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वर्धा –कुछ और बातें
By फ़ुरसतिया on October 25, 2010
आलोक धन्वा जी के बाद बोलने का हमारा नम्बर था। हमने मंच पर पहुंचकर सबसे
पहले ब्लॉग जगत से जुड़े अपने पुराने साथियों को याद किया। रविरतलामी,
देबाशीष चक्रवर्ती, आलोक कुमार, जीतेन्द्र चौधरी और पंकज नरूला। इसके बाद
मैंने सिद्धार्थ त्रिपाठी की जमकर तारीफ़ की। सिद्धार्थ ने ब्लॉगिंग से जुड़े
तीन सम्मेलन कराये हैं। तीनो सम्मेलन के लिहाज से सफ़ल रहे हैं। कमियां तो
लोगों ने बताई ही लेकिन यह भी सच है वैसे सम्मेलन और किसी ने कराये नहीं।
सिद्धार्थ की तारीफ़ करके मुझे आत्मिक सुख मिला। मेरी समझ में सिद्धार्थ का मन बड़ा है। उनकी दर्शन शास्त्र की पढ़ाई भी काफ़ी कुछ काम आती होती होगी और वे अपनी आलोचनाओं , जिनमें तमाम बेसिरपैर की होती हैं, सहज भाव से ग्रहण कर लेते हैं। यह बड़ी बात है।
अपनी बात कहते हुये मैंने जो कहा वह यहां बता चुके हैं। मेरी समझ में चिट्ठाकारी की आचारसंहिता की अलग से बात करना खामख्याली की बात है। ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। अभिव्यक्ति के अन्य माध्यमों पर जो नियम लागू होंगे वही ब्लॉगिंग पर भी लागू होंगे। समय, समाज के कानून ब्लॉगिंग पर भी लागू होंगे। अलग से इनके लिये आचार संहिंता की बात मेरी समझ में गैरजरूरी है। मैंने यह भी कहा कि जैसा व्यक्ति होगा वैसी ही उसकी अभिव्यक्ति होगी। अपने व्यक्तित्व से अलग लेखन कोई बहुत दिनों तक नहीं कर सकेगा।
मैंने यह भी कहा कि ब्लॉगिंग आज की तारीख में अभिव्यक्ति का सबसे तेज दुतरफ़ा माध्यम है। और कोई माध्यम ऐसी नहीं है जिसमें अभिव्यक्ति और उसपर प्रतिक्रिया की इतनी व्यापक संभावनायें हों। ब्लॉगिंग नयी विधा है। इसके प्रति मीडिया, साहित्यकार, पत्रकार और अन्य वर्ग के स्थापित लोग उपेक्षा भाव रखकर शायद अपना ही नुकसान कर रहे हैं।
आगे मैंने कहा कि ब्लॉग पर पहली पोस्ट लिखने में ब्लॉगर को वही सुख मिलता है जो शायद एक कवि को अपनी पहली रचना में मिलता है। एक स्थापित कवि के कविता संकलन की पांच-सौ हजार प्रतियां छपती हैं। उनमें ने ज्यादातर थोक में कहीं खरीदी जाकर पड़ी रहती हैं। लेकिन ब्लॉगिंग में यह सुविधा है कि आप अगर अच्छा लिखते हैं तो अनगिनत लोगों तक आपकी पहुंच हो सकती है।
ब्लॉगिंग को साहित्य तक सीमित करके देखना सही नहीं है। यह तो रसोई गैस की तरह है जिसमें आप हर तरह का सामान बना सकते हैं।
मेरे बाद बोलने आये ऋषभ देव शर्मा जी सभी वक्ताओं के भाषण का सार प्रस्तुत करते हुये अपनी बात कही। उन्होंने इस बात पर चिंता जाहिर की आजकल के बच्चे सोशल नेटवर्किंग साइट्स के छलावों के शिकार हो रहे हैं। झूठी आई डी बनाकर ऐसी हरकतें कर रहे हैं जिससे उनका व्यक्तित्व ऋषभ देव जी की चिंता एक अविभावक की चिंता थी। बेनामी ब्लॉगरों के बारे में अपनी बात कहते हुये उन्होंने कहा:
नीचे आलोक धन्वा जी की दो कवितायें उनकी ही आवाज में सुनिये।
सिद्धार्थ की तारीफ़ करके मुझे आत्मिक सुख मिला। मेरी समझ में सिद्धार्थ का मन बड़ा है। उनकी दर्शन शास्त्र की पढ़ाई भी काफ़ी कुछ काम आती होती होगी और वे अपनी आलोचनाओं , जिनमें तमाम बेसिरपैर की होती हैं, सहज भाव से ग्रहण कर लेते हैं। यह बड़ी बात है।
अपनी बात कहते हुये मैंने जो कहा वह यहां बता चुके हैं। मेरी समझ में चिट्ठाकारी की आचारसंहिता की अलग से बात करना खामख्याली की बात है। ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। अभिव्यक्ति के अन्य माध्यमों पर जो नियम लागू होंगे वही ब्लॉगिंग पर भी लागू होंगे। समय, समाज के कानून ब्लॉगिंग पर भी लागू होंगे। अलग से इनके लिये आचार संहिंता की बात मेरी समझ में गैरजरूरी है। मैंने यह भी कहा कि जैसा व्यक्ति होगा वैसी ही उसकी अभिव्यक्ति होगी। अपने व्यक्तित्व से अलग लेखन कोई बहुत दिनों तक नहीं कर सकेगा।
मैंने यह भी कहा कि ब्लॉगिंग आज की तारीख में अभिव्यक्ति का सबसे तेज दुतरफ़ा माध्यम है। और कोई माध्यम ऐसी नहीं है जिसमें अभिव्यक्ति और उसपर प्रतिक्रिया की इतनी व्यापक संभावनायें हों। ब्लॉगिंग नयी विधा है। इसके प्रति मीडिया, साहित्यकार, पत्रकार और अन्य वर्ग के स्थापित लोग उपेक्षा भाव रखकर शायद अपना ही नुकसान कर रहे हैं।
आगे मैंने कहा कि ब्लॉग पर पहली पोस्ट लिखने में ब्लॉगर को वही सुख मिलता है जो शायद एक कवि को अपनी पहली रचना में मिलता है। एक स्थापित कवि के कविता संकलन की पांच-सौ हजार प्रतियां छपती हैं। उनमें ने ज्यादातर थोक में कहीं खरीदी जाकर पड़ी रहती हैं। लेकिन ब्लॉगिंग में यह सुविधा है कि आप अगर अच्छा लिखते हैं तो अनगिनत लोगों तक आपकी पहुंच हो सकती है।
ब्लॉगिंग को साहित्य तक सीमित करके देखना सही नहीं है। यह तो रसोई गैस की तरह है जिसमें आप हर तरह का सामान बना सकते हैं।
मेरे बाद बोलने आये ऋषभ देव शर्मा जी सभी वक्ताओं के भाषण का सार प्रस्तुत करते हुये अपनी बात कही। उन्होंने इस बात पर चिंता जाहिर की आजकल के बच्चे सोशल नेटवर्किंग साइट्स के छलावों के शिकार हो रहे हैं। झूठी आई डी बनाकर ऐसी हरकतें कर रहे हैं जिससे उनका व्यक्तित्व ऋषभ देव जी की चिंता एक अविभावक की चिंता थी। बेनामी ब्लॉगरों के बारे में अपनी बात कहते हुये उन्होंने कहा:
बेनामी बड़े-बड़े काम करते होंगे मैं उनका अभिनंदन करता हूं। लेकिन इसको नियम नहीं बनाया चाहिये। मेरे परिचय क्षेत्र में कई लोग हैं जिन्होंने अपने सूचनायें झूठी दी हैं। पाखंड हर जगह निंदनीय है। ब्लॉगिंग कोई खिलवाड़ नहीं है। यह नैतिक कर्म है(नित्य कर्म नहीं ) बच्चों बताते हैं कि उनसे कोई पूछता नहीं है। वरिष्ठ और कनिष्ठ न भी माने तो अनुभवी और कम अनुभवी का अन्तर तो रहेगा ही। मेरी चिंता का कारण बच्चे हैं जो झूठी पहचान बनाकर गलत हरकतें कर रहे हैं।इसके बाद दोपहर को कार्यशाला हुयी। फ़िर शाम को ग्रुप डिस्कसन। इसके बाद खाने के पहले कवि सम्मेलन। लोगों ने अपनी-अपनी कवितायें पढ़ीं। ज्यादातर लोगों ने अपनी कवितायें पढ़कर पढ़ीं। मुझे लगता है कि कवि को कवि से कम अपनी कवितायें तो याद होनी ही चाहियें।
जिस बात को सार्वजनिक रूप से नहीं कह सकते वह ब्लॉग पर भी कहने का हक हमें नहीं है। हममें यह हिम्मत होनी चाहिये कि जिसे हम सही समझते हैं वह कह सकें।
नीचे आलोक धन्वा जी की दो कवितायें उनकी ही आवाज में सुनिये।
Posted in सूचना | 23 Responses
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..दास्तान-ए-चौपट वीकेंड
सिद्धार्थ जी ने तीन अच्छे सम्मेलन करवाया. सचमुच बहुत मेहनत का काम है. यह सिलसिला चलता रहे तो बढ़िया रहेगा. आलोक धन्वा जी की कविता अभी तक नहीं सुनी है. सुनूंगा.
Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..टैलेंट की नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है
यह वर्णन रोचक रहा।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..कविता – पता पूछते हैं लोग
वैसे ब्लॉगिंग के लिए आचार संहिता और नियंत्रण का होना ज़रूरी है, ताकि मर्यादा और गरिमा कायम रह सके.
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद की हालिया प्रविष्टी..जज़्बात – एक साल का सफ़र
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..अच्छाई को सजोना पड़ता है जबकि बुराई अपने आप फैलती है…।
आभार आपका !!!
रंजना. की हालिया प्रविष्टी..अँधा प्रेम !!!
satish saxena की हालिया प्रविष्टी..इन फूलों को अपमानित कर- क्यों लोग मनाते दीवाली -सतीश सक्सेना
बकिया इत्ते संक्षेप में क्यूं?….कम से कम फ़ुरसतिया की तो लाज राखी होती?
प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI की हालिया प्रविष्टी..यह किस्सा भी बेशर्म भारतीय राजनीति में निर्लज्जता का ही अध्याय है
वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..इस्मत से शेफ़ा तक का सफ़र
अभय तिवारी की हालिया प्रविष्टी..अमन के लिए फ़ैसला इंसाफ़ नहीं है!
सही बात.
प्रणाम
दिपावली की अग्रिम शुभकामनाये..
Pramendra Pratap Singh की हालिया प्रविष्टी..एक कुत्ते की बात
आपकी प्रतिक्रया से सिद्धार्थ जी को अवगत करा दिया गया है, जिसपर उनकी प्रतिक्रया आई है वह इसप्रकार है -
प्रभात जी,
मेरे कंप्यूटर पर तो पोस्ट साफ -साफ़ पढ़ने में आयी है। आप खुद चेक कीजिए।
बल्कि मैंने उस पोस्ट के अधूरेपन को लेकर टिप्पणी की है।
ये प्रीति कृष्ण कोई छद्मनामी है जिसे वर्धा से काफी शिकायतें हैं। लेकिन दुर्भाग्य से इस ब्लॉग के संचालन के बारे में उन्होंने जो बातें लिखी हैं वह आंशिक रूप से सही भी कही जा सकती हैं। मैं खुद ही दुविधा में हूँ।:(
सादर!
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
वर्धा, महाराष्ट्र-442001
ब्लॉग: सत्यार्थमित्र
वेबसाइट:हिंदीसमय
इसपर मैंने अपनी प्रतिक्रया दे दी है -
सिद्धार्थ जी,
मैंने इसे चेक किया, सचमुच यह यूनिकोड में नहीं है शायद कृतिदेव में है इसीलिए पढ़ा नही जा सका है , संभव हो तो इसे दुरुस्त करा दें, विवाद से बचा जा सकता है !
सादर-
रवीन्द्र प्रभात