आज उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पुरस्कार घोषित हुए। व्यंग्यकार मित्रों में से Subhash Chander जी को ढाई लाख रुपये का श्री नारायण चतुर्वेदी सम्मान, Alok Puranik जी को 75000/- का हरिशंकर परसाई सम्मान और Snehlata Pathak जी को 40000/- रुपये का शरद जोशी सम्मान मिला। मतलब कुल जमा 3,65,000/- की चपत व्यंग्यकारों ने उत्तर प्रदेश सरकार को लगाई। सभी साथियों को बधाई।
आलोक पुराणिक जी को इनाम जो मिला उसमें हमारा भी हाथ है। वो ऐसे कि उन्होंने हमको अपनी किताब समर्पित की थी -व्हाट्सएप के पढ़े लिखे। हमारे नाम समर्पण देखकर हिंदी संस्थान वालों ने बिना कुछ सोचे-समझे इनाम थमा दिया। यह उन लेखकों के लिए सूचना है जो अच्छा लिखते हैं और इनाम पाने की मंशा रखते हैं। हमारे नाम का जलवा चलता है हिंदी संस्थान में।
लोग भले आलोक पुराणिक को बढ़िया लेखक मानते हैं लेकिन उनके नाम से इनाम नहीं मिलते। हमने अपनी किताब 'झाड़े रहो कलट्टरगंज' आलोक पुराणिक जी को समर्पित की थी लेकिन उस पर कोई इनाम नहीं मिला। जबकि हमको समर्पित किताब पर उनको इनाम मिला। यह सूचना खासकर उन लोगों के लिए है जो किताब छपवाने के लिए एकदम तैयार हो चुके हैं और समर्पण के लिए नाम तय करने की उहापोह में हैं।
सुभाष जी के बारे भी कुछ ऐसा ही है लेकिन हम बताएंगे नहीं खोलकर काहे से कि सुभाष जी नाराज बहुत जल्दी हो जाते हैं। और नाराजगी उनकी सेहत के लिए फिलहाल उचित नहीं। दूसरी बात हमको हिंदी व्यंग्य के इतिहास वाली किताब में अपना जरा और ज्यादा जिक्र करवाना है। इसीलिए उनको बधाई देते हुए अब और बड़े इनाम के लिए भारत-भारती के लिए बधाई।
लेकिन सुभाष जी के पहले यह भारत-भारती सम्मान मिलने के लिए Arvind Tiwari जी को शुभकामनाएं। बहुत दिन से उनको भी कोई तगड़ा इनाम नहीं मिला। जल्द ही उनके 'लिफाफे में कविता' की जगह उनके हिस्से 'लिफाफे में इनाम' आये। ऐसा शायद इसलिए कि इनाम देने वाले सोचते होंगे कि अभी तो तिवारी जी नियमित लिख रहे हैं और बढ़िया लिख रहें हैं। दे देंगे उनको भी इनाम जब लिखना बन्द कर देंगे या फिर किसी गुट में शामिल हो जाएंगे।
डॉ स्नेहलता पाठक जी को भी इनाम मिला। व्यंग्य संग्रह -'एक दीवार सौ अफसाने पर।' उनको इनाम उनकी खालिस लिखाई का मिला। हर इनाम में जुगाड़ थोड़ी चाहिए होता है। स्नेहलता जी को भी बधाई। अगली बार उनको 75000/- का इनाम मिले इसके लिए शुभकामनाएं।
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