शाहजहांपुर आजकल बाढ़ की चपेट में हैं। शहर गर्रा और खन्नौत नदियों के बीच बसा है। इन नदियों ने अपने आलिंगन में समेट रखा है शहर को। शहर इनसे बाहर निकलने की कोशिश करता है तो नदियां गुस्से से उफनकर दबोच लेती हैं उसको। शहर को अपनी औकात पता चलती है। वह सहम-सिकुड़ जाता है नदियों के आगोश में। नदियां फिर उसको प्यार से समेट लेती हैं।
जिस जगह हम रहे वहां पानी नहीं भरा था। न बारिश हो रही थी। अंदाज नहीं था कि जिनके घर पानी में डूबे हैं उनके हाल कैसे होंगे।
पता चला और हमने बाद में पुल से देखा भी कि इमारतों में पानी भरा है। घर आधे-आधे डूबे है पानी में।
लोगों ने नदियों के किनारे घर बनाये हैं। कई साल पानी नहीं आता होगा उस इलाके में तो उसको सुरक्षित मानकर वहां घर बना लिए। लेकिन जब दस-बीस साल बाद नदी में पानी बढ़ता है तो उस जमीन पर फिर से कब्जा करता है। डूबो देता है जमीन को।
नदियों किनारे बने नीचे इलाके में बने घर ऐसे होते हैं जैसे किसी ट्रेन की कोई रिजर्व बोगी में अनारक्षित यात्री आकर बैठ जाये और कि पूरी यात्रा आराम कटेगी। लेकिन चार-छह स्टेशन बाद वह यात्री आये जिसके नाम बर्थ रिजर्व है और ट्रेन में आराम से लेटे यात्री को उठाकर कहे -'भाई साहब, यह बर्थ मेरी है। खाली कर दीजिए।' यात्री बेचारा दुखी होकर खुद को और सामान को भी समेट कर सीट छोड़ देता होगा।
नदियां भी इसी तरह अपनी जमीन पर कब्जा कायम करने को वापस लौटती हैं। लोगों को अपनी जमीन पर घर बसाए देखकर भन्ना जाती होंगी। बेदखल कर देती हैं लोगों को।
लेकिन यह पानी यहाँ की बरसात का नहीं है। बांध से छोड़ा पानी है। कहीं और बरसा होगा पानी। बांध में आया होगा। बांध का पेट भरा है। उसने पानी इधर उलट दिया। बरसा कहीं, भरा कहीं कहावत है न :
एक गांव में आग लगी, एक गांव में धुंवा।
एक दिन बाद खन्नौत की तरफ पानी कम हुआ तो गर्रा की तरफ बढ़ गया। नदी किनारे तमाम इलाके पानी में डूब गए। शहर के अस्पताल के सामने घुटनों, कमर तक के पानी में लोग भागते दिखे। जो बीमार हैं उनका क्या हाल होगा।
लोग अपने घरों को छोड़कर दूसरे इलाके में भाग रहे हैं। सामान निकालना समस्या है। सामान ढोने वाली सवारियों के भाव बढ़े हैं। वो भी निकाल कहाँ पा रही है। लोग अपना सामान घर में ही छोड़ कर सुरक्षित इलाकों में जा रहे हैं।
बाढ़ के पानी ने रास्ते बदल दिए हैं। हमको 30 किलोमीटर दूर एक कार्यक्रम में जाना था। बरेली मोड़ पर पानी भरा होने के चलते दूसरे रास्ते जाना पड़ा। 30 किलोमीटर की दूरी 90 किलोमीटर में बदल गयी। रास्ते में जाम। 90 किलोमीटर की दूरी छह घण्टे में तय कर पाए।
शहर कई तरफ से पानी से घिरा है। जगह-जगह नदियों का पानी ‘जनता-दर्शन’ के लिए मौजूद है। लोग फोटो-वीडियो बनाने में जुटे हुये हैं। अनगिनत फोटो-वीडियो इधर-उधर टहल रहे हैं। लोगों के मोबाइल डिजटल बाढ़ में डूब रहे हैं।
दो दिन शाहजहांपुर रहने के बाद वापस लौट आये कल। खन्नौत की तरफ का पानी कम हो गया था। जाते समय जिधर से रास्ता पानी में डूबा था वह साफ हो गया था। उधर से ही आये।
शाहजहांपुर में तमाम मित्रों से मिलना हुआ। कुछ से नहीं मिल पाए। फिर मिलेंगे।
मित्रों के प्रेम-स्नेह की बारिश और बाढ़ में भीगे-डूबे। यह स्नेह/प्रेम की बारिश और बाढ़ ऐसी है जिसमें हमेशा भीगने और डूबे रहने का मन करता है।
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