http://web.archive.org/web/20140420081734/http://hindini.com/fursatiya/archives/4322
सुबह उठे दफ़्तर गये, दिन बीता बस यों,
शाम हुई लौट के आये, रात हुई गये सो।
समय
आजकल ऐसे ही बीत जाता है। सुबह उठकर चाय पीते हुये लैपटॉप पर खटर-पटर। फ़िर
दफ़्तर। फ़िर डेरे पर। फ़िर सोना। फ़िर जगना। बस यही रोज का मर्रा है।
बचपन में एक ठो श्लोक पढ़ते थे-
अब आजकल किसी से कहा जाये कि वो कविताबाजी करता है अत: बुद्धिमान है तो लोग हंसेंगे और कहेंगे- व्हाट अ जोक? कवितागीरी तो फ़ालतू लोगों का काम है। काव्य शास्त्र मनोविनोद कोई काम है क्या? ये तो फ़ालतू का टाइम खोटी करना है। टोट्टल टाइम वेस्ट। कविता से क्या रोजगार मिलता है।
फ़ुल टाइम कविताबाजी करने को तो लोग बेवकूफ़ी का काम बताते हैं आजकल।
मूर्ख लोग अपना समय नशे में , सोने में और कलह में बिताते हैं। तो क्या माना जाये कि प्राइम टाइम बातचीत में बहस करते, कलह मचाते लोग मूर्ख हैं? फ़ेसबुक के नशे में डूबे लोग बेवकूफ़ हैं? सोते तो सब हैं तो क्या सब लोग मूर्ख हैं?
आजकल तो सोशल मीडिया पर ज्ञानीजन भी बहस करते पाये जाते हैं। कलह सी मचाते हैं। गाली-गलौज या फ़िर न हुआ तो गाली-गलौच ही करते रहते हैं। तो क्या माना जाये कि वे ज्ञानी नहीं हैं। मूर्ख हैं?
कुछ समझ में नही आ रहा है कौन बेवकूफ़। कौन ज्ञानी। गड़बड़ है सब। परिभाषायें समय के हिसाब से बदलती हैं। जिस परिभाषा से कल लोग ज्ञानी समझे जाते रहे होंगे उसई कसौटी पर कस के आज लोगों को बौढ़म ठहरा देते हैं।
अच्छा अगर आपसे पूछा जाये कि आप कैसे अपना टाइम वेस्ट करते हैं तो क्या आप बता पायेंगे फ़टाक से? शायद न बता पायें। शायद आप भड़क भी जायें जस्टिस काटजू की तरह और कहने लगें – हम समय का सदुपयोग करते हैं जी बरबाद नहीं करते।
काम करने वालों के बारे में सोचा जाये तो वे काम करते हैं, काम की चिंता करते हैं, काम करते समय काम की चिंता करते हैं। न होने पर डबल चिंता करते हैं। काम हो जाता है तो और काम करते हैं, नहीं होता तो और नहीं करते। सोचते रहते हैं कि काम नहीं हो रहा।
अगर हमसे कोई पूछे कि हम कैसे समय बरबाद करते हैं तो हम आपको बता सकते हैं। हम समय अपना समय का सदुपयोग करने की योजना बताने हुये समय बरबाद करते हैं।
यह काम हम सुबह से ही करने लगते हैं। सुबह जब जग जाते हैं तो सोचते हैं कि उठे कि न उठें? काफ़ी देर तक इसी सवाल-जबाब में डूबे रहते हैं। जब तय हो जाता है कि उठना है तो सोचते हैं कि अभी उठें कि थोड़ी देर में उठें। जब थोड़ी देर में तय हो जाता है तो फ़िर सोचते हैं कि कित्ती देर में। होते-होते देर इत्ती होती जाती है कि सब समय बरबाद हो जाता है। फ़िर मजबूरी में महात्मा गांधी बन जाते हैं। उठ जाते हैं।
हम इसी तरह हर जगह अपना समय बरबाद करते हैं। कोई काम तभी करते हैं जब उसके करने के अलावा और कोई विकल्प न रहे। इसीलिये कोई भी हमसे कोई काम कहता है हम फ़ौरन हामी भर देते हैं -हां करेंगे। हमें पूरा भरोसा है कि हमारा और उसका ’संयुक्त आलस्य’ काम को शुरु करने की घड़ियां धकिया के इत्ती दूर कर देगा कि काम शुरु ही न होगा। जब शुरु ही न होगा तो खतम तो कैसे होगा आप खुदै समझ सकते हैं।
अब आपको इसई पोस्ट के बारे में बतायें कि हमने इसे कई बार लिखा। आधा-अधूरा। पहले सोचा देश के हालिया करप्शन कथा पर लिखें। लेकिन फ़िर नहीं लिखे। सोचे कि हम लिख देंगे तो फ़िर व्यंग्यकार क्या लिखेंगे? उनके पेट पर काहे लात मारें। फ़िर सोचा एक ठो कार्टून बनायें लेकिन सोचा कार्टूनिस्टों पर आइडिया चोरी का आरोप लगेगा। नहीं बनाये। फ़िर सोचा कि जरा भ्रष्टाचार पर उदास होकर एक ठो रोतीली पोस्ट लिखकर देश खरा हालत पर रोना-धोना मचा दिया जाये। लेकिन फ़िर यह सोचकर रुक गये कि गर्मी के मौसम में वर्षा ऋतु आ जायेगी। मटिया दिये।
इसी तरह कम से कम दस ठो पोस्टों के मसौदे दो-दो लाइन लिखे फ़िर मिटा दिये। एक आइडिया यह भी आया कि सब मसौदे एक साथ पोस्ट कर दिये जायें लेकिन गठबंधन के मसौदों की सरकार का प्रधानमंत्री नहीं तय हुआ सो वह भी नहीं किये। जब ये नहीं कर पाये तो एक विचार यह भी आया कि यही लिखा जाये कि कैसे लिखना टलता जाता है। लेकिन विचार को बेवकूफ़ी की बात मानकर न लिखने की बड़ी बेवकूफ़ी कर डाली।
अब करते-करते हम अपने पास का लिखने वाला सारा समय बरबाद करके उस स्थिति में पहुंच चुके हैं जहां बरबाद करने के लिये और समय नहीं बचता।सो मजबूरन इस लिखे को पोस्ट कर रहे हैं मतलब पोस्ट को चढ़ा रहे हैं।
हमने तो यह बता दिया कि हम अपना समय कैसे बरबाद करते हैं। यह खुलासा केवल ब्लॉग लिखने तक सीमित है। बाकी हरकतों में समय की बरबादी के पत्ते हमने अभी नहीं खोले हैं।
अब क्या आप बतायेंगे कि आप अपना समय कैसे बरबाद करते हैं? आई.पी.एल. देखते हुये समय बरबाद करने का विकल्प भूलकर भी न बताइयेगा- पुलिस पूछताछ के लिये बुला सकती है।
यह कहना और बड़ी हंसी का मसौदा होगा अगर आप कहेंगे कि – यह पोस्ट पढ़कर समय बरबाद किया।
परसाई जी के पीछे लगभग भागते हुये
मैंने सुनाई अपनी कविता
और पूछा
क्या इस पर इनाम मिल सकता है
अच्छी कविता पर सजा भी मिल सकती है
सुनकर मैं सन्न रह गया
क्योंकि उस वक्त वे
छात्रों की एक कविता प्रतियोगिता की
अध्यक्षता करने जा रहे थे।
आज चारों तरफ़ सुनता हूं
वाह, वाह-वाह, फ़िर से
मंच और मीडिया के लकदक दोस्त
लेते हैं हाथों हाथ
सजा कैसी,कोई सख्त बात तक नहीं करता
तो शक होने लगता है
परसाई जी की बात पर नहीं
अपनी कविता पर।
-नरेश सक्सेना
आइये समय बरबाद करें
By फ़ुरसतिया on May 21, 2013
शाम हुई लौट के आये, रात हुई गये सो।
बचपन में एक ठो श्लोक पढ़ते थे-
काव्य-शास्त्र-विनोदेन कालः गच्छति धीमताम् ।मतलब बुद्धिमान लोग अपना समय काव्य शास्त्र मनोविनोद में गुजारते हैं। मूर्ख लोग अपना समय नशा, सोने और कलह करने में बिताते हैं।
व्यसनेन तु मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ॥
अब आजकल किसी से कहा जाये कि वो कविताबाजी करता है अत: बुद्धिमान है तो लोग हंसेंगे और कहेंगे- व्हाट अ जोक? कवितागीरी तो फ़ालतू लोगों का काम है। काव्य शास्त्र मनोविनोद कोई काम है क्या? ये तो फ़ालतू का टाइम खोटी करना है। टोट्टल टाइम वेस्ट। कविता से क्या रोजगार मिलता है।
फ़ुल टाइम कविताबाजी करने को तो लोग बेवकूफ़ी का काम बताते हैं आजकल।
मूर्ख लोग अपना समय नशे में , सोने में और कलह में बिताते हैं। तो क्या माना जाये कि प्राइम टाइम बातचीत में बहस करते, कलह मचाते लोग मूर्ख हैं? फ़ेसबुक के नशे में डूबे लोग बेवकूफ़ हैं? सोते तो सब हैं तो क्या सब लोग मूर्ख हैं?
आजकल तो सोशल मीडिया पर ज्ञानीजन भी बहस करते पाये जाते हैं। कलह सी मचाते हैं। गाली-गलौज या फ़िर न हुआ तो गाली-गलौच ही करते रहते हैं। तो क्या माना जाये कि वे ज्ञानी नहीं हैं। मूर्ख हैं?
कुछ समझ में नही आ रहा है कौन बेवकूफ़। कौन ज्ञानी। गड़बड़ है सब। परिभाषायें समय के हिसाब से बदलती हैं। जिस परिभाषा से कल लोग ज्ञानी समझे जाते रहे होंगे उसई कसौटी पर कस के आज लोगों को बौढ़म ठहरा देते हैं।
अच्छा अगर आपसे पूछा जाये कि आप कैसे अपना टाइम वेस्ट करते हैं तो क्या आप बता पायेंगे फ़टाक से? शायद न बता पायें। शायद आप भड़क भी जायें जस्टिस काटजू की तरह और कहने लगें – हम समय का सदुपयोग करते हैं जी बरबाद नहीं करते।
काम करने वालों के बारे में सोचा जाये तो वे काम करते हैं, काम की चिंता करते हैं, काम करते समय काम की चिंता करते हैं। न होने पर डबल चिंता करते हैं। काम हो जाता है तो और काम करते हैं, नहीं होता तो और नहीं करते। सोचते रहते हैं कि काम नहीं हो रहा।
अगर हमसे कोई पूछे कि हम कैसे समय बरबाद करते हैं तो हम आपको बता सकते हैं। हम समय अपना समय का सदुपयोग करने की योजना बताने हुये समय बरबाद करते हैं।
यह काम हम सुबह से ही करने लगते हैं। सुबह जब जग जाते हैं तो सोचते हैं कि उठे कि न उठें? काफ़ी देर तक इसी सवाल-जबाब में डूबे रहते हैं। जब तय हो जाता है कि उठना है तो सोचते हैं कि अभी उठें कि थोड़ी देर में उठें। जब थोड़ी देर में तय हो जाता है तो फ़िर सोचते हैं कि कित्ती देर में। होते-होते देर इत्ती होती जाती है कि सब समय बरबाद हो जाता है। फ़िर मजबूरी में महात्मा गांधी बन जाते हैं। उठ जाते हैं।
हम इसी तरह हर जगह अपना समय बरबाद करते हैं। कोई काम तभी करते हैं जब उसके करने के अलावा और कोई विकल्प न रहे। इसीलिये कोई भी हमसे कोई काम कहता है हम फ़ौरन हामी भर देते हैं -हां करेंगे। हमें पूरा भरोसा है कि हमारा और उसका ’संयुक्त आलस्य’ काम को शुरु करने की घड़ियां धकिया के इत्ती दूर कर देगा कि काम शुरु ही न होगा। जब शुरु ही न होगा तो खतम तो कैसे होगा आप खुदै समझ सकते हैं।
अब आपको इसई पोस्ट के बारे में बतायें कि हमने इसे कई बार लिखा। आधा-अधूरा। पहले सोचा देश के हालिया करप्शन कथा पर लिखें। लेकिन फ़िर नहीं लिखे। सोचे कि हम लिख देंगे तो फ़िर व्यंग्यकार क्या लिखेंगे? उनके पेट पर काहे लात मारें। फ़िर सोचा एक ठो कार्टून बनायें लेकिन सोचा कार्टूनिस्टों पर आइडिया चोरी का आरोप लगेगा। नहीं बनाये। फ़िर सोचा कि जरा भ्रष्टाचार पर उदास होकर एक ठो रोतीली पोस्ट लिखकर देश खरा हालत पर रोना-धोना मचा दिया जाये। लेकिन फ़िर यह सोचकर रुक गये कि गर्मी के मौसम में वर्षा ऋतु आ जायेगी। मटिया दिये।
इसी तरह कम से कम दस ठो पोस्टों के मसौदे दो-दो लाइन लिखे फ़िर मिटा दिये। एक आइडिया यह भी आया कि सब मसौदे एक साथ पोस्ट कर दिये जायें लेकिन गठबंधन के मसौदों की सरकार का प्रधानमंत्री नहीं तय हुआ सो वह भी नहीं किये। जब ये नहीं कर पाये तो एक विचार यह भी आया कि यही लिखा जाये कि कैसे लिखना टलता जाता है। लेकिन विचार को बेवकूफ़ी की बात मानकर न लिखने की बड़ी बेवकूफ़ी कर डाली।
अब करते-करते हम अपने पास का लिखने वाला सारा समय बरबाद करके उस स्थिति में पहुंच चुके हैं जहां बरबाद करने के लिये और समय नहीं बचता।सो मजबूरन इस लिखे को पोस्ट कर रहे हैं मतलब पोस्ट को चढ़ा रहे हैं।
हमने तो यह बता दिया कि हम अपना समय कैसे बरबाद करते हैं। यह खुलासा केवल ब्लॉग लिखने तक सीमित है। बाकी हरकतों में समय की बरबादी के पत्ते हमने अभी नहीं खोले हैं।
अब क्या आप बतायेंगे कि आप अपना समय कैसे बरबाद करते हैं? आई.पी.एल. देखते हुये समय बरबाद करने का विकल्प भूलकर भी न बताइयेगा- पुलिस पूछताछ के लिये बुला सकती है।
यह कहना और बड़ी हंसी का मसौदा होगा अगर आप कहेंगे कि – यह पोस्ट पढ़कर समय बरबाद किया।
मेरी पसंद
पैंतालीस साल पहले , जबलपुर मेंपरसाई जी के पीछे लगभग भागते हुये
मैंने सुनाई अपनी कविता
और पूछा
क्या इस पर इनाम मिल सकता है
अच्छी कविता पर सजा भी मिल सकती है
सुनकर मैं सन्न रह गया
क्योंकि उस वक्त वे
छात्रों की एक कविता प्रतियोगिता की
अध्यक्षता करने जा रहे थे।
आज चारों तरफ़ सुनता हूं
वाह, वाह-वाह, फ़िर से
मंच और मीडिया के लकदक दोस्त
लेते हैं हाथों हाथ
सजा कैसी,कोई सख्त बात तक नहीं करता
तो शक होने लगता है
परसाई जी की बात पर नहीं
अपनी कविता पर।
-नरेश सक्सेना
Posted in बस यूं ही | 20 Responses
मीनाक्षी की हालिया प्रविष्टी..सुधा की कहानी उसकी ज़ुबानी (4)
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..नदी का सागर से मिलन
“काम करने वालों के बारे में सोचा जाये तो वे काम करते हैं, काम की चिंता करते हैं, काम करते समय काम की चिंता करते हैं। न होने पर डबल चिंता करते हैं। काम हो जाता है तो और काम करते हैं, नहीं होता तो और नहीं करते। सोचते रहते हैं कि काम नहीं हो रहा।
अगर हमसे कोई पूछे कि हम कैसे समय बरबाद करते हैं तो हम आपको बता सकते हैं। हम समय अपना समय का सदुपयोग करने की योजना बताने हुये समय बरबाद करते हैं। ”
आलस, खलिहरी, काहिली, समय बर्बाद करना ये सब हमारे प्रिय काम है. हम तो फेसबुक पर आज यही स्टेटस भी लिखने वाले थे कि भई हमको कुछ नहीं करना अच्छा लगता है. आपको क्या तकलीफ़ है ?
aradhana की हालिया प्रविष्टी..क्या किया जाय?
दिनेशराय द्विवेदी की हालिया प्रविष्टी..गिरवी रखे जेवर न लौटाना अमानत में खयानत का अपराध है।
वाणी गीत की हालिया प्रविष्टी..चुन चुन करती आई चिड़िया ….
PN Subramanian की हालिया प्रविष्टी..यह उपासक कौन है
अद्भुत रचना सक्सेनाजी की।
शब्दों के चयन पर उठा विवाद हास्यास्पद है। आपकी लाइन क्लियर हमें तो यही लग रहा है।
साहित्यकारों के गैंगवार में जावेद अख़्तर का लिखा याद आ गया.-
जानता हूं मैं तुमको जौक़-ए-शायरी भी है
शख़्सियत सजाने में इक ये माहिरी भी है
फिर भी हर्फ़ चुनते हो, सिर्फ़ लफ़्ज़ सुनते हो
इनके दरम्यां क्या है, तुम ना जान पाओगे।
हम इसी तरह हर जगह अपना समय बरबाद करते हैं। कोई काम तभी करते हैं जब उसके करने के अलावा और कोई विकल्प न रहे। इसीलिये कोई भी हमसे कोई काम कहता है हम फ़ौरन हामी भर देते हैं -हां करेंगे। हमें पूरा भरोसा है कि हमारा और उसका ’संयुक्त आलस्य’ काम को शुरु करने की घड़ियां धकिया के इत्ती दूर कर देगा कि काम शुरु ही न होगा…. ये लाइन सबसे मजेदार थीं…
वैसे हमारा इतना टाइम बरबाद करने के लिए धन्यवाद… :))
हम इसी तरह हर जगह अपना समय बरबाद करते हैं। कोई काम तभी करते हैं जब उसके करने के अलावा और कोई विकल्प न रहे। इसीलिये कोई भी हमसे कोई काम कहता है हम फ़ौरन हामी भर देते हैं -हां करेंगे। हमें पूरा भरोसा है कि हमारा और उसका ’संयुक्त आलस्य’ काम को शुरु करने की घड़ियां धकिया के इत्ती दूर कर देगा कि काम शुरु ही न होगा…. ये लाइन सबसे मजेदार थीं…
वैसे हमारा इतना टाइम बरबाद करने के लिए धन्यवाद… :))
बरबाद जीवन की
बरबाद गप्पें भी
समय की बर्बादी है …
बरबाद पोस्ट पर
बरबाद टिप्पणी ,
बरबाद लोगों को
रद्दी आशीष देने की
बरबाद कोशिश हैं !
बरबाद लेखों पर
टिप्पणी भी बरबाद
ही मिलेगी !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..भ्रष्टाचार हमारे खून में -सतीश सक्सेना
दीपक बाबा की हालिया प्रविष्टी..कविता, औरत और क्रांति
–आशीष
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..हिंद स्वराज्य-4
समय बर्बाद करो बर्बाद करो ||
चाय पी पी कर बर्बाद करो ,
फेसबुक पढ़ लिख कर बर्बाद करो ||
ये जन्म हुआ किस अर्थ कहो,
जब समय न बर्बाद किया ||
दफ्तर गये सब काम किया
तो फिर क्या बोलो नाम किया ||
घर आकर के टीवी खोलो ,
बस खाली पीली चैनल बदलो ||
जब ऊब जाओ मोबाइल खोलो ,
बिलावजह नंबर देखो ||
उठ उठ कर पानी बारम्बार पियो
बारम्बार उसका निकास करो ||
धीरे से रात करीब आये ,
झुलवा चरपैय्या में लेटो ||
गुड़ नाईट की जगह बोलो
ब्लॉगगिंग ने निकम्मा कर डाला
वर्ना थे हम भी काम के ||
समय की बर्बादी कोई आसान काम नहीं है………