी मंत्रालय से मानदेय के रूप में साल भर की चीनी का कोटा तय रहेगा.
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..दोष किसका.
प्रणाम.
ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..अब तो भईया बूढ़े हो गए, रंग नहीं बस गुलाल ही मल दो
एही तरह लिखले रह!
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..गोवा, दक्षिण से
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..हेरिटेज पर्यटन का एक दिनी आनंद -आईये साझा कीजिये!(सोनभद्र एक पुनरान्वेषण-4)
कल दिनांक 14/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
Yashwant Mathur की हालिया प्रविष्टी..बेटों की चाह में कहीं खो रही हैं बेटियाँ………
काहे से कि आप बहुते भारी बेइंसाफी कर रहे हैं ! आप बात-बात में देव लोक को काहे घसीट लाते हैं ? जब देखो देवलोक, देवलोक, आप तो सबसे पाहिले ई बताईये की ‘देविलोक’ भी कोई होता है की नहीं ?? सब देवी लोग कहाँ विराजती थीं? देवलोक संसद में भी एको गो देवी का सीट नहीं दिखा हमको, कम से कम 33% तो होना ही चाहिए, महिलाओं का प्रतिनिधित्व के साथ ऐसा बेइंसाफी, बाप रे ! हम तो सोचिये के दुबरा गए हैं । देवियों को अपना समस्या कहने का कोई अवसर नहीं मिला। आप ही बताईये मर्त्यलोक से चीनी का गायब होना , देवियों का भी पिरोब्लेन होगा न , उसका आप कौनो जीकर नहीं किये ?? देवियों को भी लड्डू, कलाकंद, पेंडा चढ़ता है की नहीं ? और फिर बाद में देव लोग तो मदिरा-उदीरा पी लिए अफसरा लोग का डांस देख लिए। और देवी लोगन का मनोरंजन का कोई उपाय है की नहीं, की ऊ लोग बस झाडू-बुहारू, बासन-बर्तन में ही जीवन बिता रही है सब ? ई इग्नोर्ड डिपार्टमेंट का भी कुछ खुलासा कीजिये, नहीं तो सब चीनी कम देवी बन के रह जायेंगी। बहुते चिंता में हैं हम
Swapna Manjusha की हालिया प्रविष्टी..नारीवाद एक आन्दोलन …!