कई दिनों से फेसबुक पर कोई पोस्ट लिखी नहीं। लगता है इसीलिए फेसबुक की रेटिंग गिरी और अरबों का नुकसान हुआ फेसबुक का।
इधर बीच Priyanka Dubey की हिमांशु बाजपेई Himanshu Bajpai से बातचीत सुनी बजरिये Vineet Kumar . हिमांशु बाजपेई यू ट्यूब पर 'क से किताब' के जरिये नामचीन लोगों से किताबों के बारे में बात करते हैं। कौन पसंदीदा किताब, लेखक, पढ़ना क्यों जरूरी है आदि सवाल । अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय किताबों के बारे में।
किताबें साथ हैं तो लगता है कि बहुत कुछ साथ है। ताबीज की तरह होती हैं किताबें। तमाम अलाय-बलाय से बताती हैं किताबें।
प्रियंका दुबे की बात पहली बार सुनते हुए Jack Kerouac की आन द रोड आर्डर की। किताब आ गयी तो पढ़ना भी शुरू कर दिया। लेकिन किताब अंग्रेजी में है लिहाजा स्पीड अटकी हुई है। अंग्रेजी में पढ़ने में हाथ जरा तंग है।
'क से किताब ' की और बातचीत भी सुनी। नसीरुद्दीन शाह जी ने Gyan Chaturvedi जी की बारामासी की तारीफ की। वो किताब है हमारे पास। बारामासी और ज्ञान जी की बाकी किताबें पढ़कर कभी-कभी लगता है कि ज्ञान जी ने किताब एक ही लिखी बारामासी -बाकी सब इस किताब की टीकाएं हैं। हमको पता है कि यह बात अहमकपन की है लेकिन लग गया मन को तो लिख दिया।
बेवकूफी की बातें करने का अधिकार केवल जनप्रतिनिधियों तक थोड़ी सीमित है।
प्रियंका दुबे को दुबारा सुना तो कालिदास समग्र भी खरीद लिया। एकाध दिन में आयेगा।
किताबें इसके पहले भी खूब खरीदीं। Chandra Bhushan जी की तिब्बत पर लिखी किताब 'तुम्हारा नाम क्या है तिब्बत' पढ़ना शुरू किया तो लगा कि कितना कुछ जानने, देखने, घूमने और लिखने को बचा है दुनिया में। बेहतरीन किताब है तिब्बत के बारे में। किताब पढ़ते हुए अपने अमेरिका के किस्से पूरे करके किताब की शक्ल देने की बात फिर याद आई। देखिए कब पूरी होती है।
नसीरुद्दीन शाह जी ने अपनी बातचीत में एक बात कही। उन्होंने कहा कि जब हम परफार्म करते हैं तो सिर्फ कैमरे के सामने होते हैं। दर्शकों की बात सोचेंगे तो अपेक्षा होगी उनसे प्रतिक्रिया की। इससे इंसान अपना शतप्रतिशत नहीं दे पाता एक्टिंग को। यही बात लिखने पर भी लागू होती है।कई बार हम अपने लिखने का स्तर प्रतिक्रियाओं से तय करते हैं। प्रतिक्रिया देने वाले अक्सर अपने दोस्त लोग ही होते हैं। लिखने में हुई मेहनत का इनाम तारीफ करके दे देते हैं। इससे बहुत खुशफहमी नहीं पालनी चाहिए।
किताबें और भी बहुत सी आईं पिछले दिनों। Ashok Pande की लपूझन्ना तो Alankar को दे दी। हम फिर मंगा लेंगे। उनकी दूसरी किताब 'तारीख में औरत' बेहतरीन किताब है। इसकी कई प्रतियां ख़रीदनी हैं। मित्रों को भेंट करने के लिए बेहतरीन किताब है यह। अशोक पांडे ऐसे लेखक हैं कि सिर्फ उनको पढ़ने भर के लिए फेसबुक पर बने रहना चाहूंगा।
हिमांशु जी को 'क से किताब' के लिए अशोक पांडे जी से भी बात करना चाहिए।
किताबें और भी तमाम हैं। उनके बारे में फिर कभी विस्तार से। Kamlesh Pandey की 'डीजे पे मोर नाचा' भी मिली पिछले हफ्ते। अभिषेक ओझा की 'लेबन्टी चाह' किसी नामचीन समीक्षक का इंतजार कर रही है।
किताबों की बात चली तो बताते चलें कि हमारे अनूप मणि त्रिपाठी Anoop Mani Tripathi हमसे शाश्वत खफा रहते हैं कि उनकी किताब के बारे में हम नहीं लिखते। जबकि उनकी दूसरी वाली किताब हमने अमेरिका में रहने के दौरान आर्डर की थी। लिखेंगे भाई लिखेंगे। बड़े लेखकों पर तसल्ली से लिखा जाता है।
जिन किताबों के फोटो यहां डाल रहे वे एकदम पास हैं। नजदीकी का फायदा तो मिलता ही है।
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