Friday, May 10, 2013

आलस्य का वात्सल्य अद्भुत होता है

http://web.archive.org/web/20140420081529/http://hindini.com/fursatiya/archives/4287

आलस्य का वात्सल्य अद्भुत होता है

रोज की तरह आज फ़िर पांच बजे जाग गये। जाग गये लेकिन उठे नहीं।

जागने का तो ऐसा है कि अलार्म लगा है। रोज घनघनाता है। वो मोबाइल के हाथ में है। उसको क्या? जबका लगाओ, बज जायेगा। लेकिन अलार्म बजने और उठने में फ़र्क है। उठना मुश्किल काम है जी।

जागने के बाद सोचते रहे लेटे-लेटे कि अब उठ जायें। टहल के आयें। जल्दी उठने और टहलने का गाना गायें। लेकिन फ़िर आलस्य ने हाथ पकड़ लिया- रुको यार। उठ जाना। कहां भाग रहे हो बिस्तर का साथ छोड़कर। कौन चुनाव हो रहे हैं जो दलबदल करो। दो मिनट बाद उठना।
हम आलस्य के बहकावे में आकर दो मिनट लेटे रहे। ऐसे न कित्ते दो मिनट हो गये। फ़िर जब पानी सर के ऊपर होता दिखा और समय घड़ी के पार तो झटके से उठ गये। आलस्य ने लपक के पकड़ने की फ़िर कोशिश की लेकिन हम फ़िर फ़ूट लिये उसकी पकड़ से। झट से कमरे का ताला लगाकर नीचे आ गये। लगे टहलने धांय-धांय। जल्दी-जल्दी। जैसे कोटा पूरा करना हो।
आलस्य के चक्कर में हमारे तमाम काम स्थगित पड़े हैं। जरूरी और गैरजरूरी दोनों। जैसे सिस्टम की संगति में अच्छी योजनायें भी वाहियात अमल में बदल में जाती हैं वैसे ही आलस्य की संगति संगति में जरूरी काम भी गैरजरूरी लगने लगते हैं। अंतत: स्थगित हो जाते हैं। आलस्य जरूरी और फ़ालतू का भेद मिटाता है। सबको समान भाव से देखता है। सबको स्थगित करता है। उसके यहां घपला नहीं चलता कि ले-देकर किसी काम को करवा दे और किसी को स्थगित करवा दे।
आलस्य का वात्सल्य अद्भुत होता है। ऐसे प्रेम से व्यवहार करता है कि उसकी संगति से अलग होने का मन नहीं होगा। लगता है कभी उससे जुदा न हों। लगता है वो हमेशा ये गुनगुनाता रहता है – यूं ही पहलू में बैठे रहो, आज जाने की जिद न करो।
आलस्य को लोग बुरा गुण मानते हैं। न जाने कितने उदाहरण बताकर इसको बदनाम करते हैं। आलस्य को मानव जीवन का सबसे बड़ा शत्रु बताते हैं। वे तस्वीर का एक पहलू बताते हैं। दूसरा पहलू नहीं दिखाते।
आलस्य का सौंदर्य अद्भुत होता है। इसकी संगति में व्यक्ति परम आशावादी होता है। अपनी क्षमताओं में असीम वृद्धि महसूस करता है। जो काम महीनों तक टालता रहता है उसके बारे में यही सोचता है अरे दो मिनट का काम- हो जायेगा।
आलस्य व्यक्ति को बुरे काम करने से भी रोकता है। आप किसी को सजा देने की सोचते हैं, नुकसान करने की सोचते हैं, सोचते हैं गड़बड़ करके ही रहेंगे लेकिन आलस्य मुस्कराते हुये आपको बरज देता है- अरे छोड़ो यार फ़िर करना। जान देव। मटियाओ।
सोचिये त जरा अगर हम आलसी न होते तो आज अमरीका और न जाने किसको पछाड़ के कित्ता आगे हो गये होते। लेकिन आगे हो जाने के बाद फ़िर करेंते क्या अकेले आगे खड़े-खड़े। अमेरिका की तरह ही कुछ ऊल-जलूल हरकतें न। इसीलिये आराम से खड़ें हैं। खरामा-खरामा प्रगति करते हुये। हड़बड़ाते हुये प्रगति करने से क्या फ़ायदा? उस प्रगति का क्या सुख जिसको फ़ील न किया जा सके। रास्ते में जो मजा है वो मंजिल में कहां?
देखिये इस बात को कवि किस तरह कहता है:
ये दुनिया बड़ी तेज चलती है ,
बस जीने के खातिर मरती है।
पता नहीं कहां पहुंचेगी ,
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी ।
आलस्य की जब कोई बुराई करता है तो बड़ा गुस्सा आता है। मन करता है पकड़कर हिंसावाद कर दें। लेकिन आलस्य बरज देता है। छोड़ यार। हिंसा कमजोर का हथियार है। आलसी को हिंसा शोभा नहीं देती।
दुनिया में जित्ते भी सुविधाओं के आविष्कार हुये हैं वे सब आलस्य के चलते हुये हैं। सुविधा पाना मतलब आलसी हो जाना। अलग आलस्य की शरण में जाने की भावना न होती तो लिफ़्ट न होती, जहाज न होता, कम्प्यूटर न होता।
और तो और अगर आलस्य न होता तो न घपला होता, न घोटाला न करप्शन न स्विस बैंक ने। न मंदी न बंदी। सब आलस्य के उपजाये हैं ये प्रगति के उपमान। आदमी अरबों इकट्ठा करता है सिर्फ़ इसीलिये कि वो और उसकी औलादें आलस्य का संग सुख उठा सकें।
आलस्य की महिमा अनंत है। अविगत गत कछु न आवै की तरह इसके बारे में बहुत कुछ कहते हुये भी सब कुछ कहना संभव नहीं है। उसमें भी आलस्य आड़े आ जाता है। रोक देता है मुस्कराते हुये -बस,बस बहुत हुय़ी चापलूसी। अब बंद करो ये खटराग। आओ अलसिया जाये।
लेकिन आलस्य न होता तो क्या ये लेख हम पोस्ट कर पाते? बताइये।

जन्मदिन मुबारक

आज निशांत बाबू का जन्मदिन है। उनको फोनियाये हैप्पी बर्थडे कहने को तो उन्होंने पूछा -आज का स्टेटस अपडेट कर दिया? हम बोले -अभी कहां अब जाकर करेंगे। वैसे उन्होंने पूछा तो यह भी -काठमांडू नहीं जा रहे?
निशांत को ज्ञानजी जेन पण्डित कहते हैं। जेन कथाओं से हमको परिचित कराने वाले निशांत ही हैं। दो दिन पहले ही उनके सुपुत्र आयाम ने अपने जीवन के सात साल पूरे किये। आज निशांत ने अड़तीस। दोनों को एक बार फ़िर से जन्मदिन की बधाई।

मेरी पसंद

नेताजी की छिन जायेगी रेल,
कोई और खेलेगा आगे खेल।
देश में होंगे फ़िर से नये चुनाव,
खेलेंगे लोग बड़े-बड़े से दांव।
आयेगी फ़िर नयी सी सरकार,
देश का करेगी बढिया सा उद्धार ।
बनेंगे फ़िर से नये-नये कार्टून,
करेंगे एक-दूजे को टेलीफ़ून।
हमारे साथ आओ अब भाई,
चलो मिलकर सरकार बनाई।
शपथ लेंगे संविधान के नाम,
करेंगे बहुतों के काम तमाम ।
प्रधानमंत्री के लिये होगी जंग,
कोई खिलेगा ,होगा कोई बदरंग।
अभी तो चलते हैं जी अपने दफ़्तर ,
देश की फ़िर सोचेंगे शाम को आकर ।
-कट्टा कानपुरी

24 responses to “आलस्य का वात्सल्य अद्भुत होता है”

  1. विवेक रस्तोगी
    आलस्य की महिमा अनंत है.. हम भी पिछले दो दिन से आलस करे पड़े हैं.. केवल लिख ही नहीं पा रहे हैं.. आप ऐसे ही आलसी और फ़ुरसतिया रहें तो हमें बांचने को मिल जायेगा.. अद्भुत रस है आलस में..
    विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..चाँद पूर्ण रूप में
  2. PN Subramanian
    नव रसों में एक और जोड दिया जाना चहिये.
    PN Subramanian की हालिया प्रविष्टी..अर्जुन के पताका में हनुमान क्यों
  3. archanachaoji
    आलस्य जिन्दाबाद …..उसके खाते में एक पॉडकास्ट आ गिरा है … :-)
  4. shikha varshney
    हाँ जी आराम बड़ी चीज है ….
    यह आलस्य का प्यार ही है जो हमें भी रोज हाथ पकड़ कर बैठा लेता है हम जब थोड़ा योग शोग करने की सोचते हैं.
  5. दिनेशराय द्विवेदी फ़ेसबुक पर
    आलस के कई लाभ भी होते हैं, कभी गिना देंगे।
  6. Shiv Bali Rai फ़ेसबुक पर
    गुणी लोग कहते है -वात्सल्य ,सौन्दर्य रस का अंग है इसीलिए सुबह की आलस्य वाली नींद में सौन्दर्य रस के सपने बहुत आते है वसे कट्टा नाम का धारावाहिक का इंतजार रहने लगा है |
    1. अनूप शुक्ल
      ॒॒@ Shiv Bali Rai यही भ्रम तो जानलेवा है। सोचते हैं नहीं लिखेंगे तो उदास हो जायेंगे। :)
  7. Sudhir Tewari फ़ेसबुक पर
    आलस्य के चलते मृत्युदंड पा चुके व्यक्ति जीवन दान के लाभार्थी में परिणीत हो जाते हैं! न्यूटन का जड़त्व का सिद्धांत भी मूलतः आलस्य पर ही आधारित हैI
  8. amit
    आलस्य की ही महिमा है, जो करा दे वही बहुत ज्यादा है! वर्ना और गुणों/अवगुणों को तो कहते हैं कि जो करा दे वही कम है! :D
    amit की हालिया प्रविष्टी..मकई पालक सैण्डविच…..
  9. काजल कुमार
    मैं तो किसी किसी दिन काहिली की इंतेहा करते हुए 2 अलार्म आैर लगाता हूं 15-15 मिनट या आधे-अाधे घंटे के फ़र्क़ से (मोबाइल में 3 से ज़्यादा की सुविधा नहीं है). तब कहीं जाकर उठने का उपक्रम करता हूं :)
    काजल कुमार की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- गुप्तदान को कमाई जताने वाली जमात
  10. Anonymous
    क्या रखा मांस घटाने में मनहूस अकल से काम करो !
    संक्रांति काल की बेला है ,आराम करो !आराम करो !!!!
  11. suresh sahani
    क्या रखा मांस घटाने में मनहूस अकल से काम करो !
    संक्रांति काल की बेला है ,आराम करो !आराम करो !!!!
  12. arvind mishra
    निशान्त जी का अंतिम पुरुषार्थ क्या काठमांडू तो नहीं है ? आपका तो खैर नहीं ही है!
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..घर में घुस आया वह अनचाहा संगीतज्ञ!
  13. Dr. Monica Sharrma
    सबके मन की सी कही…… :)
    Dr. Monica Sharrma की हालिया प्रविष्टी..विस्मृति का सुख
  14. shefali
    सही कहा ….मेरी नज़र में जो आलसी हैं, वही असली हैं |
    shefali की हालिया प्रविष्टी..मामा – मामा भूख लगी……….
  15. Rekha Srivastava
    हर सिक्के के दो पहलू होते हैं और आपने दूसरा पहलू दिखा दिया . वैसे आलस्य है बड़े काम की चीज – शरीर को पूरा आराम , नहीं तो जुटे रहो कोल्हू के बैल की तरह और पड़े पड़े कुछ न कुछ सोचते ही तो रहते हैं और लिखने वाले तभी आलस्य छोड़ कर तुरत ब्लॉग पर या फेसबुक पर अपडेट कर देते हैं. वैसे एक बात तो है की जबलपुर प्रवास में लेखनी खूब चलती है.
    Rekha Srivastava की हालिया प्रविष्टी..मुलाकात – सुधा भार्गव जी से!
  16. रवि
    स च मु च अ द् भु त हो ता है (उबासी) ,,,
    रवि की हालिया प्रविष्टी..प्रकृति की इस गुत्थी को कौन सुलझाएगा?
  17. saagar
    का कमेन्ट करें ?
    “अरे छोड़ो यार फ़िर करना। जान देव। मटियाओ।”
  18. प्रवीण पाण्डेय
    आलस्य बहुत ढंग से थपकाता है और बाद में उलाहना भी देता है।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉग व्यवस्था, तृप्त अवस्था
  19. ramakant singh
    आज करे सो काल कर, काल करे सो परसों
    इतनी जल्दी क्या है बेटा जीना है कई बरसों
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  21. दुनिया कित्ती खूबसूरत है
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