Tuesday, May 31, 2005

आओ तुमको एक गीत सुनाते हैं


pramod tiwari
प्रमोद तिवारी
कवि सम्मेलन अपने पूरे शबाब पर था । विनोद श्रीवास्तव पूरे हाल की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सोम ठाकुर जी का आशीर्वाद पाकर बैठ चुके थे। संचालक डा. हसन मेंहदी ने कहा:-
मैं चाह रहा हूं कि मैं आपकी मुलाकात एक ऐसे कवि और शायर दोनों से करवाऊँ जिसका आजका दिन बड़ी उपलब्धियों का दिन है।गणेश चतुर्थी के अवसर पर ‘हेलो कानपुर’ के माध्यम से प्रमोद तिवारी मुख्य संपादक के रूप में पहचाने गये। एक अच्छा पत्रकार,एक अच्छा लेखक,एक अच्छा गीतकार और आज का दिन उनके लिये और भी खास है कि आज उनकी शादी की वर्षगाँठ भी है। यह संयोग है कि इस समय इनको जहाँ होना चाहिये वहाँ नहीं हैं और जहाँ नहीं होना चाहिये वहाँ हैं। लेकिन फिर भी आपका स्नेह इनको ऐसा मिलना चाहिये कि इन्हें लगे कि यह इनकी जिंदगी का खास दिन है।मैं भाई प्रमोद तिवारी को पूरे प्यार-सम्मान से बुलाते हुये अनुरोध कर रहा हूँ कि वे गीत पढें,गज़ल पढ़ें जो मन आये पढ़ें पर मेरी खास फरमाइस उनसे रिश्तों वाला वह गीत सुनाने की है जो कि गीत की विधा में अभिनव प्रयोग है।प्रमोद तिवारी अपनी तमामतर शायरी के हुस्न के साथ-
इस अनौपचारिक आमंत्रण के बाद प्रमोद तिवारी खड़े हुए। शुरु किया:-
आज सारा दिन इसी प्रेक्षागृह मे बीत गया। यहाँ कुछ चेहरे सुबह से मेरे साथ हैं इस समय भी हैं।क्या कहें कुछ समझ में नहीं आ रहा ।अपने घर में खड़े हैं।चार पंक्तियों से सीधे-सीधे अपनी बात शुरु कर रहा हूं:-
सच है गाते गाते हम भी थोड़ा सा मशहूर हुए,
लेकिन इसके पहले पल-पल,तिल-तिल चकनाचूर हुए।
चाहे दर्द जमाने का हो चाहे हो अपने दिल का,
हमने तब-तब कलम उठाई जब-जब हम मजबूर हुए।

हाल तालियों से गूँजने लगा।कई बार सुनानी पड़ीं ये लाईने प्रमोद तिवारी को। प्रमोद तिवारी कानपुर के दुलरुआ कवि हैं। ये कनपुरियों को तथा कनपुरिये इनकी कविता को बहुत अपना मानते हैं। अपनी पूरी कनपुरिया ठसक के साथ कविता पढ़ते हैं।प्रमोद तिवारी के बारे में शायर शाह मंजूर आलम ने लिखा है:-
हमारे प्रमोद तिवारी दीवाने पैदा हुये हैं, दीवाने होकर जवान हुये और जब भी इस दुनिया से उस दुनिया का सफर करेंगे तो दीवानगी के साथ ही झूमते हुये छलांग लगायेंगे।
कइयो कवितायें मुंहजवानी याद हैं लोगों को ।अक्सर होता है कि इधर मंच से प्रमोद कविता पढ़ रहे होते हैं,उधर श्रोता तालियों के कोरस में साथ दे रहे होते हैं। मुझे लगता है आज के देश के सबसे बेहतरीन गीतों का संकलन अगर किया जाये तो उनमें कुछ गीत प्रमोद तिवारी के जरूर होंगे।नीरज ने इनके बारे में लिखा है:-
हिंदी कविता के मंचों पर मुझे प्रमोद की तरह गजलें कहता और पढ़ता कोई दूसरा नहीं दिखाई देता।हिंदी में जब भी सही गजल लिखने वालों की तलाश होगी तो प्रमोद का नाम प्रथम पंक्ति में लिखा जायेगा।
अगला गीत जो प्रमोद तिवारी ने पढ़ा उसके पहले उनका परिचय जरूरी है। ३१जनवरी,१९६० को कानपुर में जन्में प्रमोद तिवारी पत्रकारिता में दैनिक जागरण समूह से १२ वर्ष तक जुड़े रहे। नरेन्द्र मोहन के रहने तक प्रमोद तिवारी जागरण समूह से जुड़े रहे। नरेन्द्र मोहन के बाद शायद उस समूह में प्रमोद की दीवानगी को सहेजने का माद्दा नहीं रहा ।बहरहाल वे जागरण ग्रुप से अलग होने बाद कुछ दिन इधर-उधर रहने के बाद प्रमोद तिवारी ने कानपुर से ‘हेलो कानपुर’ साप्ताहिक का प्रकाशन उसी दिन सबेरे शुरु किया था। यह अखबार उन स्थानीय समस्याओं को सामने लाने के उद्देश्य से शुरु किया गया जिनको बड़े, अखबार समूह अपनी व्यवसायिक मजबूरियों /समझदारी के चलते सामने लाने में हिचकते हैं। साप्ताहिक सहारा समय में शहरनामा में प्रमोद तिवारी के मखंचू मियां पूरे शहर का जायजा लेते रहते हैं। अगला गीत जिस तेवर का था वह प्रमोद तिवारी का खास ठसक वाला तेवर है:-

हम तो पिंजरों को परों पर रात-दिन ढोते नहीं,
आदमी हैं -हम किसी के पालतू तोते नहीं ।

क्यों मेरी आँखों में आँसू आ रहे हैं आपके
आप तो कहते थे कि पत्थर कभी रोते नहीं।
आप सर पर हाथ रखकर खा रहे हैं क्यों कसम,
जिनके दामन पाक हों वो दाग को धोते नहीं।
ख्वाब की चादर पे इतनी सिलवटें पड़ती नहीं,
हम जो सूरज के निकलने तक तुम्हें खोते नहीं।
दिल के बटवारे से बन जातीं हैं घर में सरहदें,
कि सरहदों से दिल के बटवारे कभी होते नहीं।
क्यों अँधेरों की उठाये घूमते हो जूतियाँ,
क्यों चिरागों को जलाकर चैन से सोते नहीं।
हम तो पिंजरों को परों पर रात-दिन ढोते नहीं,
आदमी हैं -हम किसी के पालतू तोते नहीं ।

संयोग कि मंच के एकदम सामने जागरण ग्रुप के वर्तमान प्रबंध संपादक बैठे थे।जब हमने पूछा कि क्या खासतौर पर उन्हीं को सुनाने के लिये था!
प्रमोदजी मुस्कराते हुये बोले-यार ,यह तो संयोग है -चपक गया
अगला गीत चांद के विभिन्न रूपों के बारे में था । कुछ पंक्तियाँ थीं:-
चाँद तुम्हें देखा है पहली बार
ऐसा क्यों लगता लगता हर बार
कभी मिले फुरसत बतलाना यार,
ऐसा क्यों लगता मुझको हर बार!

बादल के घूँघट से बाहर जब भी तू निकला है
मैं क्या,मेरे साथ समंदर तक मीलों उछला है,
आसन पर बैठे जोगी को जोग लगे बेकार,
चाँद तुम्हें देखा है पहली बार,
ऐसा क्यों लगता मुझको हर बार।

प्रमोद तिवारी किस संवेदना के कवि हैं यह बानगी मिलती है उनके उस समर्पण से जो उन्होंने अपने गज़ल संग्रह सलाखों के पीछे को अपने स्वर्गीय पिता को समर्पित करते हुये ने लिखा है:-
परम पूज्य स्वर्गीय पिता को जिन्हें मैं कभी अपनी ग़जलें न तो सुना सका और न पढ़ सका लेकिन छुप-छुपकर उन्होंने मुझे सुना भी और पढ़ा भी और फिर अपने मित्रों के बीच सराहा भी,भर-भर मुंह आशीष के साथ।
pramodji2
प्रमोद तिवारी कविता पाठ करते हुये
अगला गीत जो प्रमोद जी ने पढ़ा वह एकदम नये अंदाज में था।अभिनव प्रयोग। जिसके लिये संचालक ने खास फरमाइस की थी -रिश्तों वाला गीत।अहसास का यह गीत अपना पूरा मजा रूबरू होकर सुनने में ही दे सकता है। पचीसों बार सुन चुका हूं यह गीत। हर बार दुबारा सुनने का मन करता है। आओ बच्चों तुम्हें दिखायें झांकी हिंदुस्तान की या फिर मां कह एक कहानी वाले एकदम हल्के-फुल्के ,मजे-मजे वाले दोस्ताना अंदाज में शुरु हुई बात कैसे संवेदनात्मक अहसास से जुड़ती चली जाती है यह पता ही नहीं चलता। गीत है:-
राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं
ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं
आओ तुमको एक गीत सुनाते हैं
अपने संग थोड़ी सैर कराते हैं।

मेरे घर के आगे एक खिड़की थी,
खिड़की से झांका करती लड़की थी,
इक रोज मैंने यूँ हीं टाफी खाई,
फिर जीभ निकाली उसको दिखलाई,
गुस्से में वो झज्जे पर आन खड़ी,
आँखों ही आँखों मुझसे बहुत लड़ी,
उसने भी फिर टाफी मंगवाई थी,
आधी जूठी करके भिजवाई थी।
वो जूठी अब भी मुँह में है,
हो गई सुगर हम फिर भी खाते हैं।
राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं
ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं।
दिल्ली की बस थी मेरे बाजू में,
इक गोरी-गोरी बिल्ली बैठी थी,
बिल्ली के उजले रेशम बालों से,
मेरे दिल की चुहिया कुछ ऐंठी थी,
चुहिया ने उस बिल्ली को काट लिया,
बस फिर क्या था बिल्ली का ठाट हुआ,
वो बिल्ली अब भी मेरे बाजू है,
उसके बाजू में मेरा राजू है।
अब बिल्ली,चुहिया,राजू सब मिलकर
मुझको ही मेरा गीत सुनाते हैं।
राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं
ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं।
एक दोस्त मेरा सीमा पर रहता था,
चिट्ठी में जाने क्या-क्या कहता था,
उर्दू आती थी नहीं मुझे लेकिन,
उसको जवाब उर्दू में देता था,
एक रोज़ मौलवी नहीं रहे भाई,
अगले दिन ही उसकी चिट्ठी आई,
ख़त का जवाब अब किससे लिखवाता,
वह तो सीमा पर रो-रो मर जाता।
हम उर्दू सीख रहे हैं नेट-युग में,
अब खुद जवाब लिखते हैं गाते हैं।
राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं
ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं।
इक बूढ़ा रोज गली में आता था,
जाने किस भाषा में वह गाता था,
लेकिन उसका स्वर मेरे कानों में,
अब उठो लाल कहकर खो जाता था,
मैं,निपट अकेला खाता सोता था,
नौ बजे क्लास का टाइम होता था,
एक रोज ‘मिस’नहीं मेरी क्लास हुई,
मैं ‘टाप’ कर गया पूरी आस हुई।
वो बूढ़ा जाने किस नगरी में हो,
उसके स्वर अब भी हमें जगाते हैं ।
राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं
ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं।
इन राहों वाले मीठे रिश्तों से,
हम युगों-युगों से बँधे नहीं होते,
दो जन्मों वाले रिश्तों के पर्वत,
अपने कन्धों पर सधे नहीं होते,
बाबा की धुन ने समय बताया है,
उर्दू के खत ने साथ निभाया है,
बिल्ली ने चुहिया को दुलराया है,
जूठी टाफी ने प्यार सिखाया है।
हम ऐसे रिश्तों की फेरी लेकर,
गलियों-गलियों आवाज लगाते हैं,
राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं
ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं।
राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं
ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं,
आओ तुमको एक गीत सुनाते हैं
अपने संग थोड़ी सैर कराते हैं।

गीत समाप्त हो गया ।गीत और तालियाँ मेरे कानों में अब भी गूँज रहीं हैं।
मुझे गर्व है कि ऐसे दौर में जब कवियों को देखकर श्रोताओं के भाग खड़े होने के तमाम चुटकुले चलन में हैं तब हमारे कानपुर शहर में प्रमोद तिवारी जैसे कवि हैं जिनके कुछ गीत बार-बार सुनने का मन करता है ।इनकी गजलों कुछ चुनिंदा शेर हैं:-
मुश्किलों से जब मिलो आसान होकर ही मिलो,
देखना,आसान होकर मुश्किलें रह जायेंगीं।

दिल़ में वो महकता है किसी फूल की तरह,
कांटे की तरह ज़ेहन में जो है चुभा हुआ ।
ये क्यों कहें दिन आजकल अपने खराब हैं,
कांटों से घिर गये हैं ,समझ लो गुलाब हैं।
मैं झूम के गाता हूँ ,कमज़र्फ जमाने में,
इक आग लगा ली है,इक आग बुझाने में।
ये सोच के दरिया में ,मैं कूद गया यारों,
वो मुझको बचा लेगा ,माहिर है बचाने में।
आये हो तो आँखों में कुछ देर ठहर जाओ
इक उम्र गुज़रती है ,इज ख्वाब सजाने में।
मैं दोस्ती में दोस्तों के सितम सह लूंगा,
दगा ने दें तो दुश्मनों के साथ रह लूँगा।
क्यों किसी भी हादसे से कोई घबराता नहीं ,
इस शहर को क्या हुआ ,कुछ समझ में आता नहीं।
कुछ न कुछ मकसद रहा होगा भी शायर का जरूर,
बेवजह हर शेर चट्टानों से टकराता नहीं।
मैना हमारे सामने गिरते ही मर गई,
कैसे कहें गुलेल मदारी के पास है।
मुस्करा कर जो सफर में चल पड़े होंगे,
आज बन कर मील के पत्थर खड़े होंगे।
ऐसा क्या है खास तुम्हारे अधरों में,
ठहर गया मधुमास तुम्हारे अधरोंमें।
लाख था दुश्मन मगर ये कम नहीं था दोस्तों,
बद्‌दुआओं के बहाने नाम वो लेता तो था।
मुझे सर पे उठा ले आसमां ऐसा करो यारों,
मेरी आवाज में थोडा़ असर पैदा करो यारो।
यूं सबके सामने दिल खोलकर बातें नही करते,
बड़ी चालाक दुनिया है जरा समझा करो यारो।

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

26 responses to “आओ तुमको एक गीत सुनाते हैं”

  1. जीतू
    वाह वाह! क्या बात है,
    फुरसतिया जी, ये तो पूरा पूरा कवि सम्मेलन ही हो गया, मजा आ गया,
    कई कई बार पढा, बहुत अच्छा लगा, ऐसे कवियों को वैब पर लाइये, चाहे तो हम सभी ब्लागर भाईयों की सेवायें लीजिये, हम उनके लिये टाइप कर देंगे. लेकिन ऐसे कवियों को बहुत बड़ा वर्ग मिलेगा देखने और पढने को. जैसे नर्मदातीरे टाइप की साइट है वैसी ही साइट बनायी जा सकती है, कानपुर के कवियों और साहित्यकारों के लिये.
  2. manoj
    आपकी करपा से प्रमोद तिवारी जी को पहली बार पढने का अवसर मिला उनके बारे में कहा आपका हर वाक्‍य सही हैा हिन्‍दी को ऐसे ही जिवन्‍त लोगो ने जिन्‍दा रहा हैा तिवारी जी की कविता अपने अन्‍दर दर्द का सागर भरे हुएे हैा सुनने के बाद भावुक होने से बचा नही जा सकताा आशा है इसी तरह अन्‍य कवियों की कविताएं भी जाल पर मिलेगी
  3. Raman B
    बड़ा अच्छा लगा प्रमोद जी और उनकी कविताओं के बारे में पढ़ के. अक्सर बहुत सारी कविताएं मेरी समझ से बाहर होती है.. लेकिन प्रमोद जी के गीत और गज़लों को समझने में कोई दिक्कत नहीं हुई और आनन्द भी आया. प्रमोदजी को हमारी तरफ़ से बहुत बहुत बधाईयां दीजियेगा.
  4. सारिका सक्सेना
    प्रमोद तिवारी जी से परिचय कराने के लिये बहुत धन्यवाद। बहुत ही अच्छी और दिल के करीब लगीं उनकी कवितायें। यह सोंचकर अफसोस हुआ कि इतने प्रतिष्ठित और प्रतिभाशाली कवि के नाम से भी परिचित नहीं थे हम। जीतू जी ने ठीक सुझाव दिया है कि हमें ऎसे कवियों को नेट की दुनिया में लाना है। हम किसी भी सहयोग के लिये प्रस्तुत हैं।
    धन्यवाद
    सारिका
  5. kali
    सही लिखे है । पूरा किव सम्मेलन का आन्नद घर बैठ िदऐ है
  6. फ़ुरसतिया » तुलसी संगति साधु की
    [...] आओ तुमको एक गीत सुनाते हैं खानपान के बाद फ� [...]
  7. फ़ुरसतिया » नयी दुनिया में
    [...] होते हैं। आशीषआओ तुमको अपने संग भी थोड़ी सैर कराते हैं, कुछ किस्से कालेज के स� [...]
  8. फ़ुरसतिया » रास्तों पर जिंदगी बाकायदा आबाद है
    [...] ��ं के लिये बवालेजान बन गया है। बकौल प्रमोद तिवारी:- ये इश्क नहीं आसां बस इतना � [...]
  9. Neeraj Tripathi
    Rishton waali kavita kai baar parhi , bahut achhi lagi ..
    मुश्किलों से जब मिलो आसान होकर ही मिलो,
    देखना,आसान होकर मुश्किलें रह जायेंगीं।
  10. फुरसतिया » ब्लागिंग में भी रिश्ते बन जाते हैं
    [...] कानपुर के गीतकार प्रमोद तिवारी की एक बहुत प्यारी पारिवारिक कविता है- राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं आओ तुमको एक गीत सुनाते हैं अपने संग थोड़ी सैर कराते हैं। [...]
  11. फुरसतिया »
    [...] Other posts 09/08/2007: मैं लिखता इसलिये हूं कि…01/10/2006: कान से होकर कलेजे से उतर जायेंगे31/10/2006: हिंदी में कुछ वाक्य प्रयोग06/08/2005: अधूरे कामों का बादशाह [...]
  12. Jagdish Bhatia
    अनूप जी,
    प्रमोद जी से परिचय करवाने के लिये धन्यवाद। जब आपने यह लिखा था तब हम चिट्ठाकारी में न थे।
    सुना है कि आप हमेशा दूसरों को उपहार में किताबीं ही देते हैं आज आपसे हक के साथ प्रमोद जी की ’सलाखों के पीछे’ मांग रहे हैं।
  13. Pramod Tewari
    I came across to this page by chance because I am not regular net surfer. My friend prabhakar is always seeking good hindi websites and blogs on hindi literature etc. One day while I was learning how to surf on internet, my friend Prabhakar came to me and shown me few good hindi sites and sitting together resulted in reaching to this page. I am highly surprised to see this page and realy highly keen to meet Mr Fursatiya Jee and all the personals who appreciated my poems and ghazals on this blog. I hope, I would be getting a reply and introduction of fursatiya ji and other fans of my poetries/ghazals.
    Pramod Tewari
  14. फुरसतिया » ब्लागिंग -सामर्थ्य और सीमा
    [...] यह बात नियमित पाठकों के लिये हैं। जो नये पाठक मिलते हैं वे अक्सर पुरानी पोस्टों से ही मिलते हैं। हमारी प्रमोद तिवारी के बारे में लिखी गयी पोस्ट को उन्होंने लिखने के साल भर बाद पढ़ा और टिपियाया। [...]
  15. deepa
    kavi pramod tewari ki kavita padke sach me bara anand aya. unki kavita saral hai jisse samjh me jyada ati hai. mai chahungi isi prakar ki aur kavitaye blog me dali jaye.
  16. होइहै सोई जो ब्लाग रचि राखा
    [...] प्रमोद तिवारी [...]
  17. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] कान से होकर कलेजे से उतर जायेंगे 2.विकिपीडिया – साथी हाथ बढ़ाना… 3.गलत [...]
  18. pratima yadav
    pramod ji aapne lekhan kya hota hai ye bataya mujhe dhanaywad.
  19. अजित वडनेरकर
    हमने भी आनंद लिया इस फुरसतिया मंच पर कविसम्मेलन का।
    प्रमोद तिवारी की कविताएं शानदार है।
    उन्हें जैजै
  20. अजित वडनेरकर
    जै हो। यहां से टिप्पणी ही नहीं जाती।
  21. Dipak 'Mashal'
    आभारी हूँ श्री प्रमोद जी की कवितायें यहाँ पढ़ाने के लिए सर..
  22. Sanjeet Tripathi
    5 saal baad yaha pahucha hu vo bhi anita jee ke marfat jinhone ye link diya mujhe,
    mujhe apne par ashchary ho raha hai ki itni behtareen link kaise meri nazar se bachi rahi ab tak.
    bhale hi 5 sal baad padh raha hu lekin jeetu ji ke 5 sal pahle kahe gaye kathan se sehmat hu, agar aise kavi ho to unke liye type karne ko ham taiyar hain…
    aur han
    khud pramod tiwari ji ka comment dekh kar lagaa ki ve anoop shukl aur fursariya ka bhed nahi jante,,,,, please unhe clear kijiye…
  23. आओ तुमको एक गीत सुनाते हैं
    [...] के बारे में मैंने विस्तार से पहले भी लिखा है। बहरहाल आप कविता सुनें और साथ में [...]
  24. Anwar Ahamad
    Fursatiya ji, I leart your gajals today and i am virry happy that my fursatiya is one of the best gajlis in this whole world.
    Anwar Ahamad c/o sri Nawab khan(Dainik Jgran)
  25. Dr Mukesh Kumar Singh
    Adarniya Pramod Tiwari Ji ko mai Dronacharya ke rup mai hi manta hu aur apne aap ko Eklavya. Edyapi unhone kabhi kisi ka aguntha nahi manga. Pramod ji ki apni alag parmpara hai yani ki wo Pramod Parampara ke kavi hai. Unki kitni hi Gazlo aur geeto ko mai subah sham aarti ki tarah gungunata rahta hu. Mai kyu pura desh gungunata hai.
    Mere Kavya guru to Kavi Ansar Kambari Sahab hai lakin Pramod ji ki Kavitao ka asar bhi mere lekhan par pada hai. Unki kavitao ko adarsh mankar ham likhate rahe hai.
    Eshwar unko wo sabhi kuch pradan kare jiski unhone kalpana ki ho.
    Jai Hind
    Dr Mukesh Kumar Singh
    Govt Central Textile Institute, Souterganj Kanpur
  26. अन्ना का अनशन और कुछ इधर-उधर की : चिट्ठा चर्चा
    [...] ठंडी-ठंडी हवा कलम को लगी सुलाने शायर को, अंगारे स्याही में घोलो दोस्त यही आज़ादी है। प्रमोद तिवारी [...]

2 comments:

  1. आज कहीं से उन्नाव के एक कवि सम्मेलन की क्लिप मिली सारी क्लिप में आदरणीय प्रमोद जी की नदिया और कुछ अन्य शेर सुने बार बार सुने उत्सुकतावश सर्च किया तो इस साईट के माध्यम से रूबरू हुआ अब बस मिलने की चाहना है शायद कभी ख्वाहिश पूरी हो जाये ।

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  2. आज कहीं से उन्नाव के एक कवि सम्मेलन की क्लिप मिली सारी क्लिप में आदरणीय प्रमोद जी की नदिया और कुछ अन्य शेर सुने बार बार सुने उत्सुकतावश सर्च किया तो इस साईट के माध्यम से रूबरू हुआ अब बस मिलने की चाहना है शायद कभी ख्वाहिश पूरी हो जाये ।

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