Wednesday, January 22, 2025

व्हाट्सएप स्टार्ट न हुआ




आज सुबह मोबाइल आन करते ही कुछ नोटोफ़िकेशन दिखे । उनमें कुछ व्हॉट्सएप के भी थे। अधिकतर गुडमार्निंग वाले। संदेश देखने के लिए व्हाट्सएप देखने के क्लिक किया तो खुला नहीं। क्लिक करते ही बाहर हो जा रहा था। कई बार कोशिश की लेकिन मेसेज दिखे नहीं।
मोबाइल को रिस्टार्ट करके भी देखा। कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। एकाध लोगों से पूछा। किसी ने कहा व्हाट्सएप फिर से इंस्टॉल करो, किसी ने कुछ और सुझाव दिए। मैंने व्हॉट्सप डिलीट किया। फिर से डाउनलोड किया। पहली बार में बिजनेस वाला हुआ। उसने कुछ और विवरण पूछे तो लगा गड़बड़ है। फिर से दूसरा बातचीत वाला डाउनलोड किया।
व्हाट्सएप शुरू करते हुए उसने पूछा चैट और डाटा रिस्टोर करना है ? हमको लगा कि बाद में व्हाट्सएप अलग से भी पूछेगा तब हाँ कहेंगे। बिना डाटा रिस्टोर किए आगे बढ़ गए। व्हाट्सएप फौरन शुरू हो गया।
शुरू तो हो गया लेकिन सारा डाटा ग़ायब हो गया। मोबाइल की पूरी मेमोरी का आधे से अधिक हिस्सा इसी डाटा का था। मेसेज, फ़ोटो, वीडियो सब गायब। व्हाट्सएप एकदम नए पैदा हुए बच्चे सरीखा एकदम साफ़ सुथरा दिख रहा था। ढाई सौ जीबी से ऊपर की मेमोरी पर झाड़ू लग चुका था। पूरा व्हाट्सएप किसी नए चिकने फर्श की तरह चमक रहा था।
महीनों से जमा डाटा, चैट, फ़ोटो, वीडियो ग़ायब हो गए। अपने में अफ़सोस करने लायक बात। लेकिन याद करने पर ऐसा कोई डाटा याद नहीं आया जिसके डिलीट हो जाने का शिद्दत से अफ़सोस हुआ हो। कुछ निमंत्रण पत्र थे उनके से जो याद थे वो दुबारा मंगा लिए कुछ मंगा लेंगे। इसी बहाने तमाम ग्रुप देखे जिनके हम सदस्य थे। महीनों से कोई हलचल नहीं थी उनमें। सबसे बाहर आए। अभी तक बीस-पच्चीस से बाहर आए। आगे और से निकलेंगे।
आज के समय दुनिया में करीब तीन अरब व्हाट्सएप खाते हैं। मतलब दुनिया की आधी-आबादी के बराबर। हमारा खाता खत्म हुआ। पुराने का सारा नाम-ओ-निशान कम से कम हमारे लिए खत्म हो गया। हमारे खाते का पुनर्जन्म हुआ आज। हमारा खाता कह रहा होगा , फिर से इसी नाशुक्रे के नंबर पर आना था। हमको भी पुराने खाते की याद कुछ दिन में बिसरा जाएगी।
दुनिया में इंसान के साथ भी कुछ ऐसा ही होता होगा। दुनिया में कुछ साल , सदी बिताने के बाद अपने-अपने हिसाब से इंसान डिलीट हो जाता होगा। उससे जुड़ी यादें कुछ लोगों को कुछ समय तक कुछ लोगों के ज़ेहन में रहती होंगी। कोई अच्छा कहता होगा, कोई बुरा। कोई बहुत अच्छा, कोई बहुत बुरा। इतना बुरा भी नहीं था, इतना भला भी नहीं था कहते हुए याद रखने वाले लोग भी होंगे। तमाम लोगों की सही तस्वीर लोगों तक पहुँचती भी नहीं होगी और वे लोग दुनिया से विदा हो जाते होंगे। दुनिया के मोबाइल से उनका खाता डिलीट हो जाता होगा। Alok Puranik जी के लेख और इसी नाम से किताब पापा रीस्टार्ट न हुए’ की तरह।
हम सब भी ऐसे ही जी रहे हैं। एक क्लिक में खत्म हो जाने और किसी और रूप में रीइंस्टाल हो जाने वाले। हाहा, हुती जलवे और चुपचाप, निस्पंद जीने वाले सभी के हाल कमोबेश एक जैसे ही होने हैं। कोई गाजे-बाजे के साथ डिलीट होगा , कोई चुपचाप बिना किसी को डिस्टर्ब किए ओ हेनरी की कहानी ‘आख़िरी पत्ती’ के नायक की तरह।
यह लिखते हुए ख्याल आया कि पढ़ने वाले दोस्त यह न समझें कि कहीं तबियत खराबी या अवसाद के चपेटे में तो नहीं आ गए अनूप शुक्ल। तो डिस्क्लेमर यह कि ऐसा कुछ नहीं। अपन मस्त, धूप सेंकते, सूरज भाई के प्रसाद की विटामिन डी पंजीरी फाँकते मजे में हैं। आप भी मजे में रहिए। जो होगा देखा जाएगा। आप भी धूप खा लीजिए फ़ोटो में ।

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Tuesday, January 21, 2025

अनूप जी को विनम्र श्रद्धांजलि



कल रात वरिष्ठ व्यंग्यकार , पत्रकार अनूप श्रीवास्तव जी के न रहने का समाचार मिला। अट्टहास पत्रिका और अट्टहास सम्मान के माध्यम से हिंदी हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में अनूप जी का यादगार योगदान रहा। बातचीत होने पर अपने पत्रकार जीवन और साहित्य से जुड़े अनगिनत किस्से सुनाते थे। हर किस्से से जुड़ा कोई दूसरा किस्सा था उनके पास। पुरानी और नई पीढ़ी से लगातार संवाद , संपर्क में रहते थे।

मेरे लेखन के लिए कहते थे, “महिलाओं के स्वेटर बुनने की तरह अनूप अपना लेखन बुनता है।” अद्भुत जिजीविषा थी उनके भीतर। बीमार होने, चोट लगने के बावजूद जरा सा ठीक होते ही सक्रिय हो जाते।
उनके न रहने से हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है। अनूप जी को विनम्र श्रद्धांजलि ।

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Monday, January 20, 2025

बेहराम कॉन्ट्रैक्टर उर्फ़ बिजीबी









 Alok Puranik पर केंद्रित किताब आलोक पुराणिक- व्यंग्य का एटीएम की छापे की कमियों को देखते हुए सब लेख फिर से पढ़े। आलोक पुराणिक जी के इंटरव्यू फिर से पढ़े। अपनी बातचीत में उन्होंने उन लेखकों का ज़िक्र किया था जिनके लेखन से वे प्रभावित रहे। उनमें एक नाम बेहराम कॉन्ट्रैक्टर, जो कि बिजीबी (Behram Contractor, Busybee) के नाम से प्रख्यात थे का ज़िक्र था। परिचय के लिए टिप्पणी में लिंक देखिए।

बिजीबी ((1930 - 9 अप्रैल 2001) अंग्रेज़ी में लिखते थे। अपनी लगभग 35 साल के लेखन में शुरुआती लेखन उन्होंने द फ्री प्रेस जर्नल , द टाइम्स ऑफ़ इंडिया ( बॉम्बे ) और मिड-डे रहते हुए किया । फिर उन्होंने 1985 में अपना अख़बार शुरू किया द आफ़्टरनून डिस्पैच एंड कूरियर (The afternoon Despatch and Courier)। इस अख़बार में बिजीबी का स्तम्भ 'राउंड एंड अबाउट' (Round and about) अखबारी के आख़िरी पन्ने पर बाएँ कोने पर छपता था। बिजीबी के लेखन की लोकप्रियता ही थी कि पाठक अख़बार पीछे से पढ़ना शुरू करते थे। इसी तरह की बात लोग शरद जोशी जी के स्तम्भ प्रतिदिन के बारे में भी कहते हैं कि उनका लिखा पढ़ने के लिए लोग अख़बार पीछे से पढ़ना शुरू करते थे।
शरद जोशी जी के 'प्रतिदिन' को पसंद करने वाले पाठकों को बिजीबी को भी पढ़ना चाहिए।
आलोक पुराणिक से पहली बातचीत ,जिसमें उन्होंने बिजीबी का ज़िक्र किया था, 2006 में हुई थी, लगभग अठारह साल पहले। कई बार उस बातचीत और बाद की बातचीतों को भी देखा था जिसमें भी बिजीबी का ज़िक्र था। लेकिन उनके बारे में जानने की ज़हमत नहीं उठाई। इस बार पुराने इंटरव्यू देखे तो उत्सुकता हुई कि पता करें कि ये बिजीबी कौन हैं जिनके लेखन से आलोक पुराणिक जी प्रभावित हैं।
नेट पर खोज की तो पता लगा कि बिजी बी तो बीहड़ लेखक रहे। उनके लेखन के मुरीद बड़े बड़े लोग रहे हैं ख़ुशवंत सिंह, शोभा डे, मारियो पूजो और तमाम पाठक भी। बिजी बी नियमित लिखते थे। चार सौ-पाँच सौ शब्दों के लेख। 35 साल तक नियमित लिखना अपने में सिद्ध लेखक का काम है। उनका लेखकीय नाम बिजीबी का मतलब (कोई ऐसा व्यक्ति जो बहुत सक्रिय या मेहनती हो ) भी उनके काम के अनुरूप था। उनके लेखन सहज आम इंसान को समझ में आने वाली भाषा में है।मज़े-मज़े में बड़ी बात कह जाने का हुनर।
अटल बिहारी बाजपेयी जी प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने मज़े लेते हुए लिखा, " बाजपेयी जी का परिवार न होने के कारण सबसे बड़ा लफड़ा यह है कि लोग अपना काम किसके ज़रिए करवाएँ।" राजनीति में किसी का पक्षधर न होते हुए, बिना कटु हुए, सबसे मज़े लेते हुए लिखना बिजीबी के लेखन की ख़ासियत है।
काफ़ी देर बिजीबी के बारे में जानकारी लेने के बाद उनका कुछ लेख भी पढ़े। देखा तो उनकी किताबें भी आनलाइन दिखीं। उनके परिचय और लेखन से प्रभाव कुछ ऐसा कि जितनी किताबें दिखीं सब ख़रीद लीं। कुल जमा सात किताबें। सब किताबें क़रीब एक हज़ार की पढ़ी। चार-चार सौ पेज की किताबें डेढ़ सौ रुपए की। सुंदर छपाई। बढ़िया काग़ज़।
किताबें ख़रीदने का अपना यही अन्दाज़ है। किसी किताब या लेख़क के बारे में अच्छा सुनते हैं तो फ़ौरन किताब ख़रीदने का मन करता है कि किताब ख़रीद ली जाए। तमाम किताबें ऐसी हैं जो ख़रीद लीं। आने पर उलट-पलट के थोड़ी बहुत पढ़ के रख ली हैं। कुछ पढ़ भी लीं। जो नहीं भी पढ़ीं उनके बारे में लगता है कभी पढ़ेंगे। कभी भी यह अफ़सोस नहीं होता कि ये किताब बेकार ख़रीदी। किताबें समृद्धि और सुकून का एहसास दिलाती हैं।
बहरहाल बात हो रही थी बिजी बी की। बिजीबी के लोकप्रिय और नियमित लेखन को समय पर करने के हिमायती थे। बिजीबी का ज़िक्र करते हुए प्रख्यात लेखिका शोभा ड़े ने लिखा है ,"and the one thing he had taught me was to keep my nose down and get on with it. A job has to be done. And please ...no fuss. Keep it zippy.Keep is simple. And make that fast. Deadlines were deadlines." (और एक चीज़ जो उन्होंने मुझे सिखाई वह यह थी कि अपनी नाक नीची रखनी है और आगे बढ़ना है । काम तो करना ही है और कृपया...कोई झंझट नहीं। इसे ज़िप्पी (जीवंत) रखें। आसान रखें। और इसे जल्दी करो। समय पर काम करना ही है।)
बिजीबी को भारत का आर्ट बुचवाल्ड (Art Buchwald) बताया गया। बिजीबी आर्ट बुचवाल्ड के प्रशंसक थे। आलोक पुराणिक बेहराम कॉन्ट्रैक्टर के प्रशंसक हैं। अपन आलोक पुराणिक को पसंद करते हैं। पसंदगी की चेन चल रही है।
आलोक पुराणिक जी ने बेहराम कॉन्ट्रैक्टर से लेखन में क्या सीखा यह वे बताएँगे लेकिन काम को समय पर करने का सलीका और बिना किसी लफड़े में पड़े लिखने के गुर जरुर सीखे। यही वजह रही क़ि वे वर्षों तक अख़बारों में नियमित लिख सके। आलोक पुराणिक कहीं भी, किसी भी जगह बैठकर समय पर लेखन पूरा करके अख़बारों, पत्रिकाओं को दे देते हैं।
बेहराम कॉन्ट्रैक्टर के बारे में फ़िलहाल इतना ही। बाक़ी फिर उनको और पढ़ने के बाद।

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गुजारे के लिए जेल




आज अख़बार में एक खबर पढ़ी। खबर का शीर्षक है-"जापान में अकेलापन दूर करने जेल जा रहे बुजुर्ग।" खबर के अनुसार जापान के टोक्यो शहर में मौजूद जेलों में इन दिनों बुजुर्ग अपराधियों की तादाद बढ़ती जा रही है। अपनी ग़रीबी और अकेलापन दूर करने के लिए छोटे अपराध में जेल जाना पसंद कर रहे हैं।

सभ्य समाज में जेल जाना बेइज़्ज़ती मानी जाती है। लेकिन जब खाने-पीने के लाले के साथ अकेलापन भी जुड़ जाए और इंसान बुजुर्ग भी हो जाए तो जीवन जीने के लिए जेलयात्रा भी एक उपाय है। जापान में जेल में बुजुर्गों को नियमित भोजन, मुफ़्त स्वास्थ्य सेवा और लोगों का साथ मिलता है। इसीलिए बुजुर्ग छोटे-मोटे अपराध करके जेल जा रहे हैं।
खबर सुनकर ओ हेनरी की एक कहानी याद आ गयी, "द कॉप एंड द एंथम।" इसका नायक एक गरीब बालक है सोपी। ग़रीबी के कारण उसके खाने-पीने के लाले पड़े रहते हैं। सोपी गुज़ारे के लिए जेल जाने की कोशिश में कई अपराध करता है, लेकिन वह गिरफ़्तार होने में विफल रहता है। फिर, जब वह अपना जीवन बदलने का फ़ैसला करता है और वास्तव में कुछ नहीं करता है, तो उसे एक अधिकारी द्वारा पकड़ा जाता है, उस पर आरोप लगाया जाता है, और उसे तीन महीने की जेल की सज़ा सुनाई जाती है।
अपने देश में भी विकट ग़रीबी है। लोगों को जीवन यापन के लिए पाँच किलो अनाज दिया जा रहा है। चुनाव के अलावा सरकार इस योजना को शायद इसलिए भी ख़त्म करने में हिचकती है कि कहीं इसके ख़त्म होते ही अपराध करके जेल जाने की कोशिश न करने लगें। लोग जेल जाने के लिए बवाल काटने लगें।जो जननेता जितने अधिक लोगों के जेल जाने का इंतज़ाम कर देगा वो उतना बड़ा लीडर कहलायेगा। जेल जाते लोग नारे लगा सकते हैं , वो है तो मुमकिन है। लेकिन अगर कभी ऐसा होगा तो जेल व्यवस्था चरमरा जाएगी।इसलिए यही मनाते है कि यह बवाल जापान तक ही सीमित रहे।

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Friday, January 17, 2025

कुंभ मेले की खबरें

 


कल सभी मीडिया चैनल कुंभ मेले की खबरें दिखा रहे थे। रात को अभिनेता सैफ अली पर हमले की खबर आई।मीडिया चैनल हमले की ख़बरें दिखाने लगे। शाम तक बीस पुलिस टीमें लगी हुईं थीं जाँच के काम में। आज सुबह देखा टीमों की संख्या और 35 हो गई। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि एक सेलिब्रिटी पर कितना ध्यान देता है समाज।

राजनीति, हिंदू मुसलमान , सत्ता-विपक्ष, कुमार विश्वास-सैफ, पर भी जिसके पास जो मसाला, भड़ास थी उसने वो पोस्ट करना शुरू कर दिया। सैफ और किसी समलैंगिक पत्रकार का किस्सा भी किसी पोस्ट पर देखा।
कुछ पोस्ट सुशांत को याद करते हुए भी लिखी गईं।
किसी मुद्दे पर हिंदू-मुसलमान-सिख-ईसाई करने वालों में बहुतायत उन लोगों की रहती है जिनका उस समाज से कभी उठने,बैठने, मिलने, जुलने, बोलने, बतियाने, सुख-दुख साझा करने का कोई अपना अनुभव नहीं रहा। ऐसे लोग सुनी-सुनाई धारणाओं पर अपनी राय बनाकर अपनी इतनी दृढ़ता से रखते हैं।
सबके अपने-अपने गढ़े किस्से हैं। उनको ही दोहरा रहे हैं लोग।
अपन भी तो वही कर रहे।
आशा है सैफ जल्दी आईसीयू से बाहर आकर कुछ और कहेंगे। इसके बाद मीडिया वालों को कुछ और मिलेंगे। इस बीच मीडिया वाले अपने हिसाब से काम चलायेंगे।
धूप बहुत खुशनुमा है। अभी इसका न कोई किराया लग रहा न कोई जीएसटी लग रही। आप भी धूप सेवन करिये। विटामिन डी मिलेगी। हड्डियां मजबूत रहेंगी।

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Wednesday, January 15, 2025

‘हनाहन’ गन्ने का रस और जामुन का सिरका



नाम रखने में हिंदुस्तानियों का कोई जवाब नहीं। कनपुरियों का खासकर। गन्ने के रस और जामुन के सिरके की दुकान का नाम ‘हनाहन’देखकर लगा कि आमजन लेखकों से कम प्रयोगधर्मी नहीं होते। यह दुकान कल्याणपुर-बिठूर रोड पर बिठूर से छह किलोमीटर पहले है।
हनाहन का मतलब गूंगे के गुड़ की तरह है। समझा जा सकता है बताना मुश्किल। Alok Puranik जी के ‘दबादब’ की तरह ‘हनाहन’। तुलसीदास जी ने प्रयोग किया है:
‘मुठिका एक महाकपि हनी’।
लेकिन हनाहन में मारपीट नहीं है। अहिंसक है यह।
नाम आज से करीब पच्चीस साल पहले रखा गया। बोर्ड तीन साल पहले लगा। रजिस्टर्ड ट्रेड मार्क युक्त दुकान है। नाम रखने वाले उमाशंकर त्रिवेदी जी नब्बे साल के हैं। मतलब यह नाम उन्होंने करीब 65 साल की उम्र में रखा।
नाम देखकर रुके। गन्ने का रस पिया। दस रुपये ग्लास। आप भी कभी पहुँचिये ‘हनाहन।’

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गंगा नदी की संगत में कुछ देर



कल धूप में बैठे Pramod Singh जी की किताब बाँच रहे थे,'बेहयाई के बहत्तर दिन।' ठहर-ठहर के पढ़ना पड़ता है प्रमोद जी को। लिखते समय उनका पूरा ज़ोर इस बात पर रहता है कि जल्दी से कोई समझ न जाए उनके लिखे का मतलब। नदी के बहाने वे लिखते हैं :
"तुमसे कहूँ,ढेरों मरतबा सोचा है मैंने, एक इंसान से ज्यादे मानवीय लगती है मुझे नदी?कितना जीवन है इस नदी में। इतना है जितना इस स्टीमर में बैठे सब लोगों को मिला दो। इस नदी में अब तक जितने लोग सफ़र किए हज़ारों साल से,उन सबको और उन सबको भी जो इसके तटों पर रहते आए, उन सबको, उतना जीवन है इस नदी के जल में।"
नदी में जीवन की बात पढ़ते ही हम फ़ौरन गाड़ी स्टार्ट करके गंगा नदी देखने चल दिए। बिठूर। घर से दूरी दिखाया 17 किलोमीटर। समय 43 मिनट।
रास्ते में जगह लोग खिचड़ी खिलाते,खाते दिखे। दोने,पत्तल में। कल्याणपुर के आगे दो महिलाओं ने हाथ देकर गाड़ी रोकने का इशारा किया तो हम समझे 'बिठूर' तक 'लिफ़्ट' के लिए कह रही हैं। गाड़ी धीमी करने पर पता चला वे खिचड़ी खाने को कह रहीं थीं। हमने हाथ जोड़ के मना किया और आगे बढ़ गए।
रास्ते में 'हनाहन' गन्ने के रस और जामुन के सिरके का बोर्ड दिखा। नए तरह का नाम देखकर उतरकर रस पिया। नाम के बारे में पता किया। बैकुंठपुर गाँव के उमाशंकर त्रिवेदी(लाला जी) ने यह नाम रखा था। 25 साल पहले। नामकरण में आम लोगों की प्रतिभा ज़बरदस्त है।
गंगा किनारे भीड़ नहीं थी। सौ-पचास लोग नहाते दिखे। लगता है सब संगम निकल लिए।
एक परिवार वहीं नहाने के बाद पूड़ी सब्ज़ी खा रहा था। एक महिला अपने पति की दिया जला के दे रही थी, गंगा में सिराने के लिए। एक बच्ची एक तख़्त पर खड़े होकर सेल्फ़ी मोड में फ़ोटो ले रही थी। एक आदमी कपड़े उतारकर दौड़ता हुआ गंगा की तरफ़ बढ़ा। किनारे तक पहुँचकर ठिठक गया। नदी से नहाकर निकले एक आदमी से पूछा, 'पानी ठंडा है?' नदी से निकले आदमी ने अंगौछे से बदन पोंछते हुए कहा, 'बहुत ठंडा है।'
वह आदमी ठिठुरकर किनारे खड़ा रहा। बाद में आहिस्ते-आहिस्ते, ठिठुरते-ठिठुरते नदी में सहमते हुए घुसा। हड़बड़ा के डुबकी लगा के वापस हो लिया।
नदी से नहाकर निकले आदमी से बतियाए तो पता चला कि बाराबंकी शहर के सिलौटा गाँव के रहने वाले हैं। पाँच लोग निकले थे घूमने। त्रयम्बकेश्वर, महकालेश्वर, सोमनाथ होते हुए कल उज्जैन में शिप्रा स्नान करके आज ही कानपुर पहुँचे बिठूर में गंगा स्नान करने।
पंद्रह दिन में कई तीर्थों की यात्रा करके अब वे लोग वापस लौटेंगे अपने गाँव। सभी सिलौटा के रहने वाले हैं। छह महीने पहले केदारनाथ गए थे घूमने। घुमक्कड़ी के तमाम किस्से,अनुभव बताए उन लोगों ने। बताया नर्मदा का पानी इतना साफ़ है कि नीचे तल पर गिरा सिक्का तक दिखता है।
इनकी यात्रा की प्रेरणा पुरुष प्राइमरी स्कूल में अध्यापक हैं। वे भी साथ में थे। जैसे ही छुट्टी मिली, निकल पड़ते हैं घूमने। जाड़े में छुट्टी हुई गुरुजी की, निकल लिए।
घूमने के लिए कहीं रिज़र्वेशन नहीं कराते ये लोग। रिज़र्वेशन से बंधन हो जाता है। ऐसे जब मन किया चल दिए, जब मन किया चल दिए।
नहाने के बाद उनमें से एक ने शंख बजाया। हमने वीडियो बनाया तो उन्होंने कहा ये भई बढ़िया बजाते हैं। हमने उनका भी वीडियो बना लिया। वे लोग बता रहे थे कि आज यहीं रुकेंगे। खिचड़ी बनाएँगे नदी किनारे। सब सामान साथ है। हमको लगा, ये होती है घुमक्कड़ी।
वहीं एक पंडित क़रीब दस लोगों को अपने चारों तरफ़ बैठाए कोई पूजा करा रहा था। वह कह रहा था लोग सुन रहे थे। हमने भी दूर खड़े होकर सुना,'जैसे हम बता रहे,वैसा करते जाओ।'
वहीं नदी किनारे बना टिकैत राय का बनवाया शिवमंदिर देखा। टिकैत राय लखनऊ के नवाब गाजीउद्धीन हैदर (1814-1827) के मंत्री थे। उन्होंने यह मंदिर बनवाया था। मंदिर में कुछ लोग पूजा कर रहे थे। तमाम लोग फ़ोटोबाज़ी करते भी दिखे। अलग-अलग पोज में फ़ोटो। लोग अपने-अपने जोड़ीदारों के अलग-अलग स्टाइल में फ़ोटो खींच रहे थे। एक लड़की मंदिर के आले में मोबाइल रख अपना सेल्फ़ी वीडियो बना रही थी। शिव मंदिर के आगे शिव वाहन भी टहलते दिखे। हमने उनकी फ़ोटो ली। वे वहीं चहलक़दमी करते रहे। अपन कुछ और फ़ोटो खींचकर नीचे आ गए।
नदी किनारे कुछ दान पात्र भी दिखे। एक में इलाक़े भी लिखे थे। 'जालौन,झाँसी,भिंड, हमीरपुर, उन्नाव,रायबरेली, हरदोई आदि' के लिए रखे दानपात्र में 'आदि' की आड़ में कोई भी दान दे सकता है। दान के लिए उत्साहित करने के लिए लिखा था :
"तुलसी पक्षी के पिए घटे न सरिता नीर। दान लिए धन न घटे, जो सहाय रघुवीर।"
चूँकि कानपुर वालों के लिए दानपात्र लागू नहीं था इसलिए हम ऐसे ही आगे बढ़ लिए। पैसे बचे।
नदी किनारे कुछ पक्षी बैठे थे। थोड़ी-थोड़ी देर में वे अचानक उड़ान भरने लगते। जैसे उड़ान अभ्यास कर रहे हों। थोड़ा उड़कर फिर वापस नदी किनारे बैठ जाते।
वहीं नदी किनारे एक चाय की दुकान पर चाय पी गयी। दस रुपए की एक चाय। थोड़ी देर और गंगा नदी की संगत में रहकर वापस लौट आए। अभी नदी की संगत टैक्स फ्री है। पता नहीं कब इसपर भी टैक्स लग जाए। जीएसटी अलग से।
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Tuesday, January 14, 2025

भुलक्कड़ी और बेवकूफ़ी किसी की बपौती थोड़ी है




 
आज सुबह चाय बना रहे थे। एक चाय बिना दूध की बननी थी। बाक़ी दूध वाली। पानी चढ़ा कर दूध डाल दिया । चीनी डाल दी। तुलसी की पत्ती डाल दी। अदरख घिसते हुए देखा कि दूध वाली चाय में दूध पड़ा ही नहीं है। इधर-उधर देखा। कहीं दिखा नहीं। दूध के कप में दूध के निशान दिख रहे थे लेकिन दूध ग़ायब।

फिर देखा तो पता चला कि दूध बिना दूध वाली चाय में खौल रहा था। दूध वाली चाय बिना दूध के उबल रही थी। उसको ज़रूर ग़ुस्सा आ रहा होगा।
चाय के भगौने न हो गए कोई वोट मशीन हो गए। एक पार्टी के वोट दूसरी पार्टी में गिनकर उसको जिता दिया गया।
बहरहाल चाय का पानी इधर-उधर करके चाय बनी और पी गयी। सुबह की शुरुआत भुलक्कड़ी से हुई।
कुछ दिन पहले एक और घटना हुई। हम बाज़ार गए थे। कुछ सामान लेना था। कार सड़क पर खड़ी करके सामान लिया। वापस आकर कार खोलने के लिए चाबी लगाने की कोशिश की। चाबी लगी नहीं। दरवाज़ा खुला नहीं। हम बार-बार चाबी घुसाने की कोशिश की लेकिन चाबी घुसी ही नहीं।
हमने सोचा क्या लफड़ा है। इसके आगे कुछ सोचें तब तक अंदर से कार का शीशा बजाने की आवाज़ आई। देखा अंदर कोई बैठा था ड्राइविंग सीट पर। वह हाथ से इशारे करके कुछ कह रहा था। हमें लगा कि कौन घुस गया हमारी कार में। लेकिन फिर उसके इशारे एहसास हुआ कि कुछ लफड़ा है।
लफड़े का एहसास होते ही बग़ल में देखा। पता चला कि हमारी कार आगे खड़ी थी। मतलब हम बेध्यानी में दूसरी कार को खोलने की कोशिश कर रहे थे। वो तो कहो हम कानपुर में थे जहां इस तरह की बातें आम हैं। कार में बैठा इंसान और अपन दोनों मुस्करा कर चल दिए। किसी और शहर में होते तो कार वाला बग़ल के थाने में रिपोर्ट लिखाने के लिए मचल जाता।
ऊपर की दोनों बातें भुलक्कड़ी की हैं, बेध्यानी की हैं। अंग्रेज़ी में इसे अबसेंटमाइंडेडनेस कहते हैं। भुलक्कड़ी के अनगिनत किस्से कहानियाँ हैं। तमाम किस्से चलन में हैं। बड़े-बड़े वैज्ञानिक भुलक्कड़ बताए गए हैं। इससे लगता है भुलक्कड़ मतलब तेज दिमाग़ वाला।
लोग भुलक्कड़ी या बेध्यानी को अक़्ल से भी जोड़कर देखते हैं। जितना बड़ा भुलक्कड़ उतना बड़ा वैज्ञानिक। भाषण देते समय बड़े लोग बोलते-बोलते अटक जाते हैं। लोग इसके लिए उनकी खिल्ली उड़ाते हैं। लेकिन असल में वे लोग वैज्ञानिक चेतना सम्पन्नता की स्थिति में होते होंगे। उनकी खिल्ली उड़ाने की बजाय तारीफ़ करना चाहिए। ख़ुशी मनानी चाहिए कि एक निठल्ले नेता के वैज्ञानिक बनने की राह खुल रही है।
भुलक्कड़ी को अक़्ल से जोड़ने वाली बात अगर सही है तो इसके लिए इंसान को बनाने वाले ईश्वर की ज़िम्मेदारी बनती है। इंसान की असेम्बली करते हुए एक की अक़्ल दूसरे में फ़िट कर दी। एक में थोड़ी कम अक़्ल डाली, दूसरी में ज़्यादा कर दी। पता नहीं यह उसने बेध्यानी में किया या अक़्ल में चूक के चलते लेकिन ज़िम्मेदारी तो उसी की बनती है। उसकी बेध्यानी के चलते न जाने कितने 'डिफ़ेक्टिव इंसानी पीस' धरती पर सप्लाई हो गए। धरती को बरबाद कर रहे हैं।
मज़ेदार बात यह कि ऐसे तमाम लोग कमअक़्ल लोग अपने को अक़्लमंद मानते हुए दुनिया भर में ग़दर काटे हुए हैं। वे शायद इस प्रसिद्ध कथन को जायज़ ठहराने पर लगे रहते हैं -"दुनिया का आधा नुक़सान उन लोगों के चलते होता है जो अपने को ख़ास समझते हैं।"( Half of the harm in the world is done by the people who think that they are imporatant)
चाय बनाने की बात से शुरू हुई बात अक़्ल तक आ पहुँची। ऐसा ही हो रहा है आजकल। विकास की बात करने वाले लोग विनाश का बटन दबा रहे हैं। क्या पता ऐसा वे बेध्यानी में कर रहे हों। भुलक्कड़ी और बेवकूफ़ी किसी की बपौती थोड़ी है।

Monday, January 13, 2025

अखबारी खबरों के बहाने



आज सबेरे अख़बार में मोटे अक्षरों में छपने वाली कुछ खबरें ये पढ़ीं :
1. महाकुंभ का आज से आरम्भ
2. कानपुर में कड़ाके की सर्दी जारी
3. भाजपा चुनाव अधिकारी को जूते का बुके दिया, मर्दाबाद के लगे नारे
4. कन्नौज रेलवे स्टेशन हादसे में ठेकदार और इंजीनियर पर मुक़दमा दर्ज
5. अमेरिकी राष्ट्रपति का शपथ समारोह इस बार ख़ास होगा
6. यूपी -बिहार के बजट से भी ज़्यादा लॉस एंजिल्स में आग से नुक़सान
7. बीमारी के लिए छुट्टी लेने वाले कर्मियों की हो रही जासूसी
महाकुंभ इलाहाबाद में शुरू हो रहा है। 144 साल बाद आता है इस तरह का महाकुंभ। उनकी तैयारियों, इंतज़ाम और सम्भावित घपलों की अनेक आती रहती हैं। साधुओं की ट्रेन में मारपीट और एक साधु द्वारा यूट्यूबर को चिमटिया देने के वीडियो वायरल हो रहे हैं। साधुओं को मिलने वाली सुविधाओं को देखते हुए क्या पता आने वाले समय में 'मनरेगा' की तर्ज़ पर 'सधुरेगा' योजना बने। इतने भजन गाने /इबादत करने पर या इतनी बार किसी का नाम लिखकर जमाकरने पर इतना भत्ता मिलेगा। इसके लाभ लेने के लिए क्या पता पढ़े-लिखे बेरोज़गार युवा इसके लिए अप्लाई करें और काम से लगें।
सर्दी के क़िस्सा तो पूरे उत्तर भारत में जारी है। कानपुर में कड़ाके की सर्दी पड़ रही है। क्या पाता सर्दी से निजात पाने के लिए भाजपा चुनाव अधिकारी से अलग तरह का व्यवहार किया गया हो। अलग तरह की पार्टी में अलग तरह का व्यवहार चलता है।
कन्नौज रेलवे स्टेशन में पचास मीटर की स्लैब गिर जाने से पचास से ऊपर मज़दूर घायल हो गए थे। शटरिंग ठीक से न होने से हादसा हुआ बताया गया है। ठेकेदार,इंजीनियर पर मुक़दमा होने के बाद मामला कुछ दिन तक चलने के बाद कहीं बैठ जाएगा। आराम करेगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण की खबरें लगातार चर्चा में हैं कई दिनों। चर्चाओं में अपने प्रधानमंत्री के न बुलाए जाने की चर्चा, अधिकतर में चटखारे लेकर, हो रही है। चर्चा का टोन ज़ाहिर करता है कि अमेरिका के राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण में देश के प्रधानमंत्री को न बुलाना मतलब ट्रम्प की नाराज़गी है। लोग इतने विश्वास से बयानबाज़ी कर रहे हैं मानों वहाँ के निमंत्रण पत्र पर हल्दी-रोली उन्हीं लोगों ने लगायी है। नहीं बुलाया तो न सही। जाड़े में पंद्रह-बीस घंटे उड़कर जाना जी हलकान करने वाला ही काम है। हो सकता है उनके यहाँ चलन ही न हों।
लॉस एंजेल्स में लगी आग अमेरिका के लिए चुनौती तो है ही। उस इलाक़े के तमाम घर जल गए हैं। वहाँ तो बिजली के खंभे भी लकड़ी के होते हैं। सब कुछ लकड़ी का। जल गया। जल रहा है। पता चला कि बीमा कम्पनियों ने लोगों के बीमे में घपला किया। आग लगने के पहले बीमा निरस्त कर दिया। अब मामला अदालतों में जाएगा। निपटेंगे लोग। लेकिन इससे यह तो पता चलता है कि पूँजीवादी समाजों में संस्थाएँ धोखेबाज़ होती हैं। कानूनों की सलवार पहनकर मजमे से फूट लेती हैं। सरकारें भी अपने हिसाब से, कानूनों के छेद से निकालकर, घपलेबाजी क़रके उनको सहायता देती हैं।
अपने कर्मचारियों की जासूसी कराने वाली बात काम से जुड़ी हुई है। खबर जर्मनी की है। वहाँ लोग बीमारी के बहाने छुट्टी लेकर घर बैठ जाते हैं। इससे अर्थव्यवस्था को नुक़सान हो रहा है। इसलिए अपने कर्मचारियों की जासूसी करा रही हैं कम्पनियाँ कि क्या वे सही में बीमार हैं।
इसी सिलसिले में पिछले दिनों L&T के चेयरमैन के चर्चित बयान पर भी खूब हल्ला मचा है। उनका कहना है कि हफ़्ते में 90 घंटे काम करना चाहिए। काम करने वाले हल्ला मचाए हुए हैं, बताओ ऐसा कहीं होता है? तमाम देश तो हफ़्ते में चार दिन काम की बात कर रहे हैं। ये महाराज रोज के क़रीब 13 घंटे खपाने की बात कर रहे हैं। 'घंटे बढ़ाने से परिणाम भी घंटा ही आएगा' जैसे बयान भी आ रहे हैं।
काम के घंटे बढ़ाने से आउटपुट बढ़ने की बात L&T के चेयरमैन कर रहे हैं इससे लगता है उनके हिसाब से उनके यहाँ होने वाले काम में दिमाग़ नहीं लगाना होता होगा। घंटे लगते होंगे। काम में परिणाम लगाए गए घंटों के समानुपाती होगी।
जो लोग L&T के चेयरमैन की बात विरोध कर रहे हैं। उनकी खिल्ली उड़ा रहे हैं। उनके तर्क सही हैं या ग़लत इस पर कुछ न कहते हुए यह कहना चाहता हूँ कि देश के ज़्यादातर निर्णायक पदों पर बैठे लोग काम के घंटों से अपनी ज़िम्मेदारी के निर्वाह को आंकते हैं। जिस देश का प्रधानमंत्री 18 घंटे काम करने को अपनी ज़िम्मेदारी निबाहने का पैमाना मानता हो उस देश के उच्च पद पर बैठे लोगों द्वारा काम के घंटों की महिमा का गुणगान करना स्वाभाविक है।
क्या पता वे मिलने पर बताएँ महामहिम को कि साहब 18 घंटे के हिसाब से हफ़्ते के 126 घंटे होते हैं। मैंने केवल 90 की वकालत की है। आपको कोई चिंता करने की ज़रूरत नहीं। आपकी बराबरी किसी को नहीं करने देंगे। हमको भी कुछ काम-वाम दिलाइए।
काम मिला कि नहीं यह आने वाला समय बताएगा।
हफ़्ते में 90 घंटे काम का विरोध करने वाला तबका वो तबका है जिसके पास इन सब बातों को पढ़ने, महसूस करने, समझने, प्रतिक्रिया करने की समझ, मौक़ा और साधन हैं। देश का बहुत बड़ा तबका ऐसा भी है जो बिना L&T चेयरमैन का आह्वान सुने हफ़्ते के सातों दिन 13 घंटे से ज़्यादा ही खटता रहता है। ये लोग वे लोग हैं जो असंगठित क्षेत्र में काम करते होंगे। उनकों किसी कम्पनी के चेयरमैन की बात सुनने का मौक़ा है न मतलब। वे लगे रहते हैं। काम करते रहते हैं। उनके लिए किसी की कही बात का कोई मतलब नहीं।
ज़िंदा रहने के लिए काम करने वालों के लिए काम के घंटे मायने नहीं रखते। अफ़सोस यह ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।

Saturday, January 11, 2025

आलोक पुराणिक -व्यंग्य का एटीएम का संशोधन



Alok Puranik जी को हिंदी व्यंग्य का प्रतिष्ठित व्यंग्यश्री सम्मान, 2017 में मिला था। यह सम्मान प्रतिष्ठित व्यंग्यकार पंडित गोपाल प्रसाद व्यास जी की स्मृति में उनके जन्मदिन के मौके पर दिया जाता है। आम तौर पर बुजुर्गों , मतलब लगभग वरिष्ठ नागरिक की उमर वालों मिलने वाला सम्मान शायद पहली बार पचास साल की उमर पूरे किए युवा को मिला था। सम्मान 13 फरवरी, 2017 को नई दिल्ली के हिंदी भवन सभागार में प्रदान किया गया था।
सम्मान समारोह के मौके पर आलोक पुराणिक जी के घर-परिवारी जन, मित्रों-सहेलियों-प्रशंसकों और आलोक पौराणिक से काम भर की ईर्ष्या रखने वालों के साथ मैं भी उपस्थित था। सम्मान समारोह की रिपोर्टिंग भी की थी हमने। इस मौके पर लिए आलोक पुराणिक जी के इंटरव्यू को लोगों ने काफ़ी पसंद किया था। लिंक टिप्पणी में।
सम्मान-समारोह के बाद आलोक पौराणिक जी के 51 वें जन्मदिन के मौके पर उनके बारे में किताब निकालने का विचार आया। विचार सितंबर माह के दूसरे हफ़्ते में बना। आलोक जी का जन्मदिन 30 सितंबर को पड़ता है। तय किया कि उनके जन्मदिन के पहले किताब आ जाये और किताब का विमोचन 30 सितंबर को किया जाये।
किताब का नाम फेसबुक पर रायशुमारी के बाद तय किया गया -आलोक पुराणिक-व्यंग्य का एटीएम।
किताब में लगभग बीस दिनों में आलोक पुराणिक जी के बारे में 32 संस्मरण , कई इंटरव्यू , व्यंग्यश्री सम्मान की रपट, आलोक पुराणिक के चुनिंदा लेख, शेरो-शायरी भी शामिल है। ई- बुक के रूप में प्रकाशित किताब का बाद में पुस्तक संस्करण प्रिंट में प्रकाशित हुआ -रुझान प्रकाशन से। हमारे अनुरोध पर Kush Vaishnav ने सभी लेखकों को , जिनके लेख पुस्तक में शामिल हैं, एक प्रति भेजी।ई बुक हम पहले ही भेज चुके थे।
जल्दबाजी में प्रकाशित इस किताब में प्रूफ की तमाम कमियाँ रह गईं। आलोक जी पर पीएचडी करने वाले शोध छात्र की जीवन संगिनी (जो स्वयं ज्ञान चतुर्वेदी जी के साहित्य पर शोध रत हैं) ने हिचकिचाते हुए इस इस चूक की तरफ़ इशारा किया तो हमने तय किया कि सबसे पहले यही काम किया जायेगा।
पिछले हफ़्ते प्रूफ की तमाम गलतियों पर निशान लगाने के बाद सुधार का काम जारी है। जल्द ही इसे ठीक कर लिया जाएगा।
जिन लेखकों ने इस किताब में लेख लिखे थे उनकी उपलब्धियों, सम्मानों और किताबों में इजाफा हुआ होगा। सभी से अनुरोध है कि लेखक परिचय में अपना संशोधित परिचय भेज देंगे ताकि मैं संशोधित किताब प्रकाशित करते हुए उसमें शामिल कर सकूँ।
किताब ई बुक और प्रिंट दोनों प्रारूपों में छपेगी।
और भी कोई सुझाव हो तो निसंकोच मुझे मेसेज करके या मेरी मेल anupkidak at g mail डॉट कॉम पर भेज सकते हैं।

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Wednesday, January 08, 2025

आइए चलें श्रीलंका की सैर पर



रिटायर होने के बाद सोचा था कि खूब घूमेंगे। देश-विदेश। देश में तो थोड़ा-बहुत इधर-उधर घूमे भी। विदेश यात्रा का खाता खुलता बाक़ी है। अब समय आ गया है विदेश यात्रा का।
विदेश यात्राओं की शुरुआत अगले माह होगी। श्रीलंका से। 8 फ़रवरी से 15 फ़रवरी तक। यह यात्रा मेरे बेटे Anany की टीम फिरगुन ट्रेवल्स Firgun Travels के साथ होगी।
आप भी साथ चलना चाहें तो चलें। श्रीलंका के लिए वीजा फ्री है। तुरंत मिलता है। जो लोग गए हैं, उन्होंने बताया है बहुत खूबसूरत है श्रीलंका।
यह ट्रिप खासतौर पर 45+ उम्र के लोगों के लिए है। बच्चे भी आ सकते हैं साथ में। उम्र में थोड़ा-बहुत इधर-उधर चल जाएगा। 18 से 20 लोग रहेंगे ट्रिप में। यात्रा के विवरण टिप्पणी में दिए लिंक में दिए हैं। कोई और जानकारी लेनी ही तो उसी लिंक में दिए मेल या फ़ोन 📞 पर पूछ सकते हैं।
श्रीलंका पहुँचने के बाद होटल स्टे और घूमने और नाश्ते + डिनर का खर्चा पचास हज़ार रुपये है। श्रीलंका जाना और आना अपने खर्चे पर होगा। घूमने की जगहों के विवरण और ठहराव टिप्पणी में दिए लिंक में जाकर देख सकते हैं।
जो मित्र साथ चलना चाहते हैं वो बतायें। सीट बुक करायें। सैर के लिए निकलें। इसके पहले कि घूमने लायक न रहें, खूब घूम लें। राहुल जी ने बताया ही है :
सैर कर दुनिया कि ग़ाफ़िल,जिंदगानी फिर कहाँ
जिंदगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ।
तो चलिए, जो होगा देखा जाएगा। विवरण टिप्पणी में।

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