http://web.archive.org/web/20140419215540/http://hindini.com/fursatiya/archives/1759
ब्लॉगिंग करने को फ़िर मन आया कई दिनों के बाद
By फ़ुरसतिया on December 2, 2010
1.अगर आप इस भ्रम का शिकार हैं कि दुनिया का खाना आपका ब्लाग पढ़े
बिना हजम नहीं होगा तो आप अगली सांस लेने के पहले ब्लाग लिखना बंद कर दें।
दिमाग खराब होने से बचाने का इसके अलावा कोई उपाय नहीं है।
2.जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते हैं तो अगली पोस्ट तभी लिख पायेंगे जब आप उससे बड़ी बेवकूफी की बात को लिखने की हिम्मत जुटा सकेंगे।-ब्लागिंग के सूत्र
एक महीने से ज्यादा हो गया पिछली पोस्ट लिखे। ब्लॉगिंग के हिसाब से इतने दिन की अनुपस्थिति बाद फ़िर लिखना शुरु करने पर ’प्रिय पाठकों’ से माफ़ी मांगने का रिवाज है। लेकिन मुझे लगता है कि शायद अनुपस्थिति की बजाय फ़िर से उपस्थित होने के लिये माफ़ी मांगकर बात शुरू करना चाहिये। हमारे इतने दिनों तक न लिखने से जो पाठक बेचारे सुकून की सांस ले रहे होंगे वे बेचारे एक बार फ़िर माथा ठोंके लेंगे -ये फ़ुरसतिया फ़िर आ गया। वे पाठक जो सहृदय भी हैं और सुहृदय भी उनका काम ही तो बढाया मैंने फ़िर से लिखना शुरु करके।
जब मैं यह पोस्ट लिखने की सोच रहा था तो मुझे बाबा नागर्जुन की कविता की पंक्तियां याद आ रही थीं- कौवे ने खुजलाई पांखे बहुत दिनों बाद। कविता खोजी बहुत दिनों की जगह कई दिनों था और कविता की पंक्तियां थीं:
दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद ।
इस पर पैरोडी भी बनाने का मन किया। लेकिन फ़िर मटिया दिये। वैसे अगर बनाते तो क्या बनाते, क्या कुछ इस तरह:
ब्लॉगिंग करने को फ़िर मन आया कई दिनों के बाद
पोस्टों पर बेमतलब टिपियाया कई दिनों के बाद
भाईचारे का भभ्भड़ देखा फ़िर कई दिनों के बाद
टिप्पणियों से खिल गयीं बांछे फ़िर कई दिनों के बाद।
यहां-वहां लड़-भिड़कर आया वो कई दिनों के बाद
भैया जी ने बेमतलब समझाया कई दिनों के बाद
नखरेवाली के नक्शे देखे फ़िर कई दिनों के बाद
बिना बात सबको हड़काया फ़िर कई दिनों के बाद ।
इस बीच हमने अपनी पुरानी पोस्टें देखीं। कई को देखकर बहुत शरम आयी। मन किया किसी पोस्ट में मुंह छिपा लें। लेकिन स्क्रीन टूटने के डर से मन पर काबू रखा। मुझे लगा कि जब मुझे खुद इनको पढ़ने में इत्ता अटपटा लग रहा है तो बेचारे मासूम और सहृदय पाठक पर क्या बीतती होगी। एक से एक लफ़्फ़ाज पोस्टें। एक से एक बेसिर-पैर की बातें। कुछ में तो लगा जैसे वह कोई पोस्ट न हो टीवी पर बहस हो रही हो- भ्रष्टाचार की बात के जबाब में भाई-भतीजा वाद पर सवाल, भाई-भतीजा वाद की बात पर कानून और व्यवस्था पर सवाल, कानून और व्यवस्था की बात पर भारत में विषम लिंगानुपात पर और लिंग अनुपात की बात चलने पर बिग बॉस की अश्लीलता के आयामों पर चर्चा होने लगती है। वो तो कहिये ब्लॉग पर टिप्पणी का विकल्प मौजूद था जिसके चलते पाठकों ने टिपियाकर अपनी जान बचाई वर्ना न जाने कित्तों के वकील सम्मन लिये घूम रहे होते कि उनके मुवक्किल के स्थायी सरदर्द की वजह मेरा ब्लॉग है।
अपने लेखन से शर्माये हम इस बीच दूसरों के ब्लॉग देखते रहे। देखकर मन कभी जलता-भुनता और कभी खुश होता रहा। लोग कित्ता अच्छा-अच्छा लिखते हैं। इत्ती भली-भली और अच्छी -अच्छी बातें लोगों के ब्लॉग पर देखीं तो लगा कि उनके ब्लॉग कांजी हाउस हैं जहां उन्होंने अच्छाइयां और भलाइयों के जानवर कैद कर रखे हैं। कई बार लगा यहां हर तरह भलमनसाहत का जलजला आया हुआ है। हर तरफ़ अच्छेपन की बाढ़ आयी है, इन्सानियत की हवायें चल रही हैं। अच्छेपन की बाढ़ में सारी बुराइयां डूब गयी हैं, भाईचारे की तलवार ने मनमुटाव का सर कलम कर दिया है, इन्सानियत की हवाओं में मोहब्बत का लाल दुपट्टा मलमल का, उड़ता जा रहा है।
अपनी इतनी अधोगति देखकर हम भी वही किये जैसा महापुरुष लोग करते थे। उदाहरण के लिये महात्मा गांधीजी को ही ले लीजिये । गांधी जी हर गलती के प्रायश्चित के लिये उपवास रख लेते थे। हमने भी सोचा ब्लॉग उपवास किया जाये। सो किये रहे महीने भर से ज्यादा। पोस्ट नहीं लिखी। टिपियाये नहीं। लड़ाई होते देखकर भी ताली नहीं बजाये न भड़काये। लोगों के नखरे देखकर भी अनदेखा सा किये रहे। कही टिपियाने को मन मचलता तो बरज देते। एक हाथ की बोर्ड की तरफ़ बढ़ता तो दूसरे से रोक लेते। कठिन तपस्या कर डाली ब्लॉग उपवास के रूप में। ब्लॉग तपस्या से तेज तो खैर क्या आया उल्टे मन कुम्हला गया। रही सही अकल भी बोल गयी। कुछ सूझ ही नहीं रहा अब कि लिखा क्या जाये।
इस बीच कलकत्ते गये थे। वहां सोचा शिवकुमार मिसिरजी से चर्चा करेंगे अपने ब्लॉग का स्तर उठाने के लिये लेकिन उनको लगता है कि हमारे आने की भनक लग गयी थी सो वे बचने के लिये इलाहाबाद सरक गये। जित्ते दिन हम कलकत्ता में रहे उत्ते दिन वे बाहर रहे कलकत्ता को प्रियंकर जी के हवाले करके। हम प्रियंकर जी से मिलने गये तो वे मंच पर चढ़कर भाषण देने लगे और हमसे कट लिये। हम अनमने से बने रहे और ब्लॉग लिखने से जी उचाट हो गया।
लेकिन आज जब नागार्जुन जी की कविता देखी तो मन किया ब्लॉगिंग रोकनी नहीं चाहिये। न अच्छा सही तो खराब ही लिखते रहना चाहिये। आखिर खराब लिखने के भी फ़ायदे हैं। इन्हीं के चलते ही तो -ब्लॉगिंग करने को फ़िर मन आया कई दिनों के बाद!
पुनश्च: ऊपर की फोटो पिछले दिनों के कलकत्ता प्रवास के हैं। इनमें ’कैप्शन/विवरण ’ देखने के लिये फ़ोटो के नीचे माउस धरें।
बाकी की फोटुयें इधर हैं।
बदस्तूर जारी है
क्या हुआ
जे मियां बीबी के बीच है दंगल
बाकी सब कुशल मंगल
सरकारी फाईलों में
पेड़ लगाने लगवाने का कार्यक्रम
बदस्तूर जारी है
क्या हुआ
जो कट रहे हैं जंगल
बाकी सब कुशल मंगल
कुछ घर फुंक चुके हैं
और घर के चिराग से
मरघट सी शांति बदस्तूर जारी है
क्या हुआ जो डाकूओं ने छोड़ दिया है चंबल
बाकी सब कुशल-मंगल
बस्तियाँ उजड़ रही हैं
विस्थापनों के सैर में
बिजली और सिंचाई के आंकड़ों की चांद मारी
बदस्तूर जारी है
क्या हुआ जो सूख रहा भांखड़ा नंगल
बाकी सब कुशल मंगल।
2.जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते हैं तो अगली पोस्ट तभी लिख पायेंगे जब आप उससे बड़ी बेवकूफी की बात को लिखने की हिम्मत जुटा सकेंगे।-ब्लागिंग के सूत्र
एक महीने से ज्यादा हो गया पिछली पोस्ट लिखे। ब्लॉगिंग के हिसाब से इतने दिन की अनुपस्थिति बाद फ़िर लिखना शुरु करने पर ’प्रिय पाठकों’ से माफ़ी मांगने का रिवाज है। लेकिन मुझे लगता है कि शायद अनुपस्थिति की बजाय फ़िर से उपस्थित होने के लिये माफ़ी मांगकर बात शुरू करना चाहिये। हमारे इतने दिनों तक न लिखने से जो पाठक बेचारे सुकून की सांस ले रहे होंगे वे बेचारे एक बार फ़िर माथा ठोंके लेंगे -ये फ़ुरसतिया फ़िर आ गया। वे पाठक जो सहृदय भी हैं और सुहृदय भी उनका काम ही तो बढाया मैंने फ़िर से लिखना शुरु करके।
जब मैं यह पोस्ट लिखने की सोच रहा था तो मुझे बाबा नागर्जुन की कविता की पंक्तियां याद आ रही थीं- कौवे ने खुजलाई पांखे बहुत दिनों बाद। कविता खोजी बहुत दिनों की जगह कई दिनों था और कविता की पंक्तियां थीं:
दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद ।
इस पर पैरोडी भी बनाने का मन किया। लेकिन फ़िर मटिया दिये। वैसे अगर बनाते तो क्या बनाते, क्या कुछ इस तरह:
ब्लॉगिंग करने को फ़िर मन आया कई दिनों के बाद
पोस्टों पर बेमतलब टिपियाया कई दिनों के बाद
भाईचारे का भभ्भड़ देखा फ़िर कई दिनों के बाद
टिप्पणियों से खिल गयीं बांछे फ़िर कई दिनों के बाद।
यहां-वहां लड़-भिड़कर आया वो कई दिनों के बाद
भैया जी ने बेमतलब समझाया कई दिनों के बाद
नखरेवाली के नक्शे देखे फ़िर कई दिनों के बाद
बिना बात सबको हड़काया फ़िर कई दिनों के बाद ।
इस बीच हमने अपनी पुरानी पोस्टें देखीं। कई को देखकर बहुत शरम आयी। मन किया किसी पोस्ट में मुंह छिपा लें। लेकिन स्क्रीन टूटने के डर से मन पर काबू रखा। मुझे लगा कि जब मुझे खुद इनको पढ़ने में इत्ता अटपटा लग रहा है तो बेचारे मासूम और सहृदय पाठक पर क्या बीतती होगी। एक से एक लफ़्फ़ाज पोस्टें। एक से एक बेसिर-पैर की बातें। कुछ में तो लगा जैसे वह कोई पोस्ट न हो टीवी पर बहस हो रही हो- भ्रष्टाचार की बात के जबाब में भाई-भतीजा वाद पर सवाल, भाई-भतीजा वाद की बात पर कानून और व्यवस्था पर सवाल, कानून और व्यवस्था की बात पर भारत में विषम लिंगानुपात पर और लिंग अनुपात की बात चलने पर बिग बॉस की अश्लीलता के आयामों पर चर्चा होने लगती है। वो तो कहिये ब्लॉग पर टिप्पणी का विकल्प मौजूद था जिसके चलते पाठकों ने टिपियाकर अपनी जान बचाई वर्ना न जाने कित्तों के वकील सम्मन लिये घूम रहे होते कि उनके मुवक्किल के स्थायी सरदर्द की वजह मेरा ब्लॉग है।
अपने लेखन से शर्माये हम इस बीच दूसरों के ब्लॉग देखते रहे। देखकर मन कभी जलता-भुनता और कभी खुश होता रहा। लोग कित्ता अच्छा-अच्छा लिखते हैं। इत्ती भली-भली और अच्छी -अच्छी बातें लोगों के ब्लॉग पर देखीं तो लगा कि उनके ब्लॉग कांजी हाउस हैं जहां उन्होंने अच्छाइयां और भलाइयों के जानवर कैद कर रखे हैं। कई बार लगा यहां हर तरह भलमनसाहत का जलजला आया हुआ है। हर तरफ़ अच्छेपन की बाढ़ आयी है, इन्सानियत की हवायें चल रही हैं। अच्छेपन की बाढ़ में सारी बुराइयां डूब गयी हैं, भाईचारे की तलवार ने मनमुटाव का सर कलम कर दिया है, इन्सानियत की हवाओं में मोहब्बत का लाल दुपट्टा मलमल का, उड़ता जा रहा है।
अपनी इतनी अधोगति देखकर हम भी वही किये जैसा महापुरुष लोग करते थे। उदाहरण के लिये महात्मा गांधीजी को ही ले लीजिये । गांधी जी हर गलती के प्रायश्चित के लिये उपवास रख लेते थे। हमने भी सोचा ब्लॉग उपवास किया जाये। सो किये रहे महीने भर से ज्यादा। पोस्ट नहीं लिखी। टिपियाये नहीं। लड़ाई होते देखकर भी ताली नहीं बजाये न भड़काये। लोगों के नखरे देखकर भी अनदेखा सा किये रहे। कही टिपियाने को मन मचलता तो बरज देते। एक हाथ की बोर्ड की तरफ़ बढ़ता तो दूसरे से रोक लेते। कठिन तपस्या कर डाली ब्लॉग उपवास के रूप में। ब्लॉग तपस्या से तेज तो खैर क्या आया उल्टे मन कुम्हला गया। रही सही अकल भी बोल गयी। कुछ सूझ ही नहीं रहा अब कि लिखा क्या जाये।
इस बीच कलकत्ते गये थे। वहां सोचा शिवकुमार मिसिरजी से चर्चा करेंगे अपने ब्लॉग का स्तर उठाने के लिये लेकिन उनको लगता है कि हमारे आने की भनक लग गयी थी सो वे बचने के लिये इलाहाबाद सरक गये। जित्ते दिन हम कलकत्ता में रहे उत्ते दिन वे बाहर रहे कलकत्ता को प्रियंकर जी के हवाले करके। हम प्रियंकर जी से मिलने गये तो वे मंच पर चढ़कर भाषण देने लगे और हमसे कट लिये। हम अनमने से बने रहे और ब्लॉग लिखने से जी उचाट हो गया।
लेकिन आज जब नागार्जुन जी की कविता देखी तो मन किया ब्लॉगिंग रोकनी नहीं चाहिये। न अच्छा सही तो खराब ही लिखते रहना चाहिये। आखिर खराब लिखने के भी फ़ायदे हैं। इन्हीं के चलते ही तो -ब्लॉगिंग करने को फ़िर मन आया कई दिनों के बाद!
पुनश्च: ऊपर की फोटो पिछले दिनों के कलकत्ता प्रवास के हैं। इनमें ’कैप्शन/विवरण ’ देखने के लिये फ़ोटो के नीचे माउस धरें।
बाकी की फोटुयें इधर हैं।
मेरी पसन्द
साहब की सेटिंग और मेमसाहब की चैटिंगबदस्तूर जारी है
क्या हुआ
जे मियां बीबी के बीच है दंगल
बाकी सब कुशल मंगल
सरकारी फाईलों में
पेड़ लगाने लगवाने का कार्यक्रम
बदस्तूर जारी है
क्या हुआ
जो कट रहे हैं जंगल
बाकी सब कुशल मंगल
कुछ घर फुंक चुके हैं
और घर के चिराग से
मरघट सी शांति बदस्तूर जारी है
क्या हुआ जो डाकूओं ने छोड़ दिया है चंबल
बाकी सब कुशल-मंगल
बस्तियाँ उजड़ रही हैं
विस्थापनों के सैर में
बिजली और सिंचाई के आंकड़ों की चांद मारी
बदस्तूर जारी है
क्या हुआ जो सूख रहा भांखड़ा नंगल
बाकी सब कुशल मंगल।
मनोज अग्रवाल
*मनोज अग्रवाल हमारे कालेज के जमाने के मित्र हैं। हम दोनों से इलाहाबाद से एक साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। आजकल (पिछले साल से) रेलवे में इलाहाबाद में उसी आफ़िस में हैं जहां ज्ञानजी हैं।
Posted in बस यूं ही | 39 Responses
आप इत्ते दिनों बाद लिक्हे तो हम भी इत्मीनान से पडधे…शब्द दर शब्द ..
बस इत्ता बता दीजिये कि कौए ने किस चीज से पांखे खुजलाये ? तब हम जान जायं कि सचमुच वजन है आपकी समझ में .न जाने काहें ये डाउट ससुरा बना ही रहता है आपको लेकर !
दुसरे कई और प्राणी गायब हैं ….जो हम सरीखे बिचारों के विचारों को तरह तरह कुरेदता है …….
वैसे यह भी सही है कि आसपास देखने की आदत कम होती जा रही है। और जो कभी देखते भी हैं उसको आप नहीं देखते। यहां फ़ोटुये देखिये अगर न देखी हो
http://www.facebook.com/album.php?aid=85630&id=1037033614&l=3692c2e1d6
सोचा था कि आपने ब्लॉगिंग से ले लिया है संन्यास
ब्लॉग व्रत, ब्लॉग क्रोध, ब्लॉग अवरोध,
ब्लॉग जगत हर्षित था
आपने उनकी खुशियों को लगाया है ग्रहण
अब फिर से करना होगा ब्लाग पोस्ट वरण
वरना हो जाएगा टिप्पणियों का क्षरण
एक दिन की प्रेम कथा जो किसी के साथ कहीं भी घट सकती है
छिपकलियां छिनाल नहीं होतीं, छिपती नहीं हैं, छिड़ती नहीं हैं छिपकलियां
फुरसतिया हैं आप
इसलिए दे रहा हूं लिंक दो
आप भी छिपी हुई कलियों से बात कर लो
……बड़ी जानदार पंक्तियाँ हैं। मेरा खयाल है कि भविष्य में यह ब्लॉगिंग आलेख में सूत्र वाक्य बनेगा।
……बहुत दिनो बाद आए मगर आए पूरी दमदारी से। फोटो में साफा-पानी वाला फोटो अपने बनारस का लग रहा है…सच-सच बताना पड़ेगा।
……नागार्जुन की कविता के साथ तुकबंदी नहीं जमी। शायद इसके पीछे नागार्जुन की कविता का अधिक वजनी होना हो।
……मनोज अग्रवाल जी की कविता पसंद आई।
यदि कोई व्यस्क सामग्री सीधे मेरे डैश बोर्ड पर आ जाये तो मै क्या करू , पाठक राय दे
पता ही नहीं लग रहा
कि मॉडरेशन है
क्या यह ब्लॉगिंग की नई जनरेशन है
अविनाश वाचस्पति की हालिया प्रविष्टी..बेबस बेकसूर ब्लूलाइन बसें
@देवेन्द्रजी, आपकी प्रतिक्रिया के लिये शुक्रिया। बाबा नागार्जुन की यह कविता अद्भुत है। इससे मेरी तुकबंदी की कोई तुलना का सवाल ही नहीं भाई। मनोज बहुत अच्छा लिखते हैं। आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहित होकर शायद नियमित लिखने लगें।
बधाई !
खराब लिखने की शुभकामनाएं !
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ब्लॉग ना लिखने के अलावा कौन और दूसरे व्रत लिए थे ?
प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI की हालिया प्रविष्टी..अशोक की कहानी – 1
मनोज जी को पढ़ना बहुत अच्छा लगा, शेष कुशल मंगल है।
अनूप भाई ,
निर्मल हास्य में आप यकीनन बेजोड़ हो ! अपनी कलम द्वारा , अपना ही मज़ाक बनाने के लिए बड़ा कलेजा चाहिए और वह भी हिंदी ब्लॉग जगत में जहाँ लोगों को व्यंग्य की पहचान ही नहीं है !
अभिनन्दन आपका
वैसे भी आपका न लगना अहले-लगना है !
जोक्स अ पार्ट ..व्यंग लेखन में आपका कोई सानी नहीं .
शुभकामनाये.
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..चोरी हुआ आखिरी सलाम
dabirnews.blogspot.com
सोच रहा हूँ जिस दिन गूगल ब्लॉग बंद करने की घोषणा करेगा ……कित्ते लोगो को हार्ट अटक पड़ जायेगा ?
dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..इत्तेफाको के रिचार्ज कूपन नहीं होते दोस्त !!!!
Gyan Dutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..भाग ४ – कैलीफोर्निया में श्री विश्वनाथ
आप उस्तादों के उस्ताद हो ये तो पोस्ट पढ़ कर ही पता लगा गया
उपवास ख़तम करने के लिए धन्यवाद
dhiru singh की हालिया प्रविष्टी..बचपन की यादे – वह लहडू का सफ़र
तब तक आपके दो पोस्ट ब्लोग्स पर आ चुके थे। कभी-कभी खुद के लिए भी फ़ुरसतिया लेना चाहिए। चाहे वह उपवास ही क्यों न हो!
कविता पढना (पैरोडी और पसंद, दोनों) एक सुखद अनुभव रहा।
manoj kumar की हालिया प्रविष्टी..आँच-46 समीक्षा – माँ की संदूकची
manoj kumar की हालिया प्रविष्टी..आँच-46 समीक्षा – माँ की संदूकची
“इस बीच हमने अपनी पुरानी पोस्टें देखीं। कई को देखकर बहुत शरम आयी। मन किया किसी पोस्ट में मुंह छिपा लें।”:)
“भाईचारे की तलवार ने मनमुटाव का सर कलम कर दिया है,…..” क्या बात है! कुछ तो बात है!!
अब इतना लम्बा उपवास न रखियेगा, कुछ अच्छा पढने को तरस जाते हैं हम तो
वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..सब जानती है शैव्या
इतने दिनों बाद आपको पढ़कर अच्छा लगा।
ePandit की हालिया प्रविष्टी..IAST-देवनागरी-IAST परिवर्तक जारी
पाई लागूं.
Sanjeet Tripathi की हालिया प्रविष्टी..प्राण गंवा दिए पर नहीं ली एलोपैथी दवा
सुनकर अच्छा लगा कि आप ब्लॉग उपवास पर थे . अच्छाइयाँ तो इधर सच में बहुत बढ़ गयी हैं. लोग उपदेश पर उपदेश लिखे जा रहे हैं. अब तो लगता है कि हम जैसे जवान लोग भी संन्यास लेकर इनकी मंडली में शामिल हो जायं और राम-राम जपें क्योंकि रोमैंटिक लिखने वाले हमारे कुछ ब्लॉगर मित्र भी इस समय अघोषित अवकाश पर ही हैं.
वैसे बड़े दिनों के बाद ये लाइनें पढ़कर हँसते-हँसते पेट में दर्द हो गया…
” इत्ती भली-भली और अच्छी -अच्छी बातें लोगों के ब्लॉग पर देखीं तो लगा कि उनके ब्लॉग कांजी हाउस हैं जहां उन्होंने अच्छाइयां और भलाइयों के जानवर कैद कर रखे हैं। कई बार लगा यहां हर तरह भलमनसाहत का जलजला आया हुआ है। हर तरफ़ अच्छेपन की बाढ़ आयी है, इन्सानियत की हवायें चल रही हैं। अच्छेपन की बाढ़ में सारी बुराइयां डूब गयी हैं, भाईचारे की तलवार ने मनमुटाव का सर कलम कर दिया है, इन्सानियत की हवाओं में मोहब्बत का लाल दुपट्टा मलमल का, उड़ता जा रहा है।”
aradhana की हालिया प्रविष्टी..चाकू एक कहानी
सादर आपका
कृष्ण मोहन मिश्र
आपको इस सुन्दर पोस्ट पर माफ़ी मांगने के लिए प्रणाम .
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..खिली-कम-ग़मगीन तबियत
अब और मुश्किल हो गया था जारी रखना
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगिंग- ये रोग बड़ा है जालिम