निशात बाग से निकलकर डल झील की तरफ़ बढ़े। बाग से बाहर निकलते ही क़ुल्फ़ी वाले को देखकर क़ुल्फ़ी खाने का मन हुआ। लेने गये तो सोचा सबके लिये ली जाये। एक बार में दस क़ुल्फ़ी ले गये। 25 रुपये की एक । बस में पूछा कौन -कौन खाएगा ? सब बंट गईं। अपने लिए लेने के मुड़े तब तक बस चल दी। लोगों ने कहा -‘ अब छोड़ो। देर हो रही।’
बस सड़क पर टहलती हुई थोड़ी देर में डल झील के किनारे पहुँची। बस से उतरते ही सामने कुल्फी वाला दिखा। थोड़ी देर पहले कुल्फी खाने से वंचित जाने की याद ने ठेलिया तक पहुंचाया और हमने लपककर कुल्फी खरीदी। 20 रुपये की एक। कुल्फी खाते हुए शिकारे पर बैठे। बैठते ही चल दिये डल झील भ्रमण पर।
क़ुल्फ़ी बेचने वाला बालक भागलपुर का था।
शिकारे के चलते ही उसको अगल-बगल से छोटी नावों ने घेर सा लिया। हर नाव पर कोई न कोई छुटकी दुकान। किसी में चाय बिक रही है, किसी में कहवा, किसी में कुल्फी। जेवर, कपड़े, कलाकृतियां, फल मतलब की हर उस चीज की दुकान जो आप शिकारे पर बैठकर खरीद सकते हैं।
सामानों के अलावा कश्मीरी ड्रेस में फोटोबाजी वाले शिकारे भी मौजूद थे झील में। चलता-फिरता फोटो स्टूडियो। हमारे साथ के लोगों में से कुछ को उन लोगों ने उठाकर उन्होंने उनके फोटो खींचे और कुछ देर में प्रिंट भी थमा दिए।
हम इधर-उधर देखते हुए झील भ्रमण कर रहे थे। इस बीच बगल की नाव से कहवा भेज दिया गया। 40 रुपये का एक कप। इसके बाद कुल्फी भी आई। वो भी चालीस की ही। अपना माल बेचकर इधर-उधर हो गयी नाव।
नाव वाले ने बताया जाड़े में जब झील झम जाती है तो लोग यहां पर क्रिकेट भी खेलते हैं। दिसम्बर से जनवरी-फरवरी तक शिकारे ठहर जाते हैं। फिर मार्च से शुरू होती है चल-पहल।
उधर आसमान में सूरज भाई अपनी विदा वेला में रंगबिरंगे हो रहे थे। बहुरंगी परिधान धारण किये खूबसूरती से पूरी कायनात को टाटा-बॉय बॉय कर रहे थे।
झील में तैरता हुआ बाजार भी मिला। हर हाउसबोट पर एक दुकान। कपड़ों, जेवर, कलाकृतियां और तमाम तरह की दुकानें। दुकान पर बैठे लोग टकटकी लगाए हर शिकारे को ताक रहे थे। लेकिन लोग उनको देखते हुए चुपचाप आगे बढ़ते जा रहे थे।
आगे कुछ लोग मछली पकड़ने के लिए झील में कांटा डाले बैठे थे।
एक महिला एक छुटकी नाव में अपने बच्चे को बैठाए सरपट जाती दिखी। उसका झील में जाना ऐसे लगा जैसे कोई महिला भरे बाजार में स्कूटी पर बच्चे को बैठाए चली जा रही हो।
नाव वाले ने बताया यहां झील में कई गांव हैं। स्कूल हैं। अपने आप में पूरा शहर है झील। शहर जिसमें गांव भी हैं, स्कूल भी, दुकान भी, खेत भी । थाना भी, पोस्टआफिस भी , रहने को होटल भी।
एक बहुत बड़ा बाजार है डल झील। हजारों परिवारों को रोजगार देती है डल झील।
वेनिस के बारे में सुना है पानी के बीच बसा है। डल झील इस मामले में अनोखी है। एक शहर में बनी झील जो अपने में एक शहर है, एक बहुत बड़ा बाजार है।
लौटते हुए नाव वाले ने बताया कि एक फेरे का उसे 400 रुपये मिलता है। बाकी जो लोग अपनी खुशी से दे दें। हम लोगों ने भी अपनी खुशी से कुछ दिया और किनारे पर उतर गए।
बाहर बस हमारा इंतजार कर रही थी। हम बस में बैठकर होटल वापस आ गए। वहां रात का खाना हमारा इंतजार कर रहा था।
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