कल देर रात लौटे पुस्तक मेले से। जब तक किस्से सुनाएं जाएं पुस्तक मेले के तब तक अगली किताब का मुखड़ा देखा जाए। किताब आ रही है रुझान प्रकाशन से। किताब लिखी है अनूप शुक्ल ने। इसमें पिछले कुछ सालों में कानपुर की घुमक्कड़ी के किस्से हैं। घुमक्कड़ी से पाया अनुभव ही इस घुमक्कड़ी की कमाई है। इसीलिए हमारी किताब का नाम रखने वाले व्यंग्य पंडित Alok Puranik ने इसका नाम तय किया 'घुमक्कड़ी की दिहाड़ी।'
नाम तय करने के साथ ही भूमिका भी लिखी है आलोक जी ने और बताया है कि अनूप शुक्ल को वो वृत्तान्तकार किस लिए मानते हैं।
हमेशा की तरह हड़बड़ी ने फाइनल की गई इस किताब का मुखपृष्ठ बनाया है Kush Vaishnav ने। आशा है कि किताब पुस्तक मेला का डेरा तंबू उखड़ने के पहले आ जायेगी विमोचन के लिए।
किताब समर्पित है अपने बचपन से बड़े होने तक के कनपुरिया संगी-साथी Sharad Prakash Agarwal, Jaidev Mukherjee संतोष बाजपेई, Vikas Telang , Ajay Tiwari राजीव मिश्र, अनिल श्रीवास्तव , लक्ष्मी बाजपेयी, ब्रजेश शुक्ल और Rakesh Dwivedi को जिनके साथ जिया समय अपन की जिंदगी की सबसे बड़ी नियामतों में से एक है।
किताब आने तक फिलहाल इतना ही।
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