आज अपने कनपुरिया साथी अतुल अरोरा Atul Arora की पोस्ट में नियाग्रा फाल के फ़ोटो देखे। सात साल पुराने। फ़ोटो देखकर हमको अपने कश्मीर के नियाग्रा फाल की याद आ गयी। पिछले साल कश्मीर यात्रा के दौरान देखा था यह झरना। यात्रा अपने बेटे अनन्य Anany Shukla के Firgun Travels के सौजन्य से की गयी थी। इसमें चालीस साल से ऊपर की उम्र के 'युवा' शामिल थे। इसके कुछ किस्से हमने पिछले साल लिखे थे। बाक़ी के आलस्य के चलते यादों के तहख़ाने में जमा हो गए थे। अब उनको निकालकर, धो-पोंछ कर पेश किया जा रहा है।
पिछली रात सोनमर्ग से लौटते हुए देर हो गयी। खा-पीकर , यादें साझा करते हुए अपने-अपने हिसाब से सो गए। ( पोस्ट का लिंक टिप्पणी में ) सुबह जल्दी निकलने का निर्देश था। लेकिन सुबह कौन जल्दी निकलता है। नाश्ता करते, सामान लादते, बस में बैठते और निकलते क़रीब दस बज गए। हमारी मंज़िल थी अहरबाल झरना ।
श्रीनगर से क़रीब दो घंटे की दूरी पर स्थित कुलगाम ज़िले में स्थित है। बस में बैठे तो सभी यात्रियों के गाने-डांस और अंत्याक्षरी का समा बंध गया। कुछ देर की मौज-मस्ती के बाद एक जगह बस रुकी। यह एक केसर की दुकान थी। सभी लोग बस से उतरकर केसर, कहवा, मेवों वग़ैरह की ख़रीदारी में जुट गए। दुकान वाले मुफ़्त कहवा पिलाकर ख़रीदारों का स्वागत कर रहे थे। लोग देखादेखी ख़रीदारी करते जा रहे थे। दुकान पर केसर के तमाम लाभों की फ़ेहरिस्त लगी थी।
जब लोग ख़रीदारी में जुटे थे अपन बाहर सड़क का मुआयना करने निकल आए।अमरनाथ यात्रा के चलते सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ाम थे। जवान बख़्तरबंद गाड़ियों के साथ रास्ते की निगरानी कर रहे थे। कई बख़्तरबंद वाहन हमारी संस्थान वीएफजे में बने थे। संस्थान की पट्टी वाहनों पर लगी थी।
ख़रीदारी से निपटकर लोग फिर बस में आए। आगे की यात्रा शुरू हुई। कुछ देर बाद बस मुख्य सड़क छोड़कर क़स्बे की पतली सड़क पर आ गयी। वहाँ भी बस्ती में कुछ-कुछ जगहों पर बख़्तरबंद गाड़ियों में जवान सुरक्षा में मुस्तैद थे।
बस पतली सड़कों पर बलखाती हुई, धीरे-धीरे लहराती, नख़रीले जैसे अन्दाज़ में मटकती हुई अहरबाल झरने के पास पहुँची। नीचे उतरकर हम लोगों ने बदन तोड़ अंगड़ाई लेकर पैर सीधे किए और झरने की तरफ़ बढ़े। झरने के पास तक जाने के लिए टिकट लेना था।नैसर्गिक सौंदर्य को देखने के लिए भी पैसे देने पड़े यह अपने आप में विडम्बना है। लेकिन है तो है।
मुझे डर है कि कहीं आगे चलकर धूप, हवा और बारिश जैसी प्राकृतिक और सहज सुलभ सुविधाओं का उपयोग करने पर भी कोई टिकट न लग जाए। इससे पहले कि ऐसा हो, अधिक से अधिक जगहें घूम ली जाएँ।
अहरबाल झरना झेलम की सहायक नदी वेशा नदी पर स्थित है। इसकी ऊँचाई २२६६ मीटर ऊँचाई है। अपनी ख़ूबसूरती के कारण इसकी तुलना नियाग्रा के जलप्रपात से की जाती है। जिस ऊँचाई और मात्रा में इससे पानी गिरता है उससे १०० मेगावाट बिजली बन सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह जगह जीवाश्म जैव विविधता से भरपूर है और विशिष्ट स्थानों पर घने जीवाश्म नमूनों से भरा है। 488 से 354 मिलियन वर्ष पुराना हो सकता है। मतलब लगभग 488 से 364 लाख पीढ़ी पहले के लोग। उस समय फेसबुक रहा नहीं होगा वरना कोई लिखता इसके भी किस्से।
जैसे-जैसे झरने के पास जाते गए, ख़ूबसूरती में इज़ाफ़ा होता गया। झरने की तरफ़ सुरक्षा के लिहाज़ से रेलिंग और तार लगे हुए हैं। सबसे नीचे पहुँचकर झरने के एकदम पास तक पहुँचे। रेलिंग के पीछे से झरने की ख़ूबसूरती निहारते रहे, देखते रहे, सौंदर्य-चकित होते रहे। पास से देखा फिर थोड़ी दूर से देखा। हर तरफ़ से अनोखे सौंदर्य के दर्शन हुए।
झरने में बहता पानी बहुत खूबसूरत लग रहा था। ऐसी ख़ूबसूरती को सिर्फ़ महसूस ही किया जा सकता है, बयान करना नामुमकिन है। कर भी दिया जाए तो उसे उसी रूप में महसूस करने की कोशिश में इतना 'सौंदर्य-नुक़सान' होगा जिसकी क्षतिपूर्ति असम्भव है।
एक जगह खड़े होकर देखने पर झरने के मुहाने पर ऐसा लगा मानो पानी की एक लहर इठलाती हुई एक तरफ़ से आई , एक लहर दूसरी तरफ़ से मटकती हुई आई और मुहाने पर दोनों का गठबंधन हो गया। मानों दो लहरों का गठबँधन हो गया हो मुहाने पर और वे आगे गृहस्थ के रूप में बहने लगे हों।
मेरे बेटे अनन्य ने झरने के पास लगे कँटीले तार को देखकर उसको फ़ोटो खींचते हुए कहा - ' beauty in cage पहरे में ख़ूबसूरती।'
कहने को तो कश्मीर के बारे में यह भी कहा जाता है -'एक दिल है कश्मीर सा, खूबसूरत मगर तबाह।' लेकिन हम तो इसकी ख़ूबसूरती पर ही फ़िदा हैं।
बहुत देर तक झरने के किनारे खड़े हम लोग अलग-अलग ग्रुप में फ़ोटो खिंचाते रहे। हर कदम पर झरने की ख़ूबसूरती अलग तरह से दिखती रही। फिर-फिर लौटकर आगे-पीछे देखते रहे।
लौटते समय एक जगह कश्मीर के कुछ लोग बैठे दिखे। उनसे बातचीत शुरू हुई तो उसने पूछा -' कश्मीर मोहब्बत से भरा हुआ है। आप ही बताओ आपको कश्मीर कैसा लगा?'
हमने कहा -'बहुत ख़ूबसूरत। बहुत अच्छे लोग हैं यहाँ के। '
उसने कहा -'मैंने खुद पढ़ाई की है वहाँ।बाहर। मगर मुझे कश्मीर से अच्छा कोई प्लेस नहीं लगा। कश्मीर एक तरह से जन्नत है।'
कश्मीर के बारे में पूछने वाले यह पहले कश्मीरी नहीं थे। मुझसे कश्मीर से जुड़े तमाम लोगों ने कश्मीर के बारे में पूछा है -'आपको कश्मीर कैसा लगा?'
हमारे यह कहने पर कि कश्मीर बहुत अछा लगा उनके चेहरे पर संतुष्टि भरे भाव के बाद अक्सर यह सवाल भी होता है -'फिर कश्मीर के बारे में लोग ख़राब बातें क्यों कहते हैं?'
मेरे पास इसका कोई मुकम्मल जबाब नहीं होता लेकिन अक्सर यही कहते रहे कि लोगों को यहाँ के बारे में पता नहीं। वे यहाँ आए बिना सुनी-सुनाई बातों के आधार पर अपनी राय बना लेते हैं। कश्मीर वाक़ई बहुत खूबसूरत है। यहाँ के लोग बहुत अच्छे हैं।
कश्मीर के बारे में कश्मीर के लोग जब पूछते हैं तो उनके चेहरे पर जो भाव होता है वह उसी तरह के होते हैं जैसे कोई अपनी सबसे बेहतरीन चीज़ उपलब्धि दिखाते हुए किसी की राय पूछे -'आपको यह देखकर कैसा लगा?'
यह सवाल मुझसे कश्मीर के लोगों ने कश्मीर में भी पूछा, कश्मीर से दूर पांडीचेरी में भी पूछा। स्कूल जाती मेडिकल की तैयारी करती लड़की ने भी पूछा, नौकरी करते युवा ने पूछा, आटो चलाते हुए चालक ने पूछा और झरने किनारे अपने बच्चे के साथ बैठे पिता ने भी पूछा। सबके सवालों में यह कोशिश दिखी कि लोग कश्मीर को उसी तरह खूबसूरत और मोहब्बत वाली जगह समझें जैसी वह है, जैसी कश्मीर के लोग मानते हैं।
इस लिहाज़ से हर कश्मीर निवासी चाहे, वह जहां भी हो, कश्मीर का 'ब्रांड एंबेसडर' है। वह भरसक प्रयास करता है कि लोग कश्मीर की अच्छाई और मोहब्बत के पैग़ाम को समझें।
विदा होते समय उसने हमको अपने घर खाने के लिए निमंत्रित भी किया। हमने बताया कि हम तमाम लोग हैं ,आगे जाना है हमको।
उसने 'तमाम लोग' वाली बात को पकड़ कर कहा -'कितने भी लोग होंगे, सबका इंतज़ाम हम करेंगे।'
हमने दरियादिल प्रस्ताव के आभार व्यक्त करते हुए आगे जाने की बात का हवाला देकर उससे विदा ली।
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