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9 − = four
मौज लेने के साइड इफ़ेक्ट
By फ़ुरसतिया on March 2, 2011
कल की पोस्ट में मैंने लिखा था:
एक भाई जी तो इतना गुस्सा थे कि पूछिये मत। उनको लगता है कि कविता में तत्सम शब्द प्रयोग करने की बात केवल और केवल उनकी खिल्ली उड़ाने के लिये लिखी गयी है। वे गुस्से में तत्सम शब्दाबली को तलाक देकर तद्भव से बजरिये अपभ्रंस होते हुये अंग्रेजी तक उतर आये। लगे हड़काने। बोले -तुमने मुझे सरे पोस्ट लोफ़र कहा।
मैंने कहा -अरे भाई आप लोफ़र कहां! लोफ़र तो डरपोक होता है। आप तो विनम्र बकैत* हो!
उन्होंने पूछा- विनम्र तो ठीक है। हमारे व्यक्तित्व के अनुरूप है। लेकिन ये बकैत क्या होता है?
मैंने कहा- बकैत भी आप पर एकदम मुफ़ीद बैठता है। हमारे कानपुर साइड में सज्जन पुरुष को बकैत* कहते हैं।
वे खुश हो गये। बोले- ये अच्छा रहा कि इसी बहाने तुमसे बात हो गयी। मुझे पता लग गया कि तुम मुझे विनम्र के साथ सज्जन पुरुष भी मानते हो।
मैंने कहा- मानेगें कैसे नहीं भाई! मानना पड़ता है। जिन्दगी में बहुत कुछ मानना पड़ता है जो होता कतई नहीं है।
वो बोले – सही है। लेकिन इस प्रयोग में तुमने अनुप्रास का अच्छा प्रयोग किया है। विनम्र के साथ बकैत! विनम्र बकैत! वाह! तुम ये हंसी मजाक की बातें लिखना छोड़कर कविता लिखा करो! अच्छे जाओगे।
मैंने कहा- अरे कहां कविता और कहां मैं! वो आप जैसे बकैत के ही बस की बात है। कविता लिखने जैसी गम्भीरता और अभ्यास हमारे बस की बात कहां। हम लिखने लगेंगे तो कविता को भी लोग हल्की-फ़ुल्की चीज मानने लगेंगे।
हमने सोचा कि तारीफ़ आदमी को कितना मुलायम बना देता है। गुस्से और गाली की गली से शुरू हुई बातचीत की को तारीफ़ के राजपथ पर ला खड़ा करती है।
भाईसाहब तो खुश होकर चले गये। लेकिन इसके बाद मैं सोचता रहा कि मौज लेने वाले को भी कितना झेलना पड़ता है। एक के बारे में कुछ लिखो तो पचास लोग उसे अपने ऊपर ले लेते हैं। सफ़ाई देते-देते जबान घिस जाती है। किसी को ज्यादा बुरा लग गया तो धमकियाने लगता है।
बहरहाल यही सब सोचते-सोचते मौज लेने वालों की आफ़त के कुछ बिन्दु इकट्ठा हो गये। अब जब हो गये तो इसे अपने ब्लाग पर छितरा देता हूं। अपने पास धर के करूंगा भी क्या।
[ *आइडिया साभार-रवीन्द्र कालिया की कहानी नौ साल छोटी पत्नी से। इसमें एक पति अपनी पत्नी के पास कुछ प्रेम पत्र देखता है जो उसको उस लड़के ने लिखे थे जिनको वह अपनी बुआ का लड़का बताती है। ऐसे ही बातचीत में पति अपनी पत्नी से कहता है:
‘तुम्हारे ब्याह में सबसे अलग-थलग खड़ा जिस ढंग से रो रहा था, उससे तो मैंने अनुमान लगाया था कि ज़रूर रकीब होगा।’
पत्नी पूछ्ती है कि रकीब माने क्या होता है। पति बताता है अरबी में बुआ के लड़के को रकीब कहते हैं।]
[रकीब के बारे में विस्तार से जानने के लिये शब्दों का सफ़र की यह पोस्ट देखिये- रक़ीब को दुश्मन न जानिए [विरोधी-2] ]
कोई छींकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए
मगध को बनाए रखना है तो
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए
मगध है, तो शांति है
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए
मगध में न रही
तो कहां रहेगी ?
क्या कहेंगे लोग ?
लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज़ न बन जाए
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप -
वैसे तो मगधनिवासियों
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से -
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है -
मनुष्य क्यों मरता हो?
श्रीकांत वर्मा
(`मगध´ संग्रह से)
इसे पोस्ट करते ही एक के बाद एक चार-पांच फ़ोन आ पधारे। सबका कहना था कि मैंने उनके लेखन की मौज ली है। एक फ़ोन तो फ़ारेन से थे। नंबर देखते ही मैंने अपने बच्चे को इत्ती जोर से -” चुप रहो फ़ारेन से काल है” कहकर डांटा कि वो बेचारा अकबका के सोते से जाग गया।कुछ साधारण (घटिया नहीं लिख रहे हैं लेकिन अगर आप समझना चाहो तो समझ लो) कविताओं में तत्सम शब्दों की भरमार देखकर किसी ऐसे लोफ़र (जिसे उसके घर वाले मारे प्यार के क्यूट कहते रहते हैं) बच्चे की याद आती है जो भाव मारने के लिये अपने चाचा, ताऊ, मामा, भांजे के बड़े पदों पर होने का हवाला देकर प्रभाव डालना चाहता है। ( अगर आप कवि हैं और आपको लगता कि यह बात आपके लिये लिखी गयी है तो हमारा डिस्क्लेमर भी साथ में शामिल करे लें कि ऐसा कतई नहीं है। यह होना मात्र एक संयोग है! )
एक भाई जी तो इतना गुस्सा थे कि पूछिये मत। उनको लगता है कि कविता में तत्सम शब्द प्रयोग करने की बात केवल और केवल उनकी खिल्ली उड़ाने के लिये लिखी गयी है। वे गुस्से में तत्सम शब्दाबली को तलाक देकर तद्भव से बजरिये अपभ्रंस होते हुये अंग्रेजी तक उतर आये। लगे हड़काने। बोले -तुमने मुझे सरे पोस्ट लोफ़र कहा।
मैंने कहा -अरे भाई आप लोफ़र कहां! लोफ़र तो डरपोक होता है। आप तो विनम्र बकैत* हो!
उन्होंने पूछा- विनम्र तो ठीक है। हमारे व्यक्तित्व के अनुरूप है। लेकिन ये बकैत क्या होता है?
मैंने कहा- बकैत भी आप पर एकदम मुफ़ीद बैठता है। हमारे कानपुर साइड में सज्जन पुरुष को बकैत* कहते हैं।
वे खुश हो गये। बोले- ये अच्छा रहा कि इसी बहाने तुमसे बात हो गयी। मुझे पता लग गया कि तुम मुझे विनम्र के साथ सज्जन पुरुष भी मानते हो।
मैंने कहा- मानेगें कैसे नहीं भाई! मानना पड़ता है। जिन्दगी में बहुत कुछ मानना पड़ता है जो होता कतई नहीं है।
वो बोले – सही है। लेकिन इस प्रयोग में तुमने अनुप्रास का अच्छा प्रयोग किया है। विनम्र के साथ बकैत! विनम्र बकैत! वाह! तुम ये हंसी मजाक की बातें लिखना छोड़कर कविता लिखा करो! अच्छे जाओगे।
मैंने कहा- अरे कहां कविता और कहां मैं! वो आप जैसे बकैत के ही बस की बात है। कविता लिखने जैसी गम्भीरता और अभ्यास हमारे बस की बात कहां। हम लिखने लगेंगे तो कविता को भी लोग हल्की-फ़ुल्की चीज मानने लगेंगे।
हमने सोचा कि तारीफ़ आदमी को कितना मुलायम बना देता है। गुस्से और गाली की गली से शुरू हुई बातचीत की को तारीफ़ के राजपथ पर ला खड़ा करती है।
भाईसाहब तो खुश होकर चले गये। लेकिन इसके बाद मैं सोचता रहा कि मौज लेने वाले को भी कितना झेलना पड़ता है। एक के बारे में कुछ लिखो तो पचास लोग उसे अपने ऊपर ले लेते हैं। सफ़ाई देते-देते जबान घिस जाती है। किसी को ज्यादा बुरा लग गया तो धमकियाने लगता है।
बहरहाल यही सब सोचते-सोचते मौज लेने वालों की आफ़त के कुछ बिन्दु इकट्ठा हो गये। अब जब हो गये तो इसे अपने ब्लाग पर छितरा देता हूं। अपने पास धर के करूंगा भी क्या।
- मौज लेने वाले के साथ सबसे बुरी बात यह होती है कि उसकी गंभीर से गंभीर बात को तो मजाक में लेते हैं। लोगों को लगता है कि मजाक करने वाला कोई गंभीर बात कह ही नहीं सकता।
- जैसे खाली पड़ी जमीन पर लोग बिना पूछे अतिक्रमण करके कब्जा जमा लेते हैं वैसे ही मौज लेने वाले की किसी भी बात को अपने ऊपर लेकर लोग कभी भी नाराज हो जाते हैं। अक्सर यह तब होता है जब उसकी बातों को समझने में लोग अपनी अकल लगाने लगते हैं।
- मौज लेने वाले की मरन यह होती है कि आहत व्यक्ति उसको खुले आम हड़काता है जबकि उसी बात को पसंद करने वाले उसकी तारीफ़ नाम न बताने की शर्त पर करते हैं। मौज लेने वाले का हाल तुड़ैया मैदान में हल्दी-चूना मकान में जैसा होता है!
- ऊपर वाली बात में जाने-अनजाने डर के गब्बर सिद्धांत (जो डर गया समझो मर गया) का उल्लंघन होता है। लोग इस सार्वभौमिक सिद्धांत को सिर्फ़ गब्बर-सांभा-कालिया की आपसी बातचीत बता कर हल्के हो लेते हैं।
- मौज लेने वाला इस भ्रम में रहता है कि मजाक-मजाक में वह लोगों को सच की झलक दिखा रहा है। लेकिन लोग समझते हैं वह जानबूझकर उनकी खिल्ली उड़ा रहा है।
- मौज लेने वाले की मरन यह होती है कि वह अपनी भी मौज लेता है तब भी लोग उसे अपने पर आरोपित करके खफ़ा हो जाते हैं।
- जैसे लोग चाहते हैं कि दुनिया में भगतसिंह पैदा हों लेकिन पड़ोसी के घर में वैसे ही मौजाकांक्षी लोग चाहते हैं कि मौज ली जाये लेकिन उसका पात्र उनको न बनाया जाये।
- कभी मौज लेने वाला मौज मजे की दुनिया से गंभीर बात कहने वालों की दुनिया में घुसना चाहता है तो लोग उसकी इस कोशिश को मजाक में उड़ा देते हैं। उसको अपनी दुनिया में घुसने नहीं देते यह सोचकर कि यहां भी माहौल खराब होगा।
- गम्भीर लेखक द्वारा किसी को समझ में न आने वाले वाले अंदाज में कही बात को बेहतरीन लेखन का नमूना माना जाता है। उसी बात को मौज लेते हुये लिखने वाले को उसकी बदतमीजी बताया जाता है।
- मौज लेने वाला हमेशा अल्पमत में होता है क्योंकि वह जिनकी-जिनकी मौज ले लेता है वो वो लोग उससे नाराज होते चले जाते हैं। लेखक तक खुद अपने से नाराज रहने लगता है।
- मौज लेने वाला तुलसीदास जी के इस दोहे में वर्णित सिद्धांत का सहारा लेता है:
सचिव, वैद्य, गुरु तीन जो प्रिय बोलहिं भय आस।
राज, धरम, तन तीनि कर होंहि बेगहिं नास॥
वहीं जिससे मौज ली जाती है वह सत्यम ब्रुयात, प्रियम ब्रुयात न ब्रुयात सत्यमप्रियम( सत्य बोलो , प्रिय बोलो लेकिन अप्रिय सत्य मत बोलो) का अमेंडमेंट लिये घूमता है। अक्सर यह नहीं तय हो पाता है कि कौन सा नियम लेटेस्ट है। इस गलतफ़हमी में जो जबर है वह अपना नियम चला ले जाता है। अक्सर अप्रिय सत्य न बोलने की बात कहने वाली पार्टी अपनी बात अपनी विनम्र बकैती से मनवा लेती है।
[ *आइडिया साभार-रवीन्द्र कालिया की कहानी नौ साल छोटी पत्नी से। इसमें एक पति अपनी पत्नी के पास कुछ प्रेम पत्र देखता है जो उसको उस लड़के ने लिखे थे जिनको वह अपनी बुआ का लड़का बताती है। ऐसे ही बातचीत में पति अपनी पत्नी से कहता है:
‘तुम्हारे ब्याह में सबसे अलग-थलग खड़ा जिस ढंग से रो रहा था, उससे तो मैंने अनुमान लगाया था कि ज़रूर रकीब होगा।’
पत्नी पूछ्ती है कि रकीब माने क्या होता है। पति बताता है अरबी में बुआ के लड़के को रकीब कहते हैं।]
[रकीब के बारे में विस्तार से जानने के लिये शब्दों का सफ़र की यह पोस्ट देखिये- रक़ीब को दुश्मन न जानिए [विरोधी-2] ]
मेरी पसन्द
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए
मगध को बनाए रखना है तो
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए
मगध है, तो शांति है
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए
मगध में न रही
तो कहां रहेगी ?
क्या कहेंगे लोग ?
लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज़ न बन जाए
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप -
वैसे तो मगधनिवासियों
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से -
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है -
मनुष्य क्यों मरता हो?
श्रीकांत वर्मा
(`मगध´ संग्रह से)
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आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..अनुपात का सिद्धांत और दानवाकार प्राणी- परग्रही जीवन श्रंखला भाग ७
……..लीजिये हम खुलेआम इस पोस्ट एवं पोस्ट लेखक की तारीफ करते हैं……..
……..हमें लगता है इस ब्लोग्पोस्ट को मुख्य दरबाजे के वनस्पति खिरकी से जैदा पढ़ा जाता है ………….
बकिया लोगों के लिए भी जगह छोर रहे हैं ………………
प्रणाम.
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अब जब मौज लेने के इतने सारे डेंजरस साइड इफेक्ट हैं तो काहे इत्ती मौज लेते हैं…
यह बताइये कि कोई आपसे मौज लिया है क्या कभी ?
यह बात एकदम सही है कि अब आप यदि गंभीर लिखना भी चाहेंगे तो नहीं लिख पायेंगे… उसे भी मौज ही माना जायेगा…
…
प्रवीण शाह की हालिया प्रविष्टी..आप लोगों का यूँ टाई पहनना जरा भी नहीं भाया अपन को- नील-मानवों !!!
वे खुश हो गये। बोले- ये अच्छा रहा कि इसी बहाने तुमसे बात हो गयी। मुझे पता लग गया कि तुम मुझे विनम्र के साथ सज्जन पुरुष भी मानते हो।
…इसके आगे सज्जन पुरूष ने यह भी तो कहा होगा….. ….इतनी दबंगई से सज्जन पुरूष को बकैत कहने वाले को दबंग बकैत कहते होंगे आपके कानपुर में…नहीं !
……..सुबह-सुबह श्रीमती जी अपना दुखड़ा सुना रही थीं, इधर मैं आपकी पोस्ट पढ़ रहा था। रकीब की बात पर इतनी जोर से हंसने लगा कि पत्नी हत्थे से उखड़ गई। ….इसका हर्जाना कौन देगा ? अब आप यह मत लिखिएगा कि पत्नी की बाद मुझसे ज्यादा सुना करो। ….वह तो सुनता ही हूँ।
…..आप पर यह आरोप लगाया जा सकता है कि मेरी पसंद के माध्यम से आपने अपनी बकैती को सही सिद्ध करने का प्रयास किया है।
अंत में एक सलाह…..
……..जब तक हाथ-पैर सलामत रहे आपको इसी अंदाज में भैस के आगे बीन बजाते रहना चाहिए वरना कौड़ी के तीन होने का खतरा है । भैंस के मुड़ी हिलाने से न घबड़ायें भैस की पीठ पर बैठे बगुले आपकी बात ध्यान से सुन रहे होते हैं।
“कि वो बेचारा अकबका के सोते से जाग गया।……:) क्या बात है, अपनी ही मौज ले ली?
“हमने सोचा कि तारीफ़ आदमी को कितना मुलायम बना देता है” – ये तो स्वयंसिद्ध है सर-
“प्रशंसा आदमी की सबसे बड़ी कमज़ोरी है” बहुत बढिया पंच.
“जिन्दगी में बहुत कुछ मानना पड़ता है जो होता कतई नहीं है” सही है
तमाम फोन कॉल्स के बहाने शानदार पोस्ट .
वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..तिरंगे लहरा ले रे
रवि की हालिया प्रविष्टी..हिंदी फ़ॉन्ट परिवर्तन के संबंध में बारंबार पूछे जाने वाले सवाल – Hindi Unicode Font Conversion FAQ
Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..बजटोत्सव
—फिर बढिया लगा आपका अनोखा अंदाज़.
Dr.ManojMishra की हालिया प्रविष्टी..गंवई शादियों में आइटम और आउटिंग
वैसे ये पोस्ट पढ़कर अखिल भारतीय स्तर पर ‘तत्सम, तद्भव क्लासेस’ न खुलने लगे कि लोगों को वहीए सीखना है जिससे कि लोगों को कुछ समझ न आए और देखते देखते वो बड़े लेखक कहलाने लगें……वैसे अब भी कईयों का लिखा कम ही समझ पाता हूं
मस्त पोस्ट है जी एकदम मस्त। हर लाइन एकदम झन्नाटेदार।
संभवत: श्रीकांत वर्मा जी को पहली बार पढ़ रहा हूं….बहुत सुन्दर कविता।
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..ढेलेदार तैयारी ऑफ आई ए एस- पीसीएस- मास्टरी- फास्टरीएण्ड गदेलाईजेशन -
बकैतों से मिलती जुलती बातें लिखेंगे तो ये तो झेलना ही पड़ेगा न. बड़े-बड़े लोगों के बारे में लिखेंगे तो मुग़ालता बना रहेगा कि दूसरों के बारे में लिखा है, यह सोचकर बकैत भी मौज ले लेंगे
बाकी मौज लेइवे तो कमरिया में दरद होइवे करी
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..छुट्टी कथा
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..छुट्टी कथा
कुश भाई गुलाबी नगरी वाले की हालिया प्रविष्टी..प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो
बिन पानी कै प्यास।
amrendra nath tripathi की हालिया प्रविष्टी..कविता – राम-राम हरे-हरे बोधिसत्त्व
फ़ुरसतिया धर्म त्याग कर इतनी जल्दी दूसरी पोस्ट -ऐसी व्यग्रता क्यों? अभी तो पहिली का मामला ही ठीक से नहीं फरियाया था -कुछ अनहोनी आशिंकित हो चली थी क्या जो रस परिवर्तन और ध्यान विकर्षण जरुरी हो गया ?
बकैत स्वरुप चिंतन मैंने भी किया है -हमारे यहाँ यह कुछ उद्दंड से लोगों के लिए प्रयुक्त होता है …जो बुद्धि विवेक से पैदल होने के साथ उद्दंड भी हो वह बकैत है और उसकी बकैती प्रायः नाकाबिले बर्दाश्त होती है …
आगे यह भी कि यह एक कारुणिक विडंबना है कि कई बार लोग गंभीर बातों को मजाक में ले लेते हैं और मजाक की बातों को गंभीरता से ..यह एक व्यंगकार की भी त्रासदी हो सकती है ……
*बकैती हमारे होस्टल में एक इवेंट भी होता था जिनमें बकैत लोग चुने जाते थे. कानपुर मैं बिन बकैती कुछ नहीं होता है
अब मौज लेंगे तो किसी न किसी की दाड़ी में तिनका तो निकल ही आएगा न
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..घूमता पहिया वक्त का
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..हे संविधान जी नमस्कार…
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पता नहीं लोग ब्लागिंग में अच्छा लिखने के लिये काहे इत्ता हलकान रहते हैं। जबकि ब्लागिंग की नींव तथाकथित खराब लिखने वालों पर टिकी है।
शुक्रिया सर जी, हमारे पर भी ट्वीट बनाने के लिये!
…
वो बेचारा अकबका के सोते से जाग गया।
विनम्र बकैत*
मौज लेने वाले की मरन यह होती है कि आहत व्यक्ति उसको खुले आम हड़काता है जबकि उसी बात को पसंद करने वाले उसकी तारीफ़ नाम न बताने की शर्त पर करते हैं।:)
गम्भीर लेखक द्वारा किसी को समझ में न आने वाले वाले अंदाज में कही बात को बेहतरीन लेखन का नमूना माना जाता है। उसी बात को मौज लेते हुये लिखने वाले को उसकी बदतमीजी बताया जाता है।
अब क्या क्या कोट करें जी पूरी पोस्ट ही रापचिक है . आप तो सच में हैलमेट पहन के ही घूमो, इंशोरेंस भी करवा लेना, .
इतना हंसाने के लिए शुक्रिया. अगली गोली का इंतज़ार है
चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगर-सर्वे – सहयोग की अपील
साईड इफ़ैक्ट्स बड़े गंभीर हैं, तो फ़िर आप तो गंभीर ब्लॉगर हुये। और हम एंवे ही पोस्ट पढ़ते हुये हंसते रहते थे कि फ़ुरसतिया जी की पोस्ट है तो मौज ली होगी। अब से सीरियस होकर पढ़ा करेंगे।
संजय @ मो सम कौन? की हालिया प्रविष्टी..अमर प्रीत – एक पुरानी कहानी
भाई जी, हम कानपुर होई आयें हैं, हम इम्प्रेस न हो पाय – वहिंन बकैती झेला है, बकैतिओ वहिंन सीखा है, बकिया गाहे बगाहे बकैती अबहूँन छाँट लेईत है । वईसे विनम्र अउर बकैत दुईनों इतने ही विरोधाभासी हैं, जेतना कि डरपोक डकैत !
फोरेन से फोन हमरे पास आवा रहा, हमका पता होत त ऊई सज़्ज़न का आपका फून नम्बरे न दे ईत !
धुत्त, ज़ायका खराब होय गवा…डरपोक डकैत, विनम्र बकैत ! धुत्त, मरियल मौज़ में कउन लज़्ज़त !
( भाई जी, यहू सुनि लेयो कि प्रतिटिप्पणी नाहिं किहौ, बस जान लेयो गज़ब हुई जाई, अबहिन बता दीना । बस जान लेयो गज़बै हुआ चाहत है, जौन प्रतिटिप्पणी करिहौ अउर हम इहाँ देख लिहा ! ! )