Monday, October 11, 2021

मतविभिन्नता बहस का प्राण तत्व है

 

पान की दुकान पर चाचा-भतीजे से देर तक बात हुई। चाचा ने ज्ञान गुगलिया फेंकी। चाचा की पान की दुकान है। भतीजा परचून और दीगर चीजें बेचता है। इस बीच चाचा की चाय आ गई। हमको भी ऑफर की। हमने मना की।
भतीजा भी अपनी हांकने लगा। बोला -'लोग हमको सीधा और बेवकूफ समझते हैं। लेकिन हम बहुत शातिर हैं। हर जगह उठते-बैठते हैं लेकिन मजाल कोई बुरी आदत छू जाए।'
भला इंसान भी तारीफ करने पर आता है तो साहित्यकार की तरह लगने लगता है जो अपने लिखे की ही तारीफ करता है।
चाचा-भतीजे से मिलकर सड़क पर आ गए। आगे एक नुक्कड़ पर दो बच्चे सड़क पर बैठे आग सुलगा रहे थे। लोहे के सामानों को गर्म करके, पीटकर धार देने का काम कर रहे थे। कम उम्र बच्चे के चेहरे पर रोजी रोटी के चलते बुजुर्ग जैसा हो जाने की गम्भीरता चश्पा थी। स्कूल जाने की उम्र के बच्चे सीधे जिंदगी के स्कूल में दाखिला लेकर पढ़ाई कर रहे हैं।
अलाव सुलगाता बच्चा मिट्टी गीली करके भट्टी को ठीहे पर लगा रहा था। चार-पांच साल पहले से बच्चे कर रहे हैं यह काम। अब शहर में एकाध जगह ही यह काम होता है। पुराने हुनर और काम करने के तरीके अब खत्म होते जा रहे हैं। उनकी जगह नए तरीके आ रहे हैं। फिलहाल अभी लोहा पिटवाने का सहज विकल्प नहीं आया इसलिए यह काम चल रहा है।
जिस जगह पर बच्चे अलाव लगा रहे थे उसी के पास एक होमगार्ड का अधेड़ बेंच पर बैठा मोबाइल-समुद्र में गोते लगा रहा था।
बगल की दुकान पर भीड़ थी। पता चला दारू की दुकान है। सुबह से ही ग्राहक उमड़े पड़े हैं। अनुशासित भीड़। पता चला कि कोई बन्दर दुकान में घुस गया और कई बोतलें तोड़ गया। बहस इस बात पर हो रही थी कि बन्दर बन्द दुकान में घुसा कैसे? कोई एकमत नहीं हुआ इस पर लिहाजा कयास लगते रहे, बहस होती रही। मतविभिन्नता और एकमत का अभाव बहस का प्राणतत्व है।
आगे बढ़ने पर एक साइकिल की दुकान दिखी। नाम चाचा साइकिल स्टोर। नाम के पीछे कारण पूछने पर बताया -'पहले फेरी लगाने का काम करते थे। बाद में घुटने के कारण चलना-फिरना मुहाल हो गया। इसलिए रोजी-रोटी के लिए साइकिल की दुकान खोली। आसपास के बच्चे चाचा-चाचा कहते थे तो दुकान का नाम रख लिया -'चाचा साइकिल स्टोर'।
चाचा साइकिल स्टोर वाले से और काफी बातें हुईं। देश-दुनिया-जहाज की। उनसे बात करते हुए एक बार फिर लगा कि हर इंसान अपने आप में एक महाआख्यान होता है। ऐसा महाआख्यान जो अपने पढ़े जाने का इंतजार करता है। कुछ आख्यान पढ़ लिए जाते हैं, चर्चित हो जाते हैं। बाकी अनजान-गुमनाम रह जाते हैं।
चाचा साइकिल स्टोर से बतियाने के बाद आगे बढ़े। आगे घण्टाघर तक गए। घण्टाघर इतवार की धूप में खड़ा धूप स्नान कर रहा था। छुट्टी का दिन होने के चलते उसके आसपास चिल्लपों भी कम थी। वहीं पिछले महीने रिटायर हुए फैक्ट्री कर्मचारी ने नमस्ते किया और बतियाने लगे -'साहब, आप इधर कहां, पैदल?' गोया साहब के पैदल चलने पर पाबंदी हो कोई।
उसी समय सामने से आते हुए अग्रवाल जी दिखे। हमारे मार्निंग साइकिलिंग क्लब के साथी। उनसे भी देश-दुनिया की बाते हुईं। सड़क पर खड़े-खड़े हमने पूरा तफ़सरा कर डाला। सामने से सूरज भाई सर पर धूप की चम्पी करते हुए आगे बढ़ने के लिए उकसाने लगे।
हम आगे बढ़ गए।

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