काठमांडू के बुद्ध स्तूप पर अपने बच्चे के साथ चाय बेचती रेशमा |
पिछले दिनों युवाओं के आंदोलन के चलते वहाँ की सरकार के सभी मंत्रियों ने इस्तीफे दे दिया। आंदोलनकारियों ने कई मंत्रियों को मारा-पीटा। संसद जला दी। युवाओं के इस आंदोलन के पीछे वहाँ बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और सरकार में शामिल लोगों और उनके परिवारी जन की विलासिता पूर्ण जिंदगी के चलते जनता में फैला आक्रोश मुख्य कारण माना जा रहा है। कई सोशल प्लेटफार्म पर सरकार द्वारा बैन लगाया जाना इस आंदोलन का ट्रिगर पॉइंट बना।
नेपाल के आम आदमी की छवि एक मेहनती, ईमानदार और कर्मठ इंसान की होती है। अनेक कहानियाँ नेपालियों के इन गुणों को दर्शाते हुए लिखी गई हैं। ऐसे समाज के सत्ता पदों पर बैठे लोग भ्रष्टाचार में इस कदर डूब जायें कि उनकी जनता उनको दौड़ा-दौड़ा कर पीटे इससे पता चलता है कि सत्ता का चरित्र कैसा होता है।
नेपाल की घटनाओं से मुझे नवंबर , 2022 में एक हफ़्ते की नेपाल यात्रा के अनुभव याद आए। नेपाल में ख़ुद का कोई उत्पादन सिस्टम नहीं है। अधिकतम सामान विदेशों से आयात किया जाता है। एक दरबान से हुई बातचीत के अनुसार :
"होटल के बाहर दरबान मुस्तैद था। बातचीत से पता चला कि काफी दिन सऊदी अरब रह कर आये हैं। तबियत खराब हो गयी तो अब वापस आ गए। अब नहीं जाएंगे। वहाँ पैसा बहुत है लेकिन रहने की तकलीफ भी काफी।
नेपाल में मंहगाई की बात चली तो उन्होंने बताया कि यहां सब सामान तो बाहर से आता है। इसीलिए मंहगाई है। भारत मे मोटरसाइकिल के दाम पूछे हमसे तो हमने अंदाज से बता दिया -एक लाख रुपये। इस पर वो बोले -'यहाँ आते आते मोटरसाइकिल तीन से चार लाख रुपये मिलती है। पेट्रोल 200 रुपये लीटर है। हर सामान बाहर से आता है इसी लिए बहुत मंहगाई है।"
सरकार में कितना है यह कहना मुश्किल लेकिन हम लोग जब अपना सामान नेपाल सरकार को सप्लाई करने के लिए वहाँ के सेना के अधिकारी से मिले तो उन्होंने सबसे पहला सवाल यह किया -"आपका नेपाल में एजेंट कौन है।"
नेपाल में हमारे जो एजेंट मतलब चैनल पार्टनर जो कि हमारी तरफ़ से नेपाल सरकार के टेंडर में भाग लेने वाले थे उन्होंने अगले दिन हमारी मुलाक़ात एक बड़े अधिकारी से यह कहते करायी कि अगले महीने ये विभाग प्रमुख बनने वाले हैं। ये ही सब तय करेंगे।
नेपाल में कई लोग मिले जिनके घर वाले विदेशों में कमाने गए थे। बुद्ध मंदिर में चाय बेचने वाली रेशमा ने बताया था कि उसका पति कमाने के लिए अरब देश गया है। वह अपने पति को बिना बताये अपने खर्चे के लिए चाय बेचती है। लौटते समय कई लड़कियां एयरपोर्ट पर मिलीं जो काम के सिलसिले में विदेश (दुबई) जा रहीं थीं। बाद में उनसे कुछ दिन बातचीत हुए जिससे पता चला कि वे वहाँ सामान्य 'सेवादार' का ही काम करती हैं।
सरकार का बनाने का सिस्टम कुछ ऐसा है कि पिछले 18 वर्षों में 14 बार प्रधानमंत्री बदले गए। इसमें भी आंदोलन के पहले तक प्रधानमंत्री रहे के पी शर्मा ओली सबसे अधिक चार बार प्रधान मंत्री रहे। एक प्रधानमंत्री का अधिकतम कार्यकाल 3 साल 88 दिन रहा (केपी शर्मा ओली)। सबसे कम समय (60 दिन) तक प्रधानमंत्री रहने का भी रिकार्ड भी केपीशर्मा ओली का ही है। पुष्प कमल दहल तीन बार प्रधानमंत्री रहे। शेर बहादुर देउबा दो बार रहे प्रधानमंत्री। इस तरह देखा जाये नेपाल में घूम-फिर कर सात लोग प्रधानमंत्री बनते रहे।
नेपाल में प्रधानमंत्री के पद पर एक ही आदमी कई-कई बार बनता रहा। ऐसे जैसे कोई कहे -"यार, मैं खड़े-खड़े थक गया हूँ। थोड़ी देर को मुझे बन जाने दो प्रधानमंत्री। तुम कुछ दिन बाद फिर बन जाना।"
नेपाल की अस्थिर सरकारों के पीछे एक बड़ा कारण शायद वहाँ स्वतंत्र जनप्रतिनिधियों की संख्या है। स्वतंत्र जनप्रतिनिधियों को अपने पक्ष में करके सक्षम लोग प्रधानमंत्री बन जाते हैं। केपीशर्मा ओली को कुर्सी से प्रेम था। उसको पाने के लिए वे जुगाड़ लगाते रहे, प्रधानमंत्री बनते रहे।
नेपाल से आने वाली खबरों के अनुसार वहाँ हिंसा की घटनाएँ कम हुई हैं। अंतरिम सरकार के गठन की बात चल रही है। आने साले समय में शायद वहाँ स्थिति बेहतर हो।