आज शाहजहाँपुर में मतदान हो रहा है। वोट पड़ रहे हैं। दूसरे चरण का मतदान। वैलेंटाइन दिवस को मतदान। अनगिनत लोग अपनी-अपनी वैलेण्टाइन से दूर इस समय मतदान करा रहे होंगे। लोकतंत्र में चुनाव वैलेण्टाइन से ज़्यादा ज़रूरी हैं।
मंच से अपने हिस्से की ई वी एम मशीन लिए लोग चले आ रहे थे। छुटके ब्रीफ़केस जैसी ईवीएम मशीनें अभी तो ख़ाली थीं लेकिन लौटकर उनके पास लोगों के वोट होंगे। वे बोल सकतीं तो शायद कहतीं -‘लोगों के वोट मेरे क़ब्ज़े में।’
आज जिस तरह से दुनिया के तमाम देशों पर कारपोरेट्स कब्जा करते जा रहे हैं उससे लगता है शायद वे भी कहते होंगे -‘ दुनिया हमारे कब्जे में, सरकारें हमारे कब्जे में, लोकतंत्र हमारे कब्जे में।’
कुछ लोग अपनी गाड़ियों और पार्टी के सदस्यों के इंतज़ार में अपनी इवीएम मशीनो को बग़ल में दबाये हुए बैठे, लेटे हुए हैं। एकाध लोग तो वोटिंग मशीन को लोग सिरहाने रखे नींदमगन भी दिखे।
निर्वाचन आयोग के नाम वाली तख़्तियाँ लोग हाथ में लटकाए हुए ले जा रहे थे। तमाम लोग इन तख़्तियों को उल्टा पकड़े थे। कुछ क्या बहुत से लोग तो निर्वाचन आयोग वाले इश्तहार को बिछाकर लेट हुए थे। दुष्यंत कुमार का शेर याद आया :
न हो क़मीज़ तो पावों से पेट ढँक लेंगे,
बहुत मुनासिब हैं ये लोग इस सफ़र के लिए।
यह शेर तो दुष्यंत जी ग़रीबों , वंचितो के लिए कहा था। कुछ समर्थ लोग तो निर्वाचन आयोग को भी क़मीज समझकर बरतने की मंशा रखते हैं।
मैदान में गाड़ियाँ लगी हुईं थीं। लोग अपनी- अपनी पार्टियों के साथ रवाना हो रहे थे। एक बस के नीचे ज़मीन पोली थी। बस का अगला पहिया ज़मीन में धँस गया। लोगों ने धक्का लगाया लेकिन पहिया दो विरोधी पार्टी के कट्टर प्रतिद्वंदियों के चुनाव की यह फँस गया। नहीं निकला। लोग पहिए को निकालने के उपाय खोजने लगे। उपाय कुछ निकल नहीं रहा था। लोगों को कुछ समझ में नहीं आया तो आपस में एक -दूसरे को कोसने , गरियाने लगे। बस से उतरे आम लोग देखते-देखते राष्ट्रीय पार्टियों के स्टार प्रचारकों में तब्दील हो गये।
मैदान के तीन तरफ़ और मैदान के अंदर भी तमाम खाने की दुकाने खुल गयीं। चाय, बिस्कुट, चाट, मसाला और न जाने कितनी तरह की दुकाने गुलज़ार हो गयीं। चुनाव ठेलियाँ वालों
के लिए , फुटकर सामान बेंचने वालों के लिए त्योहार की तरह आता है। क्या पता ये दुकान वाले दुआयें करते हों, चुनाव लगातार होते रहें। क्या पता जहां किसी एक पार्टी को बहुमत न मिलता हो वह इन्ही ठेले, रहड़ी वालों की दुआवों के कारण होता हो।
बहरहाल आज मतदान है। आप अपने मत का ज़िम्मेदारी से उपयोग कीजिए। मतदान के अधिकारों के न जाने कितने संघर्ष किए हमारे पूर्वजों ने। इसकी क़ीमत समझिए। नारा है न -‘पहले
मतदान, फिर जलपान।’
अगर जल्दी में जलपान कर चुके हों तब भी घबराने की कोई बात नहीं। आपके लिए दूसरा नारा आ जाएगा -‘ पहले मतदान , फिर कोई और काम ।’
लोकतंत्र में नारों की कोई कमी थोड़ी है। आजकल अधिकांश देशों में लोकतंत्र की इमारत ही नारों और जुमलों पर टिकी है।
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