Sunday, August 20, 2023

श्रीनगर एयरपोर्ट से होटल पैसेफिक

 


आज सुबह निकले कश्मीर के लिए। फ्लाइट सवा दस की थी। रात में कई बार जागकर समय देखा। अंततः सुबह साढ़े पांच बजे उठे। तैयार होकर नाश्ता करके साढ़े सात बजे निकले।
एयरपोर्ट समय पर पहुंचे। अंदर घुसने पर श्रीमती जी के पहचान पत्र के रूप में उनके आधार की फोटोकॉपी थी। सुरक्षा पर तैनात गार्ड ने कहा -'ओरोजिनल चाहिए।' हमने कहा -'यही है।'
उसने कहा -'इसको किसी राजपत्रित अधिकारी से अटेस्ट करवाओ। हमने फौरन बैग में मौजूद अपनी मोहर निकाली और फोटोकापी पर मार दी। उसने सिर्फ मोहर देखकर अंदर आने की अनुमति दे दी।'
इसके पहले कल कैंट एरिया में घुसने पर भी परिचय पत्र काम आया था।
सरकारी कागज और प्रमाणपत्र का जलवा ही अलग है।
एयरपोर्ट पर बोर्डिंग पास बनवाकर अंदर आये। एक जगह नाश्ता किया। तीन इडली 229 रुपये की। मद्रास में अम्मा की रसोई वाली योजना में इतने में 23 लोग नाश्ता करते हैं। लेकिन एयरपोर्ट की अलग ही दुनिया है, अलग ही दाम। हवा में उड़ने वालों की अलग ही दुनिया है।
एयरपोर्ट पर मित्र नीरज केला भाभी रेनू केला के साथ इंतजार कर रहे थे। जुलाई में रिटायर होकर पूरे मन से घूमने के लिए तैयार। हमारी फ्लाइट का टिकट रेनू भाभी ने ही कराया। जो टिकट हम तीस हजार रुपये में करा रहे थे, वो भाभी जी ने 25 हजार में करवा दिए। न जाने कौन-कौन कूपन लगाकर। नेट से खरीद भी एक कला है।
फ्लाइट समय पर ही चली। एयरइंडिया की कमान टाटा ग्रुप के हाथ में आने के बाद एयरहोस्टेस के ड्रेस बदली है। ड्रेस पहने व्योमबालायें एकदम घरेलू बालिकाएं लग रहीं थीं। जहाज हवा में उड़ा और दिल्ली के मकान माचिस के डब्बों के साइज में बदलते हुए ओझल हो गए। बादलों की भीड़ मिली। जहाज से बादल देखकर हमेशा ऐसा लगता है कि पूरी कायनात में सर्फ घोल दिया गया हो। सफेद और नीले बादल सर्फ के झाग और नीले पानी के घोल सरीखे लग रहे थे।
कुछ देर बाद एयरहोस्टेस ने नाश्ते के पैकेट थमा दिए। हमने पानी मांगा। उसने बताया इसी में है। पैकेट खोलकर देखा पानी की बोतल भी सैंडविच के साथ लेटी हुई थी। नाश्ता करके हाथ पोंछे ही थे कि जहाज नीचे उतरने लगा। थोड़ी देर में उतर भी गया।
एयरपोर्ट पर छोटे सुपुत्र अनन्य हमारा इंतजार कर रहे थे। उनकी फिरगुन कम्पनी की ट्रिप में हम पहली बार शामिल हो रहे थे। बालक ने उतरते ही सबको फिरगुन टोपी पहना दी यह कहते हुए कि यहाँ धूप तेज है। बच्चे बड़े होकर धूप से बचने के लिए इंतजाम करते हैं।
एयरपोर्ट पर सामान उठाया। बाहर निकलने के पहले फोटोबाजी हुई। भोपाल से आये पुनीत अग्रवाल जी सपत्नीक भी साथ में थे। सब लोग साथ होटल आये। बेटा बाकी के टूरिस्टों को लेने के लिए एयरपोर्ट पर ही रुक गया।
एयरपोर्ट से होटल आते हुए रास्ते में वही सब इमारतें दिखीं जो साल भर पहले दिखीं थीं। अंतर सिर्फ यह था कि पिछली बार स्वागत बरसात ने किया था इस बार धूप वेलकम कर रही थी। सूरज भाई भन्नाए हुए लग रहे थे। बहुत दिन से उनसे मुलाकात नहीं हुई थी। इसलिए शायद खफा लग रहे थे। लेकिन उनकी नाराजगी की चिंता नहीं। थोड़ी देर में खुश हो जाएंगे।
होटल वही था। जहां हम साल भर पहले रुके थे। जाना-पहचाना होटल। होटल में व्यवस्थित होकर चाय बनी। घर से लाई मठरी , लड्डू का लंच हुआ। आराम से बतियाते-गपियाते हुए आनन्दित हो रहे हैं। थोड़ी देर में ही निकलेंगे डल झील और श्रीनगर के बाग-बग़ीचे देखने।

https://www.facebook.com/share/p/pn3sPpvpNZzXe5q9/

No comments:

Post a Comment