Friday, September 28, 2018

मुस्कान पर कोई टैक्स नहीं लगता


चित्र में ये शामिल हो सकता है: 2 लोग, Omprakash Rawat सहित, बाहर
साथ साथ मूंगफली पछोरते मियां बीबी
कल सबेरे पुल सालों से ’निर्माणाधीन पुल’ के बगल से गुजरते हुये निकले। पुल की दीवारें खेत की मेड़ सरीखी खड़ी थीं। मेड़ों के बीच की मिट्टी में पुल की फ़सल बोई हुई है। सालों से पक रही हैं। शायद इस साल दिसम्बर तक पक जाये।
शुक्लागंज की तरफ़ जाने वाली सड़क किनारे एक झोपड़ी के बाहर एक महिला अपनी बच्ची को स्कूल के लिये तैयार कर रही हैं। बच्ची खड़ी-खड़ी ऊंघ रही है। महिला भी जम्हुआते हुये उसके बाल काढ रही है। बच्ची ऊंघते हुये थोड़ा ज्यादा हिल गयी तो उसके बाल महिला के हाथ से छूटने को हुये। महिला ने फ़ौरन हाथ के कंघी से उसके सर पर ’कंघी चार्ज’ कर दिया। कुछ ऐसे जैसे स्थिति नियंत्रण के बाहर जाते देख पुलिस लाठीचार्ज कर देती है। ’कंघी चार्ज’ होते ही बच्ची सावधान मुद्रा में बाल कढवाने लगी। बाल काढने के बाद खड़े-खड़े ही उसके कपड़े बदले जाने लगे।
आगे एक झोपड़ी के बाहर एक परिवार के कई लोग सड़क किनारे फ़सक्का मारे बैठे चाय पी रहे थे। एल्युमिनियम की एक लुटिया में रखी चाय एक महिला के कब्जे में थी। वह खुद चाय पीते हुये अपने आसपास बैठे लोगों के कप में चाय एलाट करती जा रही थी। केन्द्र में बैठी चाय पर नियंत्रण वाली महिला से किसी ने अपने कप को मेरे सामने ’विशेष कप’ का दर्जा देने की मांग नहीं की।
सामने से एक बच्ची एक अल्युमिनियम का डब्बा हिलाते आती दिखी। हमें लगा शायद गंगाजल हो डब्बे में। बगल से गुजरी बच्ची तो देखा डब्बे में चाय थी। सुबह उठते ही दौड़ा दी गयी होगी बच्ची चाय लाने के लिये।
सुरेश सड़क पार सुलभ शौचालय के बाहर निपटने के लिये अपनी बारी का इंतजार करते खड़े थे। शुलभ शौचालय की सुविधा अभी मुफ़्त है। पता नहीं कब इस पर शुक्ल लग जाये। क्या पता कल को शौचालय की व्यवस्था इलाकेवार हो जाये। जैसे चुनाव के लिये पोलिंग बूथ होते हैं वैसे ही हर इलाके के लिये शौचालय बूथ बन जायें। एक इलाके के लोगों के लिये दूसरे इलाके के बूथ इस्तेमाल करने पर पाबंदी लग जाये। शौचालय का इस्तेमाल आधार से जुड़ जाये। मतलब कुछ भी हो सकता है किसी आधुनिक होते समाज में। कुछ लोगों को इससे तकलीफ़ भी हो सकती लेकिन आधुनिक होने में तकलीफ़ तो उठानी पड़ेगी। स्वच्छता की कीमत तो चुकानी पड़ेगी।
गंगा पुल पर खड़े होकर नदी को निहारा। नदी के बीच बालू उभर आई थी। अभी बरसात कायदे से खत्म भी नहीं हो पायी लेकिन नदी दुबली हो गयी है। इसके पानी का बड़ा हिस्सा बांधों/बैराजों ने अपने कब्जे में कर रखा है। जैसे दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों के एटीएम कार्ड उनके ठेकेदारों के कब्जे में रहते हैं और मजदूरों की मजदूरी का बड़ा हिस्सा ठेकेदार हड़प लेते हैं कुछ उसी तरह नदियों का पानी बांध/बैराज अपने कब्जे में कर लेते हैं। नदियां सिकुड़ जाती हैं।
हिमालय से इठलाती, इतराती निकली गंगा मैदानों में आते-आते सिकुड़-सिमट गयी हैं जैसे मायके की तमाम चंचल लड़कियां ससुराल में आकर सहमते हुये जीना सीख जाती हैं।
लौटते हुये एक झोपड़ी के बाहर आदमी औरत पूरी तल्लीनता से मूंगफ़लियां पछोरते दिखे। हमें लगा कि जीवन साथियों में समानता का आधार उनके बीच समान काम ही हो सकता है। ये नहीं कि महिला पसीना बहाये, पति सामने बैठे बीड़ी पीते हुये टांगें हिलाये। महिला ने बताया कि पिछले साल की हैं मूंगफ़ली। इस साल की फ़सल कुछ दिन बाद आयेगी।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: बाहर
तख्त नसीन बकरी
एक तख्त पर दो बकरियां खड़ी-बैठी दिखीं। खड़ी बकरी की मुद्रा देखकर लगा कि उसको माइक का इंतजार है बस। माइक सामने आते ही ’भाइयों-बहनों’ करने लगेगी।
आगे एक दुकान पर कुछ लोग बुफ़े सिस्टम में नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करते आदमी की शर्ट पर लिखा था ’आलवेज ग्रेसियस’। जिसको सुबह-सुबह नाश्ता मिल जाये वह हमेशा शानदार दिखेगा ही। यह भी लगा कि जिसको शानदार देखना हो उसको पकड़कर नाश्ता करा दिया जाये। राजनीतिक पार्टियां तो करती भी हैं ऐसा। हुजूम के हुजूम को नाश्ता-पानी-पूड़ी-सब्जी खिलाकर जानदार और शानदार बनाकर अपना काम निकाल लेती हैं।
स्कूल के बच्चे आने लगे थे। कुछ बच्चे नुक्कड़ पर खड़े आपस में बतिया रहे थे। वे शायद सब बच्चों के स्कूल जाने के बाद स्कूल जाने में यकीन रखते हों। इसी बीच एक बच्ची साइकिल से आई। उससे एक बच्चा बातें करने लगा। बाकी बच्चे दोनों के बीच होती बात को अलग-अलग कोण से अलग-अलग अंदाज में सुनते-देखते रहे। बातें कुछ ही देर में खत्म हो गयीं मतलब शुरु होते ही खल्लास टाइप। बच्ची साइकिल पर आगे चली गयी। बच्चे फ़िर आपसे में अलग-अलग तरह बतियाने लगे।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, मुस्कुराते हुए, साइकिल, वृक्ष और बाहर
बीड़ी से दोस्ती के 42 साल
वहीं कुछ रिक्शे वाले खड़े थे। बच्चों को स्कूल छोडकर सुस्ताते हुये। एक रिक्शेवाले ने पूरी ताकत से बीड़ी का सुट्टा लगाया। मुझे लगा कि बीड़ी का दम घुट जायेगा। हमसे बीड़ी की दशा देखी नहीं गयी। हमने उससे कहा- ’ इत्ती जोर से सुट्टा मार रहे हो बीड़ी की जान लोगे क्या भाई?’ सुनते ही उसे बीड़ी को मुक्त करके सड़क पर फ़ेंक दिया। बीड़ी को शायद चोट आई हो लेकिन सुट्टा मुक्त होकर सुकून की सांस जरूर ले रही होगी।
दूसरे रिक्शेवाले ने मेरे कहने के बावजूद बीड़ी नहीं छोड़ी। तसल्ली से पीता रहा। बहुत अधिक शोषण करने वालों और तसल्ली से शोषण करने वालों में यही अंतर होता है। विकट शोषण के बाद मुक्ति होने की संभावना ज्यादा होती है। तसल्ली से होने वाला शोषण देर तक चलता है ।
बात बीड़ी की होने लगी तो बताया कि आठ साल की उमर से बीड़ी पी रहे हैं। अब पचास के होने वाले हैं। मतलब बीड़ी का बयालीस साल का साथ। शुरुआत छोटा बालक बीड़ी से हुई थी। इसके बाद गणेश छाप, सेठ बीड़ी, श्याम बीड़ी , गोली छाप और न जाने किन किन बीडी की बात हुई। दिन में पचास-साठ बीड़ी सुलग जाती हैं। हमने पूछा घर में कोई टोकता नहीं तो पता चला कि बाल-बच्चे हैं नहीं और बीबी दारू के चलते छोड़कर मायके चली गयी है।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, बैठे हैं, वृक्ष और बाहर
इस्टाइल कोई हीरो की बपौती थोड़ी है
इस बीच एक रिक्शे बगल से गुजरा। रिक्शे पर बैठा आदमी टांग पर टांग धरे ऐसे बैठा हुआ था जैसे शंहशाह लोग सिंहासन पर बैठते हैं। टांग पर टांग धरा आदमी स्वभाव से सामंती मन का होता है। जैसे आदमी दूसरे आदमी पर कब्जा करना चाहता है वैसे ही उसकी एक टांग दूसरे पर सवार रहना चाहती है। लाखों साल हुये इंसान को पैदा हुए लेकिन बेचारा दूसरे पर कब्जा करने की कब्ज से ही मुक्त नहीं हो पाया अब तक। इसी चक्कर में अपना और पूरा कायनात का हाजमा बिगाड़े रहता है।
सूरज भाई हमको देखकर मुस्करा रहे हैं। शायद कह रहे हैं दूसरे के हाजमें की डाक्टरी करने के पहले देख लो तुम्हारा पेट ठीक है क्या? दफ़्तर नहीं जाना क्या आज?
हम सूरज भाई को गुडमार्निंग करके मुस्कराये। वे भी मुस्कराये। आप भी मुस्करा लीजिये। मुस्कान पर फ़िलहाल कोई शुल्क नहीं है और न ही मुस्कराने के लिये आधार से लिंक करना जरूरी है।

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