जयपुर में जंगल प्रेमी साथियों के साथ घूमते हुए कई चीजें देखीं। अक्सर हम लोग कुछ चीजों के बारे में सुनते रहते हैं लेकिन उनके बारे में जानते नहीं। जब पता चलता है तो ताज्जुब होता है, अरे इसका मतलब यह है, ये ऐसा होता है।
ऐसा ही एक शब्द बचपन से सुनते आए थे -रत्ती। बातचीत में प्रयोग भी सुनते रहे -'हमको रत्ती भर भी परवाह नहीं।'
जयपुर जंगल यात्रा में पत्ता चला कि रत्ती एक पौधा होता है। इसका बीज लाल रंग का होता है। इसकी खूबी होती है कि हर मौसम इसका वजन स्थिर होता है। बदलता नहीं। न सावन सूखे, न भादों हरे वाला हिसाब।
वजन स्थिर होने और छोटा होने के कारण रत्ती के पौधे का इस्तेमाल पुराने समय में आभूषणों के वजन लेने में होता था। एक रत्ती का वजन 125 मिलीग्राम होता है, मतलब आठ रत्ती मिलकर एक ग्राम बनेगा। 96 रत्ती मतलब एक तोला मतलब 12 ग़्राम।
रत्ती के पौधे में तमाम औषधीय गुण भी होते हैं। जुकाम, बुखार, माइग्रेन में इसका इस्तेमाल होता है। देखने मे ख़ूबसूरत पौधे में अनेक गुण होते हैं।
जयपुर जंगल यात्रा के समय इसके बारे में पता चला। समूह के एक साथी ने इसके बारे में बताया और दिखाया तो कुछ रत्ती के बीज हमने पर्स में रख लिए। ऊपर का खोल सूख गया है लेकिन रत्ती के बीज जस के तस हैं, तरोताजा, खूबसूरत, स्वस्थ और उतने ही प्रफुल्लित जितने 3 महीने पहले दिखे थे। जब भी किसी काम से बटुआ खोलते, रत्ती के बीज मुस्कराते दिखते।
हर मौसम में एक सा वजन बनाये रखने वाला रत्ती का पौधा देखा जाए तो हमको स्थितिप्रज्ञ होने की शिक्षा देता है। न दुख में दुखी, न सुख में खुशी। समशीतोष्ण जैसा।
जिस पौधे के बारे में जानने में इतना समय लगा, उसके जैसे हो सकना कब हो सकेगा, क्या कह सकते हैं।
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