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वर्धा – कंचन मृग जैसा वाई-फ़ाई
By फ़ुरसतिया on October 21, 2010
….हां तो बात वर्धा सम्मेलन की हो रही थी।
लोगों से मिलते-बतियाते-गपियाते हम उसई बड़े अंगने में बैठे रहे। दो-तीन चाय खैंच डाली। सेल्फ़ सर्विस रही। उड़ेल के केतली से कप में चीनी मिलाकर पीते रहे। लोग आपस में मिल-मिलाकर बतियाना-चहकना शुरू कर दिये थे। अविनाश वाचस्पति को चैन कविता जी मिलने की उत्सुकता थी लिहाजा वे उनके कमरे की घंटी बजाकर बोले- क्या आप सो रही हैं। कविताजी ने जागकर क्या जबाब दिया यह तो नहीं पता लेकिन वे फ़िर हम लोगों के जमावड़े में शामिल हो गयीं आकर।
इस बीच इंतजाम तत्पर सिद्धार्थ आ गये थे घटनास्थल पर! उन्होंने बताया कि वर्धा में संचार व्यव्स्था हाई-फ़ाई है। जगह-जगह लगा वाई-फ़ाई है। हमको उन्होंने तुरंतै नेट कनेक्शन भी मुहैया कराया। यूजर आई कमरा नंबर और पासवर्ड़ xxxxxxxx। नेट कनेक्शन मिलते ही हम हरकत में आ गये और अपना लोटपोट खोलकर अंतर्जाल से जुड़ने के लिये पसीना बहाना लगे। विवेक सिंह ने अपना हुनर जैसा कुछ दिखाया और नेट कनेक्ट हुई गवा।
इत्ते बड़े विश्वविद्यालय परिसर में हर इमारत में वाई-फ़ाई कनेक्शन बड़ी बात है। पता नहीं और जगहों पर है कि नहीं ऐसा। लेकिन नेट कनेक्शन कंचनमृग सा छलावा देते हुये लीला करता रहा। कभी है और कभी नहीं है। जहां कहीं फ़ुल है उसके एक फ़ुट की दूरी पर निल है। मुझे तो राणा प्रताप के घोड़े चेतक की याद आई:
१. जो लोग यह कहते हैं कि नेट पर पोस्टों की उमर एक दिन होती है वे गलत कहते हैं। आपकी कही गयी कुछ बातें कालजयी न सही सालजयी तो हो ही सकती हैं।
२.मिसिर जी को गुस्सा दिलाना बहुत आसान है। वे किसी भी बात पर जनता की मांग पर गुस्से की फ़्री डिलीवरी कर सकते हैं।
३. हमारा हास्य बोध बहुत छुई-मुई टाइप का। जरा सी बात पर हास्य बोध की एम.सी.बी. गिर जाती है।
सिद्धार्थ ने हम लोगों को एक अच्छे मास्टर की तरह समेटकर -जल्दी करिये, तैयार हो जाइये, नहा लीजिये, नाश्ता कर लीजिये, आप कहां तक पहुंचे, गाड़ी पहुंच रही है, अब बस चल दीजिये, बस आ रही है , आइये-आइये , ये बच्चा ये सामान कमरा में पहुंचाओ जैसी बातें कहते हुये हमको सभागार तक पहुंचाया।
जिस बस से हम गये और जो आगे भी दो दिन हमारी सेवा में रही वह अधेड़ उमर की स्कूली बस टाइप की बस थी। शायद अभी और चकाचक वाहन खरीदे जाने बाकी हैं। सभागार पास ही था। अभी वर्धा में निर्माण का काम शुरु हुआ है। जो कुछ इमारतें पहले की बनी बतायीं गयीं वो किसी कैम्प आफ़िस सरीखी लग रहीं थीं। अस्थाई व्यवस्था वाली वो इमारतें देखकर लगा कि इनको तबेला जैसा लिखें लेकिन अच्छा नहीं लगता ऐसा लिखना। शुरुआती समय में ऐसा ही होता है लेकिन यह भी लगा कि दस में सिर्फ़ इतना ही निर्माण हो पाया। खैर वह उनकी कहानी वे जानें। हम तो बात करते हैं ब्लॉगर सम्मेलन की।
समय से ही कार्यक्रम शुरु हो गया। बिना किसी तामझाम के। सिधार्थ ने एकंरिंग शुरू की। उद्घाटन भाषण विभूति राय जी ने दिया। उन्होंने अपने उद्भोधन में और बातों के अलावा कहा- एक समझदार और सभ्य समाज के लिये जरूरी है कि उसके नागरिक अपनी लक्ष्मण रेखा खुद खींचे ताकि ऐसी स्थिति न आये कि राज्य को सेंसर लगाने की सोचना पड़े।
उनकी सलाह एक बड़े-बुजुर्ग की सलाह थी। इसमें उनके खुद के अनुभव भी जरूर शामिल रहे होंगे जब उनके खिलाफ़ ऐसी भाषा में बहुत-कुछ कहा गया जो उनको जरूर नागवार गुजरी होगी।
विषय प्रवर्तन श्रीमती अजित गुप्ता ने किया। अजित जी ने अपनी बात जिस सहज तरीके से कही उससे कहीं नहीं लगा कि वे कोई ज्ञान बांटने की मंशा से कह रहीं हैं। अपने ब्लॉगिंग के कुछ दिनों के अनुभव की बात कहते हुये उन्होंने जो बातें कहीं वे एक सहज संवेदनशील मन की बातें थीं। उनका कहना था कि अपने ऊपर हमको अपने आप संयम रखना चाहिये। उन्होंने ब्लॉग जगत के लिये भी एक पंचायत जैसी कोई व्यवस्था बनाने का सुझाव दिया। अजित जी अच्छी बातों का जिक्र करने का भी महत्व बताया।
अजित जी के बाद कविता वाचक्नवी जी ने अपनी बात कही और अपने अनुभवों के आधार पर बताया-
कविता जी के बाद आलोक धन्वा ने अपनी बात कही। वे हिन्दी के जाने-माने कवि हैं। ब्लॉगिंग के बारे में उन्होंने लोगों से जाना और इससे बारे में उनके विचार बड़े भले और धनात्मक हैं। उन्होंने ब्लॉगिंग को विस्मयकारी विधा बताते हुये आशा कि इसका सार्थक उपयोग होगा। बाद में उन्होंने यह भी कहा कि ब्लॉगिंग सबसे कम पाखण्ड वाली विधा है। आचार संहिता के सवाल पर उन्होंने कहा-
किसी अखबार के किसी कालम में जिक्र हो जाने पर लार टपकने वाली बात ज्ञान जी ही कह सकते हैं। कहते आये हैं! लेकिन जिन माध्यमों को देख-सुनकर हम बड़े हुये उनके प्रति सहज लगाव और उनमें अपने नाम का जिक्र पर किसी का उत्साहित होना सहज मानवीय स्वभाव है। क्या ब्लॉगिंग का मतलब अमेरिका हो जाना है- जो हमारे साथ नहीं है वह हमारा दुश्मन है।
वर्धा में हुई रिपोर्टिंग वहां की चुनिंदा बातों का जिक्र भर था। हर माध्यम की सीमायें होती हैं। वो यहां भी लागू थीं। दूर बैठे लोगों ने वहां की घटनाओं को कच्चे माल की तरह लिया और अपने मन की डाई में ठेल कर मनचाहे निष्कर्ष निकाले। कल्पना के घोड़े पर सवार उनके वर्णन इतने विश्वनीय लग रहे कि क्या कहने। मुझे अनायास सूरदास याद आये जिन्होंने अपनी मन की आंखों से कृष्ण जी की बाल लीलाओं का ऐसा अनुपम वर्णन किया जैसा आंख वाले कवि नहीं कर पाये। ऐसे ही कुछ लोगों ने जो वहां नहीं थे इतनी प्रामाणिक बातें लिखीं और इतने सटीक सवाल उठाये कि उनकी कल्पनाशीलता को बरबस प्रणाम करने को मन करता है।
बहुत शुरु से हमें अपनी कही एक बात याद आती है अक्सर- जिसकी जैसी समझ होती है वो वैसी बात कहता है। यह बात यहां एक बार फ़िर सही सी लगी।
आगे जारी रहेगा तब तक अगर आपने न देखें हो फ़ोटो देख लें फ़िर से।
लोगों से मिलते-बतियाते-गपियाते हम उसई बड़े अंगने में बैठे रहे। दो-तीन चाय खैंच डाली। सेल्फ़ सर्विस रही। उड़ेल के केतली से कप में चीनी मिलाकर पीते रहे। लोग आपस में मिल-मिलाकर बतियाना-चहकना शुरू कर दिये थे। अविनाश वाचस्पति को चैन कविता जी मिलने की उत्सुकता थी लिहाजा वे उनके कमरे की घंटी बजाकर बोले- क्या आप सो रही हैं। कविताजी ने जागकर क्या जबाब दिया यह तो नहीं पता लेकिन वे फ़िर हम लोगों के जमावड़े में शामिल हो गयीं आकर।
इस बीच इंतजाम तत्पर सिद्धार्थ आ गये थे घटनास्थल पर! उन्होंने बताया कि वर्धा में संचार व्यव्स्था हाई-फ़ाई है। जगह-जगह लगा वाई-फ़ाई है। हमको उन्होंने तुरंतै नेट कनेक्शन भी मुहैया कराया। यूजर आई कमरा नंबर और पासवर्ड़ xxxxxxxx। नेट कनेक्शन मिलते ही हम हरकत में आ गये और अपना लोटपोट खोलकर अंतर्जाल से जुड़ने के लिये पसीना बहाना लगे। विवेक सिंह ने अपना हुनर जैसा कुछ दिखाया और नेट कनेक्ट हुई गवा।
इत्ते बड़े विश्वविद्यालय परिसर में हर इमारत में वाई-फ़ाई कनेक्शन बड़ी बात है। पता नहीं और जगहों पर है कि नहीं ऐसा। लेकिन नेट कनेक्शन कंचनमृग सा छलावा देते हुये लीला करता रहा। कभी है और कभी नहीं है। जहां कहीं फ़ुल है उसके एक फ़ुट की दूरी पर निल है। मुझे तो राणा प्रताप के घोड़े चेतक की याद आई:
था अभी यहां अब वहां नहींइस मायावी नेट के समर्थन से हमने और साथियों ने पोस्टें जारी रखीं। शुरुआत यहां से करके अगली पोस्ट के लिये विवेक से कोई तुकबंदी करने को कहा। विवेक ने लिखा:
किस अरि मस्तक पर कहां नहीं
थी जगह न कोई जहां नहीं
टपके ब्लॉगर बहुत से, वर्धा में इक साथअब चूंकि मच्छर वाली बात इलाहाबाद में हुये सम्मेलन से जुड़ी थी और अरविंद मिश्र जी ने इसे उठाया था लिहाजा इसको पढ़ते ही वे फ़ौरन फ़ार्म में आ गये और फ़टाक से हड़का दिया-had hai bevkoofee kee ….! उनकी टिप्पणी देखकर हमें लगा कि:
चमकाते हैं दांत सब मिला-मिलाकर हाथ।
मिला-मिलाकर हाथ, चाय सबने पी ली है
बाकी सब तो ठीक,कमी मच्छर जी की है।
विवेक सिंह यों कहें, नहीं वे अब तक चिपके
मच्छर काटे नहीं, यहां जोन ब्लॉगर टपके।
१. जो लोग यह कहते हैं कि नेट पर पोस्टों की उमर एक दिन होती है वे गलत कहते हैं। आपकी कही गयी कुछ बातें कालजयी न सही सालजयी तो हो ही सकती हैं।
२.मिसिर जी को गुस्सा दिलाना बहुत आसान है। वे किसी भी बात पर जनता की मांग पर गुस्से की फ़्री डिलीवरी कर सकते हैं।
३. हमारा हास्य बोध बहुत छुई-मुई टाइप का। जरा सी बात पर हास्य बोध की एम.सी.बी. गिर जाती है।
सिद्धार्थ ने हम लोगों को एक अच्छे मास्टर की तरह समेटकर -जल्दी करिये, तैयार हो जाइये, नहा लीजिये, नाश्ता कर लीजिये, आप कहां तक पहुंचे, गाड़ी पहुंच रही है, अब बस चल दीजिये, बस आ रही है , आइये-आइये , ये बच्चा ये सामान कमरा में पहुंचाओ जैसी बातें कहते हुये हमको सभागार तक पहुंचाया।
जिस बस से हम गये और जो आगे भी दो दिन हमारी सेवा में रही वह अधेड़ उमर की स्कूली बस टाइप की बस थी। शायद अभी और चकाचक वाहन खरीदे जाने बाकी हैं। सभागार पास ही था। अभी वर्धा में निर्माण का काम शुरु हुआ है। जो कुछ इमारतें पहले की बनी बतायीं गयीं वो किसी कैम्प आफ़िस सरीखी लग रहीं थीं। अस्थाई व्यवस्था वाली वो इमारतें देखकर लगा कि इनको तबेला जैसा लिखें लेकिन अच्छा नहीं लगता ऐसा लिखना। शुरुआती समय में ऐसा ही होता है लेकिन यह भी लगा कि दस में सिर्फ़ इतना ही निर्माण हो पाया। खैर वह उनकी कहानी वे जानें। हम तो बात करते हैं ब्लॉगर सम्मेलन की।
समय से ही कार्यक्रम शुरु हो गया। बिना किसी तामझाम के। सिधार्थ ने एकंरिंग शुरू की। उद्घाटन भाषण विभूति राय जी ने दिया। उन्होंने अपने उद्भोधन में और बातों के अलावा कहा- एक समझदार और सभ्य समाज के लिये जरूरी है कि उसके नागरिक अपनी लक्ष्मण रेखा खुद खींचे ताकि ऐसी स्थिति न आये कि राज्य को सेंसर लगाने की सोचना पड़े।
उनकी सलाह एक बड़े-बुजुर्ग की सलाह थी। इसमें उनके खुद के अनुभव भी जरूर शामिल रहे होंगे जब उनके खिलाफ़ ऐसी भाषा में बहुत-कुछ कहा गया जो उनको जरूर नागवार गुजरी होगी।
विषय प्रवर्तन श्रीमती अजित गुप्ता ने किया। अजित जी ने अपनी बात जिस सहज तरीके से कही उससे कहीं नहीं लगा कि वे कोई ज्ञान बांटने की मंशा से कह रहीं हैं। अपने ब्लॉगिंग के कुछ दिनों के अनुभव की बात कहते हुये उन्होंने जो बातें कहीं वे एक सहज संवेदनशील मन की बातें थीं। उनका कहना था कि अपने ऊपर हमको अपने आप संयम रखना चाहिये। उन्होंने ब्लॉग जगत के लिये भी एक पंचायत जैसी कोई व्यवस्था बनाने का सुझाव दिया। अजित जी अच्छी बातों का जिक्र करने का भी महत्व बताया।
अजित जी के बाद कविता वाचक्नवी जी ने अपनी बात कही और अपने अनुभवों के आधार पर बताया-
खराब से खराब व्यक्ति को अच्छी चीज का आधिपत्य दीजिये वह उसे खराब कर देगा। और अच्छे व्यक्ति को खराब से खराब चीज दे दीजिये वह उसे अच्छा कर देगा। आचारसंहिता को आरोपित नहीं किया जा सकता। हां आप यह कर सकते हैं कि अनाचार पर दण्ड का विधान किया जा सकता है।कविता जी की कही यह बात हमने हड़बड़िया चर्चा में गलत टाइप कर दिया था। बाद में खुशदीप के इशारे पर सही किया।
कविता जी के बाद आलोक धन्वा ने अपनी बात कही। वे हिन्दी के जाने-माने कवि हैं। ब्लॉगिंग के बारे में उन्होंने लोगों से जाना और इससे बारे में उनके विचार बड़े भले और धनात्मक हैं। उन्होंने ब्लॉगिंग को विस्मयकारी विधा बताते हुये आशा कि इसका सार्थक उपयोग होगा। बाद में उन्होंने यह भी कहा कि ब्लॉगिंग सबसे कम पाखण्ड वाली विधा है। आचार संहिता के सवाल पर उन्होंने कहा-
ब्लॉग जगत की अचार संहिता की जगह इंटरनेट की नैतिकता की चर्चा होनी चाहिये। जो अपने को अच्छा नहीं लगता उसे दूसरे से नहीं कहना चाहिये। आभासी दुनिया वास्तव में वास्तविक दुनिया का विस्तार है।इस रिपोर्टिंग पर अपनी राय जाहिर करते हुये ज्ञानदत्त जी ने लिखा-
ओह, कागज और लेखन विधा वालों की महिमा से अभिभूत होना शायद नहीं जायेगा हिन्दी ब्लॉगरी में। दोयम रहने के लिये अभिशप्त रहेंगे बन्दे। लार टपकेगी कि अखबार के किसी चिरकुट कॉलम में नाम का जिक्र हो जाये!यह बात अपनी पूर्वाग्रह के अनुसार तथ्य इकट्ठा करके कही गयी बात है। हिंदी ब्लॉगिंग के किसी मंच पर अगर कोई अपने समय अच्छा कवि/लेखक अपनी बात कहता है और हम उसको सुनते हैं तो इसका मतलब उसकी महिमा से अविभूत होना नहीं है। ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की एक विधा है। क्या इसमें आने वालों को यहां आकर सारी दुनिया से तखलिया कर लेना चाहिये?
किसी अखबार के किसी कालम में जिक्र हो जाने पर लार टपकने वाली बात ज्ञान जी ही कह सकते हैं। कहते आये हैं! लेकिन जिन माध्यमों को देख-सुनकर हम बड़े हुये उनके प्रति सहज लगाव और उनमें अपने नाम का जिक्र पर किसी का उत्साहित होना सहज मानवीय स्वभाव है। क्या ब्लॉगिंग का मतलब अमेरिका हो जाना है- जो हमारे साथ नहीं है वह हमारा दुश्मन है।
वर्धा में हुई रिपोर्टिंग वहां की चुनिंदा बातों का जिक्र भर था। हर माध्यम की सीमायें होती हैं। वो यहां भी लागू थीं। दूर बैठे लोगों ने वहां की घटनाओं को कच्चे माल की तरह लिया और अपने मन की डाई में ठेल कर मनचाहे निष्कर्ष निकाले। कल्पना के घोड़े पर सवार उनके वर्णन इतने विश्वनीय लग रहे कि क्या कहने। मुझे अनायास सूरदास याद आये जिन्होंने अपनी मन की आंखों से कृष्ण जी की बाल लीलाओं का ऐसा अनुपम वर्णन किया जैसा आंख वाले कवि नहीं कर पाये। ऐसे ही कुछ लोगों ने जो वहां नहीं थे इतनी प्रामाणिक बातें लिखीं और इतने सटीक सवाल उठाये कि उनकी कल्पनाशीलता को बरबस प्रणाम करने को मन करता है।
बहुत शुरु से हमें अपनी कही एक बात याद आती है अक्सर- जिसकी जैसी समझ होती है वो वैसी बात कहता है। यह बात यहां एक बार फ़िर सही सी लगी।
आगे जारी रहेगा तब तक अगर आपने न देखें हो फ़ोटो देख लें फ़िर से।
Posted in सूचना | 21 Responses
डॉ अरविन्द मिश्र को आप भूलते नहीं और अगर कोई भूल जाए तो भी याद दिला देते हो , मगर यह अंदाज़ बालीबाल खेलने जैसा है , अरविन्द जी की बाल भी आती होगी ……
आपसे मिलना अविस्मर्णीय रहा …आभार स्नेह के लिए !
satish saxena की हालिया प्रविष्टी..इस देश का यारो क्या कहना -सतीश सक्सेना
संजय बेंगाणी की हालिया प्रविष्टी..अपनी पहचान को लेकर घबराए हुए हैं मुस्लिम
सार्थक बहस की शुरुआत।
अपनी आचार संहिता पहले हम अपने लिए बनाएं।
जो हम दूसरों से नहीं चाहते वह हम नहीं करेंगे।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..देसिल बयना – 52 – चोर के अर्जन सब कोई खाए- चोर अकेला फांसी जाए !
लोगो का क्या है …उनकी कब एक मत राय हुई है…..मस्त रहिये…..
dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..हकीक़तो के क्रोस फर्टीलाइजेशन
क. वा. की हालिया प्रविष्टी..मर रहे हैं हाथ के लेखे हमारे
आपका लिखा जितना पढ़ते हैं, लगता है कि थोड़ा और लिख देते तो क्या हो जाता? लेकिन फिर गाँधी जी ने कहा था कि मनुष्य को संतोष करना चाहिए. अब यह मत कह दीजियेगा कि गाँधी जी ने मनुष्यों को संतोष करने की सलाह दी थी, ब्लॉगर को नहीं:-)
सक्सेना जी की बात महत्वपूर्ण है. बालीबाल वाली बात.
Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..कश्मीर समस्या महत्वपूर्ण है
प्रणाम.
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..टाइम ट्रेवेल कराती एक किताब
Pramendra Pratap Singh की हालिया प्रविष्टी..एक कुत्ते की बात