होटल में बतियाते गपियाते सवा तीन बजे गए। सबको कमरों में व्यवस्थित करने के बाद अनन्य ने ग्रुप में मेसेज किया:
इस पर किसी ने मजे लेते हुए पूछा :
‘क्या इसका मतलब यह है कि जब तुमने हमको रिसीव किया था तब हम अच्छे कपड़े नहीं पहने थे।’
अनन्य ने हंसते हुए जबाब दिये:
‘आप डैसिंग लग रहे थे।’
रेस्टोरेंट में सब लोगों के आने के बाद सबका आपस में परिचय हुआ। कोई भोपाल से आया था, कोई उडुपी से, कोई कोटा से , कोई अमृतसर से। कोई दिल्ली कोई कानपुर। सभी ने अपना परिचय देते हुए बताया उनको उनके बच्चों ने ठेल-ठाल कर लगभग जबरियन भेजा है कि जाओ घूमकर आओ। इन बच्चों में अधिकतर वे बच्चे थे जो अनन्य के साथ फिरगुन की ट्रिप पर जा चुके थे।इन बच्चो में अधिकतर बेटियां थीं। सबको भरोसा था कि उनकी तरह उनके मम्मी-पापा को भी ट्रिप में मजा आएगा।
रेस्टोरेंट में परिचय देते हुए लगभग सभी ने बताया कि वे फलानी जगह से आये हैं लेकिन मूलतः वे दूसरी किसी जगह से हैं। हमने बताया कि हम कानपुर से आये हैं और मूलतः भी कानपुर से ही हैं।
सबके परिचय के बाद अनन्य ने ट्रिप लीडर के रूप में ट्रिप का उद्देश्य बताया। उसने कहा:
“आपने अपने जीवन में बहुत कुछ किया होगा। अपने बच्चों के लिए और तमाम लोगों के लिए। अब आप इन छह दिनों में अपने लिए कुछ करेंगे। आपके बच्चों ने आपको यहां भेजा है, आपको एक गिफ्ट दिया है। यह मुझपर भरोसा है उनका। हम लोग बहुत सारी मस्ती करेंगे इन छह दिनों में जैसी हम लोग यंगस्टर के ग्रुप में करते हैं। हम घूमेंगे, बातें करेंगे, गाने गाएंगे, डांस करेंगे।
फिरगुन में हम अलग यह करते हैं कि लोगों के बारे में जानते हैं, उनसे दोस्ती बनाते हैं। जिस उम्र में आप लोग हैं उस उम्र तक आते-आते आपको लगता है कि जितने दोस्त बनने थे बन चुके। लेकिन जब आप इस तरह की ट्रिप करते हैं तो नए लोगों से मिलते हैं। नए दोस्त बनते हैं। उनकी कहानियां सुनते हैं। उनसे इंस्पायर हो सकते हैं। क्योंकि आपको नहीं पता कि दूसरे की लाईफ़ में क्या चल रहा है। उनके जीवन में क्या हुआ। तमाम अच्छी बातें। तो आप लोग बहुत सारी स्टोरीज अपने साथ लेकर जाते हैं। आप सभी को यहां देखकर बहुत मुझे बहुत खुशी हो रही है।मेरी ट्रिप लीडर के तौर पर 30 ट्रिप्स हो चुकी हैं। यह 31 वीं ट्रिप है। हम सब खूब मजे करेंगे।
आप सबसे मेरी एक ही रिक्वेस्ट है कि कोई किसी को जज नहीं करेगा। क्योंकि हमें नहीं पता किसका क्या बैकग्राउण्ड है। इतने सालों की जर्नी तय करके यहाँ तक आया है। अगर कोई ज्यादा फ़ोटो ले रहा है। कोई हंस रहा है। कोई गा रहा है। कोई ज्यादा फोटो ले रहा है। कोई खूब बातें कर रहा है कोई शांत है। तो हरेक चीज का एक रीजन होता है। तो हम किसी और को जज नहीं करेंगे। ढेर सारी यादें इकठ्ठा करेंगे। खूब मस्ती करेंगे। कोई रूल्स नहीं हैं। आइए चलते हैं।”
सबने ताली बजाकर अनन्य की बात की तारीफ की।
किसी को जज न करने वाली अनन्य की बात बड़ी अच्छी और मार्मिक भी लगी। अनुकरणीय भी। हम अपने रोजमर्रा की जिन्दगी में बिना जाने अपने आसपास के लोगों को बारे में राय बनाकर उनसे व्यवहार करते हैं। ऐसे में अक्सर उन लोगों के साथ और सच कहें तो खुद के साथ भी नाइंसाफी होती है क्योंकि अक्सर बाद में सच्चाई जानने के बाद पछतावा होता है।
होटल से निकलकर हम बस में बैठ गए। बस बाजार होते हुए डल झील के किनारे-किनारे होती हुई आगे बढ़ी। इतवार होने के कारण बाजार बंद था। दुकानों के बंद शटर के ऊपर लिखा था -save Dal Lake. शटर खुल जाने के बाद डल झील को बचाने का नारा शटर के साथ गोल होकर छिप जाता होगा।
डल झील को बचाने का मतलब उसको गन्दा न करने से है। तमाम लोग आते हैं, लोग उनको घुमाते हैं, डल झील के आसपास अनेक होटल हैं। अनगिनत दुकानें हैं। सब किसी न किसी तरह इसको गन्दा करने में सहयोग करते हैं। डल झील अनगिनत लोगों के लिए रोजगार का साधन है। यह बड़ा बाजार है। बाजार होने के चलते इसका गंदा होना स्वाभाविक प्रक्रिया है। गंदगी करके फिर इसे बचाने के प्रयास देखकर मेराज फैजाबादी का शेर याद आता है:
पहले पागल भीड़ में शोला बयानी बेचना,
फिर जलते हुए शहरों में पानी बेंचना।
बाजार बंद होने के बावजूद सड़क पर भीड़ बहुत थी। जगह-जगह लोग ठेले लगाए खड़े थे। एक जगह तो प्रदर्शनी लगी थी।
सुरक्षा के लिए जगह-जगह सीआरपीएफ के जवान तैनात थे। झील के सामने सड़क पर कोई गाडी खड़ी होने की मनाही थी। पुलिस लगातार गस्त लगाती हुई, सायरन बजाते हुए गाड़ियां हटवा रही थी।
कुछ देर में हम निशातबाग पहुंच गए।
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