Monday, September 24, 2018

नकली असली से ज्यादा चमकता है

सूरज भाई बहुत दिन बाद दिखे आज

सूरज भाई बहुत दिन बाद दिखे आज। आसमान कि छत पर खुपड़िया का जरा सा हिस्सा दिखा पहले। शायद थाह ले रहे हों कि उगते समय कोई ढपली न मार दे। जैसे कोई चोर दीवार फांदने से पहले चारो तरफ देखता होगा उसी अंदाज में मुंडी उठाकर इधर उधर देख रहे थे। किरणें दोनों तरफ रोशनी की टार्च मारते हुए अपने पप्पा की सहायता कर रहीं थीं।
उगते समय लाल सुर्ख मुंह वाले सूरज भाई ऐसे अफसर की मानिंद दिखे जो यह मानता है कि सुबह सुबह गर्म होकर दो-चार लोगों को हड़का देने से दिन शुरू करने से लोग अनुशासन में रहते हैं। यह बात अलग की सूरज भाई से अंधेरा छोड़कर कोई हड़का नहीं। अंधेरा तो उनके आने की खबर पाते ही फूट लिया। चिड़िया चहकते हुए सूरज भाई को गुडमार्निंग कह रहे थीं। सूरज भाई भी सबकी चोंच पर किरणें बरसाते हुए सुप्रभात कह रहे थे।
निकलने के बाद सूरज भाई बड़ी धीरे से ऊपर उठे। ऐसा लगा उनके रथ की क्लच प्लेट घिस गयी हो। इसी चक्कर में स्पीड कम हो गयी हो। या यह भी हो सकता है कि पहली चढ़ाई में रथ पहले गियर पर चल रहा हो। कुछ देर बाद धड़ल्ले से ऊपर उठने लगे। बिना दाएं-बायें देखे दुनिया भर को रोशनी बाँटने लगे। उनकी रोशनी बाँटने की स्पीड काम इकट्ठा हो जाने पर आंख मींचकर बाबू द्वारा क्लियर किये कागजों पर दस्तखत करने वाले साहब की स्पीड को भी मात कर रही थी।
सूरज भाई की फोटो हमारे बरामदे में के फर्श पर चमक रही थी। फोटो मने प्रतिबिम्ब। प्रतिबिम्ब देखकर फिर लगा कि नकली असली से ज्यादा चमकता है, चमचा नेता से ज्यादा बमकता है। सब कुछ उधार का है इस प्रतिबिम्ब का। फर्जी स्टार्टअप सरीखा। उधार की रोशनी, हराम की जमीन लेकिन चमक ऐसी जैसे असल का बाप हो।
किरणें सूरज भाई की कुछ ज्यादा ही खिलखिल करती दिखीं। सूरज भाई का वात्सल्य देखकर लगा कि शायद उनको भी पता चल गया कि आज बेटी दिवस है। इसीलिए 'पिता पोज' में हैं।
बहुत दिन बाद मिलने पर चाय-साय भी हुई। सूरज भाई अपनी बच्चियों की तरफ निहारते हुए बोले - मुकेश तिवारी जी सही कहते हैं:
'बेटियां अपने आप में मुक्कमल जहां होती हैं।'
और कुछ बात होती तब तक किरणों ने अपने पापा की चमकते हुए बुला लिया। सूरज भाई लपकते हुए बिना बाय बोले चल दिये। बेटी दिवस के दिन बच्चियों को नाराज करने का जोखिम उठाने की हिम्मत कहाँ उनके पास।
हम भी निकलते अब दफ्तर। आप भी मजे करिये।

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